हिन्दुओं के अन्य धर्मग्रंथों रामायण, महाभारत और गीता की भांति वेद भी लडाइयों के विवरणों से भरे पड़े है. उनमें युद्धों की कहानियां, युद्धों के बारे में दांवपेच,आदेश और प्रर्थनाएं इतनी हैं कि उन तमाम को एक जगह संग्रह करना यदि असंभव नहीं तो कठिन जरुर है. वेदों को ध्यानपूर्वक पढने से यह महसूस होने लगता है की वेद जंगी किताबें है अन्यथा कुछ नहीं। इस सम्बन्ध में कुछ उदाहरण यहाँ वेदों से दिए जाते है ....ज़रा देखिये
(1) हे शत्रु नाशक इन्द्र! तुम्हारे आश्रय में रहने से शत्रु और मित्र सही हमको ऐश्वर्य्दान बताते हैं |६| यज्ञ को शोभित करने वाले, आनंदप्रद, प्रसन्नतादायक तथा यज्ञ को शोभित करने वाले सोम को इन्द्र के लिए अर्पित करो |१७| हे सैंकड़ों यज्ञ वाले इन्द्र ! इस सोम पान से बलिष्ठ हुए तुम दैत्यों के नाशक हुए. इसी के बल से तुम युद्धों में सेनाओं की रक्षा करते हो |८| हे शत्कर्मा इन्द्र ! युद्धों में बल प्रदान करने वाले तुम्हें हम ऐश्वर्य के निमित्त हविश्यांत भेंट करते हैं |९| धन-रक्षक,दू:खों को दूर करने वाले, यग्य करने वालों से प्रेम करने वाले इन्द्र की स्तुतियाँ गाओ. (ऋग्वेद १.२.४)
(२) हे प्रचंड योद्धा इन्द्र! तू सहस्त्रों प्रकार के भीषण युद्धों में अपने रक्षा-साधनों द्वारा हमारी रक्षा कर |४| हमारे साथियों की रक्षा के लिए वज्र धारण करता है, वह इन्द्र हमें धन अथवा बहुत से ऐश्वर्य के निमित्त प्राप्त हो.(ऋग्वेद १.३.७)
(३) हे संग्राम में आगे बढ़ने वाले और युद्ध करने वाले इन्द्र और पर्वत! तुम उसी शत्रु को अपने वज्र रूप तीक्षण आयुध से हिंसित करो जो शत्रु सेना लेकर हमसे संग्राम करना चाहे. हे वीर इन्द्र ! जब तुम्हारा वज्र अत्यंत गहरे जल से दूर रहते हुए शत्रु की इच्छा करें, तब वह उसे कर ले. हे अग्ने, वायु और सूर्य ! तुम्हारी कृपा प्राप्त होने पर हम श्रेष्ठ संतान वाले वीर पुत्रादि से युक्त हों और श्रेष्ठ संपत्ति को पाकर धनवान कहावें.(यजुर्वेद १.८)
(४) हे अग्ने तुम शत्रु-सैन्य हराओ. शत्रुओं को चीर डालो तुम किसी द्वारा रोके नहीं जा सकते. तुम शत्रुओं का तिरस्कार कर इस अनुष्ठान करने वाले यजमान को तेज प्रदान करो |३७| यजुर्वेद १.९)
(५) हे व्याधि! तू शत्रुओं की सेनाओं को कष्ट देने वाली और उनके चित्त को मोह लेने वाली है. तू उनके शरीरों को साथ लेती हुई हमसे अन्यत्र चली जा. तू सब और से शत्रुओं के हृदयों को शोक-संतप्त कर. हमारे शत्रु प्रगाढ़ अन्धकार में फंसे |४४|
(६)हे बाण रूप ब्राहमण ! तुम मन्त्रों द्वारा तीक्ष्ण किये हुए हो. हमारे द्वारा छोड़े जाने पर तुम शत्रु सेनाओं पर एक साथ गिरो और उनके शरीरों में घुस कर किसी को भी जीवित मत रहने दो.(४५) (यजुर्वेद १.१७)
(यहाँ सोचने वाली बात है कि जब पुरोहितों की एक आवाज पर सब कुछ हो सकता है तो फिर हमें चाइना और पाक से डरने की जरुरत क्या है इन पुरोहितों को बोर्डर पर ले जाकर खड़ा कर देना चाहिए उग्रवादियों और नक्सलियों के पीछे इन पुरोहितों को लगा देना चाहिए फिर क्या जरुरत है इतनी लम्बी चौड़ी फ़ोर्स खड़ी करने की और क्या जरुरत है मिसाइलें बनाने की)
अब जिक्र करते है अश्लीलता का :-वेदों में कैसी-कैसी अश्लील बातें भरी पड़ी है,इसके कुछ नमूने आगे प्रस्तुत किये जाते हैं (१) यां त्वा .........शेपहर्श्नीम || (अथर्व वेद ४-४-१) अर्थ : हे जड़ी-बूटी, मैं तुम्हें खोदता हूँ. तुम मेरे लिंग को उसी प्रकार उतेजित करो जिस प्रकार तुम ने नपुंसक वरुण के लिंग को उत्तेजित किया था.
