प्रत्येक हिन्दू इस प्रश्न का उत्तर में कहेगा नहीं, कभी नहीं। मान्यता है कि वे सदैव गौ को पवित्र मानते रहे और गोह्त्या के विरोधी रहे।
उनके इस मत के पक्ष में क्या प्रमाण हैं कि वे गोवध के विरोधी थे? ऋग्वेद में दो प्रकार के प्रमाण है; एक जिनमें गो को अवध्य कहा गया है और दूसरा जिसमें गो को पवित्र कहा गया है। चूँकि धर्म के मामले में वेद अन्तिम प्रमाण हैं इसलिये कहा जा सकता है कि गोमांस खाना तो दूर आर्य गोहत्या भी नहीं कर सकते। और उसे रुद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, आदित्यों की बहन, अमृत का केन्द्र और यहाँ तक कि देवी भी कहा गया है।
शतपथ ब्राह्मण (३.१-२.२१) में कहा है; "..उसे गो या बैल का मांस नहीं खाना चाहिये, क्यों कि पृथ्वी पर जितनी चीज़ें हैं, गो और बैल उन सब का आधार है,..आओ हम दूसरों (पशु योनियों) की जो शक्ति है वह गो और बैल को ही दे दें.."। इसी प्रकार आपस्तम्ब धर्मसूत्र के श्लोक १, ५, १७, १९ में भी गोमांसाहार पर एक प्रतिबंध लगाया है। हिन्दुओं ने कभी गोमांस नहीं खाया, इस पक्ष में इतने ही साक्ष्य उपलब्ध हैं।
मगर यह निष्कर्ष इन साक्ष्यों के गलत अर्थ पर आधारित है। ऋग्वेद में अघन्य (अवध्य) उस गो के सन्दर्भ में आया है जो दूध देती है अतः नहीं मारी जानी चाहिये। फिर भी यह सत्य है कि वैदिक काल में गो आदरणीय थी, पवित्र थी और इसीलिये उसकी हत्या होती थी। श्री काणे अपने ग्रंथ धर्मशास्त्र विचार में लिखते हैं;"
ऐसा नहीं था कि वैदिक काल में गो पवित्र नहीं थी। उसकी पवित्रता के कारण ही वजसनेयी संहिता में यह व्यवस्था दी गई है कि गोमांस खाना चाहिये। "
ऋग्वेद में इन्द्र का कथन आता है (१०.८६.१४), "वे पकाते हैं मेरे लिये पन्द्र्ह बैल, मैं खाता हूँ उनका वसा और वे भर देते हैं मेरा पेट खाने से" । ऋग्वेद में ही अग्नि के सन्दर्भ में आता है (१०. ९१. १४)कि "उन्हे घोड़ों, साँड़ों, बैलों, और बाँझ गायों, तथा भेड़ों की बलि दी जाती थी.."
तैत्तिरीय ब्राह्मण में जिन काम्येष्टि यज्ञों का वर्णन है उनमें न केवल गो और बैल को बलि देने की आज्ञा है किन्तु यह भी स्पष्ट किया गया है कि विष्णु को नदिया बैल चढ़ाया जाय, इन्द्र को बलि देने के लिये कृश बैल चुनें, और रुद्र के लाल गो आदि आदि।
आपस्तम्ब धर्मसूत्र के १४,१५, और १७वें श्लोक में ध्यान देने योग्य है, "गाय और बैल पवित्र है इसलिये खाये जाने चाहिये"।
आर्यों में विशेष अतिथियों के स्वागत की एक खास प्रथा थी, जो सर्वश्रेष्ठ चीज़ परोसी जाती थी, उसे मधुपर्क कहते थे। भिन्न भिन्न ग्रंथ इस मधुपर्क की पाक सामग्री के बारे में भिन्न भिन्न राय रखते हैं। किन्तु माधव गृह सूत्र (१.९.२२) के अनुसार, वेद की आज्ञा है कि मधुपर्क बिना मांस का नहीं होना चाहिये और यदि गाय को छोड़ दिया गया हो तो बकरे की बलि दें। बौधायन गृह सूत्र के अनुसार यदि गाय को छोड़ दिया गया हो तो बकरे, मेढ़ा, या किसी अन्य जंगली जानवर की बलि दें। और किसी मांस की बलि नहीं दे सकते तो पायस (खीर) बना लें।
तो अतिथि सम्मान के लिये गो हत्या उस समय इतनी सामान्य बात थी कि अतिथि का नाम ही गोघ्न पड़ गया। वैसे इस अनावश्यक हत्या से बचने के लिये आश्वालायन गृह सूत्र का सुझाव है कि अतिथि के आगमन पर गाय को छोड़ दिया जाय ( इसी लिये दूसरे सूत्रों में बार बार गाय के छोड़े जाने की बात है)। ताकि बिना आतिथ्य का नियम भंग किए गोहत्या से बचा जा सके।
प्राचीन आर्यों में जब कोई आदमी मरता था तो पशु की बलि दी जाती थी और उस पशु का अंग प्रत्यंग मृत मनुष्य के उसी अंग प्रत्यंग पर रखकर दाह कर्म किया जाता था। और यह पशु गो होता था। इस विधि का विस्तृत वर्णन आश्वालायन गृह सूत्र में है।
गो हत्या पर इन दो विपरीत प्रमाणों में से किस पक्ष को सत्य समझा जाय? असल में गलत दोनों नहीं हैं शतपथ ब्राह्मण की गोवध से निषेध की आज्ञा असल में अत्यधिक गोहत्या से विरत करने का अभियान है। और बावजूद इन निषेधाज्ञाओं के ये अभियान असफल हो जाते थे। शतपथ ब्राह्मण का पूर्व उल्लिखित उद्धरण (३.१-२.२१) प्रसिद्ध ऋषि याज्ञवल्क्य को उपदेश स्वरूप आया है। और इस उपदेश के पूरा हो जाने पर याज्ञ्वल्क्य का जवाब सुनने योग्य है; "मगर मैं खा लेता हूँ अगर वह (मांस) मुलायम हो तो।"
