Tuesday, April 26, 2011

मीडिया पर भी आरटीआई लगाने का वक्‍त आ गया है!


सोमवार, 25 अप्रैल को सीएसडीएस सराय में मीडिया पर एक शानदार बहस हुई। बहस में नौजवान पत्रकारों की एक बड़ी फौज ने हिस्‍सा लिया। वरिष्‍ठ पत्रकार ओम थानवी ने कहा कि मीडिया में भ्रष्‍टाचार कोई नयी परिघटना नहीं है। अब आपको बहस के लिए इसलिए ये बड़ा और जरूरी मुद्दा लग रहा है क्‍योंकि इसमें आप बड़े नामों को शामिल पा रहे हैं। उन्‍होंने यह भी कहा कि पत्रकारिता की आंख छोटी हो गयी है। वह नहीं देख पा रहा है कि पानी कैसे गायब होता जा रहा है, हवा कैसी जहरीली होती जा रही है और झुलसाने वाली आग से बचाने वाले आसमान की परत कैसे पतली पड़ती जा रही है। पत्रकारिता को सामाजिक जिम्‍मेदारियों की तरफ ले जाना होगा और अभी भी इसके लिए कम ही सही, मुख्‍यधारा के मीडिया में जगह है। उन्‍होंने नौजवानों से कहा कि आपको कहीं उम्‍मीद न दिखे, तो आप जनसत्ता में अपने लेख भेजिए, हम छापेंगे।
सामाजिक कार्यकर्ता और साहित्‍यकार अनीता भारती ने कहा कि मीडिया का जातिवादी चेहरा पिछले दिनों कायदे से उजागर हुआ है। उन्‍होंने एक उदाहरण के जरिये यह समझाने की कोशिश की कैसे मीडिया दलितों के मुद्दे, उनके स्‍वाभिमान के प्रतीकों के साथ दोयम दर्जे का बर्ताव कर रहा है। उन्‍होंने कहा कि महावीर से लेकर तमाम महापुरुषों की जयंती पर अखबार विशेष परिशिष्‍ट निकालते रहे हैं – लेकिन अंबेडकर की घनघोर उपेक्षा करते हैं। अभी अभी गुजरी अंबेडकर जयंती पर अखबारों ने ब्‍लैक आउट करने की शैली में चुप्‍पी ओढ़ ली।
टीवी पत्रकार प्रभात शुंगलू ने कहा कि मीडिया की गली अब ऐसी हो गयी है, जहां रहस्‍य ही रहस्‍य हैं। वहां नियुक्ति की कोई पारदर्शी प्रक्रिया नहीं है। प्रतिभाशाली लोग देखते रह जाते हैं और गैरप्रतिभाशाली लोग सभी जगहों पर भरते चले जा रहे हैं। उन्‍होंने यह भी कहा कि कुछ पत्रकार मीडिया में आते हैं और देखते ही देखते उनकी जीवन शैली लैविश होती चली जाती है। अब वो समय आ गया है, जब आप मीडिया पर भी आरटीआई का पहरा लगाने की बात करें। इसके लिए भी दबाव बनाया जाए कि पत्रकार अपनी संपत्ति की घोषणा करें।
सीएसडीएस के सीनियर फेलो रविकांत ने अब हम विमर्श में पूंजीवाद जैसे जुमलों का इस्‍तेमाल न ही करें तो बेहतर। यह टर्मिनॉलॉजी अब पुरानी पड़ चुकी है। नयी बात करें। वैसे भी पूंजीवाद की आलोचना के साथ बात शुरू करने पर हमें पूंजीवाद की रचनात्‍मकता के बारे में पता नहीं चलता। उन्‍होंने मीडिया के मसखरेपन को समझने के लिए मनोहर श्‍याम जोशी के नॉवेल कसप में ईश्‍वर के बारे में दिये गये उनके वक्‍तव्‍य की याद दिलायी। जोशी जी ने लिखा है कि ईश्‍वर कितना बड़ा मसखरा है – ये इससे अंदाजा लगाइए कि उसने सेक्‍स करने और शौच करने के लिए एक जैसी चीज ही बनायी है। रविकांत ने कहा कि मीडिया को आज ऐसे ही समझने की जरूरत है। वह तमाम खबरों को एक ही तराजू (शायद टीआरपी, शायद सनसनी) पर तौलने की कोशिश करता है।
रविकांत ने कहा कि मीडिया या किसी भी माध्‍यम, व्‍यवस्‍था से ट्रांसपेरेंसी की उम्‍मीद करना बेमानी है। ट्रांसपेरेंट कुछ हो ही नहीं सकता। हम एक क्षण को ढंकने के लिए दूसरा क्षण रचते हैं। क्‍योंकि आज न्‍यू मीडिया की पैनी नजर इतनी पसर रही है कि कोई भी सीक्रेट अब हमारे आगे सीक्रेट नहीं रहेगी। हालांकि इस नजर पर भी सरकार की नजर है। हम जिस इंटरनेट को आजाद जगह मानते हैं, सरकार उस पर भी आंखें गड़ाये हुए है।
मीडिया पर हुई इस बहस का संचालन युवा मीडिया क्रिटिक विनीत कुमार ने किया। पूरी बहस में कई लोगों ने अपनी बात रखी। मसलन… मिहिर पंड्या, शीबा असलम फहमी, पूनम तुषामड़, राकेश कुमार सिंह, भूपेन आदि। बहस के शुरू में संदर्भ से परिचय कराया अविनाश ने और प्रस्‍तावना रखी मीडिया विश्‍लेषण और अध्‍ययन से जुड़े दिलीप मंडल न।

No comments:

Post a Comment