who was aryaजर्मन के परषिद विद्वान प्रो.मैक्स मुलर ने अपनी पुस्तक "भाषा विघ्यान पर भासन " में मध्य एसिया को आर्यो का मूल निवासी बतया है. उनके अनुसार ईरानी ,लातिनी,यूनानी ,रोमन और जर्मन लोगो के पूर्वज कभी मध्य एसिया में एक साथ रहते थे परंतु कुछ समय पश्चात खाद्यान्न के अभाव और जन्सय्ख्य की विर्धि के कारन उनका यहाँ रेहान मुश्किल हो गया.इसलये आर्य लोगो ने मध्य एसिया को छोड़कर संसार के अन्य भागो में जाना सुरु किया आर्यो की जिस साखा ने भारत में परवेश उनकी संतान भारतीय आर्य कहलाये . इस सिन्द्हत के सम्रथन में निमिन्लिखित तर्क पर्स्तुत किये जाते है.
1. संस्कृत ,ईरानी,अंग्रेजी ,लातिनी अदि भाषा के अनेक शब्द मिलते -जुलते है. निमिलखित शब्माला के अध्यन से भाषा की समानता और सपष्ट हो जाएगे
संस्कृति हिंदी ईरानी जर्मन अंग्रेजी
पितृ पिता पिदर Vater Father
मात्रृ माता मादर Mutter Mother
भात् भ्राता बिरादर Bruder Brother
इन शब्दों की एकरूपता को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है की इन भासओव को बोलने वाले किसी एक स्थान पर एक साथ रहते थे.
2. प्रो.मैक्स मुलर ने भारतीय आर्यो के धार्मिक ग्रथ वेद और ईरानियो की पुस्तक 'ZEND AVESTA ' का तुलनात्मक अध्यन किया . अत आर्यो का आदि देश वह स्थान होना चाहिए जहा घोडा ,गाए और पीपल अधि चीजों के लिए अनुकूल वातावरण हो . एक्स स्थान के मद्य एसिया का ही कोई परदेश हो सकता है.
3. वेदों में वर्णित आर्य लोग रंग के गोरे, कद के लंबे और अच्छे डील-डोल वाले थे. आर्यो का इस परकार का शारीरिक वर्ना जर्मन , इंग्लॅण्ड और इरान के निवासियों से मेल खता है.
इस मत को समर्थन निमिन्लिकित आधार पर दिया जा सकता है.
1. इस मत की मान्यता का सबसे बड़ा कारन मद्य एसिया की भ्गोलिक सिथिति है . मध्य एसिया भारत , इरान और यूरोप के मद्य सिथति है
इस कारन यह कारण मन जा सकता है की आर्यो के पूर्वज यहाँ से पूर्व में भारत और इरान की और तथा पश्चिम में यूरोप की और निकल गाए होंगे.
2. मासोपोतिमिया में मिले Boghaj-Koi शिलालेख से यह बात शिध होती है की पराचीन काल में वाह के निवासी 'इंद्र ' और वरुण आदि देव्तोव की उपासना करते थे. ये देवता भारतीय आर्यो के भी पूजनीय थे. अत. सपष्ट है की आर्य लोग भारत में आने से पहले मद्य एसिया में निवास करते थे
3.आर्यो का मुख्या व्यवस्या पशु -पालन था. संभतया आर्य लोग भारत में आने से पहले भी पशु पालन के व्यवस्था में ही लगे रहे होंगे. पशु चराने के लिए उपुयक्त स्थान मद्य एसिया की विसाल चरगाहे ही हो सकती है, इससे सपष्ट हो जाता है की आर्य लोग आरंभ में मध्य एसिया में ही रहते होंगे
4. ऋग्वेद में वर्णित पशु पक्षियों का सम्बन्ध भी मध्य एसिया से ही है.
5. ऐसा मन जाता है की पराचीन काल में आर्यो की समुंदर का ज्ञान नहीं था . ऐसा स्थान भी केवल मध्य एसिया में हो सकता है.
सन्दर्भ MBD HISTORY OF INDIA (B.A.1,K.U.K/M.D.U)PAGE 35 (YEAR 2004)
अतिरिक्त जानकारी Ramesh Cee Chandra (गुरु कवि हकीम) से
अतिरिक्त जानकारी Ramesh Cee Chandra (गुरु कवि हकीम) से
1. सिन्धुवासी पेड़, तालाब , भूमिया ( गाव या शहर की भूमी का स्वामी ) आदि की पूजा करते थे हवन कुंडो का उनको कोई ज्ञान नहीं था..
