Wednesday, July 25, 2012

भारतीय युवाओं पर चीन की युवतियों के साथ छेड़खानी का आरोप

भारतीय मर्दो को हुआ क्या है?
http://newsforums.bbc.co.uk/ws/hi/thread.jspa?forumID=15857

चीन सरकार के निमंत्रण पर बीजिंग गए भारतीय युवाओं के एक दल के कुछ सदस्यों पर अपने ही दल और चीन की युवतियों के साथ छेड़खानी का आरोप लगाया गया है. बीबीसी से बातचीत करते हुए दल में शामिल महिलाओं ने बिना नाम बताने की शर्त पर इस बात की पुष्टि की है लेकिन खेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस मामले को हल्की फुल्की और मस्ती की बात कह कर उन नौजवानों का बचाव किया.

क्या महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करना महज़ हल्की-फुल्की और मस्ती की बात कह कर टाली जा सकती है.

आख़िर भारतीय पुरूषों की इस तरह की हरकत किस बात का संकेत है- सामाजिक और सांस्कृतिक दिवालिएपन का?

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प्रकाशित: 7/23/12 5:30 PM GMT

टिप्पणियाँ

टिप्पणियों की संख्या:58
सभी टिप्पणियाँ जैसे जैसे वो आती रहती हैं

Added: 7/25/12 4:02 PM GMT
देश गर्त में डूबा जा रहा है. इस देश के लड़कों ने ना अपने देश की लड़कियों को कुछ समझा है ना बाहर वाली लड़कियों को समझेंगे. इन्हें बस लड़कियों को बेइज़्ज़त करने से मतलब है.
neha roorkee

Added: 7/25/12 2:09 PM GMT
आपका प्रश्न ही गलत है। मर्द वही है जो संयम का परिचय दे। मर्द दूसरों के दर्द को समझता है। ऐसे वहशी तो नामर्द होते हैं। और बेचारे नामर्दों को लक्ष्य करके आप कैसे पूछेगें कि नामर्दों को हुआ क्या है? क्या आप उस व्यक्ति या वस्तु को ऐसा पूछ कर अपनी अल्पज्ञता का परियय नहीं दे रहे हैं। (यह व्यंग्य मात्र है। मेरा उद्देश्य आपको अल्पज्ञ कहना नहीं है।)



साथ ही आप यह भी न समझें कि दोष इकतरफा है। आग महिलाओं की तरफ भी जलती है (अधिकांशतया) वरना पर्वत में धुंआ संभव नहीं। यत्र-यत्र धूमस्तत्र तत्र वह्निः।
hemant singh yadav alwar

Added: 7/25/12 12:52 PM GMT
मुझे लगता है कि ऐसे लोगों को ये समझ नहीं कि तब क्या होगा जब ऐसा उनके अपने परिवार के साथ हो. उन्हें पता ही नहीं कि भद्रता क्या है. मुझे लगता है कि वे मानसिक तौर पर बीमार और कमज़ोर हैं.
CA Sanjeev Kumar Allahababd

Added: 7/25/12 12:27 PM GMT
ये घटना निश्चित ही भारतीयोँ को शर्मसार करने वाली है, इन लोगों को मानसिक विकलांग कहना ज्यादा सही होगा। हाँ,ये ठीक है कि नैतिक मूल्योँ का पतन हो रहा है, समाज का आधुनिकीकरण की जगह पाश्चात्यीकरण हो रहा है लेकिन कुछ युवकोँ के समूह द्वारा की गई बदतमीजी पर सभी भारतीय युवकोँ को सामाजिक-सांस्कृतिक रुप से दिवालिया नहीँ कहा जा सकता, दया तो हमेँ खेलमंत्रालय के उस अधिकारी पर आनी चाहिये जिसको ये छोटी मोटी घटना लगती है। जब आप देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हो वहाँ ऐसी हरकतोँ पर कड़े दण्ड की व्यवस्था होनी चाहिये।
अमित भारतीय जालौन (उo प्रo) भारत

Added: 7/25/12 11:53 AM GMT
हमें इस अपराध के लिए कड़े नियम बनाने होंगे वरना ये दिन-ब-दिन बढ़ता जाएगा. ये बहुत क्रूर कृत्य है.
riya aligarh

Added: 7/25/12 11:35 AM GMT
स्व० पं० रूपनारायण त्रिपाठी जी के शब्दों में,

भाइयों की कमी फिर न होगी तुम्हें, पहले चलना तो सीखो बहन की तरह.

