Tuesday, March 4, 2014

‘12 इयर्स ए स्लेव’ के स्टीव मैकक्वीन को भीम सलाम

एच एल दुसाध
मित्रों!कल का दिन जन्मगत आधार पर वंचना के शिकार तमाम लोगों के लिए बेहद यादगार बन गया.कल लॉस एंजिलिस के डॉल्बी थियेटर में आयोजित 86 वें अकेडमी अवार्ड्स समारोह में 2014 की बेस्ट फिल्म की घोषणा होते ही एक ऐसा इतिहास रचित हुआ जिसे दुनिया के जन्मजात वंचित ताउम्र याद रखेंगे.कल सुबह जब अमेरिका में इतिहास रचित हो रहा था, मैं सुबह 8.30 बजे तक भरतपुर में अपनी बड़ी बहू के आवास पर था.बच्चों से बाते करते तथा दिल्ली की यात्रा की तैयारी करते हुए मेरी नज़रें लगातार टीवी पर टिकी रहीं.ऐसा इसलिए कि बचपन से ही हालीवुड की फिल्मों का क्रेजी होने के कारण,जबसे टीवी सर्वसुलभ हुई है,मैं ऑस्कर अवार्ड्स समारोह का प्रसारण मिस नहीं करता.विशेषकर 2002 के बाद से तो बिलकुल ही नहीं.2002 के बाद ऑस्कर मेरे लिए एट्रेक्शन का खास विषय इसलिए बन गया क्योंकि तबसे मैं इसे हालीवुड में अमेरिकी दलितों की सफलता का पैमाना बनाने लगा.चूँकि मुझे दिल्ली के लिए 9.25 वाली जनशताब्दी पकड़ना था इसलिए 8.30 तक मैं घर छोड़ने के लिए बाध्य हो गया.उस समय तक ब्रिटिश डायरेक्टर अलफांसो कारोन की ‘ग्रैविटी’ ने कई टेक्नीकल एवार्ड्स झटक लिए थे,पर किसी अश्वेत को ऑस्कर ट्राफी लेते नहीं देख पाया था.बहरहाल टीवी के परदे पर ग्रैविटी फिल्म के स्पेसल इफेक्ट्स की झलक देखकर मुझे 1977 में आई जार्ज लुकास की करिश्माई कृति ‘स्टार वार्स’की बार-बार याद आ रही थी.खैर 8.30 पर घर छोड़ा किन्तु दिन भर ध्यान डॉल्बी थियेटर की ओर लगा रहा.अंततः रात 9.30 के करीब जब आया नगर स्थित अपने आश्रय स्थल पहुँच इंटरनेट चलाया(यहाँ टीवी नहीं है) तो पता चला काले स्टीव मैकक्वीन की फिल्म ’12 इयर्स ए स्लेव’ने बेस्ट पिक्चर का अवार्ड मार लिया है.खुशी से पलकें भींग गयी.भोजन पानी के बाद मैंने आपके लिए एक मैटर लिखा पर ठीक से सेव न होने के कारण कहीं खो गया और मैं पोस्ट नहीं कर पाया.बहरहाल सुबह उठकर कई अखबारों की सम्पादकीय पर नज़र दौड़ाया,पर किसी ने भी इस ऐतिहासिक घटना पर कलम नहीं चलाया.हताश होने के बावजूद मीडिया के इस आचरण से विस्मित नहीं हुआ.आखिर सवर्णवादी मीडिया किसी ऐसी बात को हाईलाईट कर ही कैसे सकती है जिससे वंचित बहुजनों का हौसला बढे.बहरहाल भारतीय तिथि के हिसाब से 3 मार्च को डॉल्बी थियेटर में फिल्मों के नोबेल पुरस्कार सरीखे ऑस्कर समारोह में बहिष्कृतों के हिसाब से जो घटित हुआ,12 साल पूर्व 2002 में कुछ वैसा ही लॉस एंजिलिस के कोडक थियेटर में आयोजित 74 वें अकेडमी अवार्ड्स समारोह में हुआ था.
जन्मगत कारणों से प्रभुवर्ग द्वारा शक्ति के स्रोतों से वंचित किये गए लोगों के हिसाब से 2002 में अमेरिका के कोडक थियेटर में मनोरजन के सबसे पॉपुलर विधा फिल्मों के इतिहास में एक नया स्वर्णिम अध्याय जुड़ा था.उस दिन ऑस्कर समारोह का संचालन करने के लिए मंच पर उतरी थीं महान अश्वेत अभिनेत्री हूपी गोल्डबर्ग.उस दिन हालीवुड की हिस्ट्री के अन्यतम श्रेष्ठ नायक अश्वेत सिडनी पोयटीयर को मिला था ऑस्कर का मानद पुरस्कार .उस दिन जब पोयटीयर अपने सम्पूर्ण जीवन के कार्यों के लिए मानद पुरस्कार लेने मंच की ओर बढ़ रहे थे,कोडक थियेटर में उपस्थित तमाम लोगों ने स्टैंडिंग ओवेशन दिया था.बहुतों की आँखों में ख़ुशी के आंसू थे.ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि 1936 के बर्लिन ओलम्पिक में चार-चार गोल्ड मेडल जीत कर श्वेत चर्म के दम्भ को चूर-चूर करने वाले ग्रेनाईट से भी काले जेसी ओवेन्स के बाद पोयटीयर ऐसे पहले अश्वेत थे जिन्होंने 1964 में ‘लिलिज ऑफ़ द फिल्ड ‘के लिए ऑस्कर जीत कर रंगभेद के शिकार लोगों को बड़े पैमाने पर गर्वित होने का दुर्लभ अवसर सुलभ कराया था.लेकिन बात गोल्डबर्ग के मंच संचालन और पोयटीयर के मानद सम्मान तक सिमित नहीं रही.अभी तो क्लाइमेक्स बाकी था.और समारोह का पर्दा गिरने के पहले जब बेस्ट एक्टर और बेस्ट ऐक्ट्रेस का खिताब क्रमशः डेंजिल वाशिंग्टन और हैले बेरी ने जीता, ऑस्कर में एक नया इतिहास बन गया.
