♦ प्रेस विज्ञप्ति, एआईबीएसएफ
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सोमवार को देर रात आयोजित एक कार्यक्रम में महिषासुर की शहादत को याद किया गया। यह वही, महिषासुर है, हिुदु मिथकों में जिसकी हत्या देवी दुर्गा द्वारा की जाती है। लार्ड मैकाले की जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित इस कार्यक्रम में वक्ताओं ने उत्तर भारत में प्रचलित हिंदू मिथकों की बहुजन दृष्टिकोण से पुनर्व्यख्या की जरूरत पर बल दिया। कार्यक्रम का आयोजन आल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंस फोरम (एआइबीएसएफ) और यूनाईटेड दलित स्टूडेंटस फोरम (यूडीएसएफ) ने किया। पिछले कई दिनों से जेएनयू प्रशासन इस कार्यक्रम में विभिन्न गुटों के बीच मारपीट की घटना को लेकर आशंकित था। कार्यक्रम सफलता पूर्वक संपन्न होने पर जेएनयू प्रशासन ने राहत की सांस ली है।
‘लार्ड मैकाले और महिषासुर : एक पुनर्पाठ’ नाम से आयोजित इस कार्यक्रम को संबांधित करते हुए प्रसिद्ध दलित चिंतक कंवल भारती ने कहा कि पराजितों का भी अपना इतिहास होता है, उसकी नये तरीके से व्याख्या की जरूररत है। महिषासुर न्यायप्रिय और प्रतापी राजा थे, जिनका वध आर्यों ने छल से करवाया था। उन्होंने कहा कि ‘असुर’ शब्द का अर्थ प्राणवान होता है लेकिन ब्राह्मणवाद के पैरोकारों ने परंपराओं, पात्रों समेत शब्दों का भी विकृतिकरण किया है। उन्होंने कहा कि दलितों के एक तबके ने दशहरा नहीं मनाने का फैसला बहुत पहले ही कर लिया था। दशहरा हो या होली, हिंदुओं के अधिकांश त्योहार बहुजन तबकों के नायकों की हत्याओं के जश्न हैं। कहीं हिरण्यकश्यप मारा जाता है तो कहीं महिषासुर। उन्होंने कहा कि अब ओबीसी तबके को हिंदुवादी पुछल्लों से मुक्त हो जाना चाहिए।
फारवर्ड प्रेस के मुख्य संपादक आयवन कोस्का ने पोस्टमार्डनिज्म के सबसे बडे उपकरण विखंडनवाद के हवाले से कहा कि हमारे नायक इतिहास के गर्त में दब गये हैं, उन्हें बाहर लाने की जरूररत है। हमें मिथकों के जाल में नहीं फंसना है, अगर हम ऐसा करते हैं तो हम उसी ब्राह्मणवाद का पोषण करेंगे। लार्ड मैकाले के योगादानों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें अंग्रेजी समर्थक रूप में गलत तरीके से प्रचारित किया जाता है। मैकाले का असली योगदान भारतीय दंड संहिता को निर्माण है, जिससे मनु का कानून ध्वस्त हुआ।
युद्धरत आम आदमी की संपादिका व सामाजिक कार्यकर्ता रमणिका गुप्ता ने कहा कि झारखंड में अभी भी ‘असुर’ नाम की जनजाति है, जिनकी संख्या 10 हजार के आसपास है। ये मूलत: लोहे संबंधित काम करने वाले लोग हैं, जिन्हें करमाली और लोहारा आदि नामों से भी जाना जाता है। ये असुर जातियां दुर्गा की पूजा नहीं करतीं। उन्होंने कहा कि हम एक विरोधाभासी समय में जी रहे हैं, एक ओर हम आधुनिक होने का स्वांग कर रहे हैं तो दूसरी तरफ अपनी मानसिकता में हम 16 वीं सदी से बाहर नहीं निकल रहे। उन्होंने मैकाले की भाषायी नीतियों का विरोध करते हुए कहा कि भारतीय दंड संहिता संबंधी योगदान के लिए लार्ड मैकाले को याद किया जाना चाहिए।