2. यूरोप में आज भी धुप की बहुत समस्या है वहाँ का वातावरण बहुत ठंडा है इसलिए आर्य सूर्य की धुप की कामना करते हुए सूरज को देवता मानते थे ..सिन्धु सभ्यता के लोगो ने सूरज को कभी भी देवता नहीं माना
3. उसी प्रकार ठण्ड से बचने के लिए अग्नि और बर्फ जम जाने के कारण पानी ( वरुण) को देवता मानते थे
4. यूरोप में वायु ( हवा बहुत सर्द होती है उससे बचाव के लिए उसे देकता माना गया ताकि ठंडी हवाओं से बछव हो
5. आर्य लोग सुरा के बहुत शौक़ीन थे क्योकि ठण्ड से बचने के लिए मद्धापान अचूक औषधी है ..आज भी यूरोप में मद्धापान भारत से ज्या किया जाता है सिन्धु काल में मद्धापान का एक भी उद्धाहरण सामने नहीं आया क्योकि सिन्धु प्रदेश गर्म प्रदेश था जो आज भी है
6 आर्य खानाबदोश लोग थे जो पशुवो के साथ रहते थे पशुपालन उनका मुख्या जीविका चलाने का मुख्या कार्य था. इसलिए आज भी अधिकाश हिन्दू दर्म के देवताओं की सवारी पशु है .पशुपालन के लिए नए चरागाहों की खोज में घूमते रहते थे. उसी समय उन्हें भारत के सिंधु घाटी क्षेत्र की विकसित सभ्यता का पता चला. सिंधु घाटी सभ्यता कृषि भूमि सम्पदा से भरपूर थी.
7. सिन्धु लिपि अलग थी जबकि आर्यों की भाषा संस्कृत थी
8. पृथ्वी सब का पालन करती है इसलिए सिन्धु वासी जिससे जीवन चलता था उसकी पूजा करते थे पृथ्वी को माँ या देवी मानकर
9. हड़प्पा संस्कृति का विस्तार सिन्धु नदी थी जबकि आर्यों का क्षेत्र उत्तरी भारत में गंगा का मैदान ९. सिन्धु का जातिय आधार नहीं था वहा विभिन्न व्यवसाय के लोगो का समूह होता था आर्यों का जाति आधार समाज था
10. आज आप देखते होगे जब कोई यूरोपियन भारत आता है तो उसे गर्मी बहुत सताती है और वो अर्धनगन अवस्था में ही घूमता रहता है
इसीप्रकार जब आर्य यूरोप से इन गर्म प्रदेशो में आये तो आर्य अर्धनगन रहते थे जबकि सिन्धुवासी सूती व महीन वस्त्र पहनते थे
11. ब्रह्मा विष्णु महेश की स्तापना भारत में आने के बाद हुई क्योकि आर्यों को स्थाई जगह मिल गई थी रहने की अत ब्रह्मा ( कार्यपालिका) , विष्णु ( व्यवस्थापिका ) और महेश (न्यायपालिका/ दंड ) का उदय हुआ ..
इन तीन चीजो ने सिन्धु वासियों पर प्रतिबन्ध का कहर ढा दिया .प्रतिबंधों के कारण चाहे सिन्धु वासी( दलित ) अलग थलग कर दिए गए फिर भी वह अपनी शासन व्यवस्था के लिए किसी का मोहताज नहीं रहा और न ही किसी को अपने ऊपर हावी होने दिया. इस समाज का अध्ययन एवं सर्वे करने से पता चलता है कि इसने ब्राह्मणों की मनुस्मृति के कानून-विधान की परवाह नहीं की. वह इन अमानवीय विधानों की धज्जियाँ उड़ाता रहा,चाहे उसे कितनी ही मुसीबतों का सामना क्यों न करना पड़ा हो. ब्राह्मण वर्ग ने जैसे सवर्ण समाज’ की रचना की, वैसे ही अछूत बनाए गए सिन्धु वासियों ने तर्कों से अलग समाज की स्थापना की और हिन्दू धर्म की धज्जिया उड़ाई जो आज भी उड़ा रहे है
सिन्धु और आर्य सभ्यता दोनों ही अलग थी ..किसी भी प्राचीन चीज को जानने के कुछ तरीके होते है जैसे भाषा और साहित्य , खुदाई से प्राप्त वस्तुवे , शिलालेख आदि आदि
12. सिन्धु के नगरो का उल्लेख किसी भी आर्य साहित्य में नहीं है ना ही वेदों में ना पुरानो में नाही किसी अन्य दस्तावेजो में , मोहनजोदड़ो का विशाल अन्नगृह और विशाल स्नानागार का उल्लेख वेदों के किस पेज या पृष्ठ पर है कृपया बताइये और नहीं है तो क्यों नहीं ..इसी प्रकार हड़प्पा नगर का उल्लेख , लोथल , मालवण और सुत्केनेडोर का गोदीवाड़ा, कालीबंगा में लकड़ी की नालियों के अवशेष ,वनावानी में मिला ताम्रधातु का कारखाना जहां बर्तन और मुद्राए बनती थी डाबरकोट , रोपड़ ,बाडा जैसे व्यापारिक शहर , रंगपुर में मिला मूर्तियों का कारखाना ..इसी प्रकार हड़प्पा के लगभग 300 नगरो का उल्लेख किसी भी वेद में नहीं है जबकि ये सब नगर और वहा से प्राप्त वस्तुवे साके सामने मौजूद है ..
