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Thursday, March 28, 2013

दंग रह जाती हैं विदेशी औरतें भारतीय मर्दों से

  http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/03/130327_india_tourists_unsafe_sy.shtml
 http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2013/03/130321_foreigner_women_unsafe_india_sy.shtml

शुक्रवार, 29 मार्च, 2013 को 07:23 IST तक के समाचार

पिछले दिनों एक ब्रितानी सैलानी को आबरू बचाने के लिए बालकनी से छलांग लगानी पड़ी

पिछले साल दिसंबर में भारतीय राजधानी दिल्ली में एक लड़की के साथ गैंगरेप की चर्चा दुनिया भर की मीडिया में हुई जिसके बाद सवाल उठे कि भारत में महिलाएं आख़िर सुरक्षित क्यों नहीं हैं.

यही सवाल एक बार फिर उठ रहे हैं. लेकिन इस बार भारतीय ही नहीं विदेशी महिलाओं के सुरक्षा को लेकर भी.
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भारत

इसी साल भारत में तीन ऐसे मामले सामने आए जिनमें विदेशी महिलाओं को दुराचार का शिकार बनाया गया.

जनवरी में क्लिक करें
चीन की एक युवती के साथ दिल्ली में बलात्कार
किया गया, फ़रवरी में मध्य प्रदेश में एक दक्षिणी कोरियाई सैलानी के साथ दुष्कर्म और फिर मार्च में मध्य प्रदेश में ही एक स्विस महिला के साथ सामूहिक बलात्कार की वारदात सामने आई.

और फिर कुछ ही दिन पहले आगरा के एक होटल में रह रही क्लिक करें
ब्रितानी महिला को अपनी आबरू बचाने के लिए होटल
की बालकनी से छलांग लगानी पड़ी.

इन सब वारदातों के बाद ब्रिटेन, स्विट्ज़रलैंड और चीन ने अपने नागरिकों को भारत में अपनी सुरक्षा का ख़ास ख़्याल रखने की सलाह दे डाली.

इन देशों के ज़रिए दी गई एडवाइज़री से वे भारतीय चिंता में पड़ गए हैं, जिनकी रोज़ी-रोटी पर्यटन उद्योग से चलती है.

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यहां के पुरुषों की समस्या ये है कि वे बहुत घूरते हैं. शायद उनकी मानसिकता ऐसी है कि लाइफ में जितनी महिलाएं देखने को मिल जाए उतना अच्छा है. अपनी घरवाली से शायद उनका मन नहीं भरता, तो वे बाहरी महिलाओं पर बुरी नज़र डालते हैं"

लीना, सैलानी

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ये साबित होता है उन विदेशी सैलानियों के बयान से जिनसेबीबीसी हिंदीने पिछले हफ़्ते बात की.
'घूरते हैं यहां के मर्द'

कोलंबिया से भारत घूमने आई लीने ने कहा, “मैं दो महीने पहले भारत आई हूं और यक़ीन मानिए मेरी मां मुझे यहां आने की इजाज़त ही नहीं दे रही थीं. उन्हें लगा कि मैं भारत में सुरक्षित नहीं रह पाऊंगी. यहां के पुरुषों की समस्या ये है कि वे बहुत घूरते हैं. शायद उनकी मानसिकता ऐसी है कि लाइफ़ में जितनी महिलाएं देखने को मिल जाए उतना अच्छा है. अपनी घरवाली से शायद उनका मन नहीं भरता, तो वे बाहरी महिलाओं पर बुरी नज़र डालते हैं.”

तो वहीं अर्जेंटीना से आई आंद्रे का कहना था, “मुझे लगता है कि मुझे यहां सुरक्षित सिर्फ़ इसलिए महसूस होता है क्योंकि मैं अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ यहां आई हूं. शायद अकेली होती तो इतना सुरक्षित महसूस नहीं करती क्योंकि यहां जिस तरह से लोग हमारी तरफ़ देखते हैं वो अजीब ही है.”

हालांकि जिन महिला विदेशी सैलानियों से बीबीसी ने बात की, सबने कहा कि उन्हें भारत बेहद ख़ूबसूरत जगह लगी.

