Sunday, August 28, 2011

महात्मा गाँधी की हत्या और संघ.


महात्मा गाँधी की हत्या और संघ.

by Jayantibhai Manani on Monday, August 30, 2010 at 6:00pm
                                          
                 संघ की स्थापना के पूर्व  डॉ. हेडगेवार के कांग्रेस में सक्रीय होने के कारण कोंग्रेस के कई रुढिवादी ब्राह्मण नेताओ के साथ संघ के ब्राह्मण नेताओ का संपर्क था. कांग्रेस के कई बडे ब्राह्मण नेताओ का संघ को संरक्षण प्राप्त था.
१९४८ में उतरप्रदेश के गृह सचिव रहे रामदयाल ने अपनी पुस्तक "लाइफ ऑफ अवर टाइम" की पृष्ठ संख्या ९३-९४ में इनकी पोल खोलते हुए लिखा है की -
                 "सांप्रदायिक तनाव के माहोल में दो बख्सो में भरी आपति जनक सामग्री आर.एस.एस. प्रमुख गोलवलकर की देख रेख में पहचानी थी. बख्सो मे पुरे प्रदेश (उतरप्रदेश) की मुस्लिम-बस्तियो के नक्शे और किस तरीके से सांप्रदायिक दंगे भडकाने है ? इसका वर्णन था. मेरे ह्रदय में इस बात का दुःख है की तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविन्द वल्लभ पंत(ब्राह्मण नेता) से जब उस समय गोलवलकर की उनके पते पर धरपकड और भिन्न भिन्न स्थानों पर छापे मारने की आज्ञा चाही तो उन्हों ने तत्परता दिखाने के बदले कहा की केबिनेट इस पर विचार करेगी."
                 "केबिनेट में न तो पुलिस अधिकारियो की इस प्रकार की कार्यवाही की प्रसंशा हुई और न उल्लेख ही किया गया और न तत्काल कार्यवाही करने का कोई निर्णय ही लिया गया वरना  तय यह किया गया कि गोलवलकर को पत्र लिखकर चेतावनी दी जाए. आश्चर्य तो इस बात का है कि पंत ने यह पत्र स्वयं लिखने कि बजाय मुझे लिखने के लिए कहा. उस समय कांग्रेस में संघ कि तरफ सहानुभूति रखने वाले कितने ही लोग (ब्राह्मण) थे. उससे उपरी सदन में पीठासीन अधिकारी आत्मा गोविन्द खेर (ब्राह्मण) शामिल थे. संघ की कारगुजारिया चालू रही. ऐसे ही माहोल में कुछ दिनों बाद ३० जनवरी १९४८ को शांति के पुजारी कि छाती मे गोली दाग कर, आरएसएस के एक ब्राह्मण स्वयंसेवक ने  हत्या कर दी. उतरप्रदेश सरकार कि टालमटोल और अनिर्णय का ऐसा गंभीर परिणाम आया कि उसका विचार आते ही मेरे ह्रदय में  टीस उठती है."
                 ३० जनवरी १९४८ के दिन किसीने गोली मारकर महात्मा गाँधी कि हत्या कर दी, ऐसी खबर देश भर में बिजली कि तरह फैल गई. गांधीजी की हत्या की खबर मिलते ही संघ के ब्राह्मण स्वयं सेवको ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए स्थान स्थान पर मिठाइयां बांटी थी.
                 महात्मा गाँधी कि हत्या में पकडे गए अपराधी महाराष्ट्र के कुछ कट्टर ब्राह्मण युवक थे, जो महाराष्ट्र के कई कट्टरवादी ब्राह्मणों द्वारा शुरू किए गए संघ और हिंदू महा सभा जैसे संगठनो से जुड़े हुए थे. नाथूराम गोडसे, गोपाल गोडसे, नारायण आप्टे, विष्णु करकरे और विनायक सावरकर को मिलाकर पांच कट्टर ब्राह्मण थे. कुल सात आरोपियो में से दो गैर ब्राह्मण युवक थे.