(२) अद्द्यागने............................पसा:|| (अथर्व वेद ४-४-६) अर्थ: हे अग्नि देव, हे सविता, हे सरस्वती देवी, तुम इस आदमी के लिंग को इस तरह तान दो जैसे धनुष की डोरी तनी रहती है
(३) अश्वस्या............................तनुवशिन || (अथर्व वेद ४-४-८) अर्थ: हे देवताओं, इस आदमी के लिंग में घोड़े, घोड़े के युवा बच्चे, बकरे, बैल और मेढ़े के लिंग के सामान शक्ति दो
(४) आहं तनोमि ते पासो अधि ज्यामिव धनवानी, क्रमस्वर्श इव रोहितमावग्लायता (अथर्व वेद ६-१०१-३) मैं तुम्हारे लिंग को धनुष की डोरी के समान तानता हूँ ताकि तुम स्त्रियों में प्रचंड विहार कर सको.
(५) तां पूष...........................शेष:|| (अथर्व वेद १४-२-३८) अर्थ: हे पूषा, इस कल्याणी औरत को प्रेरित करो ताकि वह अपनी जंघाओं को फैलाए और हम उनमें लिंग से प्रहार करें.
(६) एयमगन....................सहागमम || (अथर्व वेद २-३०-५) अर्थ: इस औरत को पति की लालसा है और मुझे पत्नी की लालसा है. मैं इसके साथ कामुक घोड़े की तरह मैथुन करने के लिए यहाँ आया हूँ.
(७) वित्तौ.............................गूहसि (अथर्व वेद २०/१३३) अर्थात: हे लड़की, तुम्हारे स्तन विकसित हो गए है. अब तुम छोटी नहीं हो, जैसे कि तुम अपने आप को समझती हो। इन स्तनों को पुरुष मसलते हैं। तुम्हारी माँ ने अपने स्तन पुरुषों से नहीं मसलवाये थे, अत: वे ढीले पड़ गए है। क्या तू ऐसे बाज नहीं आएगी? तुम चाहो तो बैठ सकती हो, चाहो तो लेट सकती हो.
(अब आप ही इस अश्लीलता के विषय में अपना मत रखो और ये किन हालातों में संवाद हुए हैं। ये तो बुद्धिमानी ही इसे पूरा कर सकते है ये तो ठीक ऐसा है जैसे की इसका लिखने वाला नपुंसक हो या फिर शारीरिक तौर पर कमजोर होगा तभी उसने अपने को तैयार करने के लिए या फिर अपने को एनर्जेटिक महसूस करने के लिए किया होगा या फिर किसी औरत ने पुरुष की मर्दानगी को ललकारा होगा) तब जाकर इस प्रकार की गुहार लगाईं हो.
आओ अब जादू टोने पर थोडा प्रकाश डालें : वैदिक जादू-टोनों और मक्कारियों में किस प्रकार साधन प्रयोग किये जाते थे, इस का भी एक नमूना पेश है :
यां ते.......जहि || (अथर्व वेद ४/१७/४)
अर्थात : जिस टोने को उन शत्रुओं ने तेरे लिए कच्चे पात्र में किया है, जिसे नीले, लाल (बहुत पके हुए) में किया है, जिस कच्चे मांस में किया है, उसी टोने से उन टोनाकारियों को मार डाल.
सोम पान करो : वेदों में सोम की भरपूर प्रशंसा की गई है. एक उदाहरण "हे कम्यवार्षेक इन्द्र! सोमभिशव के पश्चात् उसके पान करने के लिए तुम्हें निवेदित करता हूँ यह सोम अत्यंत शक्ति प्रदायक है, तुम इसका रुचिपूर्वक पान करो." (सामवेद २(२) ३.५)
संतापक तेज : सामवेद ११.३.१४ में अग्नि से कहा गया है "हे अग्ने ! पाप से हमारी रक्षा करो. हे दिव्य तेज वाले अग्ने, तुम अजर हो. हमारी हिंसा करने की इच्छा वाले शत्रुओं को अपने संतापक तेज से भस्म कर दो."
सुनते है,देखते नहीं : ऋग्वेद १०.१६८.३-३४ में वायु (हवा) से कहा गया है : "वह कहाँ पैदा हुआ और कहाँ आता है? वह देवताओं का जीवनप्राण, जगत की सबसे बड़ी संतान है. वह देव जो इच्छापूर्वक सर्वत्र घूम सकता है. उसके चलने की आवाज को हम सुनते है किन्तु उसके रूप को देखते नहीं."
इन मक्कारियों के विषय में आप क्या कहना चाहेंगे जरुर लिखे .....?.................क्रमश:
नोट : मेरा किसी की भावनाओं को ठेस पहुचाने का मकसद नहीं है और ना ही मैं किसी को नीचा दिखाना चाहता हूँ मैंने तो बस वही लिखा है जो वेदों में दर्ज है अगर किसी भाई को शक हो तो वेदों में पढ़ सकता है आप मेरे मत से सहमत हों ये जरुरी नहीं है और मैं आपके मत से सहमत होऊं ये भी जरुरी नहीं है. ब्लॉग पढने के लिए धन्यवाद.
http://bit.ly/A26nps
http://bit.ly/A26nps
लेखक: विनोद होसलेवाला
अश्लीलता और जादू टोन सम्बन्धी जो बाते ऊपर बताई गई है वे मोर्ख्तापूर्ण है...अगर वेदों को सही तरीके से जानना है तो केवल और केवल महर्षि दयानंद सरस्वती का भाष्य पढ़े आपके ज्ञान चक्षु खुल जायेंगे...
