Swami Balendu
मैं जब ग्रीस में था तो वहां के बुजुर्गों ने मुझे बताया कि उन्होंने अपने बचपन में अरेंज मैरिज देखी है, यूरोप का इतिहास ये भी बताता है कि वहां केवल अरेंज मैरिज ही नहीं बल्कि राजकीय डिप्लोमेसी के लिए भी विवाह आयोजित होते थे|
कुछ धर्म और संस्कृति भक्त यह समझते हैं कि अरेंज मैरिज हमारे सर्वश्रेष्ठ धर्म और महान संस्कृति की बेमिसाल व्यवस्था है और जब मैं अरेंज मैरिज के खिलाफ लिखता हूँ तो उन्हें लगता है कि मैं उनकी संस्कृति के खिलाफ जा रहा हूँ और उस पर प्रहार कर रहा हूँ और तुरंत वो रक्षात्मक मुद्रा अपना लेते हैं, और कहते हैं कि अरेंज मैरिज में दिक्कत क्या है, करोड़ों लोग करते हैं इस देश में!
हाँ भाई करते हैं क्योंकि, उनके पास और कोई उपाय नहीं है! आपकी महान संस्कृति उन्हें कोई और विकल्प नहीं मुहैया कराती! क्योंकि शादी तो उसे अपनी जाति बिरादरी में ही करनी है, अब क्या अपने बच्चों से कहोगे कि केवल जाति देखकर ही किसी से प्रेम करना, वैसे बहुत से संस्कृति रक्षक ऐसा भी करने का प्लान बनाए हुए हैं| ये लोग तो उनमें के व्यवस्था बनाने वाले लोग हैं जो केवल शादी ही नहीं बल्कि प्रेम भी अरेंज करवा देते हैं|
मैं ये भी नहीं कहता कि आयोजित विवाह कभी सफल नहीं होता और प्रेम विवाह हमेशा सफल होता है| मैंने बहुत असफल प्रेम विवाह देखे हैं और बहुत से सफल आयोजित विवाह भी देखे हैं| साथ ही आयोजित विवाहों की जटिलतायें, और मजबूरियां भी देखी हैं तथा उनमें सफलता के दिखावे का नाटक भी देखा है, तथा सारी जिन्दगी लोगों को लड़ते, और अपनी फूटी किस्मत को कोसते भी देखा है, साथ ही सात जन्मों के बंधन को तोड़ने का कोई उपाय न होने पर वैवाहिक जीवन की लाश को सारी जिन्दगी अपनी कन्धों पर ढोते भी देखा है|
असल में यह एक सामंतवादी पुरानी व्यवस्था है जिसके द्वारा पुरुषवादी इस समाज में पुरुषों के वर्चस्व को अक्षुण्य रखने का षडयंत्र किया जाता है, साथ में दहेज़ का व्यापार होता है, जाति व्यवस्था को बनाए रखने की साज़िश होती है| शादी जैसा सुन्दर उत्सव जो कि प्रेम के लिए और प्रेम से भरा होना चाहिए वो अपनी शान ओ शौकत का प्रदर्शन करने वाला व्यापार बन जाता है|
लगभग 25 साल पहले जब मैं एक टीनएज था तब हमारे छोटे से शहर में अगर कोई प्रेम विवाह कर लेता था तो बहुत बड़ी बात होती थी और पूरे शहर में वो विवाह चर्चा का विषय बन जाता था..... और आज ये कोई सामान्य बात तो नहीं है, परन्तु हल्ला भी नहीं होता और खबर भी नहीं बनती| इस तरह से कल्चर बदलता है और हर क्षण बदल रहा है| आप बदलाव को रोक नहीं सकते परन्तु यदि आप नहीं बदलोगे तो कष्ट पाओगे|