                 गांधीजी का हत्यारा महाराष्ट्र का ब्राह्मण युवक नाथूराम गोडसे और उसके साथ के ६ अपराधियों में से चार महाराष्ट्र के ब्राह्मण युवक थे जो संघ से जुड़े हुवे थे. यह प्रकट होते ही महाराष्ट्र और कर्णाटक में संघ के ब्राह्मण स्वयं सेवको के घर पर गांव गांव में- हमले शुरू हो गए. आगजनी और लुट कि घटनाए भी हुई.
                 "Why Godse killed Gandhi ?" पुस्तक के पृष्ठ संख्या १७-१८ में वी.टी. राज शेखर ने निष्कर्ष दिया है कि "संघ को गांधीजी के खून(३० जनवरी १९४८) के संबध में पूर्व से ही जानकारी थी. उनके खून की गिनती के मिनिटो में ही उन्हों ने सारे भारत में मिठाइया बांटी थी. बाद में गुस्से से भरे लोगो ने महाराष्ट्र और कर्णाटक में चितपावन ब्राह्मणों के बहुत सारे घरों में आग लगा दी थी."
                 "मुंबई में टोलियो ने सावरकर के घर पर हमला किया और सारे भारत में आर. एस. एस. के कार्यालयों पर भी हमले हुए. भारतवासियों द्वारा बीसवी सदी के श्रेष्ठ मानव तथा राष्ट्रपिता माने गए गांधीजी की हत्या ब्राह्मण द्वारा कि गई थी."
                 गांधीजी की हत्या के समय गोलवलकर मद्रास में संघ द्वारा आमंत्रित किए गए प्रतिष्ठित ब्राह्मणों की सभा में उपस्थित थे. उन्हें गांधीजी की हत्या की जानकारी होते ही वे विमान द्वारा नागपुर पहुचे. नागपुर स्थित संघ के केन्द्रीय कार्यालय पर लोगो ने पत्थर बरसाए. गोलवलकर की सुरक्षा हेतु केन्द्रीय कार्यालय पर १ फरवरी १९४८ को पुलिस का पहरा लगा दिया गया था. मध्य रात्रि में गाँधी की हत्या से जुड़े होने के आधार पर गोलवलकर को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया.
                  संघ के साथ जुड़े ब्राह्मणों के घर पर जो हमले हुए उसका विवरण "युग प्रवर्तक गुरूजी" पुस्तक की पृष्ठ सं. ४३ पर च. प. भीशीकर ने बताई है कि -
                 "महाराष्ट्र के इस कांड ने ब्राह्मण, अब्राह्मण विवाद का रूप ले लिया. इसके परिणाम स्वरूप असंख्य लोगो के घरों पर हमले हुए. आगजनी, लूटपाट की घटनाए होती रही. भारी नुकसान हुआ. महाराष्ट्र और उसके आस पास के प्रदेशो में हजारों परिवार निराधार भी हो गए. कितने ही लोगो के प्राण भी गए. देशभर में संघ के (ब्राह्मण) स्वयंसेवको और कार्यकर्ताओ को यातनाए भोगनी पड़ी."
                  २ फरवरी १९४८ के दिन केंद्र सरकारने आर. एस. एस. को अवैध संगठन घोषित कर दिया. सरकार द्वारा प्रकाशित घोषणा में कहा गया कि, "संघ की आपतिजनक और हानिकारक गतिविधियो निरंतर चलती रही है. इसमें  सबसे अधिक और नयी तथा सबसे महत्वपूर्ण है गांधीजी की हत्या. सरकार हिंसा के उस आविष्कार को द्रढता से नियंत्रित करने के अपने दायित्वो को समजती है. ऐसे दायित्व का निर्वाह करने के प्रथम चरण के रूप में संघ को अवैध घोषित करती है."
                  ४ फरवरी १९४८ के दिन देशभर में केंद्र सरकार ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया. संघ के कट्टर ब्राह्मण कार्यकर्ताओ को पकड़ लिया गया.
