Saturday, February 1, 2014

बहुत सहज सरल और शांत होते हैं नार्थ इंडियंस


Manisha Pandey
21 साल की उमर तक मैंने ज्‍यादातर एक ही किस्‍म के लोगों को देखा था - हिंदी बेल्‍ट के उत्‍तर भारतीय, अपर कास्‍ट, ब्राम्‍हण, ठाकुर, बनिया आदि। मुहल्‍ले की सहेलियां वही, अंकल-आंटी वही, स्‍कूल के दोस्‍त-टीचर, रिश्‍तेदार, पड़ोसी ज्‍यादातर वही लोग। एक खास किस्‍म के मूढ़, सामंती, मर्दवादी, अनडेमोक्रेटिक किस्‍म के लोग। खास तरह की लड़कियां, खास तरह का माइंड सेट, खास तरह का कैरेक्‍टरस्टिक। शायद दुनिया ऐसी ही होती है और लोग भी ऐसे ही। लेकिन दुनिया सिर्फ नॉर्थ इंडिया का मूर्ख, एरोगेंट अपर कास्‍ट, भावुक किस्‍म की मम्‍मीजी-पापाजी करने वाली परनिर्भर लड़कियां और तकरीबन हर दूसरी औरत को आंखें फाड़कर घूरने और फब्तियां कसने वाले मर्द ही नहीं होते, ये बात तब पता चली, जब इसी देश के अलग-अलग हिस्‍सों और संस्‍कृतियों के लोग मेरी जिंदगी में दाखिल हुए। हॉस्‍टल में मेरा अलावा उत्‍तर प्रदेश की सिर्फ एक लड़की थी - मिश्राइन फ्रॉम लखनऊ। मेरी दो रूममेट मणिपुर की थीं। हमारे उत्‍तर प्रदेश में पाई जाने वाली लड़कियों से बिलकुल अलग। मुझे पहली बार लगा कि लड़कियां ऐसी भी हो सकती हैं। बहुत स्‍ट्रांगहेडेड, मजबूत और आत्‍मनिर्भर लड़कियां। मिश्राइन फ्रॉम लखनऊ की तरह बात-बात पर मम्‍मीजी को फोन करके सलाह नहीं लेती थीं और न ही उनके मम्‍मी-पापा वॉचडॉग की तरह हर समय लड़कियों पर निगाह रखते थे। मणिपुर से अकेली ही आईं, खुद ही एडमिशन करवाया, खुद ही अपना सब काम करती थीं। नाइट आउट पर जातीं, सेक्‍सी स्‍पैगिटी पहनतीं, अकेले बिंदास घूमतीं और मेहनत से पढ़ाई भी करतीं। शानदार थीं दोनों। एक लड़की का ब्‍वॉयफ्रेंड दिल्‍ली से मिलने आया तो वो नाइट आउट लेकर कोलाबा के होटल में उसके साथ रुकी और आकर खुलेआम बता भी दिया कि रात में उसके साथ थी। कोई संकोच नहीं, इतना सहज जैसे बहता हुआ पानी। मिश्राइन फ्रॉम लखनऊ ने फटी आंखों से देखा और मुंह बिचकाया। फिर पडा़इन फ्रॉम इलाहाबाद से कहा कि छि कैसी लड़की है। ब्‍वॉयफ्रेंड के साथ होटल में जाती है। हमारे यहां हो तो काट दें। उसने जरूर इस भरोसे पर बोला होगा कि इलाहाबाद और लखनऊ तो चार घंटे की दूरी पर हैं, इसलिए जरूर हमारी संस्‍कृति और सेंसिबिलिटी एक जैसी होगी।
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इतने साल बीत गए। अब पता नहीं वो दोनों कहां हैं। जहां भी होंगी, वैसे ही आजाद और आत्‍मनिर्भर तरीके से जी रही होंगी। कमाल की थी दोनों। नॉर्थ ईस्‍ट की उन लड़कियों और मिश्राइन फ्रॉम लखनऊ का कोई मुकाबला ही नहीं था। मैं रेसिस्‍ट नहीं हूं, लेकिन फिर भी नॉर्थ इंडियन अपर कास्‍ट लोगों के प्रति एक किस्‍म के गुस्‍से से भरी रहती हूं। विचित्र बंद दिमाग के लोग हैं। अपनी संकीर्णताओं और कमजेहनी पर सवाल भी नहीं करते, मुकुट बनाकर माथे पर सजाए रहते हैं। वॉशिंगटन चले जाएं तो भी अपने जौनपुर और ब्राम्‍हण खून की मूर्खताओ की माला पहने रहेंगे। जिंदगी में जिन लोगों के साथ बहुत सजह, सुंदर और प्‍यारी दोस्तियां बनी हैं, उनमें से कुछ नॉर्थ ईस्‍ट के भी लोग थे। वो बेहतर मनुष्‍य हैं। हमसे उनका कोई मुकाबला नहीं।

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