Friday, August 5, 2011

भगत सिंह के खिलाफ गवाही देने वाले को सम्मान


जब दिल्ली में भगत सिंह पर अंग्रेजों की अदालत में मुकदमा चला तो भगत सिंह के खिलाफ गवाही देने को कोई तैयार नहीं हो रहा था। बड़ी मुश्किल से अंग्रेजों ने दो लोगों को गवाह बनने पर राजी कर लिया। इनमें से एक था शादी लाल और दूसरा शोभा सिंह...

गोपाल राय

शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के बलिदान को शायद ही कोई भुला सकता है। आज भी देश का बच्चा-बच्चा उनका नाम इज्जत और फख्र के साथ लेता है, लेकिन दिल्ली सरकार उनके खिलाफ गवाही देने वाले एक भारतीय को मरणोपरांत ऐसा सम्मान देने की तैयारी में है जिससे उसे सदियों नहीं भुलाया जा सकेगा। यह शख्स कोई और नहीं, बल्कि औरतों के विषय में भौंडा लेखन कर शोहरत हासिल करने वाले लेखक खुशवंत सिंह के पिता ‘सर’ शोभा सिंह हैं और दिल्ली सरकार विंडसर प्लेस का नाम उसके नाम पर करने का प्रस्ताव ला रही है।
जेल में भगत सिंह : अब गद्दारों को सम्मान

भारत की आजादी के इतिहास को जिन अमर शहीदों के रक्त से लिखा गया है, जिन शूरवीरों के बलिदान ने भारतीय जन-मानस को सर्वाधिक उद्वेलित किया है, जिन्होंने अपनी रणनीति से साम्राज्यवादियों को लोहे के चने चबवाए हैं, जिन्होंने परतन्त्रता की बेड़ियों को छिन्न-भिन्न कर स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया है तथा जिन पर जन्मभूमि को गर्व है, उनमें से एक थे — भगत सिंह।

यहां तक कि जवाहरलाल नेहरू ने भी अपनी आत्मकथा में यह वर्णन किया है– भगत सिंह एक प्रतीक बन गया। सैण्डर्स के कत्ल का कार्य तो भुला दिया गया लेकिन चिह्न शेष बना रहा और कुछ ही माह में पंजाब का प्रत्येक गांव और नगर तथा बहुत कुछ उत्तरी भारत उसके नाम से गूंज उठा। उसके बारे में बहुत से गीतों की रचना हुई और इस प्रकार उसे जो लोकप्रियता प्राप्त हुई वह आश्चर्यचकित कर देने वाली थी।

जब दिल्ली में भगत सिंह पर अंग्रेजों की अदालत में मुकदमा चला तो भगत सिंह के खिलाफ गवाही देने को कोई तैयार नहीं हो रहा था। बड़ी मुश्किल से अंग्रेजों ने दो लोगों को गवाह बनने पर राजी कर लिया। इनमें से एक था शादी लाल और दूसरा शोभा सिंह। मुकद्दमे में भगत सिंह को उनके दो साथियों समेत फांसी की सजा मिली।

इधर दोनों को वतन से की गई इस गद्दारी का इनाम भी मिला। दोनों को न सिर्फ सर की उपाधि दी गई बल्कि और भी कई दूसरे फायदे मिले। शोभा सिंह को दिल्ली में बेशुमार दौलत और करोड़ों के सरकारी निर्माण कार्यों के ठेके मिले जबकि शादी लाल को बागपत के नजदीक अपार संपत्ति मिली। आज भी श्यामली में शादी लाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब कारखाना है। यह अलग बात है कि शादी लाल को गांव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा भी नहीं दिया। शादी लाल के लड़के उसका कफ़न दिल्ली से खरीद कर लाए तब जाकर उनका अंतिम संस्कार हो पाया था।

शोभा सिंह अपने साथी के मुकाबले खुशनसीब रहे । उन्हें और उनके पिता सुजान सिंह (जिनके नाम पर सुजान सिंह पार्क है) को राजधानी दिल्ली में हजारों एकड़ जमीन मिली और खूब पैसा भी। उनके बेटे खुशवंत सिंह ने शौकिया तौर पर पत्रकारिता शुरु कर दी और बड़ी-बड़ी हस्तियों से संबंध बनाना शुरु कर दिया। सर सोभा सिंह के नाम से एक चैरिटबल ट्रस्ट भी बन गया जो अस्पतालों और दूसरी जगहों पर धर्मशालाएं आदि बनवाता तथा मैनेज करता है। आज दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास बाराखंबा रोड पर जिस स्कूल को मॉडर्न स्कूल कहते हैं वह शोभा सिंह की जमीन पर ही है और उसे सर शोभा सिंह स्कूल के नाम से जाना जाता था। खुशवंत सिंह ने अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर अपने पिता को एक देश भक्त और दूरद्रष्टा निर्माता साबित करने का भरसक कोशिश की।

खुशवंत सिंह ने खुद को इतिहासकार भी साबित करने की कोशिश की और कई घटनाओं की अपने ढंग से व्याख्या भी की। हालाँकि खुशवंत सिंह ने भी माना है कि उनके पिता शोभा सिंह 8 अप्रैल 1929 को उस वक्त सेंट्रल असेंबली मे मौजूद थे जहां भगत सिंह और उनके साथियों ने धुएं वाला बम फेका था। बकौल खुशवंत सिह, बाद में शोभा सिंह ने यह गवाही तो दी, लेकिन इसके कारण भगत सिंह को फांसी नहीं हुई। शोभा सिंह 1978 तक जिंदा रहा और दिल्ली की हर छोटे बड़े आयोजन में बाकायदा आमंत्रित अतिथि की हैसियत से जाता था। हालांकि उसे कई जगह अपमानित भी होना पड़ा लेकिन उसने या उसके परिवार ने कभी इसकी फिक्र नहीं की। खुशवंत सिंह का ट्रस्ट हर साल सर शोभा सिंह मेमोरियल लेक्चर भी आयोजित करवाता है जिसमे बड़े-बड़े नेता और लेखक अपने विचार रखने आते हैं, बिना शोभा सिंह की असलियत जाने (य़ा फिर जानबूझ कर अनजान बने) उसकी तस्वीर पर फूल माला चढ़ा आते हैं।

अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और खुशवंत सिंह की नज़दीकियों का ही असर कहा जाए कि दोनों एक दूसरे की तारीफ में जुटे हैं। प्रधानमंत्री ने बाकायदा पत्र लिख कर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से अनुरोध किया है कि कनॉट प्लेस के पास जनपथ पर बने विंडसर प्लेस नाम के चौराहे (जहां ली मेरीडियन, जनपथ और कनिष्क से शांग्रीला बने तीन पांच सितारा होटल हैं) का नाम सर शोभा सिंह के नाम पर कर दिया जाए। अब देखना है कि एक गद्दार का यह महिमामंडन कब और कैसे होता है।


2 comments:

  1. चोर-चोर मौसेरे भाई, और चोर अपना फ़र्ज कभी नहीं भूलते है।

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  2. you have open the eyes by narrating this act ,other wise it is not known to most of the Indian and Delhi residents in particular.
    Thanks,
    ajay singh'"kalP

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