Monday, July 7, 2014

और मर्दों की दुनिया में कहा जाता है- "औरत ही औरत की दुश्‍मन है।"

कैसे सबसे अच्‍छी दोस्‍त होती है औरतें। कुछ नहीं है औरतों के पास देने के लिए। वो किसी पत्रिका की संपादक नहीं, बड़े प्रकाशनों की सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठी मालिकान नहीं। संस्‍थानों, अकादमियों, समितियों की अध्‍यक्ष नहीं। विश्‍वविद्यालयों की कुलपति नहीं। सत्‍ता के गलियारों में यहां-वहां नहीं घूमा करतीं। कोई ऊंचा, बहुत ऊंचा, सबसे ऊंचा पद नहीं है उनके पास। कम्‍युनिस्‍ट पार्टियों की महासचिव भी नहीं हैं बेचारी। मंत्री, संत्री, कलेक्‍टर के साथ दारू की महफिलों में नहीं नजर आतीं। इसको उठा देने और उसके गिरा देने के षडयंत्रों का हिस्‍सा नहीं हैं औरतें। लोग उन्‍हें झुककर सलाम भी नहीं करते। कुछ भी गुल खिला दें पावरफुल वुमेन, तब भी लोग सिर झुकाएंगे ही, ऐसी माचो मैन भी नहीं हैं। कोई वादा नहीं है उनके पास कि तुमको ये बना दूंगी, वो बना दूंगी। भेजो अपनी कविताएं, मैं छपवा दूंगी। मैं विदेश यात्रा पर भेज दूंगी। संस्‍थानों का कुछ नहीं तो, कम से कम सचिव ही बनवा दूंगी। इस कुर्सी से उस कुर्सी पर पहुंचा दूंगी। घर ही दे दूंगी खरीदकर। ऐश करना। कुछ होने, कुछ बनने, कुछ पाने की महत्‍वाकांक्षाएं पूरी करवा दूंगी।
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कुछ नहीं हैं बेचारी, लेकिन फिर भी सबसे अच्‍छी दोस्‍त हैं। बिटवीन द लाइन वो भी पढ़ लेती हैं, जो कहा ही नहीं गया। "प्रेम ने निचोड़ ली समूची देह, सारा जीवन," सुनकर पुरुष हमारी देह को सुख से भर देने के सीक्रेट माचो मैन अरमानों की कल्‍पना में इतराने लगते हैं और औरतें अकेले अपने कमरे में बैठी रोती हैं, अपने लिए और दूर देश की उन अजनबी औरतों के लिए भी। आंखें देखकर समझ जाती हैं उनकी कहानी। जब सबसे उदास हों दिन, कहीं से नमूदार हो जाती हैं विश्‍वास बनकर। उनका हाथ पकड़ा जा सकता है, बिना इस भय के कि कहीं उनका मकसद आखिरकार आपको बिस्‍तर पर ले जाना तो नहीं। उनके कंधे पर सिर रखकर रोया जा सकता है।
बहनापे के एक अदृश्‍य डोर में बंधी हुई हैं औरतें, 

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