Showing posts with label कविताएँ. Show all posts
Showing posts with label कविताएँ. Show all posts

Thursday, April 28, 2011

यह देश है वीर जवानों का


यह देश है वीर जवानो का
बाबाओं का,भगवानों का 
टाटाओं का बिडलाओं का
और उनकी ही संतानों का  

कमजोरों बिल में छुप बैठो
मज़लूमो अब खामोश रहो
वीरों के बूटों को पूजो
वीरों की सारी मार सहो
उनका ही झंडा फहराओ
और उनको हिन्दुस्तान कहो

भूखों की भूख बेमानी है
फरमान यही साहेबानों का

      सब धरती जंगल उनके हैं
      जंगल के मंगल उनके हैं
      जेलों के ताले उनके हैं
      फांसी के फंदे  उनके हैं  
      तुम माला फेरो मस्त रहो
      और सारे मनके उनके हैं

जो सुन्दर है सब उनका है
बाक़ी सब हम दीवानो का

      शहरों में रहने वाले जो
      टाई में बंध इठलाते हैं
      जो सोलह घंटे खटते हैं
      और पॅकेज पर इतराते हैं
      ये नए गुलाम भी पूंजी के
      इक झटके में नप जाते हैं

हम जन गण मन रटते रहते
पर राज तो है श्रीमानों का

      शर्मिला भूखी मरती है
       और जेल बिनायक जाते हैं
      भगवान खिलाड़ी बनते हैं
       और ढोंगी पूजे जाते हैं
      यह डेमोक्रेसी चीज़ गज़ब
      गुण जिसके गाये जाते हैं

हम बैठे राह तकेंगे और
जाने कितने मतदानों का  
                                   

Saturday, April 23, 2011

ब्राह्मण मतलब ........बुरा मन

माथे तिलक , हाथ जयमाला ,जग ठगने कुं स्वांग बन्याया !
मार्ग छांडी कुमारग साँची, प्रीती बिनु राम न पाया !! (रेदास )
द्वारा Aar Ravi


हे धूर्त चपटी
तुम्हारा चन्दन का टीका
मेरी कलम  से ज्यादा
उपयोगी नहीं ,
मुझे पता है
तुम्हारे  जनेऊ में
मरी हुई जुओं की
गंध आती है
जिनमे  जीवन का   नहीं
मौत का भय  दिखता है ,
मेरे देह का पसीना
और गंध
तुम्हारे सड़े हुए जनेऊ से
लाख गुना  बहतर है ,
आओ , मेरे पसीने से
अपने बदन को रगडो
और महसूस करो
कि बू की कोई भाषा नहीं होती
और गंध का कोई वजूद नहीं होता .............मुकंद दा एक विद्रोही कवि