ReplyDeleteएक भी वेद मंत्र ऐसा दिखाएँ जिसमें भद्दापन हो या चारों वेदों में से एक भी अश्लील प्रसंग निकल कर दिखा दें | ग्रिफिथ या मैक्स मूलर के अनुवादों पर मत जाइए – वे मूलतः धर्मांतरण के विषाणु ही थे | शब्दों के अर्थ सहित किसी भी वेद मंत्र को अशिष्ट क्यों माना जाए ? – इसका कारण बताएं | अब तक एक भी ऐसा मंत्र कोई नहीं दिखा सका | ज्यादा से ज्यादा, लोग सिर्फ़ कुछ नष्ट बुद्धियों के उलजुलूल अनुवादों की नक़ल उतार कर रख देते हैं, यह जाने बिना ही कि वे इस तरह के बेतुके अर्थों पर पहुंचे कैसे ?
ReplyDeleteसभी की स्पष्टता के लिए – चारों वेदों में किसी प्रकार की अभद्रता, अवैज्ञानिकता या अतार्किकता का लवलेश भी नहीं है|
अगर आप इस देश को शास्त्रों के अनुसार चालाओ गे तो. सारे देश में हाहाकार मच जाएगा
Delete1. जहां एक पुरष कई स्त्रियां रख सकता था दसरथ की तीन रानियां थी, पांडू की दो मद्वि और कुंती , अर्जुन की सुभद्रा और द्रोपदी, किर्शन की तो सोलह हजार कही जाती है
2. एक स्त्री कई पति थे द्रोपदी के पांच पति थे
3.अर्जुन ने अपनी बहिन के साथ शादी की सुभद्रा जी किरसन की बहिन और कुंती किर्शन की बुआ थी
4.गोतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का बलात्कार करने वाले इंद्र को कोई सजा नहीं दी गई बलिक अहिल्या का त्याग कर दिया थी ऋषि ने
5.शिव की गोरी, पर्वर्ति पत्निय थी
इन सब नियमों और कार्यों को आज जायज माना जाए तो क्या होगा ???
अरे महोदय साहब ! अब गलत अर्थ निकाल रहे हैं ...... दशरथ की तीन शादियाँ होने का कारण था - संतान का न हो पाना ....अगर एक से ज्यादा शादी करने का नियम होता या सिद्धांत होता तो भगवन राम की भी 1 से ज्यादा शादी होती ....हिन्दू धर्म में एक से ज्यादा शादी का प्रावधान ही नही हैं .....और जहाँ तक भगवन श्री कृष्ण की बात हैं तो १६१०८ पत्नियाँ नही थी , दासियाँ थी ...किसी असुर ने १६००० रानियों का अपहरण कर लिया था तो जब भगवन श्री कृष्ण ने उन सब को चंगुल से निकला तो स्त्रियों ने कहा की हमें अब कोई स्वीकार नही करेगा , इसीलिए भगवन श्री कृष्ण ने सहर्ष उनकी सहायता के लिए उन्हें स्वीकार किया था और १६१०८ अलग अलग रूप बनाये थे ..... और सभी रानियों के साथ एक अलग अलग रूप होता था ...कभी कोई दूसरा रूप किसी में मिश्रित नही हुआ ... पहले के समय में स्त्री को कोई पुरुष ले जाता या अपहरण कर लिया जाता तो कोई उनसे शादी नही करता था , इसीलिए भगवन ने उनपर कृपस्वरूप उन्हें स्वीकार किया था , अपनी महल में जगह दी थी ...!
Deleteहिन्दुओ में एक पति - एक पत्नी की ही प्रथा है , थी और रहेगी ....! हम सब अपने भगवानो के कृत्यों का आदर करते हैं ...उनको तोड़ -मरोड़कर खुद ,ज्यादा आजादी पाने के लिए एक से ज्यादा पत्नी रखने का ढोंग नही करते !!
इसीलिए कहा जाता है की अगर आपको हिन्दू धर्म को समझना है तो यह जरूरी है की आप किसी गुरु की शरण में जाये ....स्कंद्पुरण में भी लिखा है , मनुष्य चाहे चरों वेद पढ़ ले , अध्यात्म से सम्बंधित सारे ग्रन्थ पढ़ ले लेकिन फिर भी गुरु के बिना ज्ञान नही मिलता ... लेकिन आजकल तो गुरुओ और साधू संतो के प्रति हिन् भावना से देखा जाता है तो कोई गुरु का महत्त्व नही समझता ....
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ....
ab zara droupdi ke baare me bhi bata do ;
DeleteEk Pati aur Ek Patni ka concept to samajh liya
Ab zara Ek patni 5 pati ka concept bhi samjha do
Kunti ne 4 bachho ko char aadmiyon se sambhog karke kyun janam diya
Dristrasta , pandu aur Vidur kaise bhai the, Ram khud niyog se paida huve the..
तू चुतिया बन चुका है हम नही हैं
Deleteसब कुछ पढ़ समझ कर ही पोस्ट कि गई है अब जबरदस्ती थोड़ी ही है कि तैरी सिखी वाड़ी हम भी बोले
तू चुतिया बन चुका है हम नही हैं
Deleteसब कुछ पढ़ समझ कर ही पोस्ट कि गई है अब जबरदस्ती थोड़ी ही है कि तैरी सिखी वाड़ी हम भी बोले
किस बच्चे से वेद पढ़े है | http://www.onlineved.com/ कभी तो सच्ची बाते लिखा करो |
Deleteसज्जनो हिंदी साहित्य और संस्कृत साहित्य अलंकारों, छंदों और प्रयायवाची शब्दों में होता है जिसमे एक ही शब्द के अनेक अर्थ और अनेक भाव होता है सिर्फ हिंदी साहित्य एक ऐसा साहित्य होता है जिसके अर्थो और भावो को एक अच्छा जानकर साहित्यकार ही समाज सकता है. हिन्दू धर्म में जितने भी वेद लिखे गए है वो संस्कृत साहित्य में लिखे गए है जिसमे श्लोक संस्कृत में लिखे गए है जिनके अर्थो और भावो को समझाना बहुत ही कठिन है. ओच्छी मानसिकता वाले लोग साहित्य के जानकर होकर भी उस साहित्य के अर्थ और भावो का अलग ही अर्थ लगाएंगे उसमे अश्लीलता ही खोजेंगे क्योकि व्यक्ति में जितनी बुद्धि होती है वह उतना ही सोच सकता है उससे ज्यादा नहीं
ReplyDeleteप्रजापति का अपनी दुहिता (बेटियो) से सम्बन्ध.
