साभार ......आर रवि जी....
पहले तो ये जान लो कि शुद्र और अछूतों में अंतर हैं ....जिन्हें हम शुद्र कहते हैं सिन्धु सभ्यता में भी दस्तकार या कारीगर होते थे कपड़ा बुनना, खेती के औजार बनाना , गहने बनाना, बर्तन बनाना इत्यादी इनके काम होते थे ...सिन्धु सभ्यता में वर्ण या जाति नहीं थी ..बल्कि एक तिर्कोनी व्यवस्था थी जिसमे राजकीय वर्ग, व्यापारी वर्ग और दस्तकार या कारीगर वर्ग के अलावा किसान और मजदूर वर्ग था ..पुजारी वर्ग का कही अता पता इस सभ्यता में नहीं मिलता
संधू सभ्यता के नगर दुर्गो में बटे हुए थे ....सभ्यता का दायरा बहुत बड़ा था जो आज के अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों से लेकर पाकिस्तान, काश्मीर, राजस्थान,हरियाणा,पंजाब , गुजरात और पश्चिम उत्तर प्रदेश का कुछ हिस्सों तक फैला था ..इस विस्तृत क्षेत्र में सभ्यता के बहुत सारे दुर्ग या नगर थे .हडपा , मोहन जोदड़ो , कालीबंगल लोथल ,बनवाली ना जाने कितने ही दुर्ग या नगर थे राजकीय वर्ग का काम इन दुर्गो की व्यवस्था देखना होता थी ना कि आर्यों की तरह आपस में युद्ध ...
समस्त भूमि राज्य की थी जिसपर किसानो और मजदूरों से राज्य खेती से पैदावार और पशुओ को पालने का काम करवाता था और दस्तकार का पेशा भी स्वतंत्र नहीं था ..व्यापारी वर्ग अपनी कार्यशालाओं में विभिन्न प्रकार के काम करवाता था ..
इसी वक्त यूरोप के कुछ दबंग और साहसी प्रवर्ती के लोग खाना बदोशो की भाँती स्थायी जगह पर टिकने के लिए दुनिया में जगह जगह घूम रहे थे क्योकि यूरोप में सर्दी का प्रकोप बहुत ज्यादा हो गया था ..वे यूरोप के दक्षिण भागो की और बढ़ने लगे ..ये ही लोग भारत में आकर आर्य कहलाये .ये बहुत लड़ाकू और निडर प्रवर्ती के लोग थे तथा अपने साथ कुत्तो घोड़ो , भेड़ बकरी, गाय और बैल लेकर चलते थे ..जब ये ताशकंद के पास आये इस यूरोपीय लोगो का समूह दो भागो में बात गया,,एक भाग भारत की तरफ बढ़ा जो भारत में आर्य कहलाया तो दुसरा समूह इरान की और बढ़ गया जो वहाँ जाकर पारसी कहलाया ..
उस वक्त सिन्धु सभ्यता के लोग बड़े शान्ति प्रिये ढंग से एक जगह रहकर व्यापार और उद्योग धन्दो के साथ साथ खेती और पशुपालन में लगे हुए थे ..आर्यों ने इसी सिन्धु सभ्यता के वासियों पर पर अपना आक्रमण और अधिपत्य जमाया ..सिन्धु वासियों ने नदियों पर बाँध बनाकर नहरे निकालने का काम उस वक्त सिख लिया था जो खेतो की सिचाई करती थी ..आर्यों ने इन्ही बांधो को तोड़कर सिन्धु वासियों के क्षेत्र को जल मग्न कर दिया था जिन्होंने बाद में इसको प्रलय का नाम दिया .
सिन्धु सभ्यता पर आर्यों द्वारा पूर्ण रूप से अधिपत्य कर लेने के बाद सभ्यता के राजकीय वर्ग और व्यापारी वर्ग को ओने अधीन कर लिया औरइनके समस्त दुर्गो और व्यापार पर अपना अधिपत्य जमा लिया ...एक समझोते के अनुसार इन राजकीय वर्ग और व्यापारी वर्ग को दुर्गो के बाहर रहने की अनुमति उस शर्त पर दी गई कि वे दुर्गो से बाहर रहते हुए दुर्गो की साफ सफाई और जानवरों और शत्रुओ से दुर्गो की रख्सा करेगे ...ये ही दुर्गो या नगरो से बाहर रहने राजकीय और व्यापारी वर्ग कालांतर में अछूत कहलाया ..
