Manisha Pandey
क्या कहा? मैं ऊंची जाति की औरत हूं। सवर्ण हूं। वाह वाह। क्या बात है। आइए, आपके माथे पर मोर मुकुट पहना दूं। कहां से आएं हैं आप? मंगल ग्रह से? मुझे तो कभी नहीं लगा कि मैं किसी भी मामले में ऊंची-वूंची टाइप कुछ हूं। अपने घर में हमेशा अपने भाइयों से कमतर ही रही। छुटपन में भी जब मेरे सब भाई ऊधम मचाते, खेलते-कूदते रहते, मुझसे घर का काम करवाया जाता। उनकी पढ़ाई कीमती थी और मुझे स्कूल भेजकर भी वो एहसान कर रहे थे। मेरे भाई पूरा शहर नापते रहते थे और मुझे घर में सिलाई-कढ़ाई-बुनाई और अच्छी बहू बनने के गुण सिखाए जाते थे। मेरे भाई अपने स्कूल में क्लासमेट के साथ इश्क फरमाते और मैं लड़कों की परछाईं तक से वंचित सिर्फ प्रेम की कल्पनाओं और घटिया टाइप की प्रेम कविताओं में जीती थी। भाइयों से जबान लड़ाती तो बड़ी मां मुझे थप्पड़ रसीद करती थीं। बड़े होकर जाना कि छातियां तो मेरी भी वैसी ही हैं, जैसी किसी दलित या मुसलमान औरत की होती हैं और मर्दों की निगाहें उसे वैसी ही भूखी नजरों से ताड़ा करती हैं, जैसे किसी दलित या मुसलमान औरत की छातियों को ताड़ती हैं। मेरा शरीर संसार के हर धर्म, जाति, नस्ल की औरत की तरह ही था और हर धर्म, जाति, नस्ल के मर्द, सब एक जैसे थे। होऊंगी मैं फलाना सवर्ण, सो कॉल्ड अपर कास्ट, लेकिन आपकी दुनिया में मैं सिर्फ औरत हूं और दो कौड़ी की औकात नहीं है औरतों की।और मुझे तो हंसी आती है उन औरतों की मूढ़ बुद्धि पर, जो खुद को तथाकथित ऊंची जाति का मानकर इतराया करती हैं। गदहिया हैं वो सब।
दुनिया की सब औरतों की एक ही जाति है। सब सताई गई हैं। सब लतियाई गई हैं। सब दलित हैं। सब वंचित हैं।
मर्द जरूर हर जाति, हर धर्म, हर वर्ग, हर नस्ल, हर समुदाय के एक हैं औरतों के मामले में। सब मर्द हैं।
और हम सब औरतें।
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