ऋग्वेद १/१६४/३३ और ऋग्वेद ३/३१/१ में प्रजापति का अपनी दुहिता (पुत्री) उषा और प्रकाश से सम्भोग की इच्छा करना बताया गया हैं जिसे रूद्र ने विफल कर दिया जिससे की प्रजापति का वीर्य धरती पर गिर कर नाश हो गया.
इन मंत्रो के अश्लील अर्थो को दिखाकर विधर्मी लोग वेदों में पिता-पुत्री के अनैतिक संबंधो पर व्यर्थ आक्षेप करते हैं.
अर्थ - प्रजापति कहते हैं सूर्य को और उसकी दो पुत्री उषा (प्रात काल में दिखने वाली लालिमा) और प्रकाश हैं. सभी लोकों को सुख देने के कारण सूर्य पिता के सामान हैं और मान्य का हेतु होने से पृथ्वी माता के सामान हैं. जिस प्रकार दो सेना आमने सामने होती हैं उसी प्रकार सूर्य और पृथ्वी आमने सामने हैं और प्रजापति पिता सूर्य मेघ रूपी वीर्य से पृथ्वी माता पर गर्भ स्थापना करता हैं जिससे अनेक औषिधिया आदि उत्पन्न होते हैं जिससे जगत का पालन होता हैं. यहाँ रूपक अलंकार हैं जिसके वास्तविक अर्थ को न समझ कर प्रजापति की अपनी पुत्रियो से अनैतिक सम्बन्ध की कहानी गढ़ की गयी.
रूपक अलंकार का सही प्रयोग इन्द्र अहिल्या की कथा में भी नहीं हुआ हैं.
इन्द्र अहिल्या की कथा का उल्लेख ब्राह्मण ,रामायण, महाभारत, पूरण आदि ग्रंथो में मिलता हैं जिसमें कहा गया हैं की स्वर्ग का राजा इन्द्र गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या पर आसक्त होकर उससे सम्बोघ कर बैठता हैं. उन दोनों को एकांत में गौतम ऋषि देख लेते हैं और शाप देकर इन्द्र को हज़ार नेत्रों वाला और अहिल्या को पत्थर में बदल देते हैं. अपनी गलती मानकर अहिल्या गौतम ऋषि से शाप की निवृति के लिया प्रार्थना करती हैं तो वे कहते हैं की जब श्री राम अपने पाव तुमसे लगायेगे तब तुम शाप से मुक्त हो जायोगी.
यहाँ इन्द्र सूर्य हैं, अहिल्या रात्रि हैं और गौतम चंद्रमा हैं. चंद्रमा रूपी गौतम रात्रि अहिल्या के साथ मिलकर प्राणियो को सुख पहुचातें हैं. इन्द्र यानि सूर्य के प्रकाश से रात्रि निवृत हो जाती हैं अर्थात गौतम और अहिल्या का सम्बन्ध समाप्त हो जाता हैं.
सही अर्थ को न जानने से हिन्दू धर्म ग्रंथो की निंदा करने से विधर्मी कभी पीछे नहीं हटे इसलिए सही अर्थ का महत्व आप जान ही गए होंगे.
मित्र-वरुण और उर्वशी से वसिष्ठ की उत्पत्ति
ऋग्वेद ७.३३.११ के आधार पर एक कथा प्रचलित कर दी गयी की मित्र-वरुण का उर्वशी अप्सरा को देख कर वीर्य सखलित हो गया , वह घरे में जा गिरा जिससे वसिष्ठ ऋषि पैदा हुए.
ऐसी अश्लील कथा से पढने वाले की बुद्धि भी भ्रष्ट हो जाती हैं.
इस मंत्र का उचित अर्थ इस प्रकार हैं .अथर्व वेद ५/१८/१५ के आधार पर मित्र और वरुण वर्षा के अधिपति यानि वायु माने गए हैं , ऋग्वेद ५/४१/१८ के अनुसार उर्वशी बिजली हैं और वसिष्ठ वर्षा का जल हैं. यानि जब आकाश में ठंडी- गर्म हवाओं (मित्र-वरुण) का मेल होता हैं तो आकाश में बिजली (उर्वशी) चमकती हैं और वर्षा (वसिष्ठ) की उत्पत्ति होती हैं.
लिंग का अर्थ होता है प्रमाण. वेदों और वेदान्त में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आया है. सूक्ष्म शरीर 17 तत्त्वों से बना है. शतपथ ब्राह्मण-5-2-2-3 में इन्हें सप्तदशः प्रजापतिः कहा है. मन बुद्धि पांच ज्ञानेन्द्रियाँ पांच कर्मेन्द्रियाँ पांच वायु. इस लिंग शरीर से आत्मा की सत्ता का प्रमाण मिलता है.
