Saturday, April 23, 2011

दुनिया दो कदम आगे चलती है...........और हम चार कदम पीछे .........तभी तो लोकतन्त्र के खात्मे के लिए ...........जन लोकपाल


अन्ना हजारे की मांग क्या है: भारत में भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए प्रभावशाली लोकपाल कानून होना चाहिए। मौजूदा कानून प्रभावशाली नहीं है। सिविल सोसायटी के लोगों ने मिलकर एक जन लोकपाल विधेयक बनाया है। सरकार को चाहिए कि एक संयुक्त समिति बनाकर लोकपाल विधेयक का नया ड्राफ्ट बनाएं। इस समिति में सिविल सोसायटी के लोगों को शामिल किया जाए।

कौन हैं अन्ना की सिविल सोसायटी में: अन्ना जिसे सिविल सोसायटी का प्रतिनिधि कहते हैं वे मुख्य रूप से एनजीओ के लोग हैं, रिटायर्ड अफसर हैं, वकील हैं...ये लोग जनता के प्रतिनिधि नहीं हैं। आप इन्हें न चुन सकते हैं न हटा सकते हैं। ये देश के इलीट हैं। इनके अपने स्वार्थ और हित हैं। ये किसी के प्रति जिम्मेदार नहीं हैं।

कानून बनाने में सिविल सोसायटी का क्या काम: भारतीय संविधान में कानून बनाने की एक निर्धारित प्रक्रिया है। जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को ही यह अधिकार सौंपा गया है। भारतीय लोकतंत्र और संविधान में तमाम कमजोरियां हो सकती हैं, लेकिन लोगों की आस्था इसमें बनी हुई है। यह देश के लोगों को हासिल तमाम तरह की स्वतंत्रताओं और अधिकारों का स्रोत हैं। किसी सिविल सोसायटी को संविधानिक प्रक्रिया से छेड़खानी या हस्तक्षेप का अधिकार एक बार दे दिया गया, तो इसके खतरे हैं। इसे समझना मुश्किल नहीं है।

जन-लोकपाल बिल बनाने की प्रक्रिया में सिविल सोसायटी को एक बार शामिल कर लिया गया तो एक ऐसा सिलसिला शुरू हो सकता है, जो संविधान को नुकसान पहुंचाएगा।

मेरा निवेदन है कि इस तरीके से भी पूरे मसले को देखा जाए। (Dilip Mandal)

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