Thursday, June 27, 2013

इस कहानी में सिर्फ नाम और पहचान बदल दी गई है। बाकी एक-एक बात बिलकुल सच है।


Manisha Pandey
एक डच महिला के साथ महान गौरवशाली संस्‍कृति वाले हमारे देश में गैंग रेप हुआ। देश की राजधानी की एक एम्‍बैसी में उसके केस की सुनवाई चल रही थी। वकील ने लड़की से पूछा, "क्‍या आप गैंग रेप करने वाले लोगों को आइडेंटीफाई कर सकती हैं।"
लड़की बोली, "नहीं।"
"क्‍यों?"
लड़की की Eye Side कमजोर थी। वह चश्‍मा लगाती थी। उन लोगों ने उसका चश्‍मा तोड़ डाला था। चारों तरफ अंधेरा था। रात का समय। वह नहीं पहचान पार्इ। लेकिन उस लड़की ने एक बात और कही थी। वह बोली,
"नहीं। मैं उन्‍हें आइडेंटीफाई नहीं कर सकती। मैंने उन्‍हें नहीं देखा। उस वक्‍त मैंने अपनी आंखें बंद कर ली थीं और सोच रही थी कि मैं नीदरलैंड में हूं। उस वक्‍त मैं उस क्षण के बारे में नहीं सोचना चाहती थी। मैं ये कल्‍पना कर रही थी कि मैं वहां हूं ही नहीं। मैं अपने देश में हूं। अपने घर में। अपने ब्‍वॉयफ्रेंड के साथ।"
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फिल्‍म बैंडिट क्‍वीन का एक दृश्‍य है, जब बहमई के ठाकुर अपनी मर्दाना एकता के साथ इकट्ठे हुए हैं एक औरत को उसकी औकात बताने के लिए। जबर्दस्‍ती फूलन देवी के साथ हिंसक सामूहिक बलात्‍कार करने के लिए। जब एक-एक करके वह उस झोपड़ी में जा रहे हैं और आ रहे हैं, उस वक्‍त एक धुंधला सा आकार दिखता है। फूलन देखती है कि विक्रम मल्‍लाह उसके सिरहाने खड़ा है। वह उसका हाथ थाम रहा है, उसके सिर पर हाथ फेर रहा है, उसका माथा चूम रहा है। एक-एक करके ठाकुर आ रहे हैं और जा रहे हैं। सब साबित कर रहे हैं कि वे मर्द है और जब चाहें, जैसे चाहें, जहां चाहें, औरत को उसकी दो कौड़ी की औकात बता सकते हैं। उस समय, उस सबसे यातना भरे समय में फूलन उस आदमी के बारे में सोच रही है, जिससे उसे जिंदगी में प्‍यार और इज्‍जत मिली थी। असल में तो विक्रम मल्‍लाह वहां है ही नहीं। वह मर चुका है। यह सिर्फ फूलन की कल्‍पना है।

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क्‍या ये अजीब है कि दोनों औरतों की कल्‍पना में इतना साम्‍य है। दोनों अपने जीवन के सबसे दुखद क्षण में सबसे सुंदर क्षण के बारे में सोच रही हैं। जीवन जब सबसे गहरी पीड़ा से गुजर रहा है, मुहब्‍बत भरा एक हाथ उन्‍हीं के हाथ को कसकर थामे हुए है।

लेकिन मैंने ये बताने के लिए ये दोनों कहानियां नहीं सुनाईं कि जिंदगी हर क्षण उम्‍मीद है। कि सामूहिक बलात्‍कार के समय एक औरत अपनी आंखें बंद करके सोचती है कि उसे प्रेम करने वाले पुरुष ने उसका हाथ कसकर थाम रखा है। वह सोचती है कि वह दरअसल वहां है ही नहीं। वह सोचती है कि सब पहले की तरह सुंदर है। ये तो मैं जानती ही हूं। मैं भी तो एक औरत हूं।

मैं बताना दरअसल कुछ और चाहती हूं।

उस दिन दिल्‍ली की एम्‍बैसी में जब उस डच लड़की ने यह बयान दिया तो वहां मौजूद वकील, जिसकी निगाहें अब तक उस डच औरत की छातियों पर गड़ी हुई थीं, को हंसी आ गई। उसने बहुत घूरती, अश्‍लील नजर से उसे देखा और बोला, "ये कैसे हो सकता है मैडम कि आपने उन्‍हें देखा ही न हो। आइडेंटीफाई किए बगैर केस कमजोर हो जाएगा। पहचान तो करनी पड़ेगी।" फिर वह धीरे से अपने कुलीग से बोला, "आंखें बंद करके मजे ले रही थी।" वकील साहब इतने से नहीं माने। बाद में बाहर निकलकर ट्रांसलेटर लड़की से बोले, “अरे मैडम, इन लोगों से बात मत करिए। ये विदेशी औरतें बहुत गंदी होती हैं। इनका क्या, ये तो किसी के भी साथ सो जाती हैं।” और सिर्फ वह वकील ही क्‍यों, उस केस की वकालत कर रहे और उस वक्‍त कोर्टरूम में मौजूद सारे मर्दों को उस लड़की के बयान पर हंसी ही आई थी। जो लोग कनखियों से उसकी छातियों का एक्‍सरे निकाल रहे थे, वही उस दिन उसे न्‍याय दिलाने के लिए वहां बैठे थे।

कोर्ट रूम में उस डच लड़की को समझ में नहीं आया कि हिंदी में कहा क्‍या गया था। वहां मौजूद ट्रांसलेटर ने उस वाक्‍य का कभी अनुवाद नहीं किया। और मुझे शक है कि उस डच लड़की का वह बयान भी दर्ज नहीं किया गया था। "क्‍या आप आइडेंटीफाई कर सकती हैं?" के जवाब में उन्‍होंने बस इतना ही लिखा होगा, "नहीं।"

मैं कभी आरटीआई लगाकर उस दर्ज बयान की कॉपी जरूर निकलवाऊंगी।

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