                  ५ फरवरी १९४८ के दिन गोलवलकर को जेल में मिलने आनेवाले ब्राह्मण मित्र एडवोकेट दत्तोपंत देशपांडे को गोलवलकर ने संघ का विसर्जन करने सबंधी वक्तव्य  लिख कर प्रेस में प्रकाशित करने के लिए दिया, जिसमे लिखा गया कि,  "सरकारी नियम का पालन करते हुए अपने कार्यक्रम करने की निति संघ के आरंभ से ही रही है. आज सरकार ने उसे गैरकानूनी घोषित किया है, इस लिए जब तक प्रतिबंध हटाया नहीं जाता तब तक संघ को विसर्जित करता हूँ. इसीलिए संघ पर जो आरोप लगाया है उसे में पूर्णरूप से अस्वीकार करता हूँ."
                  संघ पर प्रतिबंध लगाने के समय केंद्र सरकार में उद्योगमंत्री पद पर रहे श्यामाप्रसाद मुखर्जी (जन संघ के पहले ब्राह्मण अध्यक्ष) भी इस बात से सहमत थे कि आरएसएस. द्वारा ऐसा वातावरण बनाया गया कि उसके प्रभाव में आकर संघ के कार्यकर्ताओ ने गांधीजी की हत्या कर दी.
                  उस समय के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने १८ जुलाई१९४८ के दिन श्यामा प्रसाद मुखर्जी को जो पत्र लिखा उसमे गांधीजी की हत्या और आर.एस.एस. आदि की भूमिका का स्पष्ट उल्लेख है. उन्होंने लिखा - "हमारी रिपोर्ट इस बात की पृष्टि करती है कि आरएसएस और हिंदू महासभा ये दो संगठन विशेषत: आरएसएस की गतिविधियोने देश में धृणा का ऐसा वातावरण पैदा किया जिसके परिणाम स्वरूप गांधीजी की हत्या हो गई."
                  तत्कालीन गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल ने देशभर से मिली जानकारियों के आधार पर ११ सितम्बर १९४८ को गोलवलकर को लिखे पत्र में लिखा की "उनकी (गांधीजी की) मृत्यु पर संघ वालो ने जो खुशिया मनाई और मिठाइयां बांटी, इस से उनकी और विरोध बहुत बढ़ गया और सरकार को संघ के खिलाफ कार्यवाही करनी पड़ी." ('आउटलुक' हिंदी साप्ताहिक ६ सितम्बर २००४) 
                 विख्यात वकील और सांसद आर. के. आनंद जिन्होंने गांधीजी की हत्या, आर. एस. एस. की भूमिका और बाद मे देश्भार्मे पिछले ४० वर्षों में हुए दंगो में संघ की भूमिका का अध्ययन किया है. उनका निष्कर्ष है की गांधीजी का हत्यारा नाथुराम गोडसे न केवल आर. एस. एस. का सदस्य था वरन उसके अतिरिक्त सावरकर भी हत्या के षड्यंत्र में  शामिल थे. सावरकर ही गोडसे के संरक्षक थे. 
                आनंद के शोध के अनुसार गोडसे १९३० से आर. एस. एस. में शामिल हुआ. वह संघ का प्रचारक मात्र नहीं था वरन उसने उस समय आर. एस. एस. प्रमुख हेडगेवार और बाबुराव सावरकर के साथ पश्चिम महाराष्ट्र में लंबी यात्राए करके संघ की सांप्रदायिक विचारधारा फैलाई थी. हिन्दु महासभा और आरएसएस के बीच तब प्रगाढ़ समज थी उसके (नाथूराम का) भाई गोपाल गोडसे ने हत्या के ४६ वर्ष बाद अपनी पुस्तक का विमोचन करते हुए कहा था, 
                    "में मेरा भाई नाथूराम, दतात्रेय और गोविन्द सहित सभी आरएसएस के सदस्य रहे है और हमने इसे कभी छोड़ा भी नहीं." जैसे कि लालकृष्ण अडवाणी ने गोडसे के संघ के साथ सबंधो का खंडन किया है तो गोपाल गोडसे ने अडवाणी पर कटाक्ष करते हुए कहा, "नाथूराम तो संघ का बौधिक कार्यवाह था. अडवाणी का वक्तव्य कायरता भरा है, गोडसे को वह नकार शकते नहीं." ('आउटलुक' हिंदी साप्ताहिक ३० अगस्त २००४) 