आपने कहा सिन्धु घाटी सभ्यता में यज्ञकुंड भी मिले हैं और घोड़े की अस्थियाँ भी बताइये कौन से शहर में ..इस बात का प्रमाण भी होना चाहिए ....घोड़ा जरुर था मगर सिन्धुवासी उसका उपयोग नहीं जानते थे परन्तु यज्ञकुंड किसी भी शहर में नहीं मिला जो इस सभ्यता से सम्बंधित रहे
सिन्धु सभ्यता व्यापार प्रधान थी ..कृषी भी प्रचुर मात्रा में की जाती थी परन्तु आर्य सभ्यता पूर्णत पशु प्रधान थी पशुपालन ही उनका मुख्य व्यवसाय था जो बाद में स्थाई बस जाने के कारण कृषी प्रधान हो गई .. वाणिज्य और व्यापार गावो तक ही सिमित था ..मै अब भी कह रहा हूँ आर्य जाती के समस्त देवताओं की सवारी पशु है क्योकि खानाबदोश और पशुपालन वाले लोग ही पशुवो पर सवारी करके ही एक स्थान से दुसरे स्थान जा सकते थे
हल बैल का मिलना कोई अचम्भा नहीं क्योकि सिन्धु वासीयो को कृषी का ज्ञान था और हल द्वारा खेतो को जोतने का आविष्कार कर लिया था ...घोड़े को छोड़कर सभी पशु खेती के काम आते थे ,,बैल के महत्व को सिन्धुवासी जान गए थे ..इसलिए बैल एक महत्वपूर्ण पशु माना जाता था जो पूजनीय था तथा आर्यों के आदि देवता रूद्र के साथ उसको दिखाया गया है ...आर्यों का महत्वपूर्ण पशु गाय थी बैल नहीं
सिन्धु सभ्यता से मिली पोशाको से पता चलता है कि स्त्री पुरुष दोनों ही सम्पूरण वस्त्र पहनते थे ..शारीर का कोई भी भाग नंगा रहना असभ्यता में माना जाता था ..जबकि आर्य चाहे राजा हो या प्रजा कमर से ऊपर नंगे रहते थे इसका कारण था यहाँ की गर्मी ..क्योकि आर्य ठन्डे प्रदेशो से भारत आये थे और यहाँ की गर्मी उन्हें परेशान करती थी ...आज भी भारत की गर्मी अंग्रेजो को परेशान करती है और वे यहाँ अर्धनग्न घूमते रहते है
आपने कहा लिपि और भाषा अलग ही होती है तो आज तक यह भाषा क्यों नहीं पढी जा सकी ..आर्यों को लिखने का ज्ञान नहीं था वे मौखिक रूप से साहित्य याद रखते थे संकृत और सिन्धु भाषा दोनों ही अलग है वेदों में इस बात का जिक्र क्यों नहीं है कि उनकी संस्कृत के अलावा भी कोई दूसरी भाषा थी
आजकल एक दलित वर्ग विशेष (अम्बेडकरवादी ) अपने राजनेतिक स्वार्थ के लिए आर्यों के विदेशी होने की कल्पित मान्यता जो कि अंग्रेजी और विदेशी इसाई इतिहासकारों द्वारा दी गयी जिसका उद्देश्य भारत की अखंडता ओर एकता का नाश कर फुट डालो राज करो की नीति था उसी मान्यता को आंबेडकरवादी बढ़ावा दे रहे है | जबकि स्वयम अम्बेडकर जी ने “शुद्र कौन थे” नाम की अपनी पुस्तक में आर्यों के विदेशी होने का प्रबल खंडन किया है | आश्चर्य की बात है कि अम्बेद्कर्वादियो के आलावा तिलक महोदय जेसे अदलितवादी लेखक ने भी आर्यों को विदेशी वाली मान्यता को बढ़ावा दिया है |
ReplyDeleteबुद्ध वग्ग में अपने उपदेशो को बुद्ध ने चार आर्य सत्य नाम से प्रकाशित किया है -चत्वारि आरिय सच्चानि (अ.14 )
