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Monday, May 27, 2013

छत्तीसगढ़ में निर्दोषों की हत्या पर खेद: माओवादी

बीबीसी संवाददाता
 मंगलवार, 28 मई, 2013 को 08:47 IST तक के समाचार

पिछले हफ्ते छत्तीसगढ़ में हुए माओवादी हमले में 24 लोग मारे गए
छत्तीसगढ़ में हुए घातक हमले के तीन दिन बाद भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने कहा है कि 'दमन की नीतियों' को लागू करने में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की समान भागीदारी है और इसलिए संगठन ने कांग्रेस के बड़े नेताओं को क्लिक करें निशाने पर लिया है.
सोमवार देर शाम बीबीसी को भेजी गई एक विज्ञप्ति और एक रिकॉर्ड किए गए बयान में दंडकारण्य विशेष ज़ोनल कमिटी के प्रवक्ता गुड्सा उसेंडी का कहना है कि राज्य के गृहमंत्री रह चुके छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल जनता पर ‘दमनचक्र चलाने में आगे रहे थे’.
उसेंडी का कहना है कि पटेल के समय में ही बस्तर क्षेत्र में पहली बार अर्ध-सैनिक बलों की तैनाती की गई थी.
बयान में उसेंडी ने कहा, “ये भी किसी से छिपी हुई बात नहीं कि लम्बे समय तक केन्द्रीय मंत्रिमंडल में रहकर गृह विभाग समेत विभिन्न अहम मंत्रालयों को संभालने वाले वीसी शुक्ल भी जनता के दुश्मन हैं, जिन्होंने साम्राज्यवादियों, दलाल पूंजीपति और ज़मींदारों के वफादार प्रतिनिधि के रूप में शोषणकारी नीतियों को बनाने और लागू करने में सक्रिय भागीदारी की.”
शनिवार को छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर बड़ा नक्सली क्लिक करें हमला हुआ था जिसमें प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार और वरिष्ठ नेता क्लिक करें महेंद्र कर्मा समेत 24 लोगों की मौत हो गई थी.

'आंदोलन'

"कुल एक हजार से ज्यादा लोगों की हत्या कर, 640 गांवों को कब्रगाह में तब्दील कर, हजारों घरों को लूट कर, मुर्गों, बकरों, सुअरों आदि को खाकर और दो लाख से ज्यादा लोगों को विस्थापित कर, 50 हजार से ज्यादा लोगों को बलपूर्वक राहत शिविरों में घसीटकर सलवा जुडूम जनता के लिए अभिशाप बना था"
गुड्सा उसेंडी, कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)
हमले की ज़िम्मेदारी लेते हुए संगठन ने कहा है कि आदिवासी नेता कहलाने वाले महेन्द्र कर्मा का ताल्लुक ‘एक सामंती मांझी परिवार’ से रहा.
इस हमले की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कड़े शब्दों में निंदा की थी.
माओवादियों का आरोप है कि कर्मा का परिवार ‘भूस्वामी होने के साथ-साथ आदिवासियों का अमानवीय शोषक व उत्पीड़क’ रहा है.
उसेंडी नें कहा, “1996 मे बस्तर में छठवीं अनुसूची लागू करने की मांग से एक बड़ा आंदोलन चला था. हालांकि उस आंदोलन का नेतृत्व मुख्य रूप से भाकपा ने किया था, लेकिन उस समय की हमारी पार्टी भाकपा (माले) (पीपल्स वार) ने भी उसमें सक्रिय रूप से भाग लेकर जनता को बड़े पैमाने पर गोलबंद किया था.”
संगठन का आरोप है कि महेन्द्र कर्मा ने उस आंदोलन का विरोध किया था.
माओवादियों के बयान में कहा गया है कि 'छत्तीसगढ़ के मुंख्यमंत्री रमन सिंह और महेन्द्र कर्मा के बीच कितना अच्छा तालमेल रहा, इसे समझने के लिए एक तथ्य काफी है - कि मीडिया में कर्मा को रमन मंत्रिमंडल का सोलहवां मंत्री कहा जाने लगा था.'
सलवा जुडूम की चर्चा करते हुए उसेंडी का कहना था,"बस्तर में जो तबाही मचाई गई और जो क्रूरता बरती गई, उसकी तुलना में इतिहास में बहुत कम उदाहरण मिलेंगे."

बदला

माओवादियों ने सलवा जुडूम के सदस्यों पर बलात्करा व दूसरे अत्याचारों का आरोप लगाया है
वे कहते हैं, “कुल एक हजार से ज्यादा लोगों की हत्या कर, 640 गांवों को कब्रगाह में तब्दील कर, हजारों घरों को लूट कर, मुर्गों, बकरों, सुअरों आदि को खाकर और दो लाख से ज्यादा लोगों को विस्थापित कर, 50 हजार से ज्यादा लोगों को बलपूर्वक राहत शिविरों में घसीटकर सलवा जुडूम जनता के लिए अभिशाप बना था.”
विज्ञप्ति में आरोप लगाया गया है कि सलवा जुडूम के दौरान सैकड़ों महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया.
माओवादियों नें दावा किया है कि इस कार्रवाई के जरिए उन्होंने ‘एक हजार से ज्यादा आदिवासियों की ओर से बदला ले लिया है जिनकी सलवा जुडूम के गुण्डों और सरकारी सशस्त्र बलों के हाथों हत्या हुई थी.’
माओवादियों का कहना है कि इस हमले का लक्ष्य मुख्य रूप से महेन्द्र कर्मा तथा ‘कुछ अन्य कांग्रेस नेताओं का खात्मा करना था.’

खेद

मगर कांग्रेस के काफिले पर हुए हमले में कई निर्दोष लोगों की भी हत्या हुई जैसे वाहनों के ड्राइवर, खलासी और कांग्रेस के निचले स्तर के नेता.
माओवादियों ने इन लोगों की हत्या पर खेद प्रकट किया है.
कांग्रेस ने पिछले 12 अप्रैल से परिवर्तन यात्रा की शुरूआत की है और राज्य में इसी साल चुनाव भी होने वाले हैं.
नक्सलियों ने कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा को लेकर पहले ही धमकी दी थी. खासकर माओवादियों के खिलाफ सलवा जुड़ूम अभियान का समर्थन करने वाले कांग्रेसी नेता महेंद्र कर्मा को लेकर माओवादिओं का गुस्सा पुराना था.
इस हमले की निंदा होने के साथ साथ इस बात पर भी बहस जारी है कि क्या माओवादियों की हिंसा के खिलाफ हो रही कार्रवाई पर्याप्त है.