साभार ......आर रवि जी....
पहले तो ये जान लो कि शुद्र और अछूतों में अंतर हैं ....जिन्हें हम शुद्र कहते हैं सिन्धु सभ्यता में भी दस्तकार या कारीगर होते थे कपड़ा बुनना, खेती के औजार बनाना , गहने बनाना, बर्तन बनाना इत्यादी इनके काम होते थे ...सिन्धु सभ्यता में वर्ण या जाति नहीं थी ..बल्कि एक तिर्कोनी व्यवस्था थी जिसमे राजकीय वर्ग, व्यापारी वर्ग और दस्तकार या कारीगर वर्ग के अलावा किसान और मजदूर वर्ग था ..पुजारी वर्ग का कही अता पता इस सभ्यता में नहीं मिलता
संधू सभ्यता के नगर दुर्गो में बटे हुए थे ....सभ्यता का दायरा बहुत बड़ा था जो आज के अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों से लेकर पाकिस्तान, काश्मीर, राजस्थान,हरियाणा,पंजाब , गुजरात और पश्चिम उत्तर प्रदेश का कुछ हिस्सों तक फैला था ..इस विस्तृत क्षेत्र में सभ्यता के बहुत सारे दुर्ग या नगर थे .हडपा , मोहन जोदड़ो , कालीबंगल लोथल ,बनवाली ना जाने कितने ही दुर्ग या नगर थे राजकीय वर्ग का काम इन दुर्गो की व्यवस्था देखना होता थी ना कि आर्यों की तरह आपस में युद्ध ...
समस्त भूमि राज्य की थी जिसपर किसानो और मजदूरों से राज्य खेती से पैदावार और पशुओ को पालने का काम करवाता था और दस्तकार का पेशा भी स्वतंत्र नहीं था ..व्यापारी वर्ग अपनी कार्यशालाओं में विभिन्न प्रकार के काम करवाता था ..
इसी वक्त यूरोप के कुछ दबंग और साहसी प्रवर्ती के लोग खाना बदोशो की भाँती स्थायी जगह पर टिकने के लिए दुनिया में जगह जगह घूम रहे थे क्योकि यूरोप में सर्दी का प्रकोप बहुत ज्यादा हो गया था ..वे यूरोप के दक्षिण भागो की और बढ़ने लगे ..ये ही लोग भारत में आकर आर्य कहलाये .ये बहुत लड़ाकू और निडर प्रवर्ती के लोग थे तथा अपने साथ कुत्तो घोड़ो , भेड़ बकरी, गाय और बैल लेकर चलते थे ..जब ये ताशकंद के पास आये इस यूरोपीय लोगो का समूह दो भागो में बात गया,,एक भाग भारत की तरफ बढ़ा जो भारत में आर्य कहलाया तो दुसरा समूह इरान की और बढ़ गया जो वहाँ जाकर पारसी कहलाया ..
उस वक्त सिन्धु सभ्यता के लोग बड़े शान्ति प्रिये ढंग से एक जगह रहकर व्यापार और उद्योग धन्दो के साथ साथ खेती और पशुपालन में लगे हुए थे ..आर्यों ने इसी सिन्धु सभ्यता के वासियों पर पर अपना आक्रमण और अधिपत्य जमाया ..सिन्धु वासियों ने नदियों पर बाँध बनाकर नहरे निकालने का काम उस वक्त सिख लिया था जो खेतो की सिचाई करती थी ..आर्यों ने इन्ही बांधो को तोड़कर सिन्धु वासियों के क्षेत्र को जल मग्न कर दिया था जिन्होंने बाद में इसको प्रलय का नाम दिया .
सिन्धु सभ्यता पर आर्यों द्वारा पूर्ण रूप से अधिपत्य कर लेने के बाद सभ्यता के राजकीय वर्ग और व्यापारी वर्ग को ओने अधीन कर लिया औरइनके समस्त दुर्गो और व्यापार पर अपना अधिपत्य जमा लिया ...एक समझोते के अनुसार इन राजकीय वर्ग और व्यापारी वर्ग को दुर्गो के बाहर रहने की अनुमति उस शर्त पर दी गई कि वे दुर्गो से बाहर रहते हुए दुर्गो की साफ सफाई और जानवरों और शत्रुओ से दुर्गो की रख्सा करेगे ...ये ही दुर्गो या नगरो से बाहर रहने राजकीय और व्यापारी वर्ग कालांतर में अछूत कहलाया ..