उस वक्त आर्यों के दो ही वर्ण थे एक लड़ाकू और दुसरे बुद्धीजीवी चुकी आर्य अपने आप को श्रेष्ठ सनाझते थे और दस्कारी और उद्ध्योग धन्दो से महरूम थे इसलिए कारीगरों और दसक्रारो के लिए शुद्र वर्ण बनाया जो हर प्रकार से सेवा करेगा और इनके कार्यो को देखने के लिए और अद्ध्योगो को सुव्चारु रूप से चलाने का देखने के लिए व्यापारी वर्ग का उदय हुआ ..इस तरह स्थायी रूप से बसने पर आर्यों का समाज चार वर्णों में विभक्त हो गया ..बुद्धीजीवी वर्ग जो ब्राह्मण कहलाया , राजकीय काम संभालने वाला और दुर्गो की रक्षा करने वाला क्षत्रीय वर्ग हुआ ..सिधु सभ्यता के बहुत बड़े भूभाग में फैले व्यापार को अपने हाथ में लेने वाला वैश्य वर्ग कहलाया और सिन्धु सभ्यता में जो पहले से ही कारीगर और दस्तकार थे उन्हें समाज में मिला लिया गया मगर उनको जाति में बाँट दिया गया जैसे सुनार, कुम्हार,बधाई, दर्जी आदि और इस समाज को शुद्र नाम दिया गया ..आप समझ गए होगे कि शुद्र और अछूतों में क्या अंतर हैं...रामराज आने तक ये ही ववस्था चल रही थी ..अछूत अभी भी गाव के बाहर ही रहते थे और शुद्र गाव में रहकर आर्यों की बिभिन्न र्रोपो में सेवा करते थे ..
कही शुद्र पढ़लिखकर समझदार और अधिकारों के प्रति सचेत ना हो जाए इसलिए शुद्रो के लिए शिक्षा के सभी द्वार बंद कर दिए गए ...यहाँ तक की अगर शुद्रो को शिक्षा के शब्द भी सुनाई दे तो उनके कानो में शीशा भर दिया जाए ..क्योकि शिक्षा ही ऐसी चीज थी जी हर अन्धकार को भगा दती हैं ..
और रही बात वाल्मिकी जी की तो वे ना तो शुद्र थे और ना ही अछूत जबकि शम्भूक जी अछूत नहीं शुद्र थे और जाति से एक बढई थे इसलिए उनको शिक्षा पाने की सजा दी गई ..रही महाभारत की बात तो ये जान लो इस वक्त तक आते आते राजा और सम्राट बहुत शक्तिशाली और निरंकुश हो गए थे वे किसी भी जाति की स्त्री से शादी कर सकते थे या उसको या अपनी रानी (रखैल )बनाकर रखा लेते थे ...अगर स्त्री शुद्र जाति की हैं तो इनसे होने वाली संतान शुद्र ही कहलाती रही मगर दुसरे शुद्रो की भाँती ये नए शुद्र राजा की संतान होने के कारण शिक्षा प्राप्त कर सकते थे ...महाभारत पढ़िए वेड व्यास जी भी इसी तरह की संतान थे चुकी राजकीय ववस्था से पैदा हुए थे इसलिए शिक्षा पाने का अधिकार मिल गया था ..इसलिए महाभारत की रचना कर सके
पहले तो ये जान लो कि शुद्र और अछूतों में अंतर हैं ....जिन्हें हम शुद्र कहते हैं सिन्धु सभ्यता में भी दस्तकार या कारीगर होते थे कपड़ा बुनना, खेती के औजार बनाना , गहने बनाना, बर्तन बनाना इत्यादी इनके काम होते थे ...सिन्धु सभ्यता में वर्ण या जाति नहीं थी ..बल्कि एक तिर्कोनी व्यवस्था थी जिसमे राजकीय वर्ग, व्यापारी वर्ग और दस्तकार या कारीगर वर्ग के अलावा किसान और मजदूर वर्ग था ..पुजारी वर्ग का कही अता पता इस सभ्यता में नहीं मिलता
संधू सभ्यता के नगर दुर्गो में बटे हुए थे ....सभ्यता का दायरा बहुत बड़ा था जो आज के अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों से लेकर पाकिस्तान, काश्मीर, राजस्थान,हरियाणा,पंजाब , गुजरात और पश्चिम उत्तर प्रदेश का कुछ हिस्सों तक फैला था ..इस विस्तृत क्षेत्र में सभ्यता के बहुत सारे दुर्ग या नगर थे .हडपा , मोहन जोदड़ो , कालीबंगल लोथल ,बनवाली ना जाने कितने ही दुर्ग या नगर थे राजकीय वर्ग का काम इन दुर्गो की व्यवस्था देखना होता थी ना कि आर्यों की तरह आपस में युद्ध ...
