Saturday, July 2, 2011

भारतीय फिल्मो में नारी हमेसा देवी , तयाग्शील , ममतामई , सहनशीलत और पुरषों पर निर्भर क्यों ???


बाबा साहिब ने कहा था  " मैं किसी समाज की तरकी का अंदाजा इस बात लगता हूँ की उस समाजमें स्त्री की कितनी परगति हुई है "
भारतीय समाज में स्त्री को गुलाम बनाए रखने के लिए अनेक प्रकार के उपकर्म गड़े गए सबसे पहले उसकी शरीक सरचना को आधार बनाया गया फिर इस  प्रकार शब्द्शेली और और भाषा का निर्माण किया गया की उसका जयादा से अपमान किया जा सके इसलिए उसके शारीरक अंगों और पर्जनन शक्ति को आधार बना कर गलिया,मुहावरे,और लोकोक्तिया का निर्माण किया गया जिससे स्त्री में उसकी देह और आस्तिव को लेकर एक पार्कर की हीनता और असुरक्षा की भावना पैदा की जा सके . परचार परसार के मध्य से चाहे जो हो स्त्री की समाज स्थिति को लेकर जिस परकार की छवि गढ़ी गई है उसमे स्त्री हमेसा दूसरे दर्जे पर ही रखा गया है जिससे इस पुर्शवादी समाज की जड़े मजबूत रहे स्त्री इस इस परकार की छवि गड़ने में लोकतंत्र के चोथे सतम्भ मिडिया ने बहुत एहम भूमिका निभाई है  

आज 'शीला की जवानी', मुन्नी बदनाम हुई,और धनो धन्हो आदि गीतों द्वारा श्त्री को मनोरंजन और उपभोग की वास्तु के तोर पर ही पर्स्तुत किया जा रहा है एसी स्थिति में हमारा सेंसर बोर्ड कहा बैठा है ? पिछले दिनों एक मशहूर फिल्म निर्देश ने  इंटरव्यू में  कहा की " हम लोग फिल्मो में केवल वो ही चीज दिखाते है जिसे हमारी जनता पसंद करती है " अब सवाल उठता है की क्या हमारा समाज इतना पतन शील हो गया है या फिर ये कोण सी संस्कर्ति विकसित हो रही है जो आज समाज में आधुनिकता और खुलेपन के नाम पर भद्दे डायलोग , टिपणिया और गालियों को बढावा दे रही है
दरअसल इन सब के पीछे महतवपूर्ण पहलू किसी को नजर नहीं आता है जबसे स्त्री सस्त्रिकरण का युग चल रहा है जिसके स्त्रिया हर छेत्र में इस पुरुषवादी समाज को चुनोती दे रही है ये बात ब्राह्मणवादी मानसिक्ता में जकड़े इस समाज को हजम नहीं हो रही है वह है चाहता की स्त्रिया अताम्समन पूर्वक अपना एक मुकाम बनाए इसलिए उसने परचार द्वारा स्त्री की वो ही छवि पेश करता है जिसमे में स्त्री को देखना पसंद करता है यानि केवल उपभोग और मनोरंजक के साधन के रूप में .इसमें हमारा मिडिया भी बड चड कर उनका साथ दे रहा है जहा एक और पब्लिसिटी के लिए पत्रकारों को तरह तरह के पर्लोभन दिया जाते है वही टीवी चेलनो पर भी  TRP  के चक्कर में घटिया धारावाहिकओ की बाड़ आई हुई है

फिल्मो में तेजी से बढता गालियों का परचल इसका उदारण है स्त्री के लिए साली, आईटम , माल , पटका , छमिया , जेसे शब्दों का पर्योग धडाले से फिम्लो और गानों में किया जा रहा है जिससे ना तो हमारे बुधिजीवी वर्ग को कोई आपति है ना ही सेंसर बोर्ड को