उस वक्त आर्यों के दो ही वर्ण थे एक लड़ाकू और दुसरे बुद्धीजीवी चुकी आर्य अपने आप को श्रेष्ठ सनाझते थे और दस्कारी और उद्ध्योग धन्दो से महरूम थे इसलिए कारीगरों और दसक्रारो के लिए शुद्र वर्ण बनाया जो हर प्रकार से सेवा करेगा और इनके कार्यो को देखने के लिए और अद्ध्योगो को सुव्चारु रूप से चलाने का देखने के लिए व्यापारी वर्ग का उदय हुआ ..इस तरह स्थायी रूप से बसने पर आर्यों का समाज चार वर्णों में विभक्त हो गया ..बुद्धीजीवी वर्ग जो ब्राह्मण कहलाया , राजकीय काम संभालने वाला और दुर्गो की रक्षा करने वाला क्षत्रीय वर्ग हुआ ..सिधु सभ्यता के बहुत बड़े भूभाग में फैले व्यापार को अपने हाथ में लेने वाला वैश्य वर्ग कहलाया और सिन्धु सभ्यता में जो पहले से ही कारीगर और दस्तकार थे उन्हें समाज में मिला लिया गया मगर उनको जाति में बाँट दिया गया जैसे सुनार, कुम्हार,बधाई, दर्जी आदि और इस समाज को शुद्र नाम दिया गया ..आप समझ गए होगे कि शुद्र और अछूतों में क्या अंतर हैं...रामराज आने तक ये ही ववस्था चल रही थी ..अछूत अभी भी गाव के बाहर ही रहते थे और शुद्र गाव में रहकर आर्यों की बिभिन्न र्रोपो में सेवा करते थे ..
कही शुद्र पढ़लिखकर समझदार और अधिकारों के प्रति सचेत ना हो जाए इसलिए शुद्रो के लिए शिक्षा के सभी द्वार बंद कर दिए गए ...यहाँ तक की अगर शुद्रो को शिक्षा के शब्द भी सुनाई दे तो उनके कानो में शीशा भर दिया जाए ..क्योकि शिक्षा ही ऐसी चीज थी जी हर अन्धकार को भगा दती हैं ..
और रही बात वाल्मिकी जी की तो वे ना तो शुद्र थे और ना ही अछूत जबकि शम्भूक जी अछूत नहीं शुद्र थे और जाति से एक बढई थे इसलिए उनको शिक्षा पाने की सजा दी गई ..रही महाभारत की बात तो ये जान लो इस वक्त तक आते आते राजा और सम्राट बहुत शक्तिशाली और निरंकुश हो गए थे वे किसी भी जाति की स्त्री से शादी कर सकते थे या उसको या अपनी रानी (रखैल )बनाकर रखा लेते थे ...अगर स्त्री शुद्र जाति की हैं तो इनसे होने वाली संतान शुद्र ही कहलाती रही मगर दुसरे शुद्रो की भाँती ये नए शुद्र राजा की संतान होने के कारण शिक्षा प्राप्त कर सकते थे ...महाभारत पढ़िए वेड व्यास जी भी इसी तरह की संतान थे चुकी राजकीय ववस्था से पैदा हुए थे इसलिए शिक्षा पाने का अधिकार मिल गया था ..इसलिए महाभारत की रचना कर सके
पहले तो ये जान लो कि शुद्र और अछूतों में अंतर हैं ....जिन्हें हम शुद्र कहते हैं सिन्धु सभ्यता में भी दस्तकार या कारीगर होते थे कपड़ा बुनना, खेती के औजार बनाना , गहने बनाना, बर्तन बनाना इत्यादी इनके काम होते थे ...सिन्धु सभ्यता में वर्ण या जाति नहीं थी ..बल्कि एक तिर्कोनी व्यवस्था थी जिसमे राजकीय वर्ग, व्यापारी वर्ग और दस्तकार या कारीगर वर्ग के अलावा किसान और मजदूर वर्ग था ..पुजारी वर्ग का कही अता पता इस सभ्यता में नहीं मिलता
संधू सभ्यता के नगर दुर्गो में बटे हुए थे ....सभ्यता का दायरा बहुत बड़ा था जो आज के अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों से लेकर पाकिस्तान, काश्मीर, राजस्थान,हरियाणा,पंजाब , गुजरात और पश्चिम उत्तर प्रदेश का कुछ हिस्सों तक फैला था ..इस विस्तृत क्षेत्र में सभ्यता के बहुत सारे दुर्ग या नगर थे .हडपा , मोहन जोदड़ो , कालीबंगल लोथल ,बनवाली ना जाने कितने ही दुर्ग या नगर थे राजकीय वर्ग का काम इन दुर्गो की व्यवस्था देखना होता थी ना कि आर्यों की तरह आपस में युद्ध ...
समस्त भूमि राज्य की थी जिसपर किसानो और मजदूरों से राज्य खेती से पैदावार और पशुओ को पालने का काम करवाता था और दस्तकार का पेशा भी स्वतंत्र नहीं था ..व्यापारी वर्ग अपनी कार्यशालाओं में विभिन्न प्रकार के काम करवाता था ..
इसी वक्त यूरोप के कुछ दबंग और साहसी प्रवर्ती के लोग खाना बदोशो की भाँती स्थायी जगह पर टिकने के लिए दुनिया में जगह जगह घूम रहे थे क्योकि यूरोप में सर्दी का प्रकोप बहुत ज्यादा हो गया था ..वे यूरोप के दक्षिण भागो की और बढ़ने लगे ..ये ही लोग भारत में आकर आर्य कहलाये .ये बहुत लड़ाकू और निडर प्रवर्ती के लोग थे तथा अपने साथ कुत्तो घोड़ो , भेड़ बकरी, गाय और बैल लेकर चलते थे ..जब ये ताशकंद के पास आये इस यूरोपीय लोगो का समूह दो भागो में बात गया,,एक भाग भारत की तरफ बढ़ा जो भारत में आर्य कहलाया तो दुसरा समूह इरान की और बढ़ गया जो वहाँ जाकर पारसी कहलाया ..