समस्त भूमि राज्य की थी जिसपर किसानो और मजदूरों से राज्य खेती से पैदावार और पशुओ को पालने का काम करवाता था और दस्तकार का पेशा भी स्वतंत्र नहीं था ..व्यापारी वर्ग अपनी कार्यशालाओं में विभिन्न प्रकार के काम करवाता था ..
इसी वक्त यूरोप के कुछ दबंग और साहसी प्रवर्ती के लोग खाना बदोशो की भाँती स्थायी जगह पर टिकने के लिए दुनिया में जगह जगह घूम रहे थे क्योकि यूरोप में सर्दी का प्रकोप बहुत ज्यादा हो गया था ..वे यूरोप के दक्षिण भागो की और बढ़ने लगे ..ये ही लोग भारत में आकर आर्य कहलाये .ये बहुत लड़ाकू और निडर प्रवर्ती के लोग थे तथा अपने साथ कुत्तो घोड़ो , भेड़ बकरी, गाय और बैल लेकर चलते थे ..जब ये ताशकंद के पास आये इस यूरोपीय लोगो का समूह दो भागो में बात गया,,एक भाग भारत की तरफ बढ़ा जो भारत में आर्य कहलाया तो दुसरा समूह इरान की और बढ़ गया जो वहाँ जाकर पारसी कहलाया ..
उस वक्त सिन्धु सभ्यता के लोग बड़े शान्ति प्रिये ढंग से एक जगह रहकर व्यापार और उद्योग धन्दो के साथ साथ खेती और पशुपालन में लगे हुए थे ..आर्यों ने इसी सिन्धु सभ्यता के वासियों पर पर अपना आक्रमण और अधिपत्य जमाया ..सिन्धु वासियों ने नदियों पर बाँध बनाकर नहरे निकालने का काम उस वक्त सिख लिया था जो खेतो की सिचाई करती थी ..आर्यों ने इन्ही बांधो को तोड़कर सिन्धु वासियों के क्षेत्र को जल मग्न कर दिया था जिन्होंने बाद में इसको प्रलय का नाम दिया .
सिन्धु सभ्यता पर आर्यों द्वारा पूर्ण रूप से अधिपत्य कर लेने के बाद सभ्यता के राजकीय वर्ग और व्यापारी वर्ग को ओने अधीन कर लिया औरइनके समस्त दुर्गो और व्यापार पर अपना अधिपत्य जमा लिया ...एक समझोते के अनुसार इन राजकीय वर्ग और व्यापारी वर्ग को दुर्गो के बाहर रहने की अनुमति उस शर्त पर दी गई कि वे दुर्गो से बाहर रहते हुए दुर्गो की साफ सफाई और जानवरों और शत्रुओ से दुर्गो की रख्सा करेगे ...ये ही दुर्गो या नगरो से बाहर रहने राजकीय और व्यापारी वर्ग कालांतर में अछूत कहलाया ..
उस वक्त आर्यों के दो ही वर्ण थे एक लड़ाकू और दुसरे बुद्धीजीवी चुकी आर्य अपने आप को श्रेष्ठ सनाझते थे और दस्कारी और उद्ध्योग धन्दो से महरूम थे इसलिए कारीगरों और दसक्रारो के लिए शुद्र वर्ण बनाया जो हर प्रकार से सेवा करेगा और इनके कार्यो को देखने के लिए और अद्ध्योगो को सुव्चारु रूप से चलाने का देखने के लिए व्यापारी वर्ग का उदय हुआ ..इस तरह स्थायी रूप से बसने पर आर्यों का समाज चार वर्णों में विभक्त हो गया ..बुद्धीजीवी वर्ग जो ब्राह्मण कहलाया , राजकीय काम संभालने वाला और दुर्गो की रक्षा करने वाला क्षत्रीय वर्ग हुआ ..सिधु सभ्यता के बहुत बड़े भूभाग में फैले व्यापार को अपने हाथ में लेने वाला वैश्य वर्ग कहलाया और सिन्धु सभ्यता में जो पहले से ही कारीगर और दस्तकार थे उन्हें समाज में मिला लिया गया मगर उनको जाति में बाँट दिया गया जैसे सुनार, कुम्हार,बधाई, दर्जी आदि और इस समाज को शुद्र नाम दिया गया ..आप समझ गए होगे कि शुद्र और अछूतों में क्या अंतर हैं...रामराज आने तक ये ही ववस्था चल रही थी ..अछूत अभी भी गाव के बाहर ही रहते थे और शुद्र गाव में रहकर आर्यों की बिभिन्न र्रोपो में सेवा करते थे ..