वेदों और ब्राह्मण ग्रंथों के बहुत बाद रचे गये बौद्ध सूत्रों में भी इसके उल्लेख हैं। कूट्दंत सूत्र में बुद्ध, ब्राह्मण कूटदंत को पशुहत्या न करने का उपदेश देते हुए वैदिक संस्कृति पर व्यंग्य करते हैं, " .. हे ब्राह्मण उस यज्ञ में न बैल मारे गये, न अजा, न कुक्कुट, न मांसल सूअर न अन्य प्राणी.." और जवाब में कूटदंत बुद्ध के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है और कहता है, ".. मैं स्वेच्छा से सात सौ साँड़, सात सौ तरुण बैल, सात सौ बछड़े, सात सौ बकरे, और सात सौ भेड़ों को मुक्त करता हूँ जीने के लिये.. "
अब इतने सारे साक्ष्यों के बाद भी क्या किसी को सन्देह है कि ब्राह्मण और अब्राह्मण सभी हिन्दू एक समय पर न केवल मांसाहारी थे बल्कि गोमांस भी खाते थे।
बाबा की पुस्तक से कुछ अलग महत्वपूर्ण जानकारी
उनके इस मत के पक्ष में क्या प्रमाण हैं कि वे गोवध के विरोधी थे? ऋग्वेद में दो प्रकार के प्रमाण है; एक जिनमें गो को अवध्य कहा गया है और दूसरा जिसमें गो को पवित्र कहा गया है। चूँकि धर्म के मामले में वेद अन्तिम प्रमाण हैं इसलिये कहा जा सकता है कि गोमांस खाना तो दूर आर्य गोहत्या भी नहीं कर सकते। और उसे रुद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, आदित्यों की बहन, अमृत का केन्द्र और यहाँ तक कि देवी भी कहा गया है।
शतपथ ब्राह्मण (३.१-२.२१) में कहा है; "..उसे गो या बैल का मांस नहीं खाना चाहिये, क्यों कि पृथ्वी पर जितनी चीज़ें हैं, गो और बैल उन सब का आधार है,..आओ हम दूसरों (पशु योनियों) की जो शक्ति है वह गो और बैल को ही दे दें.."। इसी प्रकार आपस्तम्ब धर्मसूत्र के श्लोक १, ५, १७, १९ में भी गोमांसाहार पर एक प्रतिबंध लगाया है। हिन्दुओं ने कभी गोमांस नहीं खाया, इस पक्ष में इतने ही साक्ष्य उपलब्ध हैं।
मगर यह निष्कर्ष इन साक्ष्यों के गलत अर्थ पर आधारित है। ऋग्वेद में अघन्य (अवध्य) उस गो के सन्दर्भ में आया है जो दूध देती है अतः नहीं मारी जानी चाहिये। फिर भी यह सत्य है कि वैदिक काल में गो आदरणीय थी, पवित्र थी और इसीलिये उसकी हत्या होती थी। श्री काणे अपने ग्रंथ धर्मशास्त्र विचार में लिखते हैं;"
ऐसा नहीं था कि वैदिक काल में गो पवित्र नहीं थी। उसकी पवित्रता के कारण ही वजसनेयी संहिता में यह व्यवस्था दी गई है कि गोमांस खाना चाहिये। "
ऋग्वेद में इन्द्र का कथन आता है (१०.८६.१४), "वे पकाते हैं मेरे लिये पन्द्र्ह बैल, मैं खाता हूँ उनका वसा और वे भर देते हैं मेरा पेट खाने से" । ऋग्वेद में ही अग्नि के सन्दर्भ में आता है (१०. ९१. १४)कि "उन्हे घोड़ों, साँड़ों, बैलों, और बाँझ गायों, तथा भेड़ों की बलि दी जाती थी.."
तैत्तिरीय ब्राह्मण में जिन काम्येष्टि यज्ञों का वर्णन है उनमें न केवल गो और बैल को बलि देने की आज्ञा है किन्तु यह भी स्पष्ट किया गया है कि विष्णु को नदिया बैल चढ़ाया जाय, इन्द्र को बलि देने के लिये कृश बैल चुनें, और रुद्र के लाल गो आदि आदि।
आपस्तम्ब धर्मसूत्र के १४,१५, और १७वें श्लोक में ध्यान देने योग्य है, "गाय और बैल पवित्र है इसलिये खाये जाने चाहिये"।
आर्यों में विशेष अतिथियों के स्वागत की एक खास प्रथा थी, जो सर्वश्रेष्ठ चीज़ परोसी जाती थी, उसे मधुपर्क कहते थे। भिन्न भिन्न ग्रंथ इस मधुपर्क की पाक सामग्री के बारे में भिन्न भिन्न राय रखते हैं। किन्तु माधव गृह सूत्र (१.९.२२) के अनुसार, वेद की आज्ञा है कि मधुपर्क बिना मांस का नहीं होना चाहिये और यदि गाय को छोड़ दिया गया हो तो बकरे की बलि दें। बौधायन गृह सूत्र के अनुसार यदि गाय को छोड़ दिया गया हो तो बकरे, मेढ़ा, या किसी अन्य जंगली जानवर की बलि दें। और किसी मांस की बलि नहीं दे सकते तो पायस (खीर) बना लें।
तो अतिथि सम्मान के लिये गो हत्या उस समय इतनी सामान्य बात थी कि अतिथि का नाम ही गोघ्न पड़ गया। वैसे इस अनावश्यक हत्या से बचने के लिये आश्वालायन गृह सूत्र का सुझाव है कि अतिथि के आगमन पर गाय को छोड़ दिया जाय ( इसी लिये दूसरे सूत्रों में बार बार गाय के छोड़े जाने की बात है)। ताकि बिना आतिथ्य का नियम भंग किए गोहत्या से बचा जा सके।
