किसने
कहा साड़ी में आजकल की लड़कियां सुन्दर लगती है ...? बिलकुल भी सुन्दर नहीं
लगती ..../ आजकल की लड़कियां ..जींस ..हाफ टी शर्ट या टाप ...और पतले पतले
चप्पल ...और लम्बे टाइप के हैण्ड बैग्स ....लम्बी चौड़ी स्क्रीन वाले मोबाइल
...केवल चेहरे पर मेकप ...न लिपस्टिक ...न माथे पर बिंदी ....ऐसी लड़कियां
बहुत सुन्दर लगती है ...इससे ये पता चलता है न वे तो वे उनके परिजन पूरी
तरह शिक्षित हैं ....आधुनिक विचारधारा के
हैं ....! साड़ी पहनने वाली लड़कियां तो पुराने ज़माने की लगती हैं ...? भला
साड़ी पहन पार्टी में जायेंगे ....या किसी पी वी आर ...या शोपिंग माल में
जायेंगे ...? भला साड़ी पहन कर स्कूटी जैसी गाड़ी चलाएंगे ....? साड़ी पहनेगे
तो मुहँ पर स्कार्फ बंधने का शौक कैसे पूरा करेंगे ...? साड़ी में तुरंत
पहचान भी लिए जायेंगे न यदि कहीं बिना बताये गएँ होंगे ...? भला जींस टॉप
और मुहँ स्कार्फ से ढके होने के बाद कौन पहचानेगा न .....!!
समाज को सहन नहीं होतीं आत्मविश्वासी व चुस्त औरतें। साड़ी वैसे भी ऐसा परिधान है कि बिना कुछ खोले स्त्री को क्षण भर में नंगा किया जा सकता है; साड़ी को नीचे से उलट दो या ऊपर से, स्त्री क्षण भर में नंगी। इसीलिए पुरुषों के लिए यह बहुत सुभीते का लिबास है। इसीलिए साड़ी की प्रशंसा में सदा नारी और संस्कारी की बातें लिखी गईं। और इसीलिए पुरुषों को साड़ी में ही स्त्री संस्कारी दिखाई देती हैं; कुछ और पहन ले तो चालू और असंस्कारी।
हाँ
लोग तो यही चाहते है कि लड़कियां आजीवन साड़ी पहनते और संभालते हुए अच्छे
लगने और अच्छी लडकी होने के पाँच गजी फंदे में फँसी गिरती-पड़ती रहे ...
लड़कियों और स्त्रियों अपनी पसंद के और अपने काम के अनुरूप सुविधाजनक कपडे
इतना अधिक पहनों कि यह अच्छे लगने होने की परिभाषाएं और स्थितियाँ बदल जाए
...
" जब किसी आदमी के मुँह से सुनती हूँ कि लडकियां साड़ी में अच्छी लगती हैं ,तो मेरा मन दहाड़ मार के रोने का करता है,जब कोई लड़की भी कहती है साड़ी उसका पसंदीदा परिधान है तो मैं समझ जाती हूँ ये कूड़ा कहाँ से आया होगा दिमाग में !कितना भी आप मुझे गलीच माने लेकिन मैं साड़ी को जीरो नंबर देती हूँ !साड़ी में बंध कर लड़कियो को, उनके पुरे वजूद को बाँध दिया गया है ,घर में मेरी माँ भी साड़ी पहनती हैं लेकिन जिस तरह से हमारी माएँ साड़ी पहन कर काम करती हैं ,मुझे दया आती है ,बिना प्लेट के खोसी हुई ,आँचल को खीच के बांधती,किसी के आते है एक कोने से मुँह ढक लेना ,साड़ी कम संस्कार ज्यादा गिरते पड़ते संभालती! कैसे कोई लड़की साड़ी में डूब के खूबसूरत लग सकती है ,दरअसल छातियो और चहरे को ढकने के इतने दबाव हैं कि साड़ी हर बार बाज़ी मार ले जाती है !हमारे यहाँ थानो पर कपड़ो से भी लोग पहचाने जाते हैं ,पीड़िता ने साड़ी पहनी है तो " बेचारी " ,जीन्स पहना है तो "चालु" !आराम का सवाल सिर्फ मर्दो का है ,रोज़ाना ६ गज के कपड़ो में लिपट कर देखो ,सुंदरता के पैमाने बदल दोगे !
लड़कियो अगली बार जब तुम्हारा बॉयफ्रेंड ,पति ,ससुर ,पडोसी ,कुलीग ………साड़ी के कसीदे काढ़े ..........तुरंत साड़ी लाकर कर उनके हाथ में थमा देना ,सुन्दर होने से उन्हें वंचित बिलकुल मत रखना !
