नई दिल्ली, एजेंसी : तीन सेब (एप्पल) ने दुनिया बदल दी। एक ने हव्वा (ईव) को लुभाया, दूसरे ने न्यूटन को जगाया और तीसरा सेब स्टीव जॉब्स के हाथ में आया और उन्होंने बदल डाली आइटी उपकरणों की परिभाषा। आधुनिक प्रौद्योगिकी जगत के सुपरस्टार स्टीव जॉब्स युवा अवस्था के दौरान निर्वाण की तलाश में भारत आए थे। जॉब्स महज 18 वर्ष की उम्र में अपने दोस्त डैन कोटके के साथ हरियाणा में रोहतक के नीम करौली बाबा से मिलने पहुंचे। दोनों अमेरिकी लड़कों ने कॉलेज की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर आध्यात्म की तलाश में गुरुओं की भूमि का रुख किया था। हालांकि, बहुत जल्द ही स्टीव को भारत अपनी कल्पना से कहीं ज्यादा गरीब नजर आया। वह देश की वास्तविक स्थिति और पवित्रता के प्रचार के बीच की असंगति से दंग रह गए। देखा जाए तो 70 के दशक की शुरुआत में भारत दौरे से असंतुष्ट होकर वापस लौटने के कारण ही स्टीवन प्रौद्योगिकी जगत पर ध्यान केंद्रित कर सके और आखिरकार एप्पल कंपनी की स्थापना की। 2000 के दशक में जब वह भारत में कंप्यूटर संयंत्र स्थापित करने के बारे में सोच रहे थे, तो उन्हें लगा कि यहां कारोबार करना सस्ता नहीं रह गया है। मैकेंटोस कंप्यूटर, आइपॉड, म्यूजिक प्लेयर्स, आइफोन और आइपैड टैबलेट पीसी जैसे उत्पाद पेश करने वाले स्टीव विलक्षण व्यक्ति थे। उनकी जीवनी द लिटल किंगडम-द प्राइवेट स्टोरी ऑफ एप्पल कंप्यूटर में जॉब्स ने कहा है कि यह पहला मौका था, जब मुझे लगने लगा था कि विश्व को बेहतर बनाने के लिए कार्ल मार्क्स और नीम करौली बाबा ने मिलकर जितना किया है, शायद थॉमस एडिसन ने अकेले उससे ज्यादा किया है। किताब में जाब्स को यह कहते हुए पेश किया गया कि हमें ऐसी जगह नहीं मिल सकती थी, जहां महीने भर में निर्वाण प्राप्त किया जा सके। जब तक वह कैलिफोर्निया वापस लौटे अतिसार के चलते पहले से ज्यादा दुबले थे। लौटने पर उनके बाल छोटे-छोटे थे और वह भारतीय परिधान पहने हुए थे। वर्षो बाद 2006 में बात चली कि एप्पल अपने मैक और अन्य उत्पादों के विनिर्माण में मदद के लिए बेंगलूर में 3,000 कर्मचारियों वाला एक केंद्र स्थापित करने पर विचार कर रहा है। कहा गया कि कंपनी ने 30 लोगों को नियुक्त भी किया है, लेकिन अमल नहीं हो सका। कंपनी को भारत में कदम रखना इतना सस्ता नहीं लगा, जितना उसने सोचा था।ं
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