प्राचीन आर्यों में जब कोई आदमी मरता था तो पशु की बलि दी जाती थी और उस पशु का अंग प्रत्यंग मृत मनुष्य के उसी अंग प्रत्यंग पर रखकर दाह कर्म किया जाता था। और यह पशु गो होता था। इस विधि का विस्तृत वर्णन आश्वालायन गृह सूत्र में है।
गो हत्या पर इन दो विपरीत प्रमाणों में से किस पक्ष को सत्य समझा जाय? असल में गलत दोनों नहीं हैं शतपथ ब्राह्मण की गोवध से निषेध की आज्ञा असल में अत्यधिक गोहत्या से विरत करने का अभियान है। और बावजूद इन निषेधाज्ञाओं के ये अभियान असफल हो जाते थे। शतपथ ब्राह्मण का पूर्व उल्लिखित उद्धरण (३.१-२.२१) प्रसिद्ध ऋषि याज्ञवल्क्य को उपदेश स्वरूप आया है। और इस उपदेश के पूरा हो जाने पर याज्ञ्वल्क्य का जवाब सुनने योग्य है; "मगर मैं खा लेता हूँ अगर वह (मांस) मुलायम हो तो।"
वेदों और ब्राह्मण ग्रंथों के बहुत बाद रचे गये बौद्ध सूत्रों में भी इसके उल्लेख हैं। कूट्दंत सूत्र में बुद्ध, ब्राह्मण कूटदंत को पशुहत्या न करने का उपदेश देते हुए वैदिक संस्कृति पर व्यंग्य करते हैं, " .. हे ब्राह्मण उस यज्ञ में न बैल मारे गये, न अजा, न कुक्कुट, न मांसल सूअर न अन्य प्राणी.." और जवाब में कूटदंत बुद्ध के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है और कहता है, ".. मैं स्वेच्छा से सात सौ साँड़, सात सौ तरुण बैल, सात सौ बछड़े, सात सौ बकरे, और सात सौ भेड़ों को मुक्त करता हूँ जीने के लिये.. "
अब इतने सारे साक्ष्यों के बाद भी क्या किसी को सन्देह है कि ब्राह्मण और अब्राह्मण सभी हिन्दू एक समय पर न केवल मांसाहारी थे बल्कि गोमांस भी खाते थे।
बाबा की पुस्तक से कुछ अलग महत्वपूर्ण जानकारी
हाभारत में रंतिदेव नामक एक राजा का वर्णन मिलता है जो गोमांस परोसने के कारण यशवी बना. महाभारत, वन पर्व (अ. 208 अथवा अ.199) में आता है
राज्ञो महानसे पूर्व रन्तिदेवस्य वै द्विज
द्वे सहस्रे तु वध्येते पशूनामन्वहं तदा
अहन्यहनि वध्येते द्वे सहस्रे गवां तथा
समांसं ददतो ह्रान्नं रन्तिदेवस्य नित्यशः
अतुला कीर्तिरभवन्नृप्स्य द्विजसत्तम ---- महाभारत, वनपर्व 208 199/8-10
अर्थात राजा रंतिदेव की रसोई के लिए दो हजार पशु काटे जाते थे. प्रतिदिन दो हजार गौएं काटी जाती थीं मांस सहित अन्न का दान करने के कारण राजा रंतिदेव की अतुलनीय कीर्ति हुई. इस वर्णन को पढ कर कोई भी व्यक्ति समझ सकता है कि गोमांस दान करने से यदि राजा रंतिदेव की कीर्ति फैली तो इस का अर्थ है कि तब गोवध सराहनीय कार्य था, न कि आज की तरह निंदनीय
महाभारत में गौगव्येन दत्तं श्राद्धे तु संवत्सरमिहोच्यते --
अनुशासन पर्व, 88/5
अर्थात गौ के मांस से श्राद्ध करने पर पितरों की एक साल के लिए तृप्ति होती है
पंडित पांडुरंग वामन काणे ने लिखा है
''ऐसा नहीं था कि वैदिक समय में गौ पवित्र नहीं थी,
उसकी 'पवित्रता के ही कारण वाजसनेयी संहिता (अर्थात यजूर्वेद) में यह व्यवस्था दी गई है कि गोमांस खाना चाहिए''
--धर्मशास्त्र विचार, मराठी, पृ 180)
मनुस्मृति में
उष्ट्रवर्जिता एकतो दतो गोव्यजमृगा भक्ष्याः ---
मनुस्मृति 5/18 मेधातिथि भाष्यऊँट को छोडकर एक ओर दांवालों में गाय, भेड, बकरी और मृग भक्ष्य अर्थात खाने योग्य है
रंतिदेव का उल्लेख महाभारत में अन्यत्र भी आता है.
शांति पर्व, अध्याय 29, श्लोक 123 में आता है
कि राजा रंतिदेव ने गौओं की जा खालें उतारीं, उन से रक्त चूचू कर एक महानदी बह निकली थी. वह नदी चर्मण्वती (चंचल) कहलाई.
महानदी चर्मराशेरूत्क्लेदात् संसृजे यतः
ततश्चर्मण्वतीत्येवं विख्याता सा महानदी
कुछ लो इस सीधे सादे श्लोक का अर्थ बदलने से भी बाज नहीं आते. वे इस का अर्थ यह कहते हैं कि चर्मण्वती नदी जीवित गौओं के चमडे पर दान के समय छिडके गए पानी की बूंदों से बह निकली.
इस कपोलकप्ति अर्थ को शाद कोई स्वीकार कर ही लेता यदि कालिदास का 'मेघदूत' नामक प्रसिद्ध खंडकाव्य पास न होता. 'मेघदूत' में कालिदास ने एक जग लिखा है
व्यालंबेथाः सुरभितनयालम्भजां मानयिष्यन्
स्रोतोमूर्त्या भुवि परिणतां रंतिदेवस्य कीर्तिम
यह पद्य पूर्वमेघ में आता है. विभिन्न संस्करणों में इस की संख्या 45 या 48 या 49 है.