कही शुद्र पढ़लिखकर समझदार और अधिकारों के प्रति सचेत ना हो जाए इसलिए शुद्रो के लिए शिक्षा के सभी द्वार बंद कर दिए गए ...यहाँ तक की अगर शुद्रो को शिक्षा के शब्द भी सुनाई दे तो उनके कानो में शीशा भर दिया जाए ..क्योकि शिक्षा ही ऐसी चीज थी जी हर अन्धकार को भगा दती हैं ..
और रही बात वाल्मिकी जी की तो वे ना तो शुद्र थे और ना ही अछूत जबकि शम्भूक जी अछूत नहीं शुद्र थे और जाति से एक बढई थे इसलिए उनको शिक्षा पाने की सजा दी गई ..रही महाभारत की बात तो ये जान लो इस वक्त तक आते आते राजा और सम्राट बहुत शक्तिशाली और निरंकुश हो गए थे वे किसी भी जाति की स्त्री से शादी कर सकते थे या उसको या अपनी रानी (रखैल )बनाकर रखा लेते थे ...अगर स्त्री शुद्र जाति की हैं तो इनसे होने वाली संतान शुद्र ही कहलाती रही मगर दुसरे शुद्रो की भाँती ये नए शुद्र राजा की संतान होने के कारण शिक्षा प्राप्त कर सकते थे ...महाभारत पढ़िए वेड व्यास जी भी इसी तरह की संतान थे चुकी राजकीय ववस्था से पैदा हुए थे इसलिए शिक्षा पाने का अधिकार मिल गया था ..इसलिए महाभारत की रचना कर सके
आपके ब्लॉग में सब बकवास लिखा है और कुछ नहीं है मन की कहाने अपने जुवानी ,,हा हा हा हा ,,,,,,
ReplyDeleteभारत वर्ष की लगातार अत्यन्त त्रुटिपूर्ण शिक्षा का ही ये कमाल है की हम अपने देश में ही अपने आप को विदेशी आक्रमणकारी की संज्ञा से संबोधित करते हैं जिस के कारण बहुत सारे लोग (और इसमें लगातार वृद्धि भी हो रही है) अपने को आर्य और कुछ को द्रविड़ बताते हैं और जिसके कारण उनके ह्रदय एक नही हो पाते हैं और वो अपने आप को अलग संस्कृति का मानते हैं ये बड़ी ही विकट और हास्यास्पद बात है कि काफी सारे दक्षिण भारतीय लोग अब भी उत्तरी भारतीय लोगो को आक्रमणकारी और अलग संस्कृति का समझते हैं और इनकी इस समझ में बहुत सारे नेता उत्तरी भारतीय लोग भी बढ़-चढ़ कर साथ देते हैं जिससे देश विखंडन कि और बढ़ रहा है। करीब १५० साल पहले ब्रिटिश शाशकों द्वारा बड़ी चालाकी से भारतीय शिक्षा में ये लिखवा दिया गया कि उत्तरी भारतीय लोग यहाँ के नही हैं मध्य एशिया से यहाँ पर आए हैं और उन्होंने यहाँ पर यहाँ के वास्तविक लोगो पर कब्जा कर लिया बाद में उनका साथ हमारे महा बेवकूफ और चरित्रहीन नेता जवाहर लाल नेहरू ने एक तर्कहीन महाबकवास किताब उन्ही की नक़ल से डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया लिख कर महांचापलूसी और बुद्दिहीनता का परिचय दिया। इस बात का आज कि पीडी पर बड़ा ही कुप्रभाव पड़ा है। उनके पास कोई भी प्रमाण नही है कि आर्य बाहर से आए हैं सिर्फ़ बेसिर-पैर कि बातों के अलावा। जैसे NCERT की पुस्तकों में लिखा है कि “आर्य पहले कहीं साउथ रूस से मध्य एशिया के मध्य में कही रहते थे क्युकी कुछ जानवरों के नाम जैसे dog, horse, goat (कुत्ता,घोडा , बकरी) आदि और कुछ पोधो के नाम पाइन, मेपल आदि जैसे शब्द सभी इंडो- यूरोपियन भाषाओं में एक जैसे हैं इससे ये पता लगता है कि आर्य नदियों और जंगलों से परिचित थे।