हर बात में प्राचीन महान संस्कृति की दुहाई देने और संरक्षण के लिए हाय तौबा मचाने वाले लोगों से पूछना चाहता हूँ कि प्राचीन समय मतलब हमारी दादी नानी के जमाने में तो बाल विवाह हुआ करते थे, तो क्यों नहीं करते अपने 10-12 साल के बच्चों की शादी! बदले तो आप भी हो और अगले दस बीस सालों में आप भी वो नहीं रहोगे जो कि आज हो परन्तु आपके साथ दिक्कत ये है कि इस बदलाव को स्वीकार करने और पचाने में आपको दिक्कत हो रही है| और ऐसा भी नहीं है कि प्राचीन संस्कृति हमेशा महान ही हो, अपनी संस्कृति की बहुत सी चीजों को सुनकर आप आज नाक मुंह सिकोड़ने लग जाओगे| परन्तु मैंने हमेशा देखा है कि इस तरह के लोग जो आधुनिक भी होना चाहते हैं और पुराने को छोड़ना भी नहीं चाहते अधिकांशतः दुविधा और संशय में रहते हैं और कई बार तो अवसाद के मरीज तक बन जाते हैं|
अरेंज मैरिज के एक प्रबल समर्थक ने तर्क दिया कि प्रेम का क्या है वो तो हम कुत्ता भी पालते हैं तो उसके साथ भी भावनात्मक सम्बन्ध हो जाते हैं| क्या पत्नी और पालतू कुत्ते में कोई फर्क नहीं होता? क्या भारतीय और हमारे पूर्वजों की यही परम्परा है? और फिर जब प्यार समय के साथ हो ही जाता है तो फिर ये देखने वाली परम्परा क्यों? चलिए अब और पीछे लौटिये भारतीय परम्परा में क्या हमारे आपके दादा नाना के समय भी इस प्रकार से जैसे आजकल लड़का लडकी दिखाई की अपमानजनक रस्म होती है, क्या आज से सौ साल पहले भी होती थी! असल में पुराने समय में तो कितनी बार विवाह बच्चे के पैदा होते ही निश्चित कर दिया जाता था, देखने वगैरा की कोई जरूरत ही नहीं होती थी, ये दिखाई की परम्परा तो सांस्कृतिक नहीं आधुनिक है! क्या लड़का लड़की के रंग रूप और शरीर को देखकर शादी कर देना उनके शरीर का सौदा नहीं है? इसके अलावा आप कोई आधा घंटे के दिखाई प्रोग्राम में उसका चरित्र और स्वभाव तो देख नहीं सकते! जरा सोचिये कि आपकी महान संस्कृति जो कि प्रेम करने को गुनाह समझती है, हमेशा लड़कियों को शिक्षा देती है कि अपरिचित से बात भी मत करना वही आपकी बेटी को एक नितान्त अपरिचित के साथ सेक्स करने को मजबूर कर देती है, क्या आपको अजीब नहीं लगती ये दूषित परम्परा!
कोई दिन ऐसा नहीं जाता जबकि मैं अख़बार में प्रेम करने वाले जवान जोड़ों की हत्या अथवा आत्महत्या की खबर न पढूं, कभी जहर खा के, फांसी लगा के, रेल के नीचे कटकर या गोली मारकर|
कारण के विषय में लोग कहते हैं कि इन्होंने विदेशी संस्कृति के प्रभाव में पड़कर एक दूसरे से प्रेम करने का गुनाह किया| ओह अब समझ में आया, प्रेम करना विदेशी संस्कृति है और इन जवान बच्चों की हत्या कर देना अथवा उन्हें आत्महत्या के लिए विवश कर देना हमारी महान संस्कृति है|
चलो आप झूठा गर्व करो उस धर्म, जाति और संस्कृति में पैदा होने के लिए जिसमें कि इरादतन आपका कोई योगदान नहीं था, चाटो ऐसे धर्म और संस्कृति को और मैं थूकता हूँ उस पर, छि!
