Friday, May 6, 2011

दलितों के प्रति हिंसा: एक नज़र


भारत में आज़ादी के बाद दलितों के लिए उत्पीड़न निरोधक क़ानून सहित कई प्रावधान और संरक्षण सरकारों ने तय किए. इसके बावजूद उनके उत्पीड़न की घटनाएं होती रही हैं.
देशभर में दलितों के प्रति हिंसा की घटनाएं हज़ारों की तादाद में हैं. इनमें से कुछ सामने आई हैं, कुछ दर्ज हुई हैं और कुछ चुपचाप सह ली गई हैं.
यहाँ पिछले कुछ दशकों में दलितों के प्रति हिंसा की अहम घटनाओं का एक लेखा-जोखा प्रस्तुत किया जा रहा है-
29 सितम्बर 2006- महाराष्ट्र के भंडारा ज़िले के खैरलांजी में उच्च जाति के एक व्यक्ति के ख़िलाफ़ गवाही देने के मामले में दो महिलाओं समेत चार दलितों की हत्या.
31 अगस्त 2005- हरियाणा के गोहाना में जाट समुदाय ने 20 से ज़्यादा दलितों के घर फूँक दिए.
आठ जुलाई 2004- मध्य प्रदेश के सिओनी ज़िले के भामरोला में एक ही परिवार की तीन महिलाओं से सामूहिक बलात्कार.
10 मार्च 2003-मध्य प्रदेश के मोरैना ज़िले में बलात्कार के बाद दलित लड़की को जिंदा जलाया.
15 अक्टूबर 2002-हरियाणा के झज़्जर शहर से कुछ दूर दुलिना गाँव में गाय को लेकर पाँच दलितों की हत्या.
25 जनवरी 1999- बिहार में जहानाबाद ज़िले के शंकरबीघा गाँव में जमींदारों की सेना ‘रणवीर सेना’ ने महिलाओं और बच्चों समेत 23 लोगों की हत्या की.
एक दिसम्बर 1997- बिहार के जहानाबाद ज़िले के लक्ष्मणपुर बाथे गाँव में कुख्यात रणवीर सेना ने 61 लोगों की निर्मम हत्या की. मारे गए लोगों में कई बच्चे और गर्भवती महिलायें भी शामिल थी.
1997- बिहार में पटना ज़िले के बेल्ची गाँव में दबंग जाति के कुर्मी लोगों ने 11 दलितों को जिंदा जलाया.
छह जून 1992- राजस्थान में भरतपुर ज़िले के कुम्हेर गाँव में जाट समुदाय के लोगों ने 17 जाटव युवाओं को जिंदा जला डाला. इन युवकों का सिर्फ़ यही क़सूर था कि उन्होंने सिनेमा हॉल की बालकनी में बैठकर फ़िल्म देखने की हिम्मत की थी.
छह अगस्त 1991- आंध्र प्रदेश के सुंदुर ज़िले में आठ दलितों की निर्मम हत्या. शवों के टुकड़े-टुकड़े कर बोरों में भरकर नहर में फेंक दिया गया.
14 फरवरी 1981- उत्तर प्रदेश में कानपुर शहर से कुछ दूर बेहमई गाँव में फूलन देवी में दलितों की हत्या का बदला लेते हुए 17 ठाकुरों और तीन अन्य को गोलियों से भून डाला.
25 दिसम्बर 1968- तमिलनाडु के किवेनमनी गाँव में उच्च जाति के जमींदारों ने 44 दलितों को जिंदा जलाया. जमींदारों के खेतों में काम करने वाले इन लोगों का क़सूर ये था कि उन्होंने मजदूरी बढाने की माँग की थी.

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