Sunil Kumar 'suman'
ग्रामीण विकास को समर्पित द्विमासिक और द्विभाषिक पत्रिका- ''सोपान स्टेप'' के सात वर्ष पूरे होने पर अक्तूबर,2012 का अंक वार्षिकांक के रूप में आया है। यह अंक आज के संदर्भ में ''ग्राम स्वराज्य की प्रासंगिकता'' के सवाल पर आधारित है। भारतीय गांवों को लेकर खासा खुशफहमी पाली जाती रही है। खासतौर पर गांधीजी की 'ग्राम स्वराज्य' की अवधारणा को भी काफी महिमामंडित किया जाता रहा है। क्या दलित समुदाय के लिए इस 'ग्राम स्वराज्य' का कोई मतलब है जबकि भारतीय गाँव हमेशा से जातिवाद के सबसे बड़े गढ़ रहे हैं ? क्या यह अकारण था कि बाबासाहब डॉ. अंबेडकर ने गांवों को ''गणतन्त्र का सबसे बड़ा दुश्मन'' कहा ? मैंने अपने लेख में इसी दृष्टिकोण से कुछ बातें उठाई हैं...