ऑस्कर में एक साथ बेस्ट एक्टर और ऐक्ट्रेस के रूप में दो अश्वेतों का पुरस्कार जीतना अबतक के इतिहास की पहली व आखरी घटना है.2001 के पूर्व तक तक 11अश्वेत अभिनेता बेस्ट एक्टर के लिए नामित हो चुके जिनमें एकमात्र महान सिडनी पोयटीयर ने 1963 का ऑस्कर जीता था.उस लम्बे गैप के बाद पहली बार अपने साथी अश्वेत अभिनेता विल स्मिथ,जो आज की तारीख में जार्ज क्लूनी,टॉम क्रूज,जॉनी डेप को पछाड़ कर सबसे बड़े अभिनेता के सिंहासन पर आरुंढ हैं, को शिकस्त देकर डेंजिल ने इतिहास रचा था.उसी तरह हैले बेरी के पहले छह अश्वेत अभिनेत्रियों को बेस्ट ऐक्ट्रेस का नॉमिनेशन मिला था,जिसकी शुरुआत 1954 में डोरोथी डैनड्रिज और डायना रोस ने क्रमशः‘ कर्मेंट जोन्स’और ‘लेडी सिंग्स द ब्लूज’ के जरिये की थी.अर्थात जिस विरल सम्मान का सपना अश्वेत महिलाएं 1954 से देख रहीं थी ,उसे हैले बेरी ने लगभग 48 साल बाद पूरा किया.ज़ाहिर है डेंजिल और बेरी ने एक बेमिसाल इतिहास रच दिया था.उसके बाद तो थोड़े ही अंतराल में अश्वेत अभिनेत्री तो नहीं पर,जैमी फॉक्स और फारेस्ट ह्वाइटेकर ने क्रमशः ‘रे’ (2004) और ‘द लास्ट किंग ऑफ़ स्काटलैंड’(2005) के लिए बेस्ट एक्टर का ऑस्कर जीतकर दुनिया भर के अश्वेतों को गर्वित किया.किन्तु ठन्डे दिमाग से विचार किया जाय तो ‘12 इयर्स ए स्लेव’ के रूपकार स्टीव मैकक्वीन की कीर्ति सब पर भारी पड़ती है.
स्मरण रहे फिल्म डायरेक्टरों का माध्यम है,नाटक अभिनेताओं का.अगर सत्यजित राय की उत्तम कुमार अभिनीत फिल्म ‘नायक’ से कथन उधर लिया जाय तो यही कहा जा सकता है कि फिल्मों में एक्टर की हैसियत उस पुतले जैसी होती है जिसकी डोर डायरेक्टर के हांथ में होती है.अगर इकोनोमिस्ट की भाषा में एक्टरों की हैसियत बतानी हो तो यही कहा जा सकता है जैसे फैक्टर ऑफ़ प्रोडक्शन में लैंड,कैपिटल,और रा मैटेरियल की तरह लेबर भी एक उपादान होता है,मार्क्सवादीय नज़रिए से हो सकता है लेबर सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपादान हो,उसी तरह फिल्म निर्माण में एक्टरों की हैसियत मूलतः लेबर जैसी ही होती है.फिल्म निर्माण में एक्टरों की सामान्य हैसियत को दृष्टिगत रखकर ही दुनिया के तमाम मशहूर अभिनेताओं-हालीवुड के चार्ली चैपलिन,रिचर्ड एटेनबोरो से लेकर क्लिंट ईस्टवुड,मेल गिब्सन इत्यादि सहित बालीवुड के राज कपूर,गुरुदत्त,मनोज कुमार और आमीर खान वगैरह को एक्टर से निर्माता निर्देशक की यात्रा करनी पड़ी.इस काम में कई प्रयासों के बावजूद भारत के एंग्री हीरो अमिताभ हालीवुड के एक्शन हीरो क्लिंट ईस्ट वुड,मेल गिब्सन इत्यादि जैसा प्रभाव छोड़ने में व्यर्थ होने के कारण भारत के आमिरखान तक की श्रेणी में जगह नहीं बना सकते.बहरहाल हालीवुड में अश्वेतों की उपस्थिति मुख्यतः अभिनय ,गायन इत्यादि तक थी.किन्तु काले स्टीव ने वह कार्य कर डाला जो तमाम उपलब्धियों के बावजूद आजतक कोई अश्वेत नहीं कर पाया.
स्टीव मैकक्वीन पहले अश्वेत हैं डायरेक्टर सह निर्माता हैं जिन्होंने बेस्ट फिल्म का अवार्ड जीत कर यह साबित कर दिया है की अश्वेत अब अभिनय ही नहीं,फिल्मों के हर विभाग में गोरों को चुनौती देने की स्थिति में पहुँच गए हैं .जिस तरह डाइवर्सिटी के गर्भ से निकल कर आज विल स्मिथ हालीवुड के सबसे बड़े नायक बन गए हैं ,उसी तरह मुमकिन है कल स्टीव मैकक्वीन नहीं तो उनका कोई भाई हालीवुड का सर्वश्रेष्ठ फिल्मकार बन सकता है,यह सन्देश देने के लिए निश्चय ही स्टीव भीम सलाम के हक़दार हैं.
दिनांक:4मार्च,2014.

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