Manisha Pandey
जब मैं टेंथ में थी तो मेरी एक दोस्त हुआ करती थी। उसका छोटा भाई नौवीं में था।जब मैं उसके घर जाती तो उसका भाई हम लोगों से काफी बातें करता था, लेकिन अगर उसका कोई दोस्त आए तो उसे बिलकुल पसंद नहीं था कि बहन बाहर आकर उन लोगों से बात करे। यहां तक कि बहन को दरवाजा भी नहीं खोलना चाहिए। उनके साथ बैठकर गपियाना तो बहुत दूर की बात है। अगर उसके दोस्त छत पर खेल रहे हैं तो उतनी देर वो छत पर नहीं जा सकती। अगर वो ड्रॉइंग रूम में बैठे हैं तो वो ड्रॉइंग रूम बैठना तो दूर, वहां से होकर गुजर भी नहीं सकती। वो लोग गेट पर खड़े हैं तो गेट पर नहीं जा सकती। जितनी देर भाई के दोस्त घर में हैं, उसे चुहिया की तरह अपने बिल में दुबककर रहना पड़ता था।
मैं उससे पूछती, अगर तुम उसके दोस्तों के सामने नहीं जा सकती तो वो क्यों आता है तुम्हारी सहेलियों के सामने, मेरे सामने। मुझसे क्यों बात करता है।
उसका जवाब होता, "अरे, तुम तो दीदी हो। और फिर लड़के अच्छे नहीं होते। इसलिए उनके सामने नहीं जाना चाहिए।"
भाई के पास अपनी बहन को अपने दोस्तों से दूर रखने का सॉलिड रीजन था - "वो अच्छे लड़के नहीं हैं।"
अब कोई उस गधे से पूछे कि लड़के अच्छे नहीं हैं तो तुम्हारे दोस्त क्यों हैं। तुम्हारे लिए अच्छे और बहन के लिए खराब।
मेरा तो कोई भाई ही नहीं था कि मैं इस तरह डिसक्रिमिनेशन कभी फील कर पाती। लेकिन मैंने अपने रिश्तेदारों के यहां, गांव में, कजिन बहनों को ऐसा करते देखा है। ये एक अनसेड रूल है उत्तर भारत के बहुसंख्यक मूर्ख, चिरकुट घरों का कि जब भाई के जवान दोस्त घर में आएंगे तो घर की जवान लड़की उनके सामने नहीं जाएगी। वो चुपचाप अंदर वाले कमरे में बैठेगी।
ये नियम लड़कियों के प्रोटेक्शन के लिए है। लड़के अपनी बहनों को संदूक में बंद करके रखना चाहते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि उनके दोस्त उनकी बहन को सेक्चुअल ऑब्जेक्ट समझते हैं। उन्हें पता है क्योंकि अपनी बहन को संदूक में छिपाने वाले लड़के खुद अपने दोस्तों की बहनों को सेक्चुअल ऑब्जेक्ट समझते हैं। सबके दिल में चोर है, इसलिए उन्हें दूसरा चोर नजर आता है।
अब मेरा कहना ये है कि लड़के कमीने हैं तो उन्हें बंद करके रख दो संदूक में। हमें क्यों छत पर जाने से रोक रहे हो।
मूर्खता और मक्कारी की कोई लिमिट है या नहीं है।
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteसटीक -
आभार आपका-