यदि आप परम्पराओं की बात करेंगे तो हाँ ऐसी बहुत सी गलत परम्पराएँ हमारे देश में हैं और थीं जो कि गलत थी और हैं, कुछ ख़तम हो गई और कुछ अभी भी जिन्दा हैं और आशा है धीरे धीरे वो भी ख़तम होंगी, जैसे कि, दहेज़ प्रथा, सती प्रथा, मृत्यु भोज प्रथा, प्राचीन लडके की चाह से उपजी आधुनिक भ्रूणहत्या, जाति प्रथा, औरत को शिक्षित न करने की प्रथा, उसे इंसान नहीं जानवर समझने की प्रथा आदि आदि
और उसी में से एक ये है आयोजित विवाहों की प्रथा जो कि एक गंदे व्यापार की तरह समाज में फ़ैली है जिसे नष्ट भी होना है और हो भी जायेगी, दुनिया के बहुत से देशों से समाप्त हो चुकी भी है, परन्तु पता नहीं हमारे यहाँ के संस्कृति रक्षक कब तक इन सड़ी गली परम्पराओं को ढोते रहेंगे! जब तक इस प्रकार परम्पराएँ समाप्त नहीं होंगी आप कभी भी औरत को बराबरी का दर्जा नहीं दे सकते, अरेंज मैरिज की पुरानी परम्परा तो यही है कि औरत को ढोर की तरह जिस खूंटे से बांध दो बस वहीँ बंधी रहे! हाँ मैं ऐसी सभी भारतीय परम्पराओं का अपमान करता हूँ जो इंसान को इंसान नहीं समझती और आगे भी करता रहुंगा, संस्कृति के रक्षकों, अगर आपको अच्छा नहीं लगता तो मेरे ठेंगे से.....
1. क्या पहली नज़र में प्यार संभव है? 2. या फिर प्रेम धीरे धीरे पनपता है? 3. क्या इस बात की कोई गारंटी है कि यदि आप किसी के साथ लम्बे समय तक रहोगे तो प्यार हो ही जायेगा?
1. पहली नज़र के प्यार का अनुभव मेरा निजी है, इसलिए कह सकता हूँ कि संभव है, निश्चित रूप से संबंधों में भावनात्मक प्रगाढ़ता समय के साथ आती है|
2. प्रेम धीरे धीरे भी पनपता है और समय के साथ दृढ होता जाता है, अरेंज्ड मैरिज वाले कल्चर में प्रसन्न विवाहित जोड़े इसका प्रमाण हैं|
3. इस बात की कोई भी गारंटी नहीं है कि लम्बे समय तक साथ रहने पर प्रेम हो ही जायेगा| मैंने अनेकों ऐसे उदाहरण देखे जिनकी शादी को दो, पाँच, नौ तो क्या 30 साल हो गए, कुछ के बच्चे छोटे हैं और कुछ के बड़े हो गए| साथ में रहते हैं, सब कुछ कर रहे हैं, जिन्दगी गुजर रही है और कहते हैं कि शादी हुई पर प्रेम नहीं, इतनी गुजर गई बची खुची और गुजर जायेगी| उन्होंने कभी प्रेम का रस लिया ही नहीं| जीवन का अधिकाँश हिस्सा लड़ने में गुजार दिया या फिर पब्लिक के सामने ये दिखावा करने में कि हमारे बीच सब ठीकठाक है| (पिछले कुछ दिनों में कई ऐसे मित्रों से संवाद हुआ जिनके कष्ट ने मेरे मन को भी दुःखी किया)
इन सभी बातों से एक तो ये लगता है कि प्रेम रहस्यमय है ये कब कहाँ किससे हो जायेगा या किससे नहीं होगा, इसका कोई निश्चित पैमाना नहीं है| प्रेम विवाह भी असफल हो जाते हैं परन्तु अरेंज्ड मैरिज तो बिलकुल जुआ अथवा संयोग है, अगर मन, विचार मिल गए तो ठीक, नहीं तो भुगतो जिन्दगी भर| प्रेम विवाह में कम से कम आपकी अपनी जिम्मेदारी तो है परन्तु अरेंज्ड मैरिज में तो सबकुछ ब्लाइंड और ब्लफ का खेल चलता है, पव्वा बैठ गया तो ठीक, नहीं तो एडजस्ट, कम्प्रोमाइज़ और लड़ते लड़ते ही जिन्दगी गुजर जायेगी| और यहाँ जिम्मेदारी तो केवल सिस्टम की ही है, हो सकता है इन स्त्री पुरुषों का जोड़ा किन्हीं और पुरुष स्त्री के साथ ठीक बैठ जाता|
ख़ास तौर पर यदि पति पत्नी के बीच प्रेम न हो तो जीवन नरक हो जाता है|
मैं जब ग्रीस में था तो वहां के बुजुर्गों ने मुझे बताया कि उन्होंने अपने बचपन में अरेंज मैरिज देखी है, यूरोप का इतिहास ये भी बताता है कि वहां केवल अरेंज मैरिज ही नहीं बल्कि राजकीय डिप्लोमेसी के लिए भी विवाह आयोजित होते थे|
कुछ धर्म और संस्कृति भक्त यह समझते हैं कि अरेंज मैरिज हमारे सर्वश्रेष्ठ धर्म और महान संस्कृति की बेमिसाल व्यवस्था है और जब मैं अरेंज मैरिज के खिलाफ लिखता हूँ तो उन्हें लगता है कि मैं उनकी संस्कृति के खिलाफ जा रहा हूँ और उस पर प्रहार कर रहा हूँ और तुरंत वो रक्षात्मक मुद्रा अपना लेते हैं, और कहते हैं कि अरेंज मैरिज में दिक्कत क्या है, करोड़ों लोग करते हैं इस देश में!