ReplyDeleteसब से पहले तो ये इंडो-यूरोपियन भाषा का कोई अस्तित्व नहीं है और विश्व की सभी भाषाओं में तुम्हे संस्कृत के शब्द मिल जायेंगे सभी भाषाओं के आदि में संस्कृत है जरा शोध करके तो देखो। खैर ये एकदम से बेसिर-पैर और अतार्किक बात है जो NCERT कि पुस्तकों में लिखी है भाषाई शब्द और यहाँ तक कि व्याकरण से इंग्लिश, ग्रीक, इटालिक अरेबिक , हिन्दी(संस्कृत) और विश्व की कई अन्य भाषाओं में एक जैसे शब्द पाए जाते हैं किंतु इससे ये तो सिद्ध नही होता और ना ही कोई प्रमाण मिलता कि इंग्लिशमैन,इटालियअब जरा एक बात अपनी बुद्दी से और अनुसंधान करके सोच कर बताओ जो सब कुछ वेदों में लिखा है और जो भी कुछ हमारे रीती रिवाज़ हैं और जो हमारी जीवन दर्शन का सिद्धांत है वो इस विश्व में कही भी नही है अगर आर्य बाहर से मध्य से आते तो उनके वहाँ भी तो तो कुछ प्रमाण होने चाहिए जबकि हमारी संस्कृति और उनमें धरती-आसमान का अन्तर दिखाई देता है। शायद मेरी बात को आप में से कुछ लोग स्वीकार नही करेंगे तो मैं यहाँ उनके लिये कुछ ब्रिटेनिका एनसाईक्लोपीडिया से-
ReplyDelete१) आर्यों में कोई गुलाम बनाने का कोई रिवाज़ नही था।
ReplyDeleteसमीक्षा - जबकि मध्य एशिया अरब देशो में ये रिवाज़ बहुत रहा है।
२) आर्य प्रारम्भ से ही कृषि करके शाकाहार भोजन ग्रहण करते आ रहें है।
समीक्षा - मध्य एशिया में मासांहार का बहुत सेवन होता है जबकि भारत में अधिकतम सभी आर्य या हिंदू लोग शाकाहारी हैं३) आर्यों ने किसी देश पर आक्रमण नहीं किया
समीक्षा- अधिकतम अपनी सुरक्षा के लिये किया है या फ़िर अधर्मियो और राक्षसों (बुरे लोगो) का संहार करने के लिये और लोगो को अन्याय से बचाने के लिये और शिक्षित करने के लिये किया है। इतिहास साक्षी है अरब देशो ने कितने आक्रमण और लौट-खसोट अकारण ही मचाई है।
४) आर्यों में कभी परदा प्रथा नही रही बल्कि वैदिक काल में स्त्रियाँ स्नातक और भी पढी लिखी होती थी उनका आर्य समाज में अपना काफी आदर्श और उच् स्थान था ( मुगलों के आक्रमण के साथ भारत के काले युग में इसका प्रसार हुआ था)
समीक्षा- जबकि उस समय मध्य एशिया या विश्व के किसी भी देश में स्त्रियों को इतना सम्मान प्राप्त नही था।
५)आर्य लोग शवो का दाह संस्कार या जलाते हैं जबकि विश्व में और बाकी सभी और तरीका अपनाते हैं।
समीक्षा - ना की केवल मध्य एशिया में वरन पूरे विश्व में भारतीयों के अलावा आज भी शवो को जलाया नही जाता।
६) आर्यों की भाषा लिपि बाएं से दायें की ओर है।
समीक्षा - जबकि मध्य एशिया और इरानियो की लिपि दायें से बाईं ओरहै
७)आर्यों के अपने लोकतांत्रिक गाँव होते थे कोई राजा मध्य एशिया या मंगोलियो की तरह से नही होता था।
समीक्षा - मध्य एशिया में उस समय इन सब बातो का पता या अनुमान भी नही था
८)आर्यों का कोई अपना संकीर्ण सिद्दांत या कानून नही था वरन उनका एक वैश्विक अध्यात्मिक सिद्दांत रहा है जैसे की अहिंसा, सम्पूर्ण विश्व को परिवार की तरह मानना।
समीक्षा -मध्य एशिया या शेष विश्व में ऐसा कोई सिद्दांत या अवधारणा नही है।
९)वैदिक या सनातन धर्म को कोई प्रवर्तक या बनाने वाला नहीं है जैसे की मोहम्मद मुस्लिमों का, अब्राहम ज्युष का या क्राईस्ट क्रिश्चियन का और भी सब इसी तरीको से।
गहरा विश्लेषण ।
Deleteसादर धन्यवाद
आप मेरा ब्लॉग पढ़े "आप हम और देश " सब पता चल जाएगा ,,आपका यह ब्लॉग सिर्फ समाज को तोड़ने की चेष्टा है और कुछ नहीं है ...सूद्र मेरे अपने सगे भाई जैसे है उन्हें हमसे अलग करने का निर्थक प्रयास किया जा रहा है कुछ संस्थाओं द्वारा !