इस का अर्थ हैः ''हे मेघ, तुम गौओं के आलंभन (कत्ल) से धरती पर नदी के रूप में बह निकली राजा रंतिदेव की कीर्ति पर अवश्य झुकना.''
सिर्फ साम्प्रदायिकता फैलाने के लिए अब गाये का इस्तेमाल करते हैं
इनका कहना है
गाये हमारी माता है
हमको कुछ नहीं आता है
बैल हमारा बाप है
प्रेम से रहना पाप है
ये जरमन और युरशियन लोग आज अपनी माँ को तो पूछते नहीं ,, मानव को मानव नहीं समझते मगर गए का मूत पीने को तैयार रहते हैं
खाते रहे होंगे कभी. खूब खाते होंगे.
ReplyDeleteअब क्या करें?
अब इन बातों से क्या साबित होगा?
बुद्ध की यह बात ध्यान में रखें, "तुम किसी बात को केवल इसलिये मत स्वीकार करो कि यह अनुश्रुत है, केवल इसलिये मत स्वीकारो कि यह हमारे धर्मग्रंथ के अनूकूल है या यह तर्क सम्मत है , केवल इसलिये मत स्वीकरो कि यह यह अनुमान सम्मत है , केवल इसलिये मत स्वीकारो कि इसके कारणॊं की सावधानी पूर्वक परीक्षा कर ली गई है , केवल इसलिये मत स्वीकारो कि इस पर हमने विचार कर अनुमोदन कर लिया है , केवल इसलिये मत स्वीकारो कि कहने वाले का व्यक्तित्व आकर्षक है, केवल इसलिये मत स्वीकारो कि कहने वाला श्रमण हमारा पूज्य है. जब तुम स्वानुभव से यह जानो कि यह बातें अकुशल हैं और इन बातों के चलने से अहित होता है , दुख होता है तब तुम उन बातों को छॊड दो".
मांसाहार भी ऐसी ही बात है. कौन कब कितना और क्यों करता था यह आज महत्वपूर्ण नहीं है यदि वह इसे त्याज्य और वर्जित मान चुका हो.
Es link par aapke sabhi Questions ka Solution ho jayega,
Deletehttp://agniveer.com/there-is-no-beef-in-vedas-hi/
I agree with u.. no one stop and start to eat nonveg...its own wishes
Deleteनिशान्त जी से सहमत हूँ।
ReplyDeleteसुधीर जय जी ! आज किसी को अपने पूर्वजों की परंपराएं और उनके धर्म में दिलचस्पी नहीं है। ऐसे में आप नाहक़ क्यों याद दिला रहे हैं कि प्राचीन आर्य गोमांस खाया करते थे ?
ReplyDeleteइस विषय पर मैंने भी एक ब्लॉग ‘आर्य भोजन‘ शुरू कर रखा है। आपकी इस अमूल्य पोस्ट मैं आभार सहित वहां सजा दूंगा ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग जान सकें कि प्राचीन आर्य गोमांस निःसंकोच खाया करते थे।
धन्यवाद !
http://tobeabigblogger.blogspot.com/2011/04/ganna.html
Right
DeleteRight
DeleteKyun ki gomans khane k karan ek bada barg ko achhut banake rakhha gaya. Jabki sashtra k anusar gomans Aryon ka priya bhojan tha.
Deleteगधा कितनी भी तरह कि पालिश करवा ले , घोडा नहीं बन सकता .
ReplyDeleteआर्य मांसाहार करते थे या नहीं करते थे इससे किसी के मांसहारी या शाकाहारी होने का ताल्लुक समझ में नहीं आया... मैं मांसाहारी हूँ क्योंकि मेरी तर्क की दृष्टि से यह सही है... इसी तरह मेरे घर में कुछ लोग शाकाहारी हैं क्योंकि मेरा तर्क उनकी समझ से परे है.
ReplyDeleteदोस्तों मैं यहाँ पर मांसाहार का समर्थन या विरोध नहीं कर रहा हूँ . मेरे कहने का मतलब ये है की जो हिंदू लोग आज गाय को अपनी माँ मानते और उसे एक इंसान (दलित) से जयादा महत्व देते है.उस गाय के साथ के साथ इन्होने क्या सलूक किया है.
ReplyDeleteयहाँ तो ऐसे थाथाकतित धार्मिक लोगो पर एक मुहावरा बिलकुल सही बैठता है
" सो चूहे खा कर बिली हज को चली "
हिंदू मानयता के अनुसार " एक गाए तो पवित्र है ........लेकिन एक इंसान (दलित) अपवित्र
किर्पया इन लिंक्स पर क्लीक करे और बताए गाए और दलित में कोन पवित्र है
http://bollywood.bhaskar.com/article/HAR-OTH-748502-1239190.html
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/7899715.cms
Es link par aapke sabhi Questions ka Solution ho jayega, Grina Ka javab Ghrina nahi hota, Etna samy es post ke liye lagaya to kuchh samay Geeta bhi padh lete ya kuchh samay mansik dalit logo ke udhdhar ke liye laga lete
DeleteApka Chhota bhai Lalit
http://agniveer.com/there-is-no-beef-in-vedas-hi/
mene likhahe gaye ke bar eme
DeleteSahi kaha ap ne ki dalit se ghrina kyon pr mai mera manana hai ki dalit hai hin kyon kyon,, hindustan me rahane bale sabhi ik kul ik samaj or varn hai ,,,to phir dalit ya savarn kya hota hai, ,,or rah gai bat itihaso ka to usse sirf itana padho jitana se man dusit na ho kyon ki itihash uljhane ke siva kuchh nahi karta or ik hin bat ka kitane matlab nikalte, ,,,hame jo bhudhi bivek bhagvan se mila hai uska istmal kare or ik achha sms dene ka pryash kare, ,jai hind
DeleteSahi kaha ap ne ki dalit se ghrina kyon pr mai mera manana hai ki dalit hai hin kyon kyon,, hindustan me rahane bale sabhi ik kul ik samaj or varn hai ,,,to phir dalit ya savarn kya hota hai, ,,or rah gai bat itihaso ka to usse sirf itana padho jitana se man dusit na ho kyon ki itihash uljhane ke siva kuchh nahi karta or ik hin bat ka kitane matlab nikalte, ,,,hame jo bhudhi bivek bhagvan se mila hai uska istmal kare or ik achha sms dene ka pryash kare, ,jai hind
DeleteSahi kaha ap ne ki dalit se ghrina kyon pr mai mera manana hai ki dalit hai hin kyon kyon,, hindustan me rahane bale sabhi ik kul ik samaj or varn hai ,,,to phir dalit ya savarn kya hota hai, ,,or rah gai bat itihaso ka to usse sirf itana padho jitana se man dusit na ho kyon ki itihash uljhane ke siva kuchh nahi karta or ik hin bat ka kitane matlab nikalte, ,,,hame jo bhudhi bivek bhagvan se mila hai uska istmal kare or ik achha sms dene ka pryash kare, ,jai hind
Deletebilkul sach baat...