हाँ भाई करते हैं क्योंकि, उनके पास और कोई उपाय नहीं है! आपकी महान संस्कृति उन्हें कोई और विकल्प नहीं मुहैया कराती! क्योंकि शादी तो उसे अपनी जाति बिरादरी में ही करनी है, अब क्या अपने बच्चों से कहोगे कि केवल जाति देखकर ही किसी से प्रेम करना, वैसे बहुत से संस्कृति रक्षक ऐसा भी करने का प्लान बनाए हुए हैं| ये लोग तो उनमें के व्यवस्था बनाने वाले लोग हैं जो केवल शादी ही नहीं बल्कि प्रेम भी अरेंज करवा देते हैं|
मैं ये भी नहीं कहता कि आयोजित विवाह कभी सफल नहीं होता और प्रेम विवाह हमेशा सफल होता है| मैंने बहुत असफल प्रेम विवाह देखे हैं और बहुत से सफल आयोजित विवाह भी देखे हैं| साथ ही आयोजित विवाहों की जटिलतायें, और मजबूरियां भी देखी हैं तथा उनमें सफलता के दिखावे का नाटक भी देखा है, तथा सारी जिन्दगी लोगों को लड़ते, और अपनी फूटी किस्मत को कोसते भी देखा है, साथ ही सात जन्मों के बंधन को तोड़ने का कोई उपाय न होने पर वैवाहिक जीवन की लाश को सारी जिन्दगी अपनी कन्धों पर ढोते भी देखा है|
असल में यह एक सामंतवादी पुरानी व्यवस्था है जिसके द्वारा पुरुषवादी इस समाज में पुरुषों के वर्चस्व को अक्षुण्य रखने का षडयंत्र किया जाता है, साथ में दहेज़ का व्यापार होता है, जाति व्यवस्था को बनाए रखने की साज़िश होती है| शादी जैसा सुन्दर उत्सव जो कि प्रेम के लिए और प्रेम से भरा होना चाहिए वो अपनी शान ओ शौकत का प्रदर्शन करने वाला व्यापार बन जाता है|
लगभग 25 साल पहले जब मैं एक टीनएज था तब हमारे छोटे से शहर में अगर कोई प्रेम विवाह कर लेता था तो बहुत बड़ी बात होती थी और पूरे शहर में वो विवाह चर्चा का विषय बन जाता था..... और आज ये कोई सामान्य बात तो नहीं है, परन्तु हल्ला भी नहीं होता और खबर भी नहीं बनती| इस तरह से कल्चर बदलता है और हर क्षण बदल रहा है| आप बदलाव को रोक नहीं सकते परन्तु यदि आप नहीं बदलोगे तो कष्ट पाओगे|
हर बात में प्राचीन महान संस्कृति की दुहाई देने और संरक्षण के लिए हाय तौबा मचाने वाले लोगों से पूछना चाहता हूँ कि प्राचीन समय मतलब हमारी दादी नानी के जमाने में तो बाल विवाह हुआ करते थे, तो क्यों नहीं करते अपने 10-12 साल के बच्चों की शादी! बदले तो आप भी हो और अगले दस बीस सालों में आप भी वो नहीं रहोगे जो कि आज हो परन्तु आपके साथ दिक्कत ये है कि इस बदलाव को स्वीकार करने और पचाने में आपको दिक्कत हो रही है| और ऐसा