17 May 2013
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♦ हिमांशु कुमारसोनी सोरी और उसके भतीजे लिंगा कोडोपी से पुलिस ने एक वादा किया था। छत्तीसगढ़ पुलिस ने अपना विशेष पुलिस अधिकारी बनाने के लिए लिंगा कोडोपी नाम के आदिवासी युवक को जबरन दंतेवाड़ा थाने में चालीस दिनों तक बंद कर के रखा। उसकी बुआ सोनी सोरी ने अदालत में याचिका दायर कर अपने भतीजे को पुलिस के चंगुल से रिहा करवा लिया। इसके बाद पुलिस सोनी और लिंगा कोडोपी से बुरी तरह चिढ़ गयी। उसी समय पुलिस ने सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी से कहा था कि तुमने पुलिस की बेइज्जती की है, अब हम तुम्हारे परिवार को बरबाद करेंगे। पुलिस ने यह भी कहा था कि तुम कोर्ट से अगर बरी भी हो जाओगे तो हम तुम्हें मार डालेंगे।
सबसे पहले सोनी सोरी के पति अनिल को पुलिस ने एक फर्जी मुकदमे में फंसाया। बाद में उसी मुकदमे में सोनी और लिंगा कोडोपी को भी फंसा दिया गया।
पिछले महीने सोनी सोरी के पति अनिल को इस मुकदमे से बरी कर दिया गया। लेकिन अब अनिल अपने घर जाने की हालत में नहीं था। पुलिस ने अपना वादा पूरा कर दिया था। उसने अनिल को इस हाल में पहुंचा दिया कि अब वह न बात कर सकता है, न किसी को अपने साथ बीते हादसे के बारे बता सकता है।
27 अप्रैल को जिस दिन अनिल को अदालत द्वारा बरी किया जाना था, उस दिन सुबह सोनी और अनिल की जेल में मुलाकात हुई। अनिल बिल्कुल ठीक था। कुछ देर बाद पुलिस की गाड़ी सोनी और लिंगा को लेकर दंतेवाड़ा जाने के लिए तैयार हुई, तो सोनी ने पुलिस से पूछा कि इस मुकदमे में तो मेरे पति अनिल की भी पेशी होनी है, आप उन्हें हमारे साथ आज कोर्ट क्यों नहीं ले जा रहे हैं। तो पुलिस वाले टाल मटोल करने लगे। इस पर सोनी सोरी अड़ गयी और बोली कि मैं अपने पति को लेकर ही कोर्ट जाऊंगी। इस पर जेल अधिकारियों ने सोनी से कहा कि आज दंतेवाड़ा कोर्ट में आपसे मिलने दिल्ली से कोई आया है, इसलिए आप और लिंगा कोर्ट चले जाओ।
सोनी सोरी कोर्ट चली गयी। कोर्ट में सोनी सोरी से मिलने कोई नहीं आया था। पुलिस ने उससे झूठ बोला था। अदालत ने सोनी को, सोनी के पति अनिल को और उसके भतीजे लिंगा कोडोपी को निर्दोष घोषित किया। सोनी आज बहुत खुश थी क्योंकि आज उसका पति रिहा होकर अपने बच्चों के पास पहुंचने वाला था। सोनी और लिंगा पर कई और मुकदमे अभी बाकी हैं, इसलिए उन्हें रिहा नहीं किया जा सकता था।
लेकिन अदालत से वापिस जेल लौटते ही सोनी अवाक रह गयी। सोनी सोरी को पुलिस जेल से अस्पताल में अपने पति को देखने के लिए लेकर गयी। वहां सोनी का पति अनिल पूरी तरह बेबस हालत में पड़ा हुआ था। उसका पति अपने शरीर के सभी अंगों पर अपना काबू गंवा चुका था। वह लगभग जिंदा लाश बन चुका था। वह बोल भी नहीं पा रहा था। जेल अधिकारियों ने कहा कि हमने इसे रिहा कर दिया है। आज से इस पर कोई मुकदमा नहीं है।
इसके बाद पुलिस सोनी सोरी को फिर से जेल ले गयी।
सोनी सोरी के पति की कोर्ट से रिहाई अब किसी काम की नहीं थी। वह अब अपने बच्चों को पहचान भी नहीं सकता। इस तरह पुलिस ने इस परिवार को बरबाद करने के अपने वादे की पहली किस्त पूरी कर दी है। वादे की बाकी किस्तें पूरी करनी अभी बाकी है।
पुलिस ने इससे पहले सोनी सोरी के गुप्तांगों में पत्थर भर कर उसे कोर्ट में जाने की सजा दी थी। बाद में पत्थर भरने वाले पुलिस अधिकारी को राष्ट्रपति ने वीरता पदक दिया था। यह लोकतंत्र और भारतीय न्याय व्यवस्था का एक भयानक सच है। कमजोर दिल वाले इसे अभी ही देखना बंद कर दें। अभी इस सच के और भी खूनी होने की उम्मीद है।
(हिमांशु कुमार।
प्रख्यात सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता। देश भर में गांधीवादी तरीके से
प्रतिरोध को मुखर कर रहे हैं। खास कर छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के दमन का
पुरजारे विरोध इन्होंने किया है और कर रहे हैं। फेसबुक को भी इन्होंने अपने
प्रतिरोध का हथियार बना लिया है। मोहल्ला पर प्रस्तुत उनकी यह टिपपणी भी
उनके फेसबुक स्टटेस से ली गई है।)
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