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteदेखो भैया आप सब की बात सही है लेकिन आपने यह लेख लिखकर जमाल को बहुत प्रसन्न कर दिया है। देखो आपकी पोस्ट को कहाँ कहाँ सजा रहे हैं। इनसे पूछो कि प्राचीन काल में मुसलमान भोजन नामक ब्लॉग क्यों नहीं बनाया जिसमें सूअर का माँस मुसलमान खाया करते थे और अब .............. हा हा।
ReplyDeleteSaid bola aap
Deleteshuwar khane k jurm mein kisi insaan ki jaan lene ki baat maine nahi suni...!! sacchai se aankhe churana thik nahi bhai saab...!!!
Deleteयदि आप हिन्दू है तो हिन्दू कहलाने में संकोच कैसा. अपने ही देश में कब तक अन्याय सहेंगे. क्या आपको नहीं लगता की हमारी चुप्पी को लोग हमारी कायरता मानते हैं. एक भी मुसलमान बताईये जो खुद को धर्मनिरपेक्ष कहता हो. फिर हम ही क्यों..? सच लिखने और बोलने में संकोच कैसा. ?
ReplyDeleteयदि आप भारत माँ के सच्चे सपूत है. धर्म का पालन करने वाले हिन्दू हैं तो
आईये " हल्ला बोल" के समर्थक बनकर धर्म और देश की आवाज़ बुलंद कीजिये... ध्यान रखें धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कायरता दिखाने वाले दूर ही रहे,
अपने लेख को हिन्दुओ की आवाज़ बनायें.
इस ब्लॉग के लेखक बनने के लिए. हमें इ-मेल करें.
हमारा पता है.... hindukiawaz@gmail.com
समय मिले तो इस पोस्ट को देखकर अपने विचार अवश्य दे
देशभक्त हिन्दू ब्लोगरो का पहला साझा मंच - हल्ला बोल
सुधीर जी आपका संस्कृत ज्ञान कितना है ! क्या आपको नहीं लगता कि जो प्रमाण आपने आर्यो द्वारा गौ मांसाहार में दिये है वह प्राचीन वैदिक संस्कृत से मेल नहीं खाते । ये प्रक्षिप्त श्लोक है जो स्वार्थी लेखको ने पहले बौद्ध काल में और बाद में मुगल-ईसाई काल के दौरान शास्त्रों में ठुस दिये गये हैं ।
ReplyDeleteसुधीर याद रखो " पैदा होता है धर्म , मरकर बनता है सम्प्रदाय " , मनु ने समाज को व्यवस्थित करने के लिए चार वर्णो का निर्धारण किया था जो स्वभाव के अनुसार कर्म से निर्धारित होते थे लेकिन बाद में उसमें रूढि आयी और कर्म का स्थान जन्म ने ले लिया और धीरे - धीरे वर्ण का स्थान जाति ने ले लिया । ध्यान दो बौद्ध धर्म हिंसा और मूर्तिपूजा के विरोध में जन्मा था लेकिन आज उसमें बहुत अधिक मूर्तिपूजा प्रचलित है ! ! आज विश्व के अधिकांश बौद्ध मांसाहारी है क्यों ! ! !
मैं मानव-मानव में भेद-भाव उत्पन्न करने वाले जाति-पाति के पाखण्ड को मानवता पर कलंक मानता हूँ , लेकिन यह भी मानता हूँ कि अब जबकि बहुत सारे समाज सुधारको और संतों ने छुत-अछुत आदि कुरूतियों को खत्म करने की दिशा में काम किया है और देश का आधुनिक कानून भी जातिगत भेद-भाव को अपराध ठहराता है तो ऐसी स्थिति में मैकालेवादी झूठे इतिहासकारों की लिखी पुस्तके पढकर अपने पूवर्जो को अपमानित करके समाज में विद्वेष की आग भडकाना कहाँ की बुद्धिमता हैं । अम्बेडकर ने भी सामाजिक विसमता व गांधी के दोहरे चरित्र से चिढकर धर्म परिवर्तन तो किया लेकिन उन्होंने भारत की एकता के लिए भारत की भूमि पर उत्पन्न बौद्ध धर्म को अपनाया था । मैं आपके लेखन में दमित क्रान्ति की झलक देखता हूँ तथा आपसे आग्रह करता हूँ कि जाने-अनजाने अपने लेखों द्वारा देश विभाजक देशद्रोही ताकतों के हाथ का खिलौना न बने , अपने लेखों को सामाजिक कुरूतियों को समाप्त करने और राष्ट्रीय एकता मजबूत करने के काम में लगाये ।
www.satyasamvad.blogspot.com
YAKINAN SANSKIRIT PAR APKA GIYAN JARUR JAYEDA HO KIOKI WO BHASA TO AESE VARN NE BANAI JIS BHASA KO SUNNE WALE KE KANO MAI SESA DAL DIYA JATA THA AUR BOLNE WALE KE JABAN KAT DI JATI THI AB GIYAN KIS KO JAYEDA HO MERE BHAI ..........?