ReplyDeletehttp://bit.ly/wI7Egm
DeleteSir,
Must read this link
Nageshwar singh Baghel ji... aap jo ye likh rahe hai in sub baato ka adhaar kya hai? bus vo bakbaas jo panditoi ne logo ko bebakoof basnane ko likhi thi ... aap ko me salah dunga ki evolution of earth ki documentry dekho, usme tub ka bhi hai jub manav nhi the... aur manavo ki pehli peedhi ke baare me bhi hai... hinduo ne sirf insaano ka khoon piya hai.. hindu hi essa gira hua dharam hai jo apne bhagwaan ko bhikhaari bana deata hai logo se daan lene ke liye ....
ReplyDeleteये किस महापुरुष के दिमाग की उपज है भाई,
ReplyDeleteतेरे जैसे चूतिये लोगो की वजह से हमने 950 सालो तक गुलामी की, जो अपने देश की संस्कृति से अनभिज्ञ है, उसे क्या कहूँ ? पहले इतीहास जान ले भाई, फीर बकवास करना
Tum jese log desh drohi hai jo esi anargal bate faila kar desh ki urja ko galat disha me barbad kar rahe hai
ReplyDeleteaadharhin tatthyo ke drava samaz aur hindu varg ko batane ki koshish kar rahe hai
tum log khud ki urja ko bekar kar rahe ho aur jinke khalap bol rahe ho unhe bhi in bata ka khandan karne ke liye apani urja aur shakti nasht karni padegi
aakhir me kitane hi tark do jhut jhut hota hai aur vijay satya ki hoti hai
isi upani urja ko desh ki samaz ki aur manavata ki bhalai ke liye lagao to manava ta ka bhala ho
kyoki lakh bedbhav ho kitani hi jati kitane hi dhar aur sampradaya me bati ho
aakhir ye manava jati hai to ek hi vyakti ki santan
kai dharm sanskriti aur kai desh astitva me aaye aur khatm ho chuke hai
aur kaiyo ke avashesh matra dharti ke andar milte hai kaiyo ke to ab avashesh bhi nahi milte
lekin manava tab bhi tha ab bhi ahai aur rahega
jab duniya naye naye Avishakar kar ke manava jati ko naye naye upahar de ke unke jivan ko saral sugam aur sashakt bana rahe hai
wahi tum jese desh drohi aur manav jati ke dushman ek abhinna samaz ke ek hisse ko hi bahar se aaye ke kutark dekar is desh ka samay aur urja ko ese vishaya me nasht kar rahe ho jiska labh na to unko milega jinke paksh me tumhare lekh hai aur na un ko jinake khilap hai
isse upje vivad se aur galat avadharana se ek abhinna samaz aapas me irsha se bhar jayega aur is desh ka vikas hone ke bajaye vinash ka bhagi banega
me ese tum jese lekhak ko manavata ks shatru hi manata hu
tum khud apane lakh ke labh aur usse desh samaz aur manava sabbhyata ko kya labh milega nahi bata sakte
lekin is samaz ko naye tarike se manghadant tark dekar jo samaj ko batane aur jo nafarat ka bij apane is ghatiya lekh se bo rahe ho ye bij jab ek bata vriksh hoga iske jahariye phal tumhari aur humari aane wali santano ko chakhne hi padenge
aur me kya kahu is blog ko likhane wale tum kisi bhi drishti se samajhadar nahi lagte