                     गांधीजी की हत्या के समय संघ का कोई संविधान नहीं था, न सदस्यो का कोई रजिस्टर ही था. लिखित संविधान स्वीकार किए बिना संघ पर से प्रतिबंध नहीं हटाने के लिए केंद्र सरकार दृढ थी. यह बात स्पष्ट होने पर संघ को विवश होकर संविधान स्वीकार करना पड़ा. गोलवलकर ने संघ के संविधान के सबंध में कहा है कि, "आजतक संविधान कि कोई आवश्यकता नहीं पड़ी तथा उसका भविष्य में भी बहुत भारी उपयोग होगा, ऐसा मुझे लगता नहि." (श्री गुरूजी समस्त दर्शन भाग-२ पृष्ठ ४८)
                    संविधान तथा प्रजातंत्र के प्रति ऐसी उदासीनता ब्राह्मणवादी चरित्र के अनुकूल है. संविधान और सदस्यता दिखाने वाली औपचारिकताए है, हकीकत में खेल अनौपचारिक भावनाओ से हि चलता है. १९४८ में तो संविधान कि औपचारिकता भी नहीं थी तो किस ढंग से जाना जा शकता है कि गोडसे संघ का सदस्य था या नहीं ? संघ वाले कहते है कि नहीं था, नाथूराम का छोटाभाई तथा गाँधी हत्याकांड का सह आरोपी गोपाल गोडसे का कहना है कि था. गोपाल गोडसे के कथानुसार "नाथूराम ने संघ के साथ सबंधो को इस लिए नाकारा था कि वह संघ की कठिनाइयां बढ़ाना नहीं चाहता था."
                                               महात्मा गाँधी कि हत्या किस लिए हुई?
                    ३१ जनवरी २००७ के गुजराती दैनिक "दिव्य भास्कर" के पहले पृष्ठ पर प्रकाशित विवरण के अनुसार महात्मा गाँधी के पौत्र तुसार गांधीने अपनी पुस्तक "लेट्स किल गाँधी" के विमोचन अवसर पर कहा कि, "देश के टुकड़े करने के बदले में पाकिस्तान को ५५ करोड रूपये देने कि मांग गांधीजी ने भारत सरकार से कि इस कारण गांधीजी की हत्या कि गई. ऐसे संघ परिवार के इस कथन को में झिटक देना चाहता हु. ये सब बहाने है इनमे सच्चाई नहीं है. देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की चाहना करनेवाला ब्राह्मण समुदाय हि उसकी हत्या के सभी प्रयासों के लिए उतरदायी है."
                     "गांधीजी की हत्या केवल हत्या नहीं थी, यह पूर्वनियोजित हत्या थी. ब्राह्मणों ने गांधीजी को निशाना बनाया था. हिंदू राष्ट्र के नाम पर वे अपना जाति वर्चस्व स्थापित करना चाहते थे. गांधीजी की हत्या के पहले भी कई बार उनकी हत्या के प्रयास हो चुके थे. उन सभी में पूना किसी ना किसी रूप से जुड़ा था."
                     आर.एस.एस. के पुरातन पंथी ब्राह्मण नेताओ के कहने के अनुसार गोडसे ने गांधीजी की हत्या, पाकिस्तान को ५५ करोड रूपये देने के लिए गांधीजी की उपवास पर बैठने की घोषणा से उतेजित होकर कि थी. देश के टुकड़े होते समय हिंदूओ पर जो अत्याचार हुए उससे गोडसे जैसे हिंदूवादी दुखित थे. और यह उनका प्रत्याघात था.
                     ऊपर के सिद्धांत के विरुध कई प्रश्न खडे होते है. जैसे कि देश के विभाजन के समय हिंदू पर जो अत्याचार हुए, वे अत्याचार करने वाले क्या गांधीजी थे जिससे गोडसे ने उनकी हत्या कि? यदि पाकिस्तान को ५५ करोड रूपये देने के लिए गांधीजी के उपवास कि घोषणा के कारण गांधीजी की हत्या कराइ गई हो तो पूना में हरिजन यात्रा के समय १९३५ में बम किसलिए फैका गया था ? उसके बाद पंचगनी और वर्धा में गांधीजी की हत्या के प्रयास किस लिए किए गए ?