DeleteEs link par aapke sabhi Questions ka Solution ho jayega,
Deletehttp://agniveer.com/there-is-no-beef-in-vedas-hi/
Aap jhoote ho aryo ne is desh par kabja karne ke liye yaha ke logo ko shudra bola aur aur unhe padhai likha I ke adhikar se vanchit rakha aur unse saare neeche kaam karwaye jate the jaise mahabharat me eklavya ka angootha kata jaana kyunki wo arjun se sarvshesht dhanudhar tha is tarah aryo ne manu se manusanhita ki rachna karwaya taki jaati prAtha bani rahe aur moolniwasiyo ka shoshan hota rahe
DeleteAur rahi baat sirf bodh dharam apnane ki to Kyo hum apni dharti par janme bodh dharam ko apnaye apke kehne se Kyo hai. Hindu dharam ko apnaye kya apne dekha hai kya ki ye dharti apke hindu bhahwano ne banayi hai aur angrenjo ke God nahi banayi to kisne dekha hai jo hum apke dharam ko hi mane hindu dharam ko manenge to kya aap hamare ghar me rashion dalne aoge hamari marzi hum kisi bhi dharam ko swikar kare ap koun hote hai ye kehne wale ki apni dharti par janme bodhdharam ko swikar kare are jakar dekho aaj isai dharam ko manne wale sabhi desh har pragati me tumse kitne aage hai aur tum.bhartiya kitne peechhe ho jo dharam ke naam par nadiyo ko pardushit karte ho jiska an jaan aaj ye hai ki adhikar nadiya vilupti ke kagar par hai aur zyadater ganda naala ban chuki hai
Delete@ हल्ला बोल जी......किर्पया आप मुझे हिंदू धर्म की एक सम्पूर्ण परिभाषा बताए और कम से कम कोई एक कारन बताए जिस के कारन मैं हिंदू धर्म और उसके देवी देव्तोव को मानू ???
ReplyDeleteaake hisab se kuan se dharm ko manna chahiye aur kyo?
DeleteDharm manane ke karn to sirf China Bala or Pakistan Bala hin samjha sakta bhai kyonki Hindu dharm hai niutan ka sidhant nahi
Deletemere man ki naaten pahle hi kah di gayi hain.
ReplyDelete............
ब्लॉdग समीक्षा की 12वीं कड़ी।
अंधविश्वास के नाम पर महिलाओं का अपमान!
sudhir jai, जी अगर आपको हिंदू धर्म से इतनी नफरत है तो आप अपना धर्म ही क्यों नहीं बदल लेते?
ReplyDeleteनाम तो आपने हिन्दुओं वाला रखा है, इसे भी बदल ले तो अच्छा है, क्योंकि आप तो हिंदू धर्म को बहुत बुरा बता रहे है तो अगर आप हिंदू है तो धर्म बदल ले और नाम भी अपना बदल ले..
क्योंकि आपको हिंदू धर्म एक ढोंग लगता है तो इसे आपको छोड़ ही देना चाहिए...और जो भी धर्म आपको अच्छा लगता है उसे आपको अपना लेना चाहिए..............!
ye dhong to sadyo se chala aa raha sale kuute (dog) ko devta kehte hai aur insan se itni nafrat .............?
DeleteDinesh Jatav @ Badhiya Jawab
DeleteDinesh Ji "Half Knowledge Is Dangerous"....Kutte Aaj Kal Insano Se Jyada Acche Dost Saabit Hote Hai...
DeleteKaal ki gati mahan hai. Dharma sabke liye aek nahi tha. aam aadamika aur sanyasiyonka dharma alag hai. sanyastdharme ahimsa pradhan honeke karan mansaahar nahi karate beej khanabhi mana hai. beej = gehu, chaval dal etc. har aek margaki parampara aalag hai in sabhika mishran aajke hinduome payajata hai. Galati Hamari hai hamane paramparaka mishran kiya hai.
ReplyDeleteHindu naam ka na koi granth hai, na koi devta hai, na koi sansthapak hai aur na koi rushi hai. Hindu dharm ek gandhi rudi hai.. Jo vedic brahmano se chali aa rahi hai..jo vishist logo ki bhalai k liye aaj tak chalai ja rahi hai..
ReplyDeleteEs link par aapke sabhi Questions ka Solution ho jayega,
ReplyDeletehttp://agniveer.com/there-is-no-beef-in-vedas-hi/
सभी भ्रांतचित्त और भ्रम पैदा करने वाली बौद्ध धर्म या मैक्समूलर के ग़लत अनुवाद से ली गई जानकारियाँ हैं।न सनातनधर्मी को कभी मांस खाने के लिये ही प्रेरित किया गया।हमेशा मांस खाने को हतोत्साह के लिये श्लोक मिल जाएंगे लेकिन मांस खाने की छूट रोग;या मजबूरी में थी;उसे भी मन्त्रों से शुद्ध करके।इसीलिए कुछेक मांसाहारी लोगों ने इस छूट का दुरुपयोग करके यज्ञबलि करने लगे।जो कि धर्माचार्यों ने कभी नहीं कहा था।उन्होंने हमेशा मांस छोड़ने की ही अपील की है।
ReplyDeleteमनुस्मृति 5।51 मारने की आज्ञा देने वाला, पशु को मारने के लिए लेने वाला, बेचने वाला, पशु को मारने वाला, मांस को खरीदने और बेचने वाला, मांस को पकाने वाला और मांस खाने वाला यह सभी हत्यारे हैं |
ReplyDeleteअथर्ववेद 6।140।2 हे दांतों की दोनों पंक्तियों ! चावल खाओ, जौ खाओ, उड़द खाओ और तिल खाओ | यह अनाज तुम्हारे लिए ही बनाये गए हैं | उन्हें मत मारो जो माता – पिता बनने की योग्यता रखते हैं |
अथर्ववेद 8/6/।२३ वह लोग जो नर और मादा, भ्रूण और अंड़ों के नाश से उपलब्ध हुए मांस को कच्चा या पकाकर खातें हैं, हमें उन्हें नष्ट कर देना चाहिए |
अथर्ववेद 10।1।29 निर्दोषों को मारना निश्चित ही महा पाप है | हमारे गाय, घोड़े और पुरुषों को मत मार | वेदों में गाय और अन्य पशुओं के वध का स्पष्टतया निषेध होते हुए, इसे वेदों के नाम पर कैसे उचित ठहराया जा सकता है?