जैन धर्म को आर्य धर्म भी कहा जाता है | [पृष्ठ xvi, पुस्तक : समणसुत्तं (जैनधर्मसार)
सिन्धु सभ्यता और आर्य आक्रमणकारी – कुछ लोग सिन्धु सभ्यता के बारे में यह कल्पना करते है कि सिन्धु सभ्यता को विदेशी आर्यों ने नष्ट कर दिया जबकि हमारा मत है कि सिन्धु सभ्यता आज भी विद्यमान है | केवल सिन्धु वासियों के पुराने नगर नष्ट हुए है जो की प्राक्रतिक आपदाओं के कारण हो सकते है
यवन राजदूत मैगस्थ नज लिखता है -भारत अनगिनत और विभिन्न जातियों में बसा हुआ है | इनमे से एक भी मूल में विदेशी नही थी , प्रत्युत स्पष्ट ही सारी इसी देश की है |
इतिहासविद मयूर अपनी muir : original sanskrit text vol २ में कहता है ” यह निश्चित है कि संस्कृत के ग्रन्थ चाहे कितना भी पुराना हो आर्यों के विदेशी होने का कोई उलेख नही मिलता है |”
कृण्वन्तो विश्वमार्यम् कहते हुए वेद कहता है- सपूर्ण रूप से आर्य बनो और सब को आर्य बनाओ। जब सबको आर्य बनाया जायेगा, तब खडगे जी अनार्य कैसे रह पायेंगे विश्व साहित्य में आर्यों का बाहर भारत में आना लिखा नहीं मिलता, हाँ विश्व के अनेक ग्रन्थों में जिनका पुराना इतिहास मिलता है, उनमें उनके पूर्वजों का भारत से आकर वहाँ निवास करना लिखा मिलता है। ईरान के इतिहास और धर्म ग्रन्थ जिन्द अवेस्ता में उनके पूर्वजों का भारत से जाकर ईरान में वास करने का उल्लेख मिलता है।
पहले इस मान्यता द्वारा द्रविड़ (दक्षिण भारतीय ) और उत्तर भारतीयों में फुट ढल वाई गयी जबकि जिसके अनुसार उत्तर भारतीयों को आर्य बताया और उन्हें विदेशी कह कर मुल्निवाशी दक्षिण भारतीयों का शत्रु बताया और हडप्पा और मोहनजोदड़ो को द्रविड सभ्यता बताया लेकिन फिर बाद में इन्होने द्रविड़ो को भी विदेशी बताया और भारत में मुल्निवाशी दलित और आदिवासियों को बताया .. जबकि न तो उन्होंने आर्यों को समझा और न ही दस्युओ को ,वास्तव में आर्य नाम की कोई नस्ल या जाति कभी थी ही नही आर्य शब्द एक विशेषण है जिसका अर्थ श्रेष्ट है
ReplyDeletelife and letter of maxmullar में भी maxmullar का एक पत्र मिलता है जिसको उसने १८६६ में अपनी पत्नि को लिखा था पत्र निम्न प्रकार है –
अर्थात मुझे आशा है कि मै यह कार्य सम्पूर्ण करूंगा और मुझे पूर्ण विश्वास है ,यद्यपि मै उसे देखने को जीवित न रहूँगा, तथापि मेरा यह संस्करण वेद का आध्न्त अनुवाद बहुत हद तक भारत के भाग्य पर और उस देश की लाखो आत्माओ के विकास पर प्रभाव डालेगा | वेद इनके धर्म का मूल है और मुझे विश्वास है कि इनको यह दिखना कि वह मूल क्या है -उस धर्म को नष्ट करने का एक मात्र उपाय है ,जो गत ३००० वर्षो से उससे (वेद ) उत्त्पन्न हुआ है |
