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Wednesday, June 25, 2014

भारत में पारिवारिक रक्त सम्बन्धों में यौन सम्बन्ध

सुन रहा हूँ कि भारत के स्वास्थ्य मन्त्री जोकि स्वयं भी डाक्टर हैं एड्स की रोकथाम के लिए कण्डोम की अपेक्षा प्राचीन भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने की बात करी है! नीचे की पंक्तियों में हमारी महान प्राचीन भारतीय संस्कृति की एक बानगी प्रमाण सहित प्रस्तुत कर रहा हूँ, जरा नजर करिए और फिर सोचिये कि यदि प्राचीन भारतीय संस्कृति आ गई तो घर के सभी सदस्य और यहाँ तक कि जानवर भी एड्स के रोगी होंगे! हमारे प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ यही कहते हैं!
*पारिवारिक रक्त सम्बन्धों में यौन सम्बन्ध*
वशिष्ठ की कन्या शतरूपा उसको पति मानकर उसके साथ रही (हरिवंशअंक 2)
इन्द्र अपने पड़पोते जनमेजय की स्त्री वपुष्टमा के साथ रहा, और यह अपराध जनमेजय ने बर्दाश्त किया (हरिभविष्य पर्व अंक 5)
सोम के दोहित्र अथवा पुत्र दक्ष प्रजापति ने अपनी कन्याएं अपने पिता या दादा सोम को दीं. जनमेजय यहाँ शंका प्रकट करता है कि यह अनैतिक कृत्य कैसे हुआ? उसको वैशम्पायन का उत्तर था कि यह प्राचीन रीति है (हरिवंश अंक 2प्र. 7)
ब्रह्मदेव के पुत्र दक्ष ने अपनी कन्या ब्रह्मदेव को दी, उससे नारद का जन्म हुआ. (हरिवंश अंक 3प्र. 8)
*पशुओं के साथ सेक्स*
पशुओं के साथ यौनाचार करना भी आर्यों में प्रचलित था! ऋषि किन्दम द्वारा हिरनी के साथ मैथुन किये जाने की कहानी सर्वविदित है। एक दूसरा उदाहरण सूर्य द्वारा घोड़ी के साथ मैथुन किये जाने का है। लेकिन सबसे वीभत्स उदाहरण अश्वमेघ यज्ञ में स्त्री द्वारा घोड़े के साथ मैथुन किये जाने का है
औरतों को कुछ अवधि के लिए भाड़े पर देने की प्रथा भी थी। राजा ययाति ने अपने गुरु गालव को अपनी पुत्री माधवी भेंट में दे दी। गालव ने अलग अलग अवधि के लिए माधवी ने तीन राजाओं को भाड़े पर दिया। उसके बाद उसने विवाह रचाने के लिए विश्वामित्र को दे दिया। वह पुत्र उत्पन्न होने तक उनके साथ रही। उसके बाद गालव ने लड़की को वापस लेकर पुनः उसके पिता ययाति को लौटा दिया! (हरिवंश पुराण अध्याय 3)
पिता अपनी पुत्री से विवाह कर सकता था। वशिस्ठ ने अपनी पुत्री सतरूपा, मनु ने अपनी पुत्री इला, सूर्य ने ऊषा से विवाह किया। (हरिवंश पुराण अध्याय)
अच्छी संतानोत्पत्ति के लिए आर्य लोग देव वर्ग के किसी भी पुरुष के साथ अपनी स्त्रियों को सम्भोग की अनुमति देते थे जिसे अवदान कहा गया है।
बहुत से साक्ष्य मिल जायेंगे यदि शास्त्र खंगालना शुरू किया जाये तो, उनमें यह देखिये कि लड़की की उम्र क्या है, विवाह के समय| एक छोटा सा लेख यह भी है: चौबीस वर्ष का पुरुष आठ वर्ष की लड़की से विवाह करे, यह हमारी स्मृतियों में है. विवाह की रात्रि में समागम किया जाय, इस प्रकार के भी स्मृति वचन हैं. अतः आठ वर्ष की लड़कियाँ समागमेय हैं, यह मानने की रूढ़ि इस देश में थी, इसमें शक नहीं.
कन्याके जन्म से लेकर छः वर्ष तक दो-दो वर्ष की अवधि के लिये उस पर किसी न किसी देवता का अधिकार होता था. अतः उसके विवाह की आयु का निर्धारण आठ वर्ष कियागया. क्या इससे यह संदेश नहीं जाता कि कन्या जन्म से ही समागमेय समझी जाती थी क्योंकि छः वर्ष बाद उस पर से देवताओं का अधिकार समाप्त हो जाता था. यमसंहिता और पराशर स्मृति दोनों ही रजस्वला होने से पूर्व कन्या के विवाह की आज्ञा देते हैं.
-भारतीय विवाह का इतिहास
वि.का. राजवाडेपृष्ठ : 86-91
अब कौन सी महान प्राचीन भारतीय संस्कृति लाना चाहते हैं स्वास्थ्य मन्त्री जी आप लोग खुद निर्णय करें मैं कुछ नहीं बोलुंगा! यह हमारा इतिहास है गर्व करो भक्तों इस पर