यजुर्वेद 30।18 गौ हत्यारे का संहार किया जाये |
अर्थववेद 1।16।4 यदि कोई हमारे गाय,घोड़े और पुरुषों की हत्या करता है, तो उसे सीसे की गोली से उड़ा दो |
अन्न को दूषित होने से बचाना, अपनी इन्द्रियों को वश में रखना, सूर्य कीकिरणों से उचित उपयोग लेना, धरती को पवित्र या साफ़ रखना –‘गोमेध‘ यज्ञ है गोघ्न‘ के अनेक अर्थ होते हैं. यदि ‘गो‘ से मतलब गाय लिया जाए तब भी ‘गो+ हन् ‘ = गाय के पास जाना, ऐसा अर्थ होगा. ‘हन्‘ धातु का अर्थ -हिंसा के अलावा गति,ज्ञानइत्यादि भी होते हैं. वेदों के कई उदाहरणों से पता चलता है कि ‘हन्’ का प्रयोग किसी के निकट जाने या पास पहुंचने के लिए भी किया जाता है. उदा. अथर्ववेद ‘हन् ‘ का प्रयोग करते हुए पति को पत्नी के पास जाने का उपदेश देता है. इसलिए, इन दावों में कोई दम नहीं है.
उसके सिर को गोली से उड़ा दो ये वेद पुराण में गोली बंदूक कहाः से आ गई और दूसरी बात ये सोचने की है कि ये दावा किया जाता है कि सनातन धर्म हजारों वर्षों पुराना है और गए कोई नहीं खाता है माश कोई नहीं खाता है ये सब खाना पाप है।
Deleteमेरे समझ में ये नहीं आ रहा उस समय कोई और धर्म तो था नहीं इनके दावे के हिसाब से यानी कि सिर्फ यही लोग थे और ऋषि मुनि के श्राप कितने पावरफुल होते थे जिसको दे दिया तो दे दिया कमान में तीर वापस आ सकता है लेकिन श्राप नहीं अब समझने वाली बात ये है कि मांस खा कौन रहा था और ग्रंथों में मना किसको किया जा रहा है राक्षस को तो मना किया नहीं जा रहा मुझको ये जानना है काट कौन रहा था खा कौन रहा था,,,
और ये क्या हो रहा है लिंक देख लीजिए फिर सब का उत्तर दीजिए,,,
https://youtu.be/6OfY3EP28Gg
https://youtu.be/teTIh_fftKc
https://youtu.be/ryT9Dl-6T3I
https://youtu.be/n8hoBde4D28
https://youtu.be/u1uihR-6J5E
https://youtu.be/p7iMWWwzGoY
https://youtu.be/ZaROQGolCrU
https://youtu.be/aqEYFy7VSfs
https://youtu.be/Gt3rDg85jJs
https://youtu.be/4nYA5yZBa6o
https://youtu.be/79oMRL9S3gc
https://youtu.be/JNMmNv4Fu8M
https://youtu.be/IJwW9_bIx
https://youtu.be/HuZNoL3sVyk
https://drive.google.com/file/d/1m_1yE4HgtmUo2Rh0NGVDlJ2nnmLGpt4M/view?usp=drivesdk
गोमांस की बात छोड़ो, भारतीय परम्परा में तो किसी भी प्राणी के मांस भक्षण से सर्वथा निवृत्ति को ही आदर्श माना जाता था। मुसलमानों के इस धूर्त वर्ग ने मनु का भी एक श्लोक भारत में मांस भक्षण के पक्ष में प्रमाण के रूप में प्रचारित किया है। इसमें कहा गया है कि भोक्ता अपने खाने लायक पदार्थों को खाने से किसी दोष का भागी नहीं होता है। इन खाने लायक भोजनों में प्राणियों को भी गिना गया है (मनु ५.३०)। विशेष बात यह है कि भारतीय विद्वानों ने इसको प्राण-संकट होने पर मान्य माना है। जैसे कि मनु के व्याख्याकार मेधातिथि ने इस श्लोक की व्याख्या में कहा है कि इसका मतलब यह है कि प्राणसंकट में हों तो मांस भी अवश्य खा लेना चाहिये (तस्मात् प्राणात्यये मांसमवश्यं भक्षणीयमिति त्रिश्लोकीविधेरर्थवादः।) ऐसा भी नहीं है कि यह मेधातिथि की मनमर्जी से की गई व्याख्या है। यह मनु के अनुरूप ही है। ऊपर उद्धृत श्लोक के बाद मनु ने प्राणियों की अहिंसा का गुणगान कई श्लोकों में करते हुए मांस भक्षण को पुण्यफल का विरोधी माना है। उन्होंने यहाँ तक कहा है कि यदि कोई व्यक्ति सौ साल तक हर साल अश्वमेध यज्ञ करता रहे और यदि कोई व्यक्ति मांस न खाए तो उनका पुण्यफल समान होता है (५.५३)। सन्तों के पवित्र फल-फूल भोजन मात्र पर निर्वाह करने वाले को भी वह पुण्यफल नहीं मिलता है जो कि केवल मांस छोड़ने वाले को मिलता है।
