Thursday, November 6, 2014

लड़कियो ! इंटरनेट पर अंतर्वस्त्र चुनने और खरीदने की आज़ादी है लेकिन खुले में सुखाने की जगह ढूँढना तुम्हारा अपना युद्ध्क्षेत्र है

Sujata Tewatia

नई नवेली नहा कर निकली तो बाहर चौड़े में तार पर जहाँ घर भर के भीतर बाहर के वस्त्र सूख रहे थे वहाँ अपने अंतर्वस्त्र सुखाने पहुँची। टोकी गई- 'यहाँ कैसे सुखाने चली.
..ससुर, देवर सब देखेंगे,कैसी पढी-लिखी है भईभगवान जाने! ' धूप से वंचित होंना होगा मेरे कपड़ों को जानती थी फिर भी वह स्नानघर पहुँची और उन्हें सुखा आई। सोच रही थी अब तक तो दूकान से अपने अंतर्वस्त्र लेने मे झिझक होती थी ।थुलथुलाते शरीर वाली आण्टियों के साथ जोराजोरी करके दूकान में खड़े होने भर की जगह मिलती थी तो विचित्र भाव से दूकान का 'लड़का' कहलाए जाने वाला अधेड़ अंकल पूछता था -'आपका कप साइज़ क्या है मैडम ?' गले में थूक का बड़ा लोथड़ा निगल कर उसे बताना पड़ता था।खैर, यहाँ धोने-सुखाने के भी लाले पड़ेंगे यह नहीं सोचा था।कमरे मे आई ही थी कि फिर टोकी गई-'अकल तो है कि नहीं तुम्हें , ससुर देवर सब इसी बाथरूम में नहाते हैं ...कैसा लगेगा ? सुखा आई अपनी चड्डियाँ -बनियानें ! हुँह।' वह तुरंत दौड़ी । कमरे में आई तो मुआयना किया कौन सी जगह है जहाँ छिप छिप कर अपने अंतर्वस्त्र सुखा सकूंगी ...कोई मेरे कमरे में भी तो आ सकता है। उसने खिड़की का पर्दा हटाया ,सड़क दिखती थी जिस पर कामकाजी दुनिया आ जा रही थी। उसने खिड़की की रॉड पर उन्हें सुखा दिया।
(लड़कियो ! इंटरनेट पर अंतर्वस्त्र चुनने और खरीदने की आज़ादी है लेकिन खुले में सुखाने की जगह ढूँढना तुम्हारा अपना युद्ध्क्षेत्र है )

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