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सोमवार को देर रात आयोजित एक कार्यक्रम में महिषासुर की शहादत को याद किया गया। यह वही, महिषासुर है, हिुदु मिथकों में जिसकी हत्या देवी दुर्गा द्वारा की जाती है। लार्ड मैकाले की जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित इस कार्यक्रम में वक्ताओं ने उत्तर भारत में प्रचलित हिंदू मिथकों की बहुजन दृष्टिकोण से पुनर्व्यख्या की जरूरत पर बल दिया। कार्यक्रम का आयोजन आल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंस फोरम (एआइबीएसएफ) और यूनाईटेड दलित स्टूडेंटस फोरम (यूडीएसएफ) ने किया। पिछले कई दिनों से जेएनयू प्रशासन इस कार्यक्रम में विभिन्न गुटों के बीच मारपीट की घटना को लेकर आशंकित था। कार्यक्रम सफलता पूर्वक संपन्न होने पर जेएनयू प्रशासन ने राहत की सांस ली है।
‘लार्ड मैकाले और महिषासुर : एक पुनर्पाठ’ नाम से आयोजित इस कार्यक्रम को संबांधित करते हुए प्रसिद्ध दलित चिंतक कंवल भारती ने कहा कि पराजितों का भी अपना इतिहास होता है, उसकी नये तरीके से व्याख्या की जरूररत है। महिषासुर न्यायप्रिय और प्रतापी राजा थे, जिनका वध आर्यों ने छल से करवाया था। उन्होंने कहा कि ‘असुर’ शब्द का अर्थ प्राणवान होता है लेकिन ब्राह्मणवाद के पैरोकारों ने परंपराओं, पात्रों समेत शब्दों का भी विकृतिकरण किया है। उन्होंने कहा कि दलितों के एक तबके ने दशहरा नहीं मनाने का फैसला बहुत पहले ही कर लिया था। दशहरा हो या होली, हिंदुओं के अधिकांश त्योहार बहुजन तबकों के नायकों की हत्याओं के जश्न हैं। कहीं हिरण्यकश्यप मारा जाता है तो कहीं महिषासुर। उन्होंने कहा कि अब ओबीसी तबके को हिंदुवादी पुछल्लों से मुक्त हो जाना चाहिए।
फारवर्ड प्रेस के मुख्य संपादक आयवन कोस्का ने पोस्टमार्डनिज्म के सबसे बडे उपकरण विखंडनवाद के हवाले से कहा कि हमारे नायक इतिहास के गर्त में दब गये हैं, उन्हें बाहर लाने की जरूररत है। हमें मिथकों के जाल में नहीं फंसना है, अगर हम ऐसा करते हैं तो हम उसी ब्राह्मणवाद का पोषण करेंगे। लार्ड मैकाले के योगादानों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें अंग्रेजी समर्थक रूप में गलत तरीके से प्रचारित किया जाता है। मैकाले का असली योगदान भारतीय दंड संहिता को निर्माण है, जिससे मनु का कानून ध्वस्त हुआ।
युद्धरत आम आदमी की संपादिका व सामाजिक कार्यकर्ता रमणिका गुप्ता ने कहा कि झारखंड में अभी भी ‘असुर’ नाम की जनजाति है, जिनकी संख्या 10 हजार के आसपास है। ये मूलत: लोहे संबंधित काम करने वाले लोग हैं, जिन्हें करमाली और लोहारा आदि नामों से भी जाना जाता है। ये असुर जातियां दुर्गा की पूजा नहीं करतीं। उन्होंने कहा कि हम एक विरोधाभासी समय में जी रहे हैं, एक ओर हम आधुनिक होने का स्वांग कर रहे हैं तो दूसरी तरफ अपनी मानसिकता में हम 16 वीं सदी से बाहर नहीं निकल रहे। उन्होंने मैकाले की भाषायी नीतियों का विरोध करते हुए कहा कि भारतीय दंड संहिता संबंधी योगदान के लिए लार्ड मैकाले को याद किया जाना चाहिए।