ReplyDeleteसमझदार लोग कहते हैं कि मांस को मांस इसलिये कहा जाता है, क्योंकि मैं आज जिसको खा रहा हॅूँ (मां) मुझे भी (सः) वह परलोक में ऐसे ही खाएगा। और मनु गौ को तो सर्वथा अवध्य मानते हैं और उसकी रक्षा करना मनुष्य मात्र का कर्तव्य मानते हैं। इसी प्रसंग में ऊपर दिया कामसूत्र विषयक परिच्छेद (भारतीय आदर्श शीर्षक से पहले) एक बार और देख लें तो विषय और भी स्पष्ट हो जाएगा। एक शास्त्र होने के नाते मनुस्मृति में चाहे मांस-भक्षण की चर्चा है, लेकिन जिस विस्तृत स्पष्टता के साथ इसको अपुण्यशील माना है, वह मांस-भक्षण की स्वीकृति के पक्ष में नहीं, अपितु उसके साक्षात् विरोध में खड़ा है। तब भी यदि कोई इसमें मांस-भक्षण की स्वीकृति को सिद्ध करने की चेष्टा करता है, तो या तो वह मूढ़ अज्ञानी है, या धूर्त है।
अम्बेडकर वादी खुद को बुद्ध का अनुयायी कहते है लेकिन खुद बुद्ध के ही उपदेशो की धजिय्या उठाते है | सनातन धर्म पर अपनी कुंठित मानसिकता के कारण ये कभी वेद आदि आर्ष ग्रंथो पर अपनी खुन्नस उतारते है | तो कभी कभी महापुरुषों को गालिया देंगे जैसे की मनु को ,श्री राम ,कृष्ण ,दुर्गा आदि को .. अपने इसी मानसिकता के चलते ये कभी रावन शाहदत दिवस, महिषासुर शाहदत दिवस आदि मानते रहते है |
ReplyDeleteये लोग खुद को बुद्ध का अनुयायी कहते है लेकिन बुद्ध की अंहिसा ,शाकाहार,गौ संरक्षण आदि सिधान्तो को एक ओर कर अपनी विरोधी ओर कुंठित मानसिकता का परिचय दिया है| जबकि बुद्ध के गौ संरक्षण पर निम्न उपदेश है :- उन्होंने गो हत्या का विरोध किया और गो पालन को अत्यंत महत्व दिया ।
माता, पिता, परिजनों और समाज की तरह गाय हमें प्रिय है । यह अत्यंत सहायक है । इसके दूध से हम औषधियाँ बनाते हैं । गाय हमें भोजन, शक्ति, सौंदर्य और आनंद देती है । इसी प्रकार बैल घर के पुरुषों की सहायता करता है । हमें गाय और बैल को अपने माता-पिता तुल्य समझना चाहिए । (गौतम बुद्ध)
गाय और बैल सब परिवारों को आवश्यक और यथोचित पदार्थ देते हैं । अतः हमें उनसे सावधानी पूर्वक और माता पिता योग्य व्यवहार करना चाहिए । गोमांस भक्षण अपनी माता के मांस भक्षण समान है । (लोकनीति ७) गाय की समृद्धि से ही राष्ट्र की समृद्धि होगी । (सम्राट अशोक)
अत: पता चलता है की नव बुद्ध अम्बेडकरवादी बुद्ध मत के अनुयायी नही है ये नस्तिक्वादी केवल अम्बेडकर के ही अनुयायी है अपनी सुविधा अनुसार कभी बुद्ध के उपदेशो का इस्तेमाल करते है तो कभी खूटे पर टांग देते है| अगर बुद्ध के वास्तविक अनुयायी होते तो गौ मॉस तो क्या किसी भी प्राणी के मॉस की मांग न करते|
Tumharai maa ki chut salo gau mata hamesha se pavitra thi aur unka mans kabhi nhi khaya jata tha ......Jo iska anuwad kiya h us randi ke ladke ki bhi maa ki chut kat lo......
ReplyDeleteआप विशुद्ध म?#@$द लगते हैं श्रीमान !! पहले जाकर मनुस्मृति और ऋग्वेद पढ़ो फिर गाली बकना
DeleteIslamik post hai. Hinduo ko todne ke liye. Suwar khalo..mangal panday ne jab vidroh kiya tha. Yad hai n.ye manusmriti ka english version hai. Manusmriti me mans sewan ko pap mana gaya hai. Ye dusprachar failaya ja raha hai.
ReplyDeleteSale chutiye ved ke mntra to diye hi nahi tune ....or sidh krta h....arya ary bhi h kise khte h
ReplyDeleteNo religion is good religion. Don't debate on religion. Feel God and use your mind what is wrong and what is right to say, do and hear.
ReplyDeleteधर्म सभी अच्छे हे सिर्फ मनुष्य ही बुरा हे जो आपस मे मतभेद करता हे|और जो भी लोग ज्ञानी बन रहे हे|वो पहले अच्छे मनुष्य बनो|किसी को बुरा मत कहो|बहस करने के लिये और भी बहुत चीजे हे|लेकिन ज्यादातर मनुष्य एक दुसरे को नीचा दिखाने की सोच रखते हे|जबकी सभी मनुष्य एक पानी के गंदे कतरे से बने हे|सब को अपनी ओकात मे रहना चाहिये घमंड नही करना चाहिये|
ReplyDeleteधर्म के पीछे पड़े हे चाहे वो किसी भी धर्म के हो
Good information
ReplyDeleteThanks to shear to all
This earth would be better place without religion...
ReplyDeleteपूरा फेक है😂😅कहां से बनाते हो ऐसे बेकार अर्थ😅😂पहली बात इंद्र कोई भगवान है ही नही😂😅अबे जाकर असली और संस्कृत के वेद पढ़ो और उनका सही निकाल कर लोगो को दिखाओ यहां झूट मत फैलाओ😅😂
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