उस वक्त सिन्धु सभ्यता के लोग बड़े शान्ति प्रिये ढंग से एक जगह रहकर व्यापार और उद्योग धन्दो के साथ साथ खेती और पशुपालन में लगे हुए थे ..आर्यों ने इसी सिन्धु सभ्यता के वासियों पर पर अपना आक्रमण और अधिपत्य जमाया ..सिन्धु वासियों ने नदियों पर बाँध बनाकर नहरे निकालने का काम उस वक्त सिख लिया था जो खेतो की सिचाई करती थी ..आर्यों ने इन्ही बांधो को तोड़कर सिन्धु वासियों के क्षेत्र को जल मग्न कर दिया था जिन्होंने बाद में इसको प्रलय का नाम दिया .
सिन्धु सभ्यता पर आर्यों द्वारा पूर्ण रूप से अधिपत्य कर लेने के बाद सभ्यता के राजकीय वर्ग और व्यापारी वर्ग को ओने अधीन कर लिया औरइनके समस्त दुर्गो और व्यापार पर अपना अधिपत्य जमा लिया ...एक समझोते के अनुसार इन राजकीय वर्ग और व्यापारी वर्ग को दुर्गो के बाहर रहने की अनुमति उस शर्त पर दी गई कि वे दुर्गो से बाहर रहते हुए दुर्गो की साफ सफाई और जानवरों और शत्रुओ से दुर्गो की रख्सा करेगे ...ये ही दुर्गो या नगरो से बाहर रहने राजकीय और व्यापारी वर्ग कालांतर में अछूत कहलाया ..
उस वक्त आर्यों के दो ही वर्ण थे एक लड़ाकू और दुसरे बुद्धीजीवी चुकी आर्य अपने आप को श्रेष्ठ सनाझते थे और दस्कारी और उद्ध्योग धन्दो से महरूम थे इसलिए कारीगरों और दसक्रारो के लिए शुद्र वर्ण बनाया जो हर प्रकार से सेवा करेगा और इनके कार्यो को देखने के लिए और अद्ध्योगो को सुव्चारु रूप से चलाने का देखने के लिए व्यापारी वर्ग का उदय हुआ ..इस तरह स्थायी रूप से बसने पर आर्यों का समाज चार वर्णों में विभक्त हो गया ..बुद्धीजीवी वर्ग जो ब्राह्मण कहलाया , राजकीय काम संभालने वाला और दुर्गो की रक्षा करने वाला क्षत्रीय वर्ग हुआ ..सिधु सभ्यता के बहुत बड़े भूभाग में फैले व्यापार को अपने हाथ में लेने वाला वैश्य वर्ग कहलाया और सिन्धु सभ्यता में जो पहले से ही कारीगर और दस्तकार थे उन्हें समाज में मिला लिया गया मगर उनको जाति में बाँट दिया गया जैसे सुनार, कुम्हार,बधाई, दर्जी आदि और इस समाज को शुद्र नाम दिया गया ..आप समझ गए होगे कि शुद्र और अछूतों में क्या अंतर हैं...रामराज आने तक ये ही ववस्था चल रही थी ..अछूत अभी भी गाव के बाहर ही रहते थे और शुद्र गाव में रहकर आर्यों की बिभिन्न र्रोपो में सेवा करते थे ..
कही शुद्र पढ़लिखकर समझदार और अधिकारों के प्रति सचेत ना हो जाए इसलिए शुद्रो के लिए शिक्षा के सभी द्वार बंद कर दिए गए ...यहाँ तक की अगर शुद्रो को शिक्षा के शब्द भी सुनाई दे तो उनके कानो में शीशा भर दिया जाए ..क्योकि शिक्षा ही ऐसी चीज थी जी हर अन्धकार को भगा दती हैं ..
और रही बात वाल्मिकी जी की तो वे ना तो शुद्र थे और ना ही अछूत जबकि शम्भूक जी अछूत नहीं शुद्र थे और जाति से एक बढई थे इसलिए उनको शिक्षा पाने की सजा दी गई ..रही महाभारत की बात तो ये जान लो इस वक्त तक आते आते राजा और सम्राट बहुत शक्तिशाली और निरंकुश हो गए थे वे किसी भी जाति की स्त्री से शादी कर सकते थे या उसको या अपनी रानी (रखैल )बनाकर रखा लेते थे ...अगर स्त्री शुद्र जाति की हैं तो इनसे होने वाली संतान शुद्र ही कहलाती रही मगर दुसरे शुद्रो की भाँती ये नए शुद्र राजा की संतान होने के कारण शिक्षा प्राप्त कर सकते थे ...महाभारत पढ़िए वेड व्यास जी भी इसी तरह की संतान थे चुकी राजकीय ववस्था से पैदा हुए थे इसलिए शिक्षा पाने का अधिकार मिल गया था ..इसलिए महाभारत की रचना कर सके