रावण की पूजा का प्रचलन
ReplyDelete- प्रस्तुति शतायु
क्या रावण का मंदिर बनाकर उसकी पूजा की जानी चाहिए? यदि लोग ऐसा करने लगे तो फिर अच्छे-बुरे का फर्क ही क्या रह जाएगा। जो बुराई के खिलाफ हैं वे कदाचित इस तरह की बातों का पक्ष नहीं लेंगे।
भारत में कई ऐसे गाँव हैं जहाँ रावण का पुतला नहीं जलाया जाता बल्कि दशहरे के दिन रावण की पूजा की जाती है। मध्यप्रदेश के विदिशा जिले में एक गाँव है जहाँ राक्षसराज रावण का मंदिर बना हुआ है। यहाँ रावण की पूजा होती है। मध्यप्रदेश में पहला और देश में संभवतया यह दूसरा मंदिर है।
मध्यप्रदेश के ही प्रसिद्ध तीर्थ स्थल मंदसौर में भी रावण की पूजा की जाती है। मंदसौर नगर के खानपुरा क्षेत्र में रावण रूण्डी नामक स्थान पर रावण की विशालकाय मूर्ति है। किंवदंती है कि रावण दशपुर (मंदसौर) का दामाद था। रावण की धर्मपत्नी मंदोदरी मंदसौर की निवासी थीं। मंदोदरी के कारण ही दशपुर का नाम मंदसौर माना जाता है।
WD
उत्तरप्रदेश में गौतमबुद्ध नगर जिले के बिसरख गाँव में भी रावण का मंदिर निर्माणाधीन है। मान्यता है कि गाजियाबाद शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर गाँव बिसरख रावण का ननिहाल था। नोएडा के शासकीय गजट में रावण के पैतृक गाँव बिसरख के साक्ष्य मौजूद नजर आते हैं। इस गाँव का नाम पहले विश्वेशरा था, जो रावण के पिता विश्रवा के नाम पर पड़ा। कालांतर में इसे बिसरख कहा जाने लगा।
जोधपुर शहर में भी लंकाधिपति रावण का मंदिर है जहाँ दवे, गोधा एव श्रीमाली समाज के लोग रावण की पूजा-अर्चना करते हैं। ये लोग मानते हैं कि जोधपुर रावण की ससुराल थी। रावण के वध के बाद रावण के वंशज यहाँ आकर बस गए थे। उक्त समाज के लोग स्वयं को रावण का वंशज मानते हैं।
महाराष्ट्र के अमरावती और गढ़चिरौली जिले में 'कोरकू' और 'गोंड' आदिवासी रावण और उसके पुत्र मेघनाद को अपना देवता मानते हैं। अपने एक खास पर्व 'फागुन' के अवसर पर वे इसकी विशेष पूजा करते हैं। इसके अलावा, दक्षिण भारत के कई शहरों और गाँवों में भी रावण की पूजा होती है।
मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले के चिखली ग्राम में ऐसी मान्यता है कि यदि रावण को पूजा नहीं गया तो पूरा गाँव जलकर भस्म हो जाएगा इसीलिए वहाँ भी रावण का दहन नहीं किया जाता बल्कि दशहरे पर रावण की पूजा होती है। गाँव में ही रावण की विशालकाय मूर्ति स्थापित है।
इस तरह हम देखते हैं कि ऐसे अनेक स्थान हैं जहाँ रावण की पूजा-अर्चना की जाती है और रावण को बुराई का प्रतीक नहीं माना जाता। माना जाता है कि रावण महात्मा और महापंडित था। रामायण में रावण की अच्छाई के भी कई किस्से मिलते हैं।
...जहाँ रावण भी पूजा जाता है
ReplyDelete-विजया दशमी पर विशेष