वेदों के अश्लील अर्थ कर वेदों में सामान्य जन की आस्था को किस प्रकार कुछ मूर्खो ने नुकसान पहुचाया हैं इसका यह साक्षात् प्रमाण हैं.
Brahman dharm granth me ekdam ashirlil or gandgi bhari padi hi aisa ghatiya ganda kratya krne vale hi gyaan de hi hi joki khud hi gandi mansikta ke log hi jise aaj bhi dekha ja sakta hi gandi mansikta ke brahmanvadiyo ko jo aaj bhi sadhilu dhongi pakhandi bnakar mahilao ko apna shikar bna unka balatkar krte hi. Manushya ki pahchan uske karmo se hoti hi or jo uski pahchan hoti hi vah chhipti nhi hi jaisa ki gandi mansikta ke brahmanvadiyo ka jo unka vastvik charitra hi. Aaj ka moolniwasi bahujan samaj padha-lika hi murkh nhi or vo brahmanvadi balatkari uresian ka ki ashirlilta se bhalibhanti purn roop se parichit hi ki kon log ghatiya mansikta or gandi mansikta ke ocche log hi or unke grantho me kya likha hi vo tumhe btane ki jaroorat nhi vo moolniwasi bahujan khud jaanta hi hi uresian brahmanvadiyo ke bare me ki ye log Videshi ghusspaithiye hi jo hazaro saal phle bharat me ghuss aaye the or bharat me gandgi failayi. Moolniwasi bahujan samaj brahmanvadiyo se bhali bhanti or purn roop se parichit hi ye apna gyaan apne anusar apna gyan dena ap apne tak simit rkhe. Moolniwasi bahujan samaj phle anpadh the the kyonki brahmanvadiyo ke bharat me kabja krne ke baad unhe shiksha se vanchit rkha gya tha or unhe jo batate maan lete the pr aaj ka moolniwasi bahujan shikshit hi pratyek chizo ko bhali bhanti janta hi kisme gandgi hi or unhe hazaro saal se kaise murkh banaya ja rha tha. Andhvishwas or pakhandwad ke naam pr or hindu-muslmaan ke naam pr. sath hi moolniwasi bahujan samaj ko bhi gyaat ho gya hi or Vedo-purano me kya likha hi usko bhi bhali-bhanti jaante hi or samajhte hi shikshit hi murkh nhi. Vedo-purano me kya ghatiya likha hua hi or uska bhed khulne pr uspr kaise parda dala ja rha hi uska apne anusar btakar brahmanvadiyo dwara joki unka khud ka likha hua aisa adbhut ghatiya gyaan hi. Ye 21st century hi or aaj ka moolniwasi bahujan padha-likha shikshit hi or pratyek chizo ko bhali bhanti janta or samajhta hi or uska anuvaad krna jaanta hi. Vedo-purano me jo likha hua hi ghatiya kratya ke bare me vo ekdam reality hi jiska jikra Dr. Ambedkar ne apni pustak "The Riddles in Hinduism" me Vedo-purano ki real sacchai anuvaad sahit ki hi or bhi Bahujan Mahapursho ne bhi kiya hi jinko padhna hi padh sakta hi inn brahmanvadiyo ka kaam hi moolniwasi bahujan samaj ke logo ko murkh banana jo din-raat krte rhte hi apne ghatiya kratya ke upar parda dalane ke liye ki moolniwasi bahujan samaj isi prakar murkh bna rhe or inki sacchai na janne paye. Isliye apne anusar gyaan dete rhte hi. Aap khud padhe apko khud pta chal jaayega or apni buddhi ka prayog kre.
Deleteबहुत सही कहा भाई !
ReplyDeleteबहुत सही कहा भाई !
ReplyDeletewww.onlineved.com Sahi bhashy padhe ...
ReplyDeleteहिंदुत्व के सभी वर्गों में स्वीकृत की गई, धर्म की सार्वभौमिक व्याख्या, मनुस्मृति (६। ९२) में प्रतिपादित धर्म के ११ लक्षण हैं – अहिंसा, धृति (धैर्य), क्षमा, इन्द्रिय-निग्रह, अस्तेय (चोरी न करना), शौच (शुद्धि), आत्म- संयम, धी: (बुद्धि), अक्रोध, सत्य, और विद्या प्राप्ति
ReplyDeleteवेदों में जाति व्यवस्था का नामोनिशान तक नहीं है| फिर भी डॉ.अम्बेडकर ने वेदों की अकारण आलोचना की, उनको नष्ट करने की बात कही, उनके महत्त्व को अंगीकार नहीं किया| बौध्द होकर भी उन्होंने ऐसा ही किया है| उन्होंने बौध्द-शास्त्रों की और अपने गुरु की अवज्ञा की है, क्योंकि बौध्द शास्त्रों में महात्मा बुध्द ने वेदों और वेदज्ञों की प्रशंसा करते हुए धर्म में वेदों के महत्त्व को प्रतिपादित किया है|
ReplyDeleteन उच्चावचं गच्छति भूरिपत्र्वो |’’ (सुत्तनिपात २९२)
अर्थात्-महात्मा बुध्द कहते हैं-‘जो विद्वान् वेदों से धर्म का ज्ञान प्राप्त करता है, वह कभी विचलित नहीं होता|’
