Friday, October 7, 2011

स्टीव ने बदल डाली प्रौद्योगिकी की दुनिया

न्यूयॉर्क, एजेंसी : कॉलेज की पढ़ाई बीच में छोड़ने से लेकर प्रौद्योगिकी कंपनी एप्पल की बुनियाद रखने और इसे 350 अरब डॉलर का साम्राज्य बनाने वाले अमेरिकी उद्यमी स्टीव जॉब्स ने पर्सनल कंप्यूटर, संगीत और मोबाइल फोन की दुनिया को बदलकर रख दिया। महज 56 साल के जीवनकाल में उनके द्वारा छोड़ी गई सूचना प्रौद्योगिकी और व्यवसाय दर्शन की विरासत लंबे समय तक याद की जाएगी। जॉब्स पिछले सात साल से पैंक्रियाज कैंसर से जूझ रहे थे। एनिमेशन कंपनी पिक्सर की बेशुमार सफलता के पीछे भी उनका हाथ रहा। इस कंपनी ने टॉय स्टोरी और फाइंडिंग नीमो जैसे लोकप्रिय उत्पाद पेश किए। स्टीव जॉब्स की जबर्दस्त मेहनत और दूरदर्शिता के कारण एप्पल के उत्पादों को बाजार में विशिष्ट ख्याति मिली। 24 फरवरी 1955 को जन्मे स्टीवन पॉल जॉब्स को पॉल और क्लैरा जॉब्स ने गोद लिया था। उनके असली माता-पिता का नाम जॉन कैरल शीबल और अब्दुलफतह जंदाली था। जंदाली सीरिया से आए छात्र थे, जो बाद में राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर बने। वित्त और रियल एस्टेट में काम करने वाले जॉब्स बाद में अपने मूल कारोबार मशीनें ठीक करने से जुड़ गए। अपने परिवार के साथ सैन फ्रांसिस्को पैनिंजुला से माउंटेन व्यू और 1960 में लॉस ऐल्टास चले गए। बचपन से ही स्टीव की रुचि इलेक्ट्रॉनिक्स में थी। आठवीं कक्षा की पढ़ाई के दौरान एक दिन कुछ पुर्जे जोड़कर फ्रीक्वेंसी काउंटर बना रहे थे। कुछ देर बाद उन्हें महसूस हुआ कि उसका कोई हिस्सा नहीं मिल रहा है। इसके बाद उन्होंने पूरे विश्वास के साथ ह्यलेट-पैकार्ड के सह-संस्थापक विलियम ह्यूलेट को फोन कर दिया। द न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक इसी 20 मिनट की बातचीत के आधार पर ह्यूलेट ने बालक स्टीव जॉब्स के लिए कुछ उपकरण जुटाकर एक थैला तैयार किया। ह्यूलेट स्टीव से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने जॉब्स को गर्मी की छुट्टियों के दौरान नौकरी की पेशकश कर दी। जॉब्स जब क्यूपर्टिनो के होमस्टीड में हाईस्कूल की पढ़ाई कर रहे थे, तो उनकी मुलाकात स्टीफेन वोज्निएट से हुई। उनके साथ मिलकर उन्होंने 1976 में एप्पल की स्थापना की। जॉब्स ने 1972 के दौरान पोर्टलैंड के रीड कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन एक सत्र के बाद पढ़ाई छोड़ दी। हालांकि, वह वहां ऑडिटिंग की पढ़ाई के लिए 18 महीने और रुके रहे। स्टैनफोर्ड में वर्ष 2005 में एक व्यख्यान में जाब्स ने कहा था कि उन्होंने कॉलेज छोड़ने का फैसला इसलिए किया, क्योंकि वहां पढ़ाई जारी रखने से उनके माता-पिता की बची कमाई खत्म हो जाती। वह वर्ष 1974 में सिलिकॉन वैली वापस लौटे और वीडियोगेम विनिर्माता कंपनी एटारी में तकनीशियन की नौकरी कर ली। कुछ ही महीने बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और अपने कॉलेज के दोस्त डैनियल कोटके के साथ भारत की आध्यात्मिक यात्रा पर निकल पड़े। यह मित्र भी बाद में एप्पल के शुरुआती कर्मचारियों में शामिल हुआ। जॉब्स लौट कर फिर एटारी कंपनी में काम करने लगे। वह वोज्निएक के साथ होमब्रियु कंप्यूटर क्लब की बैठकों में हिस्सा लेना शुरू किया। वोज्निएक उस समय एचपी में बतौर इंजीनियर काम कर रहे थे। वह क्लब शौकिया लोगों का समूह था। क्लब के सदस्य 1975 में कैलिफोर्निया के मेन्लो पार्क में स्टैनफोर्ड लिनियर ऐक्सेलरेटर सेंटर में मिलते थे। स्टैनफोर्ड के इर्द-गिर्द की इकाइयों में उस समय पर्सनल कंप्यूटरों का विकास हो रहा था। वोज्निएक ने होमब्रियु में अपने दोस्तों को दिखाने के लिए पहले एप्पल कंप्यूटर एप्पल-1 का डिजाइन तैयार किया था। इसको देखकर जॉब्स ने एप्पल-1 के व्यावसायिक उत्पादन पर जोर दिया। वर्ष 1976 के जॉब्स और वोज्निएक ने अपने पास से 1,300 रुपये में कारोबार शुरू किया। कारखाने के नाम पर उनके पास जॉब्स परिवार का गैराज था। इसके बाद उन्हें इंटेल के पूर्व कार्यकारी एसी मरक्कुला की मदद मिली। उन्होंने दोनों को 2,50,000 डॉलर का कर्ज दिया। मूल एप्पल-1 कंप्यूटर का तकनीकी पक्ष वोज्निएक ने संभाला और उसको बाजार में कामयाब बनाने की जिम्मेदारी संभाली जॉब्स ने। इसके तुरंत बाद कंपनी ने क्यूपर्टिनो में एक छोटा दफ्तर खोला। यहीं से शुरू हुआ एप्पल का सफर एक बड़ी और सफल कंपनी के तौर पर तब्दील हुआ।

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