इंद्रधनुषी संस्कृति के देश भारत में मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में राम तो पूजे ही जाते हैं लेकिन कुछ ऐसी जगहें भी हैं जहाँ रावण की पूजा की जाती है और धीरे-धीरे बुराई के इस प्रतीक के समर्थकों की संख्या बढ़ रही है।
हाल ही में झारखंड के मुख्यमंत्री शिबु सोरेन ने रावण के पुतले का दहन करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि यह राक्षसराज उनके कुलगुरु हैं जिसके बाद राजनीतिक विवाद भी पैदा हो गया। हालाँकि बिहार से अलग होकर झारखंड के गठन के बाद से वर्ष 2000 से ही राज्य के मुख्यमंत्री रावण का पुतला दहन करते रहे हैं।
माना जाता है कि राम ने विजया दशमी के दिन ही रावण का वध किया था जो बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में देश में त्योहार के रूप में मनाया जाता है। देश में सोरेन अकेले व्यक्ति नहीं हैं जो रावण का सम्मान करते हैं। मध्य प्रदेश के दमोह नगर में एक परिवार ऐसा भी है जो आज भी लंका नरेश रावण को अपना ईष्ट मानता है।
दमोह के सिन्धी कैम्प में रहने वाला यह सिन्धी परिवार पीढ़ियों से अपने ईष्ट रावण को पूजता आ रहा है। इस परिवार के सदस्य 32 वर्षीय हरीश नागदेव पूरे जिले में लंकेश के नाम से मशहूर है। वह अपने पूरे परिवार के साथ प्रतिदिन अपने ईष्ट दशानन की पूजा विधि विधान से करते हैं। स्वयं मंत्रों का उच्चारण कर दशानन की मूर्ति को स्नान कराके वस्त्र पहनाते हैं एवं आरती के बाद प्रसाद चढ़ाकर सभी को बाँटते हैं। यह कार्य उनकी दिनचर्या में शामिल है।
दशहरा पर दामोह का नागदेव परिवार समूचे उल्लास के साथ शहर के घंटाघर पर रावण के स्वरूप की आरती उतारकर मंगल कामना करता है। नागदेव परिवार ने विशाल लंकेश मंदिर बनाने की वृहद योजना तैयार की है और शासन से जमीन की भी माँग की है।
उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, पंजाब, दिल्ली और हरियाणा सहित उत्तर भारत के ज्यादातर राज्यों और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में दशहरा का त्योहार मनाया जाता है और रावण का पुतला दहन होता है। लेकिन महाराष्ट्र के ही आदिवासी बहुल मेलघाट (अमरावती जिला) और धरोरा (गढ़चिरौली जिला) के कुछ गाँवों में रावण और उसके पुत्र मेघनाद की पूजा होती है।
यह परंपरा विशेष तौर पर कोर्कू और गोंड आदिवासियों में प्रचलित है जो रावण को विद्वान व्यक्ति मानते हैं और पीढ़ियों से वे इस परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं। हर साल होली के त्योहार के समय यह समुदाय फागुन मनाता है जिसमें कुर्कू आदिवासी रावण पुत्र मेघनाद की पूजा करते हैं।
मध्यप्रदेश में विदिशा के हजारों कान्यकुब्ज ब्राह्मण रावण मंदिर में पूजा करते हैं। कई क्षेत्रों में दशहरे पर रावण का श्राद्ध भी किया जाता है। उत्तरप्रदेश में कानपुर के निकट भी एक रावण मंदिर है जो दशहरे के मौके पर साल में एक दिन के लिए खुलता है।