डा ० उत्सव कुमार चतुर्वेदी, क्लीवलैंड , अमेरिका
डा ० उत्सव कुमार चतुर्वेदी क्लीवलैंड , अमेरिका

Added: 7/25/12 10:32 AM GMT
वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि वे महिलाओं की तरक्की को सहन नहीं कर सकते. और ऐसा करके वे महिलाओं को हतोत्साहित करना चाहते हैं.
piyusha raipur

Added: 7/25/12 10:26 AM GMT
हमारी संस्कृति ये नहीं कहती है. हमारा देश सबसे बेहतर देश में गिना जाता था. लेकिन हम जब अपनी इज़्ज़त की रक्षा नहीं कर पाए तो इससे ज़्यादा शर्मिंदगी क्या हो सकती है.
S. Kumar Delhi

Added: 7/25/12 10:13 AM GMT
मैं उन पतित लोगों की तरफ़दारी नहीं कर सकता लेकिन आज की नारी प्रतिस्पर्धा सी करती फिरती हैं.
PRAVEEN SINGH Mumbai

Added: 7/25/12 10:04 AM GMT
कानून की नर्मी से बढ़ी है बेशर्मी.
Himanshu prabhakar palamu jharkhand

Added: 7/25/12 9:54 AM GMT
उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए-ज़फ़ा क्या है?
हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है?

दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें।
सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें।।
Laraib Akram new delhi

Added: 7/25/12 9:47 AM GMT
ये पूरे भारत के लिए शर्मनाक है. इसे रोकने के लिए सबसे पहले इनकी जड़ों तक पहुँचना होगा. माता-पिता और टीवी इसका मुख्य कारण हैं.
Mohd Anwar Kannauj

Added: 7/25/12 9:30 AM GMT
सारा दोष एक पक्ष के ऊपर डाल देना कुछ अन्याय सा लगता है. बहन लोग मुझे क्षमा करें पर ऐसे वस्त्र पहनने से परहेज करें जो ये संकेत देता हो - ऑन सेल.
Bheemal Dildar Nagar Mumbai

Added: 7/25/12 8:46 AM GMT
मैं इसके लिए हमारे मीडिया को जिम्मेदार मानता हूँ। पिछले दो वर्षो में हमारे प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रोनिक मीडिया,फिल्मों में, धारावाहिकों में अश्लीलता बढ़ी है जिसमें युवावर्ग को लगता है कि महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करना महज़ हल्की-फुल्की बात है।
गौरव पुजारी अहमदाबाद

Added: 7/25/12 6:00 AM GMT
भारतीय समाज इस समय संस्कारहीनता के दौर से गुजर रहा है। पहले लोग असामाजिक कृत्य करने से इसलिए बचते थे कि सर्वत्र थू-थू होने लगती थी। उन्हें गर्दन झुकाकर लोगों की नजर से बचना पड़्ता था। लेकिन अब कहां है शर्मोहया। उन लोगों के चेहरे पर शिकन तक नहीं दिखती, आत्मग्लानि का तो सवाल ही नहीं। इन मुद्दों पर सरकार से कोई उम्मीद करना मूर्खता है। वहां तो ऐसे लोगों का बचाव करने वाले पहले से ही बैठे हैं। हमारे जनप्रतिनिधि खुद ही ऐसे कृत्य करते हैं; अनुकरणीय उदाहरण थोड़े ही पेश करते हैं।
योगेन्द्र जोशी वाराणसी भारत
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