Wednesday, August 28, 2013

मार्टिन लूथर किंग का सपना और ओबामा

रजेश उपाध्याय
बीबीसी संवाददाता, वॉशिंगटन
 सोमवार, 26 अगस्त, 2013 को 09:54 IST तक के समाचार

मार्टिन लूथर किंग का सपना था कि काले और गोरों को बराबर का दर्जा मिले.
पचास साल पहले अगस्त की एक उमस भरी दोपहर में वॉशिंगटन के लिंकन मेमोरियल के मंच से मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने एक सपने की नींव रखी थी-कि एक दिन ऐसा आएगा जब एक काला बच्चा एक गोरे बच्चे के हाथ में हाथ डालकर एक ही बस में, एक ही स्कूल में, एक ही छत के नीचे बैठेगा.
स्मार्टफ़ोन के कैमरों से ली हुई हंसती खिलखिलाती तस्वीरों में, पार्कों में काले-गोरे जोड़ों के आलिंगन और चुंबन में, खुली छत वाली बसों पर बैठे पर्यटकों की आंखों में, डॉक्टर किंग का सपना सच सा दिखता है.
व्हाइट हाउस में काले राष्ट्रपति की मौजूदगी मानो उस सपने की सच्चाई पर मुहर लगाती है.
लेकिन किताब पर लगी जिल्द की तरह, मेकअप में लिपटी चालीस-पचास बसंत देख चुकी अदाकारा की तरह--एक या दो परत हटते ही एक दूसरी सच्चाई सामने आने लगती है.
जिस स्कूल में गोरे बच्चे ज़्यादा हैं, वहां पढ़ाई भी अच्छी है. जहां काले बच्चे ज़्यादा हैं वहां हर मां बस ये ख़ैर मनाती है कि बच्चा सही सलामत घर लौट आए.
गोरे इलाकों मे रात के बारह बजे भी बेखटके घूमिए. जहां कालों के मोहल्ले हैं, वहां दिन के उजाले में भी जान पर बनी रहती है.

चुनौती

बराक ओबामा अमरीका के पहले काले राष्ट्रपति हैं.
नौकरी के इश्तिहार काली स्याही में छपते हैं. निजी कंपनियों की लिस्ट में काला उम्मीदवार नीचे दबा होता है.
हॉलीवुड की एक फ़िल्म की लाइन थी: काला बच्चा जन्म से ही गुनहगार दिखता है.
फ़ेयर अभी भी लवली है, ब्लैक इज़ ब्यूटीफ़ुल की पहुंच अभी भी काफ़ी हद तक मिशेल ओबामा के डिज़ाइनर लिबासों और विज्ञापन के पन्नों तक सीमित है.
बराक ओबामा इस हफ़्ते लिंकन मेमोरियल के उसी मंच पर होंगे जहां से मार्टिन लूथर किंग ने 50 साल पहले कालों के हक़ के लिए आवाज़ उठाई थी. ओबामा पर उन शब्दों और उन सपनों का बोझ कहीं ज़्यादा होगा. इसलिए नहीं कि वो देश के राष्ट्रपति हैं, इसलिए क्योंकि वो देश के पहले काले राष्ट्रपति हैं.
कभी-कभी लगता है कि काली कौम उनसे उम्मीद करे ये सही है, लेकिन सिर्फ़ उन्हीं से उम्मीद करे ये ग़लत है. उन्हें मिसाल बनाकर आगे बढ़ने की जगह एक बड़ा तबका उनसे एक जादू की छड़ी की ख़्वाहिश रखता है.
ओबामा काली कौम की अपनी व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी की बात करते रहे हैं. क्यों काले नौजवान सबसे ज़्यादा कालों की गोली का शिकार बनते हैं, क्यों काली लड़कियां सबसे ज़्यादा बिनब्याही मां बनती हैं, क्यों बाहर से आए लातिनी अमरीकी जो यहां की अंग्रेज़ी ज़ुबान भी नहीं बोलते कालों से आगे निकल रहे हैं?
लेकिन ये सवाल चुभते हैं. जो इतिहास के पन्ने पलटते रहते हैं, उन्हें और ज़्यादा चुभते हैं.
ओबामा की चुनौती है कालों की इस पीढ़ी को बताना कि क्लिक करें खुद कुंआ खोदो और पानी पीओ. मार्टिन लूथर किंग एक सत्याग्रही थे जो अपनी पीढ़ी को ये बात कह सके. ओबामा एक राजनीतिज्ञ हैं, उनके लिए ये कहना शायद मुश्किल हो.
(बीबीसी हिन्दी के क्लिक करें एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां क्लिक करें. आप हमें क्लिक करें फ़ेसबुक और क्लिक करें ट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)
http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2013/08/130826_brajesh_diary_ss.shtml

No comments:

Post a Comment