भी नहीं है कि प्राचीन संस्कृति हमेशा महान ही हो, अपनी संस्कृति की बहुत सी चीजों को सुनकर आप आज नाक मुंह सिकोड़ने लग जाओगे| परन्तु मैंने हमेशा देखा है कि इस तरह के लोग जो आधुनिक भी होना चाहते हैं और पुराने को छोड़ना भी नहीं चाहते अधिकांशतः दुविधा और संशय में रहते हैं और कई बार तो अवसाद के मरीज तक बन जाते हैं|
अरेंज मैरिज के एक प्रबल समर्थक ने तर्क दिया कि प्रेम का क्या है वो तो हम कुत्ता भी पालते हैं तो उसके साथ भी भावनात्मक सम्बन्ध हो जाते हैं| क्या पत्नी और पालतू कुत्ते में कोई फर्क नहीं होता? क्या भारतीय और हमारे पूर्वजों की यही परम्परा है? और फिर जब प्यार समय के साथ हो ही जाता है तो फिर ये देखने वाली परम्परा क्यों? चलिए अब और पीछे लौटिये भारतीय परम्परा में क्या हमारे आपके दादा नाना के समय भी इस प्रकार से जैसे आजकल लड़का लडकी दिखाई की अपमानजनक रस्म होती है, क्या आज से सौ साल पहले भी होती थी! असल में पुराने समय में तो कितनी बार विवाह बच्चे के पैदा होते ही निश्चित कर दिया जाता था, देखने वगैरा की कोई जरूरत ही नहीं होती थी, ये दिखाई की परम्परा तो सांस्कृतिक नहीं आधुनिक है! क्या लड़का लड़की के रंग रूप और शरीर को देखकर शादी कर देना उनके शरीर का सौदा नहीं है? इसके अलावा आप कोई आधा घंटे के दिखाई प्रोग्राम में उसका चरित्र और स्वभाव तो देख नहीं सकते! जरा सोचिये कि आपकी महान संस्कृति जो कि प्रेम करने को गुनाह समझती है, हमेशा लड़कियों को शिक्षा देती है कि अपरिचित से बात भी मत करना वही आपकी बेटी को एक नितान्त अपरिचित के साथ सेक्स करने को मजबूर कर देती है, क्या आपको अजीब नहीं लगती ये दूषित परम्परा!
कोई दिन ऐसा नहीं जाता जबकि मैं अख़बार में प्रेम करने वाले जवान जोड़ों की हत्या अथवा आत्महत्या की खबर न पढूं, कभी जहर खा के, फांसी लगा के, रेल के नीचे कटकर या गोली मारकर|
कारण के विषय में लोग कहते हैं कि इन्होंने विदेशी संस्कृति के प्रभाव में पड़कर एक दूसरे से प्रेम करने का गुनाह किया| ओह अब समझ में आया, प्रेम करना विदेशी संस्कृति है और इन जवान बच्चों की हत्या कर देना अथवा उन्हें आत्महत्या के लिए विवश कर देना हमारी महान संस्कृति है|
चलो आप झूठा गर्व करो उस धर्म, जाति और संस्कृति में पैदा होने के लिए जिसमें कि इरादतन आपका कोई योगदान नहीं था, चाटो ऐसे धर्म और संस्कृति को और मैं थूकता हूँ उस पर, छि!
