Wednesday, October 12, 2011

महिषासुर की शहादत और मैकाले की जयंती पर होगा जश्‍न


शहरा के त्‍योहार के बाद से ही दुर्गा और महिषासुर के विवादों से उबल रहे जेनयू के विभिन्‍न छात्र संगठनों ने सोमवार को यूनिवर्सिर्टी के प्रशासनिक भवन के सामने प्रर्दशन कर महिषासुर का “शहादत दिवस” मनाने की घोषणा की। प्रदर्शन में शामिल ऑल इंडिया बैकवर्ड स्‍टूडेंट्स फोरम (एआइबीएसएफ), आइसा, एसएफआई, डीएसयू, एसएफआर आदि छात्र संगठनों ने आरोप लगाया कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की गुंडा ताकतें कैंपस के माहौल को हिंसक बना रही हैं तथा हिंदुवादी, जातिवादी, मनुवादी एजेंडा को लागू करने की कोशिश में हैं। प्रदर्शन में शामिल छात्र संगठनों के प्रतिनिधियों ने कुलपति से मुलाकात कर पिछले दिनों एआइबीएसएफ के अध्‍यक्ष जितेंद्र कुमार, उपाध्‍यक्ष विनय कुमार व कार्यकारिणी सदस्‍य मुन्‍नी कुमारी पर हमले करने वाले एबीवीपी के कार्यकर्ताओं को यूनिवर्सिटी से बाहर करने की मांग की।
गौरतलब है कि जेएनयू में दुर्गापूजा के बाद से ही लगातार अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद तथा ऑल इंडिया बैकवर्ड स्‍टूडेंट फोरम के बीच तनाव बना हुआ है। दुर्गापूजा के दिन एआईबीएसएफ ने जेएनयू परिसर में ‘फारवर्ड प्रेस’ में छपा लेख ‘दुर्गा : किसकी पूजा कर रहे हैं बहुजन’ का पोस्‍टर बनाकर लगाया था। बिहार के लेखक व राजनेता प्रेमकुमार मणि ने अपने इस लेख में महिषासुर को भारत का मूलनिवासी (ओबीसी) बताया है तथा कहा है कि बंग देश में दुर्गा को वेश्‍याएं अपने कुल का बताती हैं। इससे नाराज एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने न सिर्फ इस लेख के आधार पर बनाये गये एआईबीएसफ के पोस्‍टर फाड़ डाले बल्कि उनके कार्यकर्ताओं पर हमला भी किया। एबीवीपी का आरोप है कि एआईबीएसएफ ने हिंदू देवी दुर्गा का अपमान किया है जबकि एआईवीएसएफ का कहना है कि जिस पत्रिका में यह लेख छपा है, उससे देश और विदेश के कई बड़े एकेडमिशियन्‍स कांचा इलैया, टॉम वुल्‍फ, गेल ऑमवेट आदि जुड़े हैं। हमने यह लेख उक्‍त पत्रिका से ले लिया है तथा हम इस लेख के तथ्‍यों से सहमत हैं।
उन्‍होंने कहा कि हम दुर्गा को दलित-पिछड़ों का संहार करने वाली देवी मानते हैं तथा महिषासुर को वंचित तबकों का नायक। वाम छात्र संगठन इस पूरे मामले में एआइबीएसएफ के साथ हैं। उन्‍होंने इस अवसर पर, फारवर्ड प्रेस में प्रकाशित एक लेख के आधार पर 25 अक्‍टूबर को लार्ड मैकाले की जयंती मनाने की भी घोषणा की। उधर, फारवर्ड प्रेस के संपादक (हिंदी) प्रमोद रंजन ने कहा कि हमारी पत्रिका इस विवाद में शामिल नहीं है। हमने यह लेख तथ्‍यों के आधार पर प्रकाशित किया है। इसका छात्र कैसे उपयोग कर रहे हैं, यह उनकी अपनी विचारधारा पर निर्भर करता है।

2 comments:

  1. बुद्धि का उलटा प्रयोग भी खूब करते हैं ये तथाकथित लोग। विरोध करने और लड़ने के लिए हमेशा कम-अक़्ली का शिकार…

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  2. मिश्रा जी .........ये लड़ाई की बात नहीं है अगर आप इन तथ्यों से सहमत ना हो तो अधिक जानकारी के लिए रास्ट्रपिता महातम फुले के ग्रन्थ " गुलामगिर " का अध्यन आप के सभी सबो सूबा दूर हो जाएँगे

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