उन्होंने कहा कि ख़ुद को सुरक्षित रखने के लिए वे शालीन कपड़े पहन कर निकलती हैं और देर रात अकेले बाहर नहीं निकलती.

यानि यहां सैलानियों को अगर परेशानी है, तो वो सिर्फ़ लोगों के स्वभाव से.
'व्यस्त है पुलिस'

भारतीय टूर ऑपरेटर संघ आईएटीओ का कहना है कि इससे पहले कि ऐसी घटनाओं का असर पर्यटन क्षेत्र पर पड़े, भारतीय सरकार को कड़े क़दम उठाने होंगें.

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हमारे यहां ज़्यादातर पुलिस फोर्स वीआईपी राजनेताओं को सुरक्षा प्रदान करने में व्यस्त रहती है. ऐसे में किसके पास वक्त है पर्यटकों की समस्याएं सुलझाने का? हमने पर्यटन मंत्रालय और सभी राज्यों को चिट्ठी लिख कर आग्रह किया है कि हर राज्य में टूरिस्ट पुलिस और टूरिस्ट हेल्पलाइन का इंतज़ाम किया जाए. "

सुभाष गोयल, आईएटीओ के अध्यक्ष

आईएटीओ के अध्यक्ष सुभाष गोयल ने बीबीसी से बातचीत में कहा, “पर्यटन क्षेत्र एक बेहद संवेदनशील क्षेत्र है और ऐसी घटनाओं से भारत की छवि को झटका लगा है. हमने पर्यटन मंत्रालय और सभी राज्यों को चिट्ठी लिख कर आग्रह किया है कि हर राज्य में टूरिस्ट पुलिस और टूरिस्ट हेल्पलाइन का इंतज़ाम किया जाए. इस देश में क़ानून तो है, लेकिन उसका पालन नहीं हो रहा है.”

सुभाष गोयल ने बीबीसी को बताया कि ये पहली बार नहीं है जब उन्होंने सरकार से ये आग्रह किया है कि टूरिस्ट पुलिस को आम पुलिस से अलग कर उन्हें पर्यटन सभ्यता के बारे में शिक्षित किया जाए, लेकिन इस बात पर अब तक कोई ध्यान नहीं दिया गया.

उन्होंने सरकारी प्रणाली की आलोचना करते हुए कहा, “हमारे यहां ज़्यादातर पुलिस फ़ोर्स वीआईपी राजनेताओं को सुरक्षा प्रदान करने में व्यस्त रहती है. ऐसे में किसके पास वक़्त है पर्यटकों की समस्याएं सुलझाने का? टूरिस्ट पुलिस को आम पुलिस के अधिकार क्षेत्र के दायरे से बाहर लाना होगा.”
अतिथि देवो भव: ?

विदेशी सैलानियों को भारत की ओर आकर्षित करने के लिए क़रीब एक दशक पहले पर्यटन मंत्रालय ने ‘अतिथि देवो भव’ नाम का अभियान शुरू किया था.

ये मुहिम विदेशी सैलानियों के आँकड़े बढ़ाने में तो सफल रही, लेकिन जहाँ सैलानी ख़ुद को सुरक्षित महसूस करें, ऐसा माहौल तैयार करने में ये मुहिम अभी तक कारगर नहीं रही है.

विशेषज्ञों का कहना है कि आंकड़ों के बजाए भारतीय पर्यटन क्षेत्र को सैलानियों का स्वागत करने वाले भारतीय लोगों की मानसिकता बदलने पर ध्यान देना चाहिए.

आईएटीओ के अध्यक्ष सुभाष गोयल का कहना है कि ‘अतिथि देवो भव’ मुहिम से भारतीय पर्यटन क्षेत्र को काफ़ी फ़ायदा हुआ है, लेकिन विदेशी सैलानियों का स्वागत करने वाले लोगों की मानसिकता नहीं बदल पाई है.

दिसंबर गैंग-रेप वारदात के बाद लोगों की मानसिकता को लेकर भारत में बड़ी बहस छिड़ी थी और ये बहस शायद लंबे समय तक जारी रहेगी.