यदि आप परम्पराओं की बात करेंगे तो हाँ ऐसी बहुत सी गलत परम्पराएँ हमारे देश में हैं और थीं जो कि गलत थी और हैं, कुछ ख़तम हो गई और कुछ अभी भी जिन्दा हैं और आशा है धीरे धीरे वो भी ख़तम होंगी, जैसे कि, दहेज़ प्रथा, सती प्रथा, मृत्यु भोज प्रथा, प्राचीन लडके की चाह से उपजी आधुनिक भ्रूणहत्या, जाति प्रथा, औरत को शिक्षित न करने की प्रथा, उसे इंसान नहीं जानवर समझने की प्रथा आदि आदि
और उसी में से एक ये है आयोजित विवाहों की प्रथा जो कि एक गंदे व्यापार की तरह समाज में फ़ैली है जिसे नष्ट भी होना है और हो भी जायेगी, दुनिया के बहुत से देशों से समाप्त हो चुकी भी है, परन्तु पता नहीं हमारे यहाँ के संस्कृति रक्षक कब तक इन सड़ी गली परम्पराओं को ढोते रहेंगे! जब तक इस प्रकार परम्पराएँ समाप्त नहीं होंगी आप कभी भी औरत को बराबरी का दर्जा नहीं दे सकते, अरेंज मैरिज की पुरानी परम्परा तो यही है कि औरत को ढोर की तरह जिस खूंटे से बांध दो बस वहीँ बंधी रहे! हाँ मैं ऐसी सभी भारतीय परम्पराओं का अपमान करता हूँ जो इंसान को इंसान नहीं समझती और आगे भी करता रहुंगा, संस्कृति के रक्षकों, अगर आपको अच्छा नहीं लगता तो मेरे ठेंगे से.....
1. क्या पहली नज़र में प्यार संभव है? 2. या फिर प्रेम धीरे धीरे पनपता है? 3. क्या इस बात की कोई गारंटी है कि यदि आप किसी के साथ लम्बे समय तक रहोगे तो प्यार हो ही जायेगा?
1. पहली नज़र के प्यार का अनुभव मेरा निजी है, इसलिए कह सकता हूँ कि संभव है, निश्चित रूप से संबंधों में भावनात्मक प्रगाढ़ता समय के साथ आती है|
2. प्रेम धीरे धीरे भी पनपता है और समय के साथ दृढ होता जाता है, अरेंज्ड मैरिज वाले कल्चर में प्रसन्न विवाहित जोड़े इसका प्रमाण हैं|
3. इस बात की कोई भी गारंटी नहीं है कि लम्बे समय तक साथ रहने पर प्रेम हो ही जायेगा| मैंने अनेकों ऐसे उदाहरण देखे जिनकी शादी को दो, पाँच, नौ तो क्या 30 साल हो गए, कुछ के बच्चे छोटे हैं और कुछ के बड़े हो गए| साथ में रहते हैं, सब कुछ कर रहे हैं, जिन्दगी गुजर रही है और कहते हैं कि शादी हुई पर प्रेम नहीं, इतनी गुजर गई बची खुची और गुजर जायेगी| उन्होंने कभी प्रेम का रस लिया ही नहीं| जीवन का अधिकाँश हिस्सा लड़ने में गुजार दिया या फिर पब्लिक के सामने ये दिखावा करने में कि हमारे बीच सब ठीकठाक है| (पिछले कुछ दिनों में कई ऐसे मित्रों से संवाद हुआ जिनके कष्ट ने मेरे मन को भी दुःखी किया)
इन सभी बातों से एक तो ये लगता है कि प्रेम रहस्यमय है ये कब कहाँ किससे हो जायेगा या किससे नहीं होगा, इसका कोई निश्चित पैमाना नहीं है| प्रेम विवाह भी असफल हो जाते हैं परन्तु अरेंज्ड मैरिज तो बिलकुल जुआ अथवा संयोग है, अगर मन, विचार मिल गए तो ठीक, नहीं तो भुगतो जिन्दगी भर| प्रेम विवाह में कम से कम आपकी अपनी जिम्मेदारी तो है परन्तु अरेंज्ड मैरिज में तो सबकुछ ब्लाइंड और ब्लफ का खेल चलता है, पव्वा बैठ गया तो ठीक, नहीं तो एडजस्ट, कम्प्रोमाइज़ और लड़ते लड़ते ही जिन्दगी गुजर जायेगी| और यहाँ जिम्मेदारी तो केवल सिस्टम की ही है, हो सकता है इन स्त्री पुरुषों का जोड़ा किन्हीं और पुरुष स्त्री के साथ ठीक बैठ जाता|
ख़ास तौर पर यदि पति पत्नी के बीच प्रेम न हो तो जीवन नरक हो जाता है|
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