Tuesday, April 2, 2013

एक लड़की साइंटिस्‍ट थी। इलाहाबाद के मेहता रिसर्च इंस्‍टीट्यूट में। एक बड़ा प्रोजेक्‍ट था उसके पास।


Manisha Pandey
जान लगाकर काम कर रही थी। लेकिन तभी प्रेग्‍नेंट हो गई। वो बच्‍चा नहीं चाहती थी। लेकिन घर पर कोई अबॉर्शन के लिए तैयार नहीं हुआ। वो घरवालों से लड़ नहीं पाई। उसे प्रोजेक्‍ट छोड़ना पड़ा। साइंस में वैसे भी मेहनत बहुत ज्‍यादा थी और पैसे कम। जिम्‍मेदारियां बढ़ती चली गईं। पहला बच्‍चा, फिर दूसरा बच्‍चा। वो कभी साइंस में लौटकर नहीं गई। अब एक इंटर कॉलेज में फिजिक्‍स पढ़ाती है। एक दिन हम घर से बाहर अकेले मिले। मेरे कंधे पर सिर रखकर खूब रोई। कह रही थी कि मुझमें अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ जाने की हिम्‍मत नहीं थी। मैं अपने बच्‍चों से प्‍यार करती हूं, लेकिन फिर भी मेरा घर और बच्‍चों में बहुत ज्‍यादा मन नहीं लगता। सास भी कभी-कभी ताना देती है कि तुम घर-गृहस्‍थी ठीक से नहीं चलाती। बच्‍चों के प्रति लापरवाह हो। वो भी क्‍या करे। उसका दिल तो फिजिक्‍स में था। फिजिक्‍स छुड़वाकर उसे दो बच्‍चे पकड़ा दिए गए। और अब उम्‍मीद की जाती है कि वो इसे संसार का सबसे महान काम मानकर करे। क्‍यों करे। दिल नहीं लगता उसका गृहस्‍थी में। बस उसमें लड़ने की ताकत नहीं थी। वो विरोध नहीं कर पाई। अब सिर्फ कुढ़ती रहती है।
एक दिन कह रही थी कि मैंने वो प्रोजेक्‍ट पूरा किया होता तो आज मैं यूएस जा सकती थी। (उसका पति भी साइंटिस्‍ट है और फिलहाल यूएस में ही है।)
वो भी जाएगी यूएस। लेकिन अब साइंटिस्‍ट बनकर नहीं, साइंटिस्‍ट की बीवी और उसके दो बच्‍चों की मां बनकर।

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