नई दिल्ली, राष्ट्रीय जागरण : संपत्ति और कॉरपोरेट जगत में सफलता के बावजूद स्टीव जॉब्स की छवि सिलिकन वैली के विद्रोही नायक जैसी रही। उनके काम करने का तरीके ऐसे थे कि कई बार काम करना मुश्किल हो जाता, मगर लोगों के बीच कौन सा उपकरण लोकप्रिय होगा इसकी समझ ने एप्पल को दुनिया के सबसे जाने-माने नामों में से एक बना दिया। स्टीवन पॉल जॉब्स का जन्म 24 फरवरी 1955 को सैन फ्रांस्सिको में हुआ था। मां जोआन शिबल थीं और सीरियाई मूल के पिता का नाम अब्दुल फतह जंदाली था। उनके मां-बाप ने बेटे को कैलिफोनियाई युगल पॉल और क्लारा जॉब्स को गोद दे दिया। उन्हें गोद देने के कुछ ही महीनों बाद स्टीव के असली मां-बाप ने शादी कर ली और उनकी एक बेटी मोना भी हुई, मगर मोना को अपने भाई के जन्म के बारे में तब तक नहीं पता चला जब तक वह वयस्क नहीं हुई। जॉब्स ने 1976 में वोजनिया की 50 मशीनें एक स्थानीय कंप्यूटर स्टोर को बेच दीं और उस ऑर्डर की कॉपी के साथ इलेक्ट्रॉनिक्स डिस्ट्रीब्यूटर को कहा कि वह उन्हें कलपुर्जे दे दें, जिसकी रकम अदायगी कुछ समय बाद हो पाएगी। जॉब्स ने एप्पल-1 नाम से मशीन लॉन्च की और यह पहली ऐसी मशीन थी जिससे उन्होंने किसी से धन उधार नहीं लिया और न ही उस बिजनेस का हिस्सा किसी को दिया। उन्होंने अपनी कंपनी का नाम अपने पसंदीदा फल पर एप्पल रखा। पहले एप्पल से हुआ लाभ बेहतर संस्करण का एप्पल-टू बनाने में लगा दिया गया जो कि 1977 के कैलिफोर्निया के कंप्यूटर मेले में दिखाया गया। नई मशीनें महंगी थीं, इसलिए जॉब्स ने स्थानीय निवेशक माइक मारकुला को मनाया कि वह ढाई लाख डॉलर का कर्ज दें और वोज्नियाक को साथ लेकर उन्होंने एप्पल कंप्यूटर्स नाम की कंपनी बनाई। जॉब्स ने 1985 में कंपनी में दोबारा वापसी की और बिना समय गंवाए उस समय के मुख्य कार्यकारी को हटा दिया और एप्पल के नुकसान को देखते हुए कई उत्पादों का निर्माण बंद कर दिया गया। जॉब्स ने इसके बाद कभी पलटकर नहीं देखा।
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=49&edition=2011-10-07&pageno=10#id=111723016531938602_49_2011-10-07
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