                     उपरोक्त प्रश्नों के उतर खोजने पर संघ के ब्राह्मण नेताओ के गांधीजी की हत्या के सिद्धांत के परखचे उड़ जाते है. गांधीजी की हत्या के कारणों को जानने के लिए दूसरे भी कई प्रश्नों के उतर खोजने होगे जैसे कि,
                     गांधीजी की हत्या का षड्यंत्र करने वाले तथा उसे कार्य रूप से परिणित करने वाले पांच ब्राह्मण महाराष्ट्र के हि क्यों थे?
                     दूसरा प्रश्न उठता है की गांधीजी की हत्या ब्राह्मणों ने हि क्यों कि ? क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र अथवा अतिशुद्र में से किसीने यह हत्या क्यों नहीं की ?
                     तीसरा प्रश्न होता है कि गांधीजी की हत्या में पुरातन पंथी ब्राह्मण ही क्यों जुड़े हुए थे ? प्रगतिशील और उदारवादी ब्राह्मण गांधीजी के समर्थक क्यों  रहे ?                    
                     चौथा प्रश्न होता है की पुरातन पंथी ब्राह्मणों ने गांधीजी की हत्या कट्टर हिंदूवादी होने के कारण की या कट्टर जातिवादी होने के कारण की ?
                     पांचवा प्रश्न होता है की गांधीजी की हत्या के पूर्व और आजादी मिलने के पूर्व गांधीजी की हत्या के प्रयास पूना, पंचगनी तथा वर्धा में हुए थे और ये सभी स्थान महाराष्ट्र के है क्या ये संयोगवश है ?
                     ऊपर के प्रश्नों के सच्चे उतर दिए जाए तो ये स्पष्ट हो जाता है कि गांधीजी की हत्या न पाकिस्तान को ५५ करोड रूपये देने के आशय के कारण और न ही देश के विभाजन के समय हिंदूओ पर हुए अत्याचारो के कारण हुई. यदि ये कारण है तो १९३५ में पूना में हरिजन यात्रा के समय गांधीजी को लक्ष्य बनाकर बम क्यों फैका गया ? तब न तो देश के टुकड़े हुए थे और न पाकिस्तान को ५५ करोड रूपये देने की बात थी. संघ के ब्राह्मण नेताओ का गांधीजी की हत्या का सिद्धांत इतना कमजोर है, उसे समजा जा सकता है.
                     गांधीजी की हत्या महाराष्ट्र के कट्टर ब्राह्मणों ने की थी और उसके कारण निम्न लिखित है. 
                     (१) पुरातन पंथी ब्राह्मणों ने बाल गंगाधर की मृत्यु के पश्चात अंग्रेजी शासन के सामने चल रही जंग को छोड़कर महाराष्ट्र में फुले-शाहूजी महाराज तथा डॉ. बाबासाहब आंबेडकर द्वारा चलाये जा रहे सामाजिक समानता के आन्दोलन के सामने ब्राह्मणवादी प्रभुत्व टिकाये रखने के लिए हिंदू महासभा और आर.एस.एस. की गतिविधिया शुरू की थी.
                    महात्मा गांधीजी ने भी उदारमतवादी ब्राह्मण नेताओ के साथ शुद्रो, अतिशुद्रो के मानवीय सामाजिक अधिकारों के लिए प्रवृतिया चलानी आरंभ की थी. गांधीजी का प्रभाव राष्ट्रिय स्तर पर देश के सभी सामाजिक वर्गों पर व्यापक रूप से बढ़ता जाता था जो पुरातन पंथी ब्राह्मणों के लिए खतरा था.
                    (२) संघ तथा हिंदू महासभा के नेता मनु स्मृति के प्रावधानों के अनुरूप देश का संविधान बनवाना चाहते थे. १९४७ में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के बीच कांग्रेस और डॉ. आंबेडकर के बीच अनेक मतभेदों के होते हुए भी गांधीजी ने किन्ही कारणों से, संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर को रखने की सिफारिश की थी. कांग्रेस के नेता पं. जवाहरलाल नेहरू तथा सरदार पटेल ने डॉ. बाबासाहब आंबेडकर को संविधान प्रारुप समिति के अध्यक्ष बनाये थे.