 अखबारों में एक बात कोमन है की उनमे स्त्रियो के देह को विशेष तोर पर पारदशित किया जाता है उन पर भद्दी और अश्लील हेअडिंग दी जाती है जेसे कुछ दिनों पहले ही नवभारत तिमेस में एक हेअडिंग बनी थी " कश्मीरा शा ने पुरषों के लिए अपने कपडे उतारे " इससे आसानी से अंजादा लगाया जा सकता है  और  आम आदमी के मन में सिर्फ एक बात डाली जा रही है श्त्री केवल एक उपभोग की वस्तु है  यहाँ
गोर करने लायक एक बात ये भी है जबसे स्त्रियों ने पुराणिक मान्यताओं को तोडना शुरू किया है तभी से  उतने बड़े स्तर पर संचार माध्यमों से श्त्री पर दोबारा पुरानी  देविक छवि को लादने की कोसिस की जा रही है जहा एक और वह पुरुष के सेविंग क्रीम , ब्लेड  , और अन्दुरिनि वस्त्रों तक की एड में स्त्री का उपयोग किया जा रहा है 

वाही स्टार पलस जेसे चेन्नाल्स स्त्री को पूरी तरह से पारम्परिक ढाचे में ढली , सजी सवरी भारतीय नारी के रूप में भी दिखाता है इन दिनों स्टार पलस ने स्त्रियों को लेकर एक निहायत ही सुरीला , और खूबसूरत सोंग बनाया है जिसे स्टार एंथम का नाम दिया गया है इस गीत को देकर आप मंत्र्मुघ्द हुए बिना नहीं रह सकते है लेकिन दूसरी तरफ सवाल ये उठता है की हम स्त्री को केवल इसी रूप में सुन्दर और ससत क्यों माने जो उसके लिए हमारे पुरानान्पन्थियो ने गड़े है क्यों हम बार बार उसकी तुलना ममतामयी, समाशील, त्यागमयी और पुरष पर अपना सबकुछ न्योछावर करने वाली के रूम में ही देखना चाहते है क्या किसी स्त्री को अताम्निर्भर ,निर्भीक और शाहासी दिखाने से  पुरष परभावित छवि परदान करना जरुरी है .क्या पुरुष से इतर स्त्री का कोई सवंत्र अस्तिव नहीं है आज स्त्रियों ने मेडिकल, विज्ञानं , में अपनी एक पहचान कायम की है ये मीडिया और सिनेमा  उसके इस रूप को क्यों नहीं दिखता है
एक जहा माँ एक्सचेंग जेसे सीरियल लोगो की सवेन्द्नाओ का मखोल उड़ाते दीखते है वही ...इमोशनल अत्याचार जेसे सीरियल युवा पीडी को क्या पेस कर रहे है जहा स्त्री केवल स्त्री न हो केवल एक भोग्य है हद तो तब हो जाती है जा शारुख्खन जेसे लोग " जोर का झटका " जेसे सीरियलों में अपनी महिला सहयोगियों पर अश्लील कमेन्ट करते है  मिडिया में हम स्त्री ससत और सवाम्लाम्बी छवि की कमाना नहीं कर सकते है आज गंभीर और सामाजिक मुदो पर बहस करना उसका काम नहीं है उसका मकसद तो केवल सस्ती लोकप्रियता और चंद रुपए कमाने  तक ही उसका उदेस्य रह गया हैपूनम तुसामद से  परभावित

Aar Ravi

उस रात
चाँद नहीं निकला था
आकाश अँधेरे से
सरोबार था
पुरुष ने स्त्री को देखा
उसने उसकी देह की भाषा
पढ़ ली थी,

उसको बहलाया फुसलाया
उसके कसीदे में गीत लिखे
उस पर कविताएं लिखी
उसको आजादी का अर्थ बताया
तरक्की के गुण बताये
आखेट पर निकलने का शौक रखने
वाले की तरह
जगह जगह जाल बिछाया
नारी मुक्ति की बात कही
सपनों के स्वपनिल संसार का
झूठ बोला,

स्त्री ने प्यार भरी आँखों से
उसकी आँखों में झांका,
तीतर की तरह पंख फड़फड़ाता
पुरुष उसको
निरीह सा लगा
वह उसे देखकर मुस्कराई
और सपनो के सुनहरे संसार में
उड़ने लगी

आकाश की उत्कंठा में
लुका-छिपी का खेल देर-देर तक
चलता रहा
थके हुए क्षणों से
जिस चीज पर नारी नीचे गिरी
वह पुरुष का करीने से
बिछाया हुआ बिस्तर था .........रवि विद्रोही ....

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