बुधवार, 19 फ़रवरी, 2014 को 07:15 IST तक के समाचार
'कॉमेडी नाइट्स विद कपिल', 'मैड
इन इंडिया', 'कॉमेडी सर्कस' और 'वाह, वाह क्या बात है' जैसे टीवी पर आने
वाले कॉमेडी शोज़ में मौजूद दर्शक बात-बात पर हँसते हैं, ठहाके लगाते हैं.
कई बार तो ऐसी-ऐसी बातों पर ये लोग हँस देते हैं
जो हमें उतनी मज़ेदार ही नहीं लगतीं. ऐसे में ये सवाल उठना लाज़िमी है कि
क्या वाकई इन शोज़ की विषय वस्तु इतनी बेहतरीन होती है या फिर परदे के पीछे
की सच्चाई कुछ और है?आसिफ़ एक एजेंट हैं जिनका काम है टेलीविज़न के तमाम रियलिटी शोज़ और कॉमेडी शोज़ के लिए 'नकली दर्शक' लाना.
आसिफ़ कहते हैं, "हमसे दर्शक सप्लाई करने को कहा जाता है. इनमें ज़्यादातर कॉलेज स्टूडेंट्स, संघर्षरत मॉडल्स और स्ट्रगलर्स होते हैं. इन तमाम शोज़ में मौजूद 50 से 70 प्रतिशत दर्शक नकली होते हैं."
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आसिफ़ ने ये भी बताया कि शो में इनके बैठने की व्यवस्था कैसे की जाती है. उनके मुताबिक़, "अच्छे दिखने वाले लड़के और लड़कियों को आगे की सीट पर बैठाया जाता है. और बाक़ी लोगों को पीछे. इन लोगों की आठ से 12 घंटे की शिफ़्ट होती है लेकिन कई बार कुछ घंटों का इंतज़ार भी करना पड़ता है."
इन नकली दर्शकों को इसके लिए पैसे दिए जाते हैं. कई संघर्षरत टीवी कलाकार या मॉडल्स इन शोज़ में दर्शकों के रूप में आकर नेटवर्किंग का काम करते हैं ताकि उन्हें आगे काम मिल सके.
कई लोगों के लिए ये पैसे कमाने का ज़रिया होता है इसलिए ये लोग बार-बार अलग-अलग शोज़ में जाते रहते हैं. इन्हें टीवी की भाषा में 'रिपीट ऑडिएंस' कहा जाता है.
आसिफ़ बताते हैं कि सिर्फ़ वो ही नहीं, बल्कि उनके जैसे क़रीब हज़ार एजेंट हैं जो मुंबई में सक्रिय हैं.
हर तरह के दर्शकों की सप्लाई
वो कहते हैं, "इन शोज़ में हर तरह के दर्शक चाहिए होते हैं. हम विदेशी लड़कियों से लेकर भारतीय दर्शक, छात्र-छात्राएं सभी को यहां भेजते हैं. पहले हम इन्हें ट्रेनिंग देते हैं ताकि शो में कोई ग़लती न हो."
अज़र ने बताया कि फ़िल्मी पार्टियों और ऐसे ही दूसरे समारोहों में इन नकली दर्शकों से ये लोग मिलते हैं और नंबरों का आदान- प्रदान करते हैं और इस तरह से ये नेटवर्क काम करता है.
हो सकता है कि टीवी देख रहे लोगों का इससे मनोरंजन होता हो लेकिन अज़र के मुताबिक़ दरअसल इसमें से ज़्यादातर नकली और पूर्वनियोजित होता है.
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अज़र के मुताबिक़, "इन दर्शकों को सिखाया जाता है कि उन्हें कब हँसना है, कब रोना है, कब नाचना है और कब तालियां बजाना है. कौन बनेगा करोड़पति, तमाम कॉमेडी शोज़ और बिग बॉस जैसे शो में यही सब होता है."
इन कॉमेडी शोज़ में पिछले पांच-छह महीने से आफ़रीन दर्शक के तौर पर जा रही हैं. वो कॉलेज में पढ़ती हैं और अपनी पॉकेट मनी के लिए नकली दर्शक बनकर इन शोज़ में जाती हैं.
वो कहती हैं, "शुरूआत में तो मुझे मज़ा आता था, लेकिन अब मैं बोर होने लगी हूं. कई बार हमारी शिफ़्ट लंबी खिंच जाती है क्योंकि इन शोज़ में आने वाले स्टार्स अपनी लाइन भूल जाते हैं या रीटेक्स लेते हैं. एक ही लाइन को बार-बार रिहर्स करते हैं जिससे सर दर्द करने लगता है."
पैसों के बदले 'बेइज़्ज़ती'
इसके पीछे क्या माज़रा है ? रशीद बताते हैं, "कोई फ़्री में भला अपनी बेइज़्ज़ती क्यों करवाएगा. जिन दर्शकों का मज़ाक उड़ाना तय होता है उन्हें बाक़ी लोगों की तुलना में ज़्यादा पैसे मिलते हैं. सब कुछ स्क्रिप्ट के हिसाब से होता है. शो में आए स्टार्स से क्या सवाल पूछने हैं, क्या बोलना है, कब ताली मारनी है सब हमें बताया जाता है."
रेहान ने बताया कि भारतीय दर्शकों को प्रति एपिसोड एक से दो हज़ार रुपये और विदेशी दर्शकों को तीन से चार हज़ार रुपये और खाना मिलता है.
सोफ़िया रूस से आई हैं. वो इन शोज़ में जाती रहती हैं. उन्होंने अपने भारतीय दोस्तों से कामचलाऊ हिंदी भी सीख ली है.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "हमें कई बार कोई बात समझ ही नहीं आती लेकिन दूसरों को हँसते देख हम भी हँसने लगते हैं. हम लोग ग्रुप बनाकर ऐसे शोज़ में जाते हैं."
तो इन शोज़ में लगातार गूंजने वाली हँसी के पीछे का राज़ है पैसा. पैसे फेंक तमाशा देख. पैसे कर देता है लोगों को हँसने पर मजबूर वर्ना लोगों को अपने आप हँसी कम ही आती है.
http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/2014/02/140218_fake_audience_in_tv_shows_pkp.shtml?ocid=socialflow_facebook
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