Wednesday, March 13, 2013

बुजुर्गों का सम्मान करो, लेकिन उनकी बनाई चिरकुट दुनिया को बदलो भी

Manisha Pandey
कल मेरे एक दोस्‍त (जो बेशक पिछली पीढ़ी से ही ताल्‍लुक रखते हैं) ने कहा कि नई पीढ़ी के लड़के मुझे ज्‍यादा सेंसिबल, जेंडर सेंसिटिव और समझदार लगते हैं। पिछली पीढ़ी के पुरुष अपनी तमाम मार्क्‍सवादी छलांगों और उछालों और सैद्धांतिक दावों और विचारधाराओं और फलां और ढिमका के बावजूद अपनी निजी महफिलों में चार पैग के बाद स्त्रियों के बारे में निहायत ही अश्‍लील और गंदे ढंग से बातें किया करते थे। औरत को लेखिका-वेखिका बनाने के बदले बस इसी फिराक में रहते कि कैसे इसे बिस्‍तर तक ले आया जाए। होटल में बुलाते और कहते डाउचे वेले पहुंचा देंगे। लेकिन आजकल के लड़के ऐसी हरकतें नहीं करते। निजी दारू महफिल में भी लड़कियों को बिस्‍तर का सामान नहीं समझते।
एक बार ओम पुरी की पत्‍नी ने भी एक इंटरव्‍यू के दौरान मुझसे कहा था कि बॉलीवुड में एक बड़ा चेंज आया है। पुराने बुड्ढों की तरह नई पीढ़ी के डायरेक्‍टर्स वुमेनाइजर नहीं हैं। दे रिस्‍पेक्‍ट वुमन।
मैं सहमत हूं। सचमुच ये हो रहा है और होता दिख रहा है। नई पीढ़ी के लड़कों में भी काफी पेट्रिआर्कल एलिमेंट अभी बाकी हैं, लेकिन फिर भी वो बेहतर हैं। बहुत बेहतर हैं।
लड़कों, चलो आज तुम लोगों की थोड़ी तारीफ भी हो जाए। बुजुर्गों का सम्‍मान करो, लेकिन उनकी बनाई चिरकुट दुनिया को बदलो भी।
Hats of to you young boys and young grils. :)



यह बिलकुल सही बात है कि "नई पीढ़ी के लड़के ज्‍यादा सेंसि
बल, जेंडर सेंसिटिव और समझदार हैं।" और ये बदलाव उनमे आया है, लड़कियों के साथ पढने-लिखने, उनके साथ ऑफिस में काम करने, उनके साथ समय बिताने से, वे समझते हैं कि लडकियां भी उनकी तरह एक इंसान ही हैं, सिर्फ लड़की नहीं. पिछली पीढ़ी के पुरुषों का बराबरी के स्तर पर लड़कियों से interaction कम रहा इसलिए वे उन्हें दोयम दर्जे का ही समझते रहे , भले ही वाहवाही लूटने के लिए बड़ी बड़ी बातें कर लें .

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