ऋग्वेद ६/६०/६ में वृत्र को आर्य कहा है अम्बेद्कर्वदियो का मत है कि वृत्र अनार्य था जबकि ऋग्वेद में ” हतो वृत्राण्यार्य ” कहा है यहाँ आर्य शब्द बलवान के रूप में प्रयुक्त हुआ है जिसका अर्थ है बलवान वृत्र और वृत्र का अर्थ निघंटु में मेघ है अर्थात बलवान मेघ | इसी तरह वेदों के एक मन्त्र में उपदेश करते हुए कहा है ” कृण्वन्तो विश्वार्यम ” अर्थात सम्पूर्ण विश्व को आर्य बनाओ यहाँ आर्य शब्द श्रेष्ट के अर्थ में लिया गया है यदि आर्य कोई जाति या नस्ल विशेष होती तो सम्पूर्ण विश्व को आर्य बनाओ ये उपदेश नही होता |
बौद्धों के विवेक विलास में आर्य शब्द -” बौधानाम सुगतो देवो विश्वम च क्षणभंगुरमार्य सत्वाख्या यावरुव चतुष्यमिद क्रमात |” ” बुद्ध वग्ग में अपने उपदेशो को बुद्ध ने चार आर्य सत्य नाम से प्रकाशित किया है -चत्वारि आरिय सच्चानि (अ.१४ )
ईश्वर द्वारा प्रदत्त ऋग्वेद का 1/51/8 मन्त्र प्रस्तुत है जिसमें आर्य और दस्यु को जातिसूचक नहीं अपितु गुण-कर्म-स्वभाव का सूचक बताया गया है। इस मन्त्र का अर्थ हैः इस संसार में आर्य=श्रेष्ठ और दस्यु=विनाशकारी इन दो प्रकार के स्वभाव वाले स्त्री व पुरुष हैं। हे परमैश्वर्यवान् इन्द्र (परमात्मा) ! आप बर्हिष्मान् अर्थात् संसार के परोपकार रूप यज्ञ में रत आर्यों की सहायता के लिए (परहित विरोधी, स्वार्थ साधक व हिंसक) दस्युओं का नाश करें। हमें शक्ति दें कि हम अव्रती (व्रतहीन, सामाजिक नियम व वेदविहित ईश्वराज्ञा भंग करने वाले) अर्थात् अनार्य दुष्ट पुरुषों पर शासन करें। वह कदापि हम पर शासन न करें। हे इन्द्र (ऐश्वर्यो के स्वामी ईश्वर) ! हम सदा ही तुम्हारी स्तुतियों की कामना करते हैं। आप आर्य सद्–विचारों के प्रेरक बनें, जिससे हम अनार्यत्व को त्याग कर आर्य बनें।
ReplyDeleteअतः इस बात में कोई संशय नहीं है कि आर्य जातिसूचक शब्द नहीं अपितु मनुष्यों में श्रेष्ठ गुणों की प्रधानता का सूचक है।
भारत में अंग्रेजी शिक्षा के जन्मदाता मैकाले और एफ0 मैक्समूलर की भारतीय वैदिक धर्म और संस्कृति को दूषित करने की योजना को क्रियान्वित करने पर हुई बैठक का विवरण भी प्रस्तुत करना चाहते हैं। इस बैठक में मैकाले ने मैक्सूलर को कहा कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी लाखों रुपये व्यय करने को तैयार है यदि आप हिन्दुओं के आदि धर्म ग्रन्थ ऋग्वेद का अंग्रेजी में अनुवाद करें और इस ढंग से व्याख्या करें कि जिससे वेदों की विचारधारा के विद्वानों व अनुयायियों को धर्म–भ्रष्ट किया जा सके। तुम इस काम में अंग्रेजी सरकार को सहयोग दो और हिन्दुओं के हृदयों में वेद के प्रति अश्रद्धा उत्पन्न करो जिससे अंगेजी राज्य की भारत में नींव सुदृढ़ हो तथा हिन्दुओं को बिना किसी यत्न किये सरलता से ईसाई बनाया जा सके।
आर्यों की व्याख्या करते हुए भगवान बुद्ध कहते हैं कि – अर्थात प्राणियों की हिंसा करने से कोई आर्य नहीं कहलाता, समस्त प्राणियों की अहिंसा से ही मनुष्य आर्य कहलाता है |
ReplyDeleteSale vaampanthi harami mxmuller ki nazayz aulad.
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