विद्वा च सो वेदगू नरो इध, भवाभवे संगं इमं विसज्जा | सो वीतवण्हो अनिघो निरासो, अतारि सो जाति जरांति ब्रूमीति ॥ (सुत्तनिपात १०६०) अर्थात्-‘वेद को जाननेवाला विद्वान् इस संसार में जन्म और मृत्यु की आसक्ति का त्याग करके और इच्छा, तृष्णा तथा पाप से रहित होकर जन्म-मृत्यु से छूट जाता है
अक्सर बुद्ध मत के समर्थक ओर नास्तिक अम्बेडकरवादी सनातन धर्म पर अंधविश्वास का आरोप लगाते है ,ओर खुद को अंधविश्वास रहित बताते बताते नही थकते है बुद्धो में हीनयान,महायान ,सिध्यान ,वज्रयान नाम के कई सम्प्रदाय है इन सभी में अंधविश्वास आपको मिल जायेगा
ReplyDeleteबुद्धो में भूत ,पिशाच के बारे में अंध विश्वास :- एक समय की बात है कि मुर्रा नाम की एक भूतनी ने भेष बदल कर बुद्ध से प्रेम का इकरार किया लेकिन बुद्ध ने मना कर दिया ,,उसने नृत्य ,श्रृंगार ,रूप आदि से बुद्ध को लुभाने की खूब कोसिस की लेकिन बुद्ध ने उसकी एक न मानी ..तब क्रोधित मुर्रा भूतनी ने बुद्ध पर आक्रमण किया लेकिन उसके सारे हमले निष्फल हो जाते है ..फिर वो भूतनी अपने भूत प्रेतों के टोले के साथ आक्रमण करती है ..लेकिन बुद्ध पर इन सबका कोई प्रभाव नही होता है और फिर सभी भूत और भूतनिया बुद्ध के आगे झुक जाती है ..और बुद्ध इन्हें मोक्ष प्रदान करते है .. अब इस काल्पनिक कहानी से निम्न प्रश्न उठते है :- क्या बुद्ध मत भूत ,प्रेत को मानता है .. क्या कोई आत्मा किसी के प्रति आकर्षित हो सकती है .. क्या आत्मा भूत आदि सम्भोग की इच्छा कर सकते है ..
इसी तरह प्रेतवत्तु सूक्त के अनुसार जब कोई व्यक्ति तपस्या करते भिक्षु को कंकड़ मारता है तो वो प्रेत बन जाता है ..इसी सूक्त में एक और प्रेतनी का वर्णन है जो कि गंगा के पास पानी पीने जाती है और उसे नदी का पानी लहू दिखने लगता है
बुद्ध मत में वज्रयान नाम की एक शाखा है .जिसमे तरह तरह के तंत्र मन्त्र होते है ..ये तरह तरह के देवी देवताओ विशेष कर तारा देवी को पूजते है … ये लोग वाम्मार्गियो की तरह ही बलि और टोटके करते है ..इन्ही में भेरवी चक्र होता है ..जिसमे ये लोग शराब और स्त्री भोग करते है ..जिसे ये सम्भोग योग कहते है ..इनका मानना है की विशेस तरह से स्त्री के साथ योन सम्बन्ध बनाने से समाधी की प्राप्ति होती है ..इस तरह का पाखंड इन बुद्धो में भरा है ..एक महान बौद्ध राहुल सांस्कृत्यायन के अनुसार भारत में बुद्ध मत का नाश इसी वज्रयान के कारण हुआ था ………………….. आज भी थाईलैंड ,चाइना आदि वज्रयान बुद्ध विहारों पर कई नाबालिक लडकियों का कौमार्य इन दुष्ट भिक्षुओ द्वारा तोडा जाता है ……
महात्मा बुद्ध के वेदों पर उपदेश –
ReplyDeleteविद्वा च वेदेहि समेच्च धम्मम | न उच्चावच्चं गच्छति भूरिपज्जो || ( सुत्तनिपात श्लोक २९२ )
अर्थात महात्मा बुद्ध कहते हैं – जो विद्वान वेदों से धर्म का ज्ञान प्राप्त करता है, वह कभी विचलित नहीं होता |
विद्वा च सो वेदगु नरो इध भवाभावे संगम इमं विसज्जा | सो वीततन्हो अनिघो निरासो अतारि सो जाति जरान्ति ब्रूमिति || ( सुत्तनिपात श्लोक १०६० )
अर्थात वेद को जानने वाला विद्वान इस संसार में जन्म या मृत्यु में आसक्ति का परित्याग करके और तृष्णा तथा पापरहित होकर जन्म और वृद्धावस्थादि से पार हो जाता है ऐसा मैं कहता हूँ |
ने वेदगु दिठिया न मुतिया स मानं एति नहि तन्मयो सो | न कम्मुना नोपि सुतेन नेयो अनुपनीतो सो निवेसनूसू || ( सुत्तनिपात श्लोक ८४६ )
अर्थात वेद को जानने वाला सांसारिक दृष्टि और असत्य विचारादि से कभी अहंकार को प्राप्त नही होता | केवल कर्म और श्रवण आदि किसी से भी वह प्रेरित नहीं होता | वह किसी प्रकार के भ्रम में नहीं पड़ता |
यो वेदगु ज्ञानरतो सतीमा सम्बोधि पत्तो सरनम बहूनां | कालेन तं हि हव्यं पवेच्छे यो ब्राह्मणो पुण्यपेक्षो यजेथ || ( सुत्तनिपात श्लोक ५०३ )
अर्थात जो वेद को जानने वाला,ध्यानपरायण, उत्तम स्मृति वाला, ज्ञानी, बहुतों को शरण देने वाला हो जो पुण्य की कामना वाला यग्य करे वह उसी को भोजनादि खिलाये |
उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि भीमराव अम्बेडकर भगवान बुद्ध के उपदेशों के विरोधी थे | अब बुद्धजीवी यह विचार करें कि भगवान बुद्ध के उपदेशों का विरोध करने वाला व्यक्ति बौद्ध कैसे हो सकता है ??? भगवान बुद्ध के नाम से दलाली करने वालों ! अगर साहस है तो खुलकर कहो तुम किसके अनुयायी हो – वैदिक धर्म का पालन करने वाले भगवान बुद्ध के अथवा पाश्चात्य संस्कृति का पालन करने वाले भीमराव अम्बेडकर के ???