Sunday, December 9, 2012

हम सचमुच घूरने वाले समाज के सदस्य हैं

दुनिया में गूगल पर सेक्स सर्च करने में हमारी टक्कर सिर्फ पाकिस्तान से है. जो जितना तहजीब वाला माना जाता है, उसे देखना और घूरना उतना ही ज्यादा भाता है. सेक्स शब्द सर्च करने वाले शहरों में लखनऊ अव्वल है तो पोर्न स्टार सनी लियोनी को इंटरनेट पर देखने की ख्वाहिश हरिद्वार में खूब उबाल मारती है. कामसूत्र इस देश का ऑल टाइम बेस्ट सेलर है और मोहल्ले के अंकलजी की सीडी की दुकान सुसंस्कृत लोगों के बूते नीली फिल्मों से लदी-फंदी रहती है. देखने और घूरने की परंपरा कोई आज की नहीं है. पूजा स्थलों में भी अक्सर संभोगरत मूर्तियां देव मूर्तियों के साथ बराबरी से होड़ करती हैं. देवदासी प्रथा इसी देश की हकीकत है. कई बाबाओं की प्रतिष्ठा सेक्स स्कैंडल्स की वजह से है.

यह समाज इसलिए भी अद्भुत है क्योंकि यहां बलात्कार के लिए ‘इज्जत लुट जाने’ जैसे मुहावरे हैं. अपराध करने वाले की इज्जत नहीं लुटती, पीड़ित की इज्जत लुट जाती है. भाषा के संस्कार भी बेहद अजीब हैं. माता-पिता कन्या-दान करते हैं, मानो कोई वस्तु है, जिसे दान में देना है. बचपन से लड
़कियों को पराया धन होने का पाठ पढ़ाया जाता है और कंधे झुकाकर चलने का सलीका सिखाया जाता है. आज भी देश के ढेरों कॉलेज ऐसे हैं, जहां लड़कियों को अलग बिठाया जाता है, मानो लड़की नहीं, छूत की बीमारी हो, कि छूने से कुछ बिगड़ जाएगा. लेकिन इन्हीं कॉलेजों के लड़के जाकर सिनेमा हॉल में अर्ली मॉर्निंग शो की सीटें भर देते हैं.

ऐसे समाज में जो दिन-रात सेक्स की सोच में डूबा हो, वहां सेक्स पर बात करना इतना कठिन क्यों है? क्या हम सेक्स को लेकर डरे हुए लोग हैं. बलात्कार के आंकड़ों से क्राइम रिकॉर्ड को बुलंद रखने वाला मर्द समाज एक लड़की या महिला से बातचीत करते हुए इतना घबराता क्यों हैं? क्या लड़की उसके लिए सिर्फ एक मादा है, जिससे सेक्स करना है और कुछ नहीं? क्या वह उसी तरह की एक प्राणी नहीं है? एक लड़की जब अपनी पसंद से अपने लिए पार्टनर चुनना चाहती है, तो यह भयभीत समाज बौखलाकर उसकी हत्या तक कर देता है.

सवाल यह है कि भारतीय समाज सेक्स से डरता है या महिलाओं की आजादी से?

शुक्र है कि हमारा समाज धीरे-धीरे ही सही पर खुल रहा है. छोटे शहरों तक खुलेपन की एक हल्की सी लहर ही सही, पहुंच रही है. महिलाओं का वर्किंग स्पेस में आना और उनका आर्थिक रूप से समर्थ होना पूरे परिदृश्य को बदलने की ताकत रखता है. औरतों के लिए भी चुनने की आजादी अब वास्तविकता बन रही है. औरतों की आजादी भारतीय समाज को निर्णायक रूप से बदल देगी. स्त्री-पुरुष संबंधों का लोकतंत्र किसी भी समाज के सभ्य होने की दिशा में बढ़ने की पहली शर्त है. हम देर-सबेर इस शर्त को पूरा कर पाएंगे, ऐसी कामना की जानी चाहिए. फिर एक ऐसा समय भी आएगा जब हम बिना झिझक के और डरे बगैर सेक्स के बारे में भी बात कर पाएंगे. - Dilip C Mandal