Saturday, October 22, 2011

गद्दाफ़ी भारत का सच्चा दोस्त था

http://www.bbc.co.uk/hindi/news/2011/10/111021_gaddafi_color_vk.shtml
शुक्रवार, 21 अक्तूबर, 2011 को 20:30 IST तक के समाचार
गद्दाफ़ी
लीबिया में भारत के पूर्व राजदूत अर्जुन असरानी गद्दाफ़ी को तानाशाह बताते हैं जिनका रिश्ता भारत के साथ बहुत अच्छा था.
ये अजीब बात है कि व्यक्ति की मौत के बाद उसके ज़िंदगी के अनछुए पहलुओं की चर्चा शायद ज़्यादा होती है. शायद यही बात कर्नल गद्दाफ़ी के साथ भी हो रही है.
ये सुनने में अजीब लगे कि कोई राष्ट्रीय नेता अपनी पत्नी के माध्यम से दूसरे देश के प्रधानमंत्री को अपने देश आने का न्योता भेजे, लेकिन क़रीब 28 साल पहले कर्नल गद्दाफ़ी ने भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को ऐसे हीं लीबिया आने का निमंत्रण भेजा था.
लीबिया में 1981 से 84 तक भारत के राजदूत रहे अर्जुन असरानी बताते हैं कि जब गद्दाफ़ी की पत्नी भारत जा रही थीं, तो असरानी को बताया गया कि वो भारत ताजमहल वगैरह देखने जा रही हैं.
अर्जुन असरानी बताते हैं, “मेरी पत्नी उन्हें छोड़ने हवाईअड्डे गई तो वहाँ उनके बीच दोस्ती हो गई. मिसेज़ गद्दाफ़ी ने कहा कि जब मैं भारत से वापस लौटती हूँ तो मुझे कॉफ़ी पर ज़रूर मिलना. जब वो भारत गईं तो वहाँ इंदिरा गाँधी को उन्होंने कहा कि मेरे पति का हुक्म है कि जब तक आप भारत आने का वचन ना दें, तब तक मैं दिल्ली से वापस नहीं जा सकती हूँ. तब इंदिरा गाँधी ने वायदा किया वो लीबिया जाएँगी, और वो गईं.”

भारत-पसंद

"गद्दाफ़ी उन्हें (इंदिरा गाँधी को) लेने हवाईअड्डे नहीं आए, और जब 10 मिनट बाद आए भी और लाल कालीन पर चलने की बारी आई तो उस पर गद्दाफ़ी अपने चौड़े अंदाज, लबादे के साथ चल रहे थे और मिसेज़ गाँधी को सड़क पर चलना पड़ा"
प्रोफ़ेसर अनुराधा कुंटे, इंदिरा गांधी की नज़दीकी
इंदिरा गाँधी की नज़दीकी और जवाहरलाल विश्वविद्यालय की फ़्रेंच भाषा की पूर्व प्रोफ़ेसर अनुराधा कुंटे बताती हैं कि दरअसल प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी मिस्र और अल्जीरिया जा रही थीं, लेकिन विदेश मंत्रालय ने उन्हें लीबिया जाने की भी सलाह दी.
उन्होंने बताया, “गद्दाफ़ी उन्हें लेने हवाई अड्डे नहीं आए, और जब 10 मिनट बाद आए भी और लाल कालीन पर चलने की बारी आई तो उस पर गद्दाफ़ी अपने चौड़े अंदाज, लबादे के साथ चल रहे थे और इंदिरा को सड़क पर चलना पड़ा.”