अंबेडकरवादी बौद्ध नही बल्कि बौद्ध समाज के नाम पर कलंक है
ReplyDeleteअंबेडकरवादी अपने आप को चाहे जितना भी बौद्धिष्ट होने का दावा पेश करे किन्तु वे बौद्ध के नाम पर कलंक से ज्यादा कुछ नही है और आने वाले भविष्य मे अगर बौद्ध को बदनामी मिलती है तो इसका श्रेय केवल अंबेडकरवादियो को जाएगा |
गौतम से लेकर अब भी समाज मे जितने भी बौद्धाचार्य है उनसे से कोई भी वेद से मुह नही मोड़ता वेद को सभी स्वीकार करते है | जब गौतम बुद्ध ने वेद का अध्ययन किया तो उन्होने पाया की वेद के नाम पर समाज मे बहुत कुछ गलत हो रहा है अतः उन्हे ऐसे लोगो की निन्दा की जो वेद के नाम पर गलत करते है | इसके बाद बुद्ध उपनी शिक्षा मे कहते है “ जो लोग वेद से धर्म का ज्ञान प्राप्त करते है वे कभी विचलित नही होते ” --- प्रमाण सुत्तनिपात 292 | गौतम बुद्ध को वेद मे इतनी विश्वास था लेकिन ये अंबेडकरवादी ??? वेद का नाम सुनते ही जैसे इनकी .... मर जाती है | वेद का नाम सुनते ही अंबेडकरवादी अपना मनगढ़ंत इतिहास और मूर्खता से परिपूर्ण आक्षेप , अपने महापुरूषो और क्रान्तिकारीयो को बदनाम करने मे कोई कसर नही छोड़ते है | एक तरफ तो गौतम बुद्ध है जितना वेद मे इतना आस्था है और दुसरी तरफ ये अंबेडकरवादी जो वेद के नाम से चिढ़ते है ??? दोनो मे सच्चा कौन है गौतम बुद्ध या अंबेडकरवादी ???
गौतम बुद्ध के जो मुख्य सिद्धान्त है उनका नाम है -- १) चार आर्य सत्य , २) आर्य अष्टागिंक मार्ग
यानी गौतम बुद्ध भी आर्य शब्द का अर्थ श्रेष्ठ लेते है जो की वास्तविक है | अब अंबेडकरवादी आर्य शब्द का अर्थ बाहरी शत्रु लेते है | एक अंबेडकरवादी Jeetendra Awachar की आर्य शब्द की व्याख्या आपलोगो के सामने रख रहा हूँ ---- आर्य शब्द ' अरि ' इस शब्द से बना है , अरि = शत्रु यानी आर्य का अर्थ बाहरी आक्रमक शत्रु है |
अब मुझे कोई अंबेडकरवादी ये बताए की गौतम बुद्ध का बताया हुआ सत्य है या अंबेडकरवादियो का ?????
अगर गौतम बुद्ध गलत है और अंबेडकरवादी का अर्थ सही है तो गौतम बुद्ध के सिद्धान्त का अर्थ हुआ
१) चार आर्य सत्य = चार बाहरी आक्रमक शत्रु सत्य
२) आर्य अष्टागिंक मार्ग = बाहरी आक्रमक शत्रु अष्टागिंक मार्ग
ये बताओ सच्चा कौन गौतम बुद्ध या अंबेडकरवादी ???
अंबेडकरवादी बौद्ध नही बल्कि बौद्ध के नाम पर कलंक है ये ब्राह्मण विरोधी, नास्तिक ( वेद निन्दक ) , कुतर्की, हठी , दुराग्रही, सत्य विरोधी और मूर्खता भरी इतिहास से परिपूर्ण है |
jis manubhav ne ye post likha hai, kripya apni education ki details bhi dale....ye anurodh hai mera....
