Saturday, December 1, 2012

नॉर्वे में भारतीय दंपति अपने बच्चों से दूर

 सोमवार, 23 जनवरी, 2012 को 19:45 IST तक के समाचार

नॉर्वे की जनसंख्या बहुत कम है
नॉर्वे में एक भू-वैज्ञानिक की हैसियत से काम कर रहे कोलकाता निवासी अनुरूप भट्टाचार्य और उनकी पत्नी सागरिका वहां एक क़ानूनी लड़ाई में उलझ गए हैं.
ये लड़ाई वे किसी और चीज़ के लिए नहीं, बल्कि अपने ही दो बच्चों को एक सरकार समर्थित संस्था से छुड़ाने के लिए लड़ रहे हैं.
उनके तीन साल के बेटे अभिज्ञान और एक साल की बेटी ऐश्वर्या को इसलिए छीन लिया गया क्योंकि वो नॉर्वे के नियम-क़ानून के मुताबिक़ अपने बच्चों का पालन पोषण नहीं कर रहे थे.
बीबीसी के साथ बातचीत में अनुरूप ने जब अपने बच्चों के छीने जाने की वजह बताई, तो उसे सुनकर कोई भी व्यक्ति हैरान रह जाएगा.
अनुरूप भट्टाचार्य ने बताया, "मैं साल 2006 से ही नॉर्वे में रह रहा हूं और शादी के बाद 2010 में अपने परिवार के साथ यहां रहने लगा. कुछ ही दिनों बाद हमारे पास एक नोटिस आया कि हम अपने बच्चों की परवरिश ठीक ढंग से नहीं कर रहे हैं."
"मैं साल 2006 से ही नॉर्वे में रह रहा हूं और शादी के बाद 2010 में अपने परिवार के साथ यहां रहने लगा. कुछ ही दिनों बाद हमारे पास एक नोटिस आया कि हम अपने बच्चों की परवरिश ठीक ढंग से नहीं कर रहे हैं"
अनुरूप भट्टाचार्य, अभिज्ञान और ऐश्वर्या के पिता
अनुरूप भट्टाचार्य बताते हैं कि कुछ दिनों बाद इस संस्था के कुछ लोग पांच-छह बार ये बताने के लिए आए कि कैसे अच्छे ढंग से बच्चों कि परवरिश की जाए.
उनका कहना था कि इसके बाद एक दिन वे लोग ये कहकर बच्चों को लेकर चले गए कि अभी इन्हें बाहर घुमाकर ला रहे हैं. लेकिन उसके बाद बच्चों को नहीं लौटाया गया और बताया गया कि उन्हें फॉस्टर रूम में दाख़िल करा दिया गया है.
अनुरूप भट्टाचार्य इस मामले को लेकर अदालत भी गए और निचली अदालत ने संस्था से उन्हें बच्चे लौटाने को भी कहा, लेकिन संस्था ने बच्चों को बिना लौटाए ऊपरी अदालत में अपील दाख़िल कर दी.
दिलचस्प बात यह है कि इस संस्था ने इन बच्चों के माता-पिता की परवरिश में जो कमियां देखीं, वो भारतीय संस्कृति का अपरिहार्य अंग हैं.
बकौल अनुरूप भट्टाचार्य, "संस्था ने बच्चों को हाथ से खाना खिलाने, मां-बाप के पास सोने और दही जैसी चीज़ खिलाने पर आपत्ति जताई है. जबकि दही हमारी संस्कृति में एक शुभ चीज़ के रूप में इस्तेमाल की जाती है."

आशंका

अनुरूप भट्टाचार्य का कहना है कि ये संस्था इसलिए बच्चों को वापस नहीं देना चाहती क्योंकि उन्हें आशंका है कि बच्चे मिलने के बाद हम उन्हें भारत वापस भेज देंगे.
उनका आरोप है कि ये संस्थाएं दूसरे देशों के निवासियों के साथ अक्सर ऐसा बर्ताव करती हैं, ताकि बच्चों को अपने नियंत्रण में लेकर उन्हें नॉर्वे की ही संस्कृति में ढाल दिया जाए. वे कहते हैं कि ये सीधे-सीधे बच्चों के सरकारी अपहरण का मामला है.
अनुरूप भट्टाचार्य के मुताबिक़ पिछले साल नॉर्वे में कुल साठ हज़ार बच्चे पैदा हुए जिनमें 12,500 बच्चों को किसी न किसी बहाने उनके मां-बाप से छीनकर ऐसे ही बाल सुधार गृहों में ज़बरन दाख़िल करा दिया.

सरकार गंभीर

हालांकि इस घटना के मीडिया में आने के बाद सरकार ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया है.
विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने सोमवार को कहा कि बच्चों को उनके माता-पिता को दिलाने के लिए सरकार कोशिश कर रही है.
पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, "यहां दिक़्क़त यह है कि यह मामला नॉर्वे की अदालत में चल रहा है. हम अपने दूतावास और बच्चों के परिवार वालों से बातचीत करके एक ऐसा हल निकालने की कोशिश कर रहे हैं जो कि न्यायिक प्रक्रिया के भीतर हो. हम अदालत को ये बताने का प्रयास करेंगे कि बच्चों को उनके माता-पिता या फिर उनके दादी-दादी को सौंप दिया जाए."
सोमवार को नार्वे में भारत के राजदूत भी इस मुद्दे पर वहां के विदेश मंत्री से मिलने वाले हैं.
http://www.bbc.co.uk/hindi/news/2012/01/120123_norway_anuroop_children_sm.shtml

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