कर्नाटक के कोलार जिले में भी लोग फसल महोत्सव के दौरान रावण की पूजा करते हैं और इस मौके पर जुलूस निकाला जाता है। ये लोग रावण की पूजा इसलिए करते हैं क्योंकि वह भगवान शिव का भक्त था। लंकेश्वर महोत्सव में भगवान शिव के साथ रावण की प्रतिमा भी जुलूस की शोभा बढ़ाती है। इसी राज्य के मंडया जिले के मालवल्ली तालुका में रावण को समर्पित एक मंदिर भी है।
राजस्थान में जोधपुर से करीब 32 किलोमीटर दूर मंदोर में ही रावण का विवाह होने की कथा है। रावण की एक पत्नी का नाम मंदोदरी था और दावा किया जाता है कि इसी स्थान के नाम पर उसका यह नाम पड़ा। इसी क्षेत्र के दवे ब्राह्मण दशहरा पर रावण पूजा करते हैं। कुछ साल पहले इन लोगों ने जोधपुर में रावण मंदिर की स्थापना की घोषणा भी की थी।
कथाओं के अनुसार रावण ने आंध्रप्रदेश के काकिनाड़ में एक शिवलिंग की स्थापना की थी और इसी शिवलिंग के निकट रावण की भी प्रतिमा स्थापित है। यहाँ शिव और रावण दोनों की पूजा मछुआरा समुदाय करता है।
रावण को लंका का राजा माना जाता है और श्रीलंका में कहा जाता है कि राजा वलगम्बा ने इला घाटी में रावण के नाम पर गुफा मंदिर का निर्माण कराया था।
रावण के बारे में जो कथाएँ प्रचलित हैं उनके अनुसार वह ब्राह्मण ऋषि और राक्षण कुल की कन्या की सन्तान था। उसके पिता विशरवा पुलस्त्य ऋषि के पुत्र थे जबकि माता कैकसी राक्षसराज सुमाली की पुत्री थी। कुछ लोगों का यह भी दावा है कि रावण का जन्म उत्तरप्रदेश के एक गाँव में हुआ था।
उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद में कटरा का रामलीला शुरू होने पर पहले दिन हर साल रावण जुलूस निकाला जाता है और स्थानीय निवासियों का दावा है कि यह परंपरा पाँच सौ साल पुरानी है। इन लोगों का कहना है कि इसी संगम नगरी में भारद्वाज ऋषि की कुटिया थी और उनकी शिक्षा है कि ब्राह्मणों की पूजा की जानी चाहिए। भारद्वाज ऋषि की इसी शिक्षा को इलाहाबाद में रावण जुलूस का आधार बताया जाता है।
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ReplyDeleteरावण जेसे विद्वान और महत्मा आदमी का पुतला जला कर उसे हर साल अपमानित क्यों करते है सिर्फ इसलिए की उसने किसी दूसरे की पत्नी का हरण किया था अगर किसी की पत्नी,बहिन आदि का हरण करना बुरा है तो ये कानून सभी पर एक साथ लागु होनी चाहिए
ReplyDelete१. इंद्र ने गोतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का बलात्कार किया
२. किर्शन ने रुक्मणि का हरण किया
३. भीषम ने अम्बा · अम्बालिका · अम्बिका का हरण किया
४. अर्जुन ने अपनी बहन सुभ्रदा (सुभद्रा किर्शन के बहिन , कुंती किर्शन की बुआ थी इस मायने से सुभद्रा अर्जुन की भी बहिन हुई) को भगा का ले गया था
५. ब्रह्मा ने अपनी बेटी सरस्वती के साथ बलात्कार किया था
http://jaisudhir.blogspot.com/2011/10/brahma-raped-with-his-daughter.html
....आप लोग इन बलात्कारियो , और बहिन को भगा ने वाले , और बेटी के साथ बलात्कार करने वालो को भगवान मानते है और उनकी पूजा करते है ....लेकिन एक महातम को जलाते जिसने सीता को समानजनक रूप से अपनी वाटिका में रखा
ब्राह्मणों और सवर्णों के लिए सभी अपराध क्यों माफ हो जाते है ??????