                    डॉ. बाबासाहब आंबेडकर समतावादी संविधान बनाएंगे, ऐसा जानने वाले महाराष्ट्र के पुरातन पंथी ब्राह्मणों गांधीजी के कांग्रेस पर प्रभाव के कारण गांधीजी को खतरनाक मानते थे.
                    (३) शुद्र, अतिशूद्र जातियो में से ही धर्मान्तरित मुस्लिम, इशाई आदि धार्मिक अल्प संख्यक अस्तित्व में आए थे. हिंदू मुस्लिम तरीके से उन्हें आपस में लड़ाकार पुरातन पंथी ब्राह्मण नेतागण शुद्रो-अतिशुद्रो पर वर्चस्व स्थापित करनेकी रणनीति रखते थे. भारत, पाकिस्तान के रूपमें  विभाजित होने के बाद में उठ खड़ा हुआ सांप्रदायिक उन्माद, संघ तथा हिंदू महासभा के ब्राह्मण नेताओ के लिए सुअवसर था.
                     देश के टुकड़े होने के बाद उठ खडे हुए साम्पदायिक तनाव के कारण नोआखली में सांप्रदायिक दंगे हुए. हिंदूओ और मुस्लिमो के बीच भाईचारा स्थापित करने तथा सांप्रदायिक दंगे बंद कराने के लिए गांधीजी ने उपवास किया और प्रेरक नेतृत्व दिया था. हिंदू-मुस्लिम के नाम पर गैर-ब्राह्मणों पर सनातनी ब्राह्मण प्रभुत्व स्थापित करने का अवसर नोआखली शांति स्थापित होने से संघ और हिंदू महासभा के ब्राह्मण नेता ओ के हाथ से निकाल गया. ब्राह्मणवाद के सामने गैर-ब्राह्मणों की चुनोती को मुस्लिमो के सामने खड़ा कर देने का अवसर गांधीजी के कारण नहीं मिलने से वे गांधीजी को शत्रु समजने लगे थे.
                    (४) १९४८ में देश के प्रधानमंत्री पं. नेहरू ब्राह्मण, देश के गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालचारी ब्राह्मण और देश की प्रांतीय सरकारों के मुख्यमंत्री भी ब्राह्मण ही थे. सरकार में एक ही ब्राह्मण जाति के प्रभुत्व को लेकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए गांधीजी ने १९४८ में कहा था कि भारत के प्रधानमंत्री पद पर इसके बाद किसान और राष्ट्रपति पद पर अछूत आना चाहिए.
                    ब्राह्मण जन्मजात श्रेष्ठ तथा धरती के देव है और शुद्र(किसान), अतिशूद्र(अछूत) जन्मजात नीच, अयोग्य तथा ब्राह्मणों के सेवक है- ऐसा मानने वाले संघ और हिंदू महासभा के पुरातनपंथी ब्राह्मण नेताओ और कार्यकर्ताओ को गांधीजी की ऐसी बात किस प्रकार सहन हो सकती है? किसान शुद्र प्रधानमंत्री और अछूत अतिशूद्र राष्ट्रपति, ऐसी बात उनको किस तरह पच सकती है?
                    गांधीजी का प्रभाव केवल कांग्रेस पर ही बही वरन गावों से लेकर शहरो तक सारे देश में, जनमानस में एक महात्मा के रूप में स्थापित हो चूका था. गांधीजी का अस्तित्व भविष्य में और भी भयानक बन जायेगा, ऐसी आशंका से पीड़ित महाराष्ट्र के कट्टर ब्राह्मणों ने गांधीजी की हत्या का षड्यंत्र रचा और षड्यंत्र को हत्या के रूप में परिणित किया. संघ तथा हिंदू महासभा द्वारा फैलाई गयी मानसिकता से ग्रस्त हुए ब्राह्मण युवकको ने बीसवी सदी के एक श्रेष्ठ हिंदू व्यक्ति की हत्या की ये हिंदू हित में थी या जाती हित में थी?

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