यह वही मर्दवादी संस्कार हैं कि स्त्री की छाती लज्जा की वस्तु है, स्त्री की देह उघाड़ने में सरल वस्त्र ही उसके संस्कारी होने की निशानी हैं।
गरिमा की बात तो वह हमारे मन में होती है। हमें लगता आया है कि स्त्री ने अपने आँचल से अपना वक्ष नहीं ढंका तो वह चरित्रहीन है। मानो उसका वक्ष उसके लिए कोई लज्जाजनक उपादान है। अपने वक्ष के लिए शर्मिंदगी झेलती औरतें ऑक्सीज़न भी ठीक से नहीं ले पातीं क्योंकि सीना तान कर चलना तो उस गरिमामय नारी के लिए कुलटा होने के समान है।
समाज को सहन नहीं होतीं आत्मविश्वासी व चुस्त औरतें। साड़ी वैसे भी ऐसा परिधान है कि बिना कुछ खोले स्त्री को क्षण भर में नंगा किया जा सकता है; साड़ी को नीचे से उलट दो या ऊपर से, स्त्री क्षण भर में नंगी। इसीलिए पुरुषों के लिए यह बहुत सुभीते का लिबास है। इसीलिए साड़ी की प्रशंसा में सदा नारी और संस्कारी की बातें लिखी गईं। और इसीलिए पुरुषों को साड़ी में ही स्त्री संस्कारी दिखाई देती हैं; कुछ और पहन ले तो चालू और असंस्कारी।
समाज
को सहन नहीं होतीं आत्मविश्वासी व चुस्त औरतें। साड़ी वैसे भी ऐसा परिधान
है कि बिना कुछ खोले स्त्री को क्षण भर में नंगा किया जा सकता है; साड़ी को
नीचे से उलट दो या ऊपर से, स्त्री क्षण भर में नंगी। इसीलिए पुरुषों के लिए
यह बहुत सुभीते का लिबास है। इसीलिए साड़ी की प्रशंसा में सदा नारी और
संस्कारी की बातें लिखी गईं। और इसीलिए पुरुषों को साड़ी में ही स्त्री
संस्कारी दिखाई देती हैं; कुछ और पहन ले तो चालू और असंस्कारी। #Vachaknavee
" जब किसी आदमी के मुँह से सुनती हूँ कि लडकियां साड़ी में अच्छी लगती हैं ,तो मेरा मन दहाड़ मार के रोने का करता है,जब कोई लड़की भी कहती है साड़ी उसका पसंदीदा परिधान है तो मैं समझ जाती हूँ ये कूड़ा कहाँ से आया होगा दिमाग में !कितना भी आप मुझे गलीच माने लेकिन मैं साड़ी को जीरो नंबर देती हूँ !साड़ी में बंध कर लड़कियो को, उनके पुरे वजूद को बाँध दिया गया है ,घर में मेरी माँ भी साड़ी पहनती हैं लेकिन जिस तरह से हमारी माएँ साड़ी पहन कर काम करती हैं ,मुझे दया आती है ,बिना प्लेट के खोसी हुई ,आँचल को खीच के बांधती,किसी के आते है एक कोने से मुँह ढक लेना ,साड़ी कम संस्कार ज्यादा गिरते पड़ते संभालती! कैसे कोई लड़की साड़ी में डूब के खूबसूरत लग सकती है ,दरअसल छातियो और चहरे को ढकने के इतने दबाव हैं कि साड़ी हर बार बाज़ी मार ले जाती है !हमारे यहाँ थानो पर कपड़ो से भी लोग पहचाने जाते हैं ,पीड़िता ने साड़ी पहनी है तो " बेचारी " ,जीन्स पहना है तो "चालु" !आराम का सवाल सिर्फ मर्दो का है ,रोज़ाना ६ गज के कपड़ो में लिपट कर देखो ,सुंदरता के पैमाने बदल दोगे !
लड़कियो अगली बार जब तुम्हारा बॉयफ्रेंड ,पति ,ससुर ,पडोसी ,कुलीग ………साड़ी के कसीदे काढ़े ..........तुरंत साड़ी लाकर कर उनके हाथ में थमा देना ,सुन्दर होने से उन्हें वंचित बिलकुल मत रखना !
यह वही मर्दवादी संस्कार हैं कि स्त्री की छाती लज्जा की वस्तु है, स्त्री की देह उघाड़ने में सरल वस्त्र ही उसके संस्कारी होने की निशानी हैं।
गरिमा की बात तो वह हमारे मन में होती है। हमें लगता आया है कि स्त्री ने अपने आँचल से अपना वक्ष नहीं ढंका तो वह चरित्रहीन है। मानो उसका वक्ष उसके लिए कोई लज्जाजनक उपादान है। अपने वक्ष के लिए शर्मिंदगी झेलती औरतें ऑक्सीज़न भी ठीक से नहीं ले पातीं क्योंकि सीना तान कर चलना तो उस गरिमामय नारी के लिए कुलटा होने के समान है।
भाई appka ब्लॉग
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