Sunday, August 28, 2011

इन ड्रामेबाज़ों को 'टोपी पहनाने' पर बधाई परनब बाबु!


प्रणबदा, आप धन्य हो ! सिविल सोसायटी ने तो लोगोको खूब टोपी पहनायी पर आपने तो सिविल सोसायटी को ही टोपी पहनायी. (भाई , मराठी में मुहावरा है 'टोपी घालने' = to deceive ) ! और होशियारी इतनी की प्रधानमंत्रीजी की पगड़ी उछाल कर उनको भी टोपी पहेना दी! मित्र पक्ष और विपक्ष को भी आपने नही बक्शा ! एक तीर में दो शिकार तो सूना था पर इतने सारे शिकार पहली बार सुन और देख रहा हूँ. आप तो समझ ही गए होंगे की मै पार्लियामेंट द्वारा (न) पारित ऐतिहासिक प्रस्ताव के तीर और तुक्के की बात कर रहा हु. महाभारत के पात्र अर्जुन और कर्ण के पास भी इतना नायाब तीर नही था,जिससे भले भले की बुद्धी ही काम करना बंद कर दे. आपके प्रदेश के जादूगर सरकार भी पार्लियामेंट में आपकी जादूगरी देख दंग रह गए होंगे. काश, आज सत्यसाईं जीवित होते तो उन्होंने भी हाथ चलाखी के लिए आपको गुरु मान लिया होता! कोई माने ना माने मैंने मान लिया है!
आपको प्रस्ताव पढ़ते हुए तो सबने देखा लेकिन पारित होते हुए किसी ने नही देखा सिवाय उस मीडिया के जिसने शपथ ली थी की जब तक अन्नाजी का आन्दोलन है तब तक दूसरी खबर की ओर देखेंगे भी नही और दूसरो की सुनेंगे भी नही. शायद लगातार १२ दिन से आन्दोलन को चलानेवाले मिडियाकर्मी इस काम से थक और उब गए होंगे. अब एक तो चिल्ला चिल्लाकर आन्दोलन का बखान करके गले पर होने वाले असर से और कैमरे को सामने देख झपट पड़ने और चिल्लाने वाले लोगोसे शरीर और कान पर होने वाले असर से परेशान मीडिया कर्मी ने अगर ठान ली होगी की बस अब इस आन्दोलन को ख़त्म करना है तो उन्हें दोष नहीं देना चाहिए .
वे तो एक हप्ते बाद ही आन्दोलन को समाप्त करणे के फिराक में लगे थे. लेकिन उनके दोस्त अरविन्दजी केजरीवाल उन्हें समझाते रहते थे की बस और एक दिन , और एक दिन.. मीडिया के समझ में बात आयी की अरविन्द जी की बात मानते रहेंगे तो अन्नाजी के पहले वो लोग ही शहीद हो जायेंगे! और प्रणबदा आपने उन्हें शहादत से बचने का अवसर दिया. आप ने जैसे ही संसद में चर्चा के समापन के लिए मुह खोला की breaking news चलने लगी. संसद ने अन्नाजी की मांगे मान ली. हम आपको देख रहे थे की अभी आपने कोई प्रस्ताव नही रखा या पढ़ा है, पर साथ में निचे प्रस्ताव पारित की न्यूज़ भी पढ़ रहे थे और आनंद विभोर थे की अन्नाजीका अनशन अब ख़त्म होगा. हमारा हाल भी मिडिया जैसा था. जब हम खाने की थाली लेकर न्यूज़ देखने बैठते थे ,तो एंकर नेताओं को जरुर कोंसते थे की अन्नाजी भूखे है और नेता लोग खाने में व्यस्त है तो हमें भी शर्म आती थी. खुद एंकर तो भूखा नही दीखता था पर 'अन्ना भूखे है.. कहकर हमारे निवाले में कंकड़ जरुर डालता था. इसलिए हम भी चाहते थे की अब अन्ना भी भर पेट खाए और हमें भी खाने दे . इसलिए हमने भी मान लिया की अन्ना चाहते थे वैसाही प्रस्ताव पारित हुआ ! आँखे कुछ और नजारा देख रही थी और दिल था की मानता ही नही था . आँखे देख रही थी की प्रस्ताव पारित होने के लिए प्रस्ताव रखाही नही गया था! लेकिन चु की सबको अनशन ख़त्म करना था तो सिविल सोसायटी से लेकर सब ने आँख मुंदकर मान लिया की प्रस्ताव पारित हुआ !!!
प्रणबदा, लोगो को उल्लू बनाना तो सरकार का काम ही होता है. पर आपने तो अपने प्रधान मंत्री को भी उल्लू बनाया. संसद ने मांगो पर प्रस्ताव पारित किया इस असत्य कथन पर प्रधान मंत्री की मुहर लगा कर अन्नाजी के पास भेज दिया! आप जानते थे की आप अपनी बुद्धीमत्ता के बल पर जो भी कुछ करते उसका सारा श्रेय प्रधानमंत्रीजी को मिलता रहा है. इस मामले में भी यही हुआ. केजरीवाल ने आपका नाम तक नही लिया! लेकिन आपने चाल ही ऎसी चली की जिस पत्र से प्रधान मंत्री को अनशन ख़त्म करणे का श्रेय मिला उसी पत्र के आधार पर देश के प्रधानमंत्री को कटघरे में खडा किया जा सकता है!!! कही आपके मन में प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद तो नही जागी? मै इसलिए यह पुछ रहा हु की आपने उस प्रस्ताव में विपक्ष को भी सरकारी भूमिका के समर्थन के लिए बाँध लिया है. शायद विपक्ष ने उस वाक्य के खिलाफ आवाज इसलिए नही उठायी की वे इस 'प्रस्ताव' की वैधानिकता का सच भली भाती जानते थे.
प्रणबदा , आपने जिन लोगोको टोपी पहनानी थी पहना डाली .अब आप और देश के प्रधानमंत्री तथा सिविल सोसायटी के नेतागण देश की भोली भाली जनता को प्रस्ताव के न पारित होने की सच्चाई बताने का कष्ट करेंगे? मै लोकसभा की सभापती महोदया से यह प्रश्न नही करूंगा , क्यों की मै जानता हूँ उन्होंने कभी भी प्रस्ताव पारीत होने की बात ना तो लोकसभा के अन्दर की ना बाहर की.

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