यादें

अर्जुन असरानी की गद्दाफ़ी से जुड़ी कई खट्टी-मीठी यादें हैं. वो उन्हें अजीबो-गरीब और अप्रत्याशित व्यक्ति बताते हैं जिसने कुछ लोगों के साथ कठोरता भी दिखाई, लेकिन “हमारे हिसाब से तो वो ठीक थे.”
असरानी कई मामलों में गद्दाफ़ी की तारीफ़ करते हैं. असरानी के मुताबिक गद्दाफी़ की कोई बुरी आदतें नहीं थीं, जैसे बाहर के देशों में धन इकट्ठा करना और आशिक मिज़ाज होना. उन्होंने लोगों के लिए मकान बनाए, सड़कें, हवाई जहाज़, अस्पताल बनाए और कई अच्छे काम भी किए.
असरानी गद्दाफ़ी को तानाशाह बताते हैं जिनका रिश्ता भारत के साथ बहुत अच्छा था, हालाँकि बेनगाज़ी के विद्रोहियों से वो कड़ाई से निपटते थे.
असरानी पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि गद्दाफ़ी एकमात्र अरब नेता थे जो अपने भाषणों में कभी-कभी महात्मा गाँधी और जवाहरलाल नेहरू का ज़िक्र करते थे.
उन्होंने बताया, “उन्हें गुटनिरपेक्ष बहुत पसंद था. वो कहते थे कि जिस तरह भारत ने एक पिन से लेकर हवाई जहाज़ तक खुद बनाने की कोशिश की है, ऐसे हमें भी करनी चाहिए. वो भारतीय कंपनियों जैसे बीएचईएल से बहुत खुश थे क्योंकि जब भारतीय कंपनियाँ मैदान में उतरती थीं, तो यूरोपीय कंपनियों को भी अपने दाम घटाने पड़ते थे.”
लेकिन वो भारत से परमाणु हथियार तकनीक चाहते थे, जो उन्हें नहीं मिल पाई जिसकी वजह से उन्हें थोड़ी बहुत नाराज़गी थी. जब भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी लीबिया गईं तो उन्होंने गद्दाफ़ी से कहा कि आप ये उम्मीद भारत से मत रखिए.
अनुराधा कुंटे
जवाहरलाल विश्वविद्यालय की फ़्रेंच भाषा की पूर्व प्रोफ़ेसर अनुराधा कुंटे (बाएँ) इंदिरा गाँधी लीबिया साथ गए थे.
अस्सी के दशक में कश्मीर पर गद्दाफ़ी का रवैया भारत के पक्ष में था, लेकिन इस रवैए में परिवर्तन आया क्योंकि असरानी के मुताबिक़ परमाणु तकनीक पर पाकिस्तान से आशावादी जवाब मिला.
असरानी बताते हैं कि जब उनका लीबिया छोड़ने का वक्त आया तो उनकी पत्नी ने मिसेज़ गद्दाफ़ी से कहा कि वो कर्नल गद्दाफ़ी से नहीं मिल पाईं हैं.
लीबिय़ा से बाहर जाने के एक दिन पहले असरानी के घर रात साढे नौ बजे फ़ोन आया कि कर्नल गद्दाफ़ी मिसेज़ असरानी से मिलना चाहते हैं और वो चाहें तो अपने इंटरप्रेटर को साथ ला सकतीं हैं. यानि असरानी को मिलने के लिए नहीं बुलाया गया था क्योंकि आधिकारिक तौर पर गद्दाफ़ी का कोई ओहदा नहीं था, और वो कहते थे कि वो राजदूत से क्यों मिलें.
कर्नल गद्दाफ़ी ने बड़ी इज़्जत के साथ अर्जुन असरानी की पत्नी के साथ अंग्रेज़ी में बात की, हालाँकि उन्होंने कभी भी राजदूत असरानी से अंग्रेज़ी में बात नहीं की थी. उनकी पत्नी को कई तोहफ़े भी मिले जिसमें एक सोने की घड़ी शामिल थी.
असरानी बताते हैं, “मेरी पत्नी ने गद्दाफ़ी से कहा कि आपके लोग मेरे पति को आपसे नहीं मिलने दे रहे हैं. फिर मेरी पत्नी को बताया गया कि मैं उनसे अगली सुबह मिल सकता हूँ. जब मैं अगली सुबह मिलने गया तो मुझे भी काफ़ी तोहफ़े मिले.”

पश्चिमी चश्मा

एक मुलाकात ऐसी भी

"पहले तो पट्टी बाँधी गई आखों में. हमें तहखाने में ले जाया गया. बांबे सिनेमा में डॉन जहाँ रहता है, जहाँ कम रोशनी होती है, ऐसा ही था. वो एक स्टेज पर बैठे थे. उनके दाएँ औऱ बाएँ दो लड़कियाँ थीं. एक बेहद काली, औऱ एक गोरी. रोनाल्ड रेगन के बारे में उन्होंने कहा कि मुश्किल ये है कि वो कुछ कर नहीं पाते औऱ वो ब्रितानी प्रधानमंत्री मिसेज़ थैचर को प्रभावित करना चाह रहे हैं कि वो मर्द हैं. इस तरह उन्होंने ये किया है"
वरिष्ठ पत्रकार सईद नक़वी
वरिष्ठ पत्रकार और गद्दाफ़ी से मिल चुके सईद नक़वी कहते हैं कि भारत और भारतीय मीडिया गद्दाफ़ी को पश्चिमी चश्मे से देख रहा है और ये खेद की बात है कि इतने महत्वपूर्ण वक्त एक भी भारतीय संवाददाता लीबिया में मौजूद नहीं है.
वर्ष 1986 में नक़वी गद्दाफ़ी से मिलने लीबिया पहुँचे. उस वक्त लीबिया पर अमरीका ने हमला किया था.
सईद नक़वी बताते हैं, “पहले तो पट्टी बाँधी गई आँखों में. हमें तहखाने में ले जाया गया. बांबे सिनेमा में डॉन जहाँ रहता है, जहाँ कम रोशनी होती है, ऐसा ही था. वो एक स्टेज पर बैठे थे. उनके दाएँ औऱ बाएँ दो लड़कियाँ थीं. एक बेहद काली, औऱ एक गोरी. रोनाल्ड रेगन के बारे में उन्होंने कहा कि मुश्किल ये है कि वो कुछ कर नहीं पाते और वो ब्रितानी प्रधानमंत्री मिसेज थैचर को प्रभावित करना चाह रहे हैं कि वो मर्द हैं. इस तरह उन्होंने ये किया है.”
गद्दाफ़ी महिलाओं को अच्छा दर्ज़ा देते थे, उन पर विश्वास भी करते थे. उनकी सुरक्षाकर्मियाँ महिलाएँ थीं. महिलाओं को विद्यालयों में पढ़ाना उनकी प्राथमिकताओं में से एक था.
अर्जुन असरानी कई बातों में उन्हें धर्मनिरपेक्ष बताते हैं जिन्होंने मुल्लाओं को निकाल दिया था.
उन्होंने बताया, “लेकिन जब बच्चे बड़े होने लगे तो मैने सुना कि वो शौकीन किस्म के होने लगे और शायद उनका रवैया बदल गया हो, इसका मुझे पता नहीं है. लेकिन मेरे वक्त उनका रवैया बहुत अच्छा था. जब मिसेज गद्दाफ़ी भारत से वापस आईं तो मैने अपनी पत्नी से कहा कि वो उनके कान में बात डाल दें कि दो भारतीयों के पास पाँच ग्राम अफ़ीम पाने के कारण उम्र कैद की सज़ा दी गई थी, तो वो उनके लिए कुछ करें. दो दिन बात ही हमें फ़ोन आया कि हम अपने लोगों को वापस ले जाएं.”

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