Sunday, September 18, 2011

वे सब बहुत नियमपूर्वक
रोज प्रार्थना करते थे
तौल में डंडी मारते थे
सफाई से जेब काट लेते थे
और अक्सर गला भी
वे सब परंपरागत पवित्रता के साथ
कुछ टेबल के ऊपर से
तो कुछ टेबल के नीचे से
लेते और देते थे
फिर टेबल पर टांगे पसार कर
नहीं लेने-देने वालों को
नागरिकता का मर्म समझाते
वे सब लोकतंत्र के हिमायती थे
वही न्याय थे, वहीं कानून
उनके पास कैमरों की ताकत थी
दो और दो को पांच नहीं
बाईस करने की अद्भुत ऐय्यारी थी
वे सब ब्रह्मा के मुख से जन्मे थे
राक्षसों का संहार करने के लिए
वे सब अपनी सोसायटी के
सबसे समझदार सिविल थे
और समूची जनता देशद्रोही

1 comment:

  1. वह दिन कब आएगा जब सभी मूलनिवासी एक साथ गाएँगे- 'हे मेरी हिंद भूमि ! मैं तेरी मुक्ति में तैनात हूँ.'

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