ReplyDeleteवेद नही यह भीमस्मृति की गंदगी है।
ReplyDeleteवेद मे ऐसा कुछ नही है।
वेद नही यह भीमस्मृति की गंदगी है।
ReplyDeleteवेद मे ऐसा कुछ नही है।
वेदों की पवित्रता का बखान करने वाले मित्र
ReplyDeleteबस इतना बता दीजिए कि अगर वेद इतने ही पवित्र है तो आम जनमानस से इन्हें दूर क्यो किया गया
रामायण पाठ महाभारत महीनों हर जगह होते है लेकिन वेदों का पाठ क्यो नही पढ़ाया जाता कही मन्दिरो तक को आरती तक ही सीमित क्यो किया
वेदों की जो मनगढ़ंत मूर्खतापूर्ण व्याख्या की गई है वो भागवताचार्य किस धर्म के लोग थे और ऐसी गलत व्याख्या क्यो कर रहे थे जबकि कोई शुद्र भारत मे अब तक भगवताचार्य सायद नही एकआध को छोड़कर
बुद्ध तो भगवान बिष्णु के अवतार थे परन्तु भविष्य पुराण में उन्हें राक्षस क्यों कहा गया पता नही शायद वे पूर्व जन्म मे राक्षस होंगे। मतलब भविष्य पुराण रामायण से भी पुराणी होगी, जिसमें अकबर तक के जीवनी का जिक्र मिलता हैं । चलों मान लिया की बुद्ध राक्षस ही थे लेकिन बाद मे तो वे "विष्णु" के अवतार हुए फिर उनके सिद्धांतो पर हम हिन्दु लोग क्यों नही चलते..? क्या कलियुग में हम भगवान विष्णु अवतार "बुद्ध" से भी महान हो गये हैं, जो भगवान विष्णु "मत्स्यावतार" तो मछली को पकाकर खा जाते हैं, भगवान विष्णु "कछुआवतार" तो कछुआ को भी भक्षन कर जाते हैं, भगवान विष्णु "सुअरअवतार" तो सुअर को भी काटकर बली चढ़ा देते हैं, भगवान विष्णु "बुद्ध" अवतार तो हम हिन्दु बुद्ध के नियमों का अनादर करते नही थकते बल्कि तथाकथित भविष्यपुराण बना कर उन्हें "राक्षस" घोसीत करने पर लगे हुए हैं । अब ते हम इतने महान लोग हो चुके हैं कि भगवान का भुत, भविष्य और वर्तमान मानों हमारी ही हाथों मे हैं ।
ReplyDeleteएक तरफ कहते हैं भगवान विष्णु "बुद्ध" अवतार थे और दुसरे तरफ "बुद्ध" के सिद्धाँतों पर चलने वाले भक्तो का हलाल करने के फिराक मे लगे हुए हैं । यहा तक की तो अब "राम" के बताये हुए मार्ग भी भूल गये हैं लोग तभी तो आज भ्रष्टाचार आतांक और घुसखोरी बढ़ गया हैं । हमारा देश तो हिन्दु प्रधान हैं क्योंकि यहा हिन्दुओं की बहुलता हैं तो फिर सारी मुसीबतों का जड़ कौन...? क्या घुसखेरी,दबंगई,गुण्डागर्दी, भ्रष्टाचार इत्यादि करना हमे राम ने सिखाया है...? यदि नही तो क्या सचमुच हम राम भक्त हैं...?
भगवान विष्णु के अवतार राम और कृष्ण भक्त तो नही बन पाये और न ही विष्णु अवतार बुद्ध भक्त ही बन पाये..? यहा तक तो विष्णु अवतार मछली, कछुआ और सुअर को भी हलाल करने से नही कतराते। धरती पर अब कोई राक्षस और दानव भी नही सभी मानव ही मानव हैं फिर भी मानव के साथ भेद-भाव व शोषण हो रहा हैं...?
क्या मुट्टी भर मुस्लिम, सिख, बुद्ध, कबीरपंथि इसका जिमेवार हैं या ढाका भर हिन्दु...? मुझे नही पता! लेकिन ये सब दशा देखकर मुझे हिन्दु होने पर "गर्व" महसुश नही होता! आजकल मैं खुद से चेहरा छुपाता हुआ मेहसूश करता हूँ । क्योंकि हमारे धार्मिक भाई चोरी, घुसखोरी, भ्रष्टाचार इत्यादि करके हमें धर्म सिखाने पर आमदे हुए हैं ।
बढ़िया जी शानदार जानकारी
ReplyDeleteChina ke log boudh bnne ke chakkar me budha bn gye,112 parkar ka meat khane lge aur covid19 ka aavishkar kr diya,jiska fayda aaj puri duniya utha rhi hai.
ReplyDeleteAlso read आजकल हिन्दू भावनाओं को आहत करने का चलन क्यों बन रहा है? here https://hi.letsdiskuss.com/why-is-the-practice-of-hurting-hindu-sentiments-nowadays
ReplyDeleteSbse achha hmara hindu dharm h jo hme ek pti ek ptni k Alava praee mahila pr glt njr dalna bhi gunah btati h
ReplyDeleteWaise achhe bure log duniya me sbhi jati dharm me milenge lekin whi krna chahiye hm sbko jo Kary krne k bad kbhi shrminda na hona pre ya hmare dil aatma ko bura na lge . Hr hr mhadev jai shiv guru.
Nmh shivay nmh shivay.
Shiv hi aatma h aur shiv hi Prmatma h.
Shiv hi ajnma h aur shiv hi srijankrta h aur shiv hi prlykrta h
Aao chle shiv ki or.
ReplyDeleteVrtmaan me 90% log adhunik duniya me kho chuka h aur apne manav jivan k manjil ko bhul chuka h hmara yh manav rup 84 lakh yoni jnam lene k bad yh manav insan rup me hm aate h aur hm insan me anya jivo se kyi guna achhe gun quality hmare andar Prmatma god gift me dekar bhejte h taki hm achhe krm ,dharm, aur bhakti krke us Prmatma k chrno me hmesha k liye me phuch jae. Lekin dekha jae to hm Insaan ees rangin duniya ka gulam bn chuke h aur apne mnjil ko pane ki jgh kya kr rhe h ...
Eesliye bndhuo ap chahe Prmatma k jis rup ko bhi mante h achha h bt dil se Mano schi bhakti kro dikhava dhong na kro aur aur achhe stykrm krne ki koshish krte rhna chahiye
Shmbhve shree guruve nmh.
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Prmatma Shiv mere guru h
Aur ap bhi unhe apna guru man skte h .
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