1 दिसम्बर 1997 यानी आजाद भारत के सबसे बड़े जातीय नरसंहार का वह अभागा दिन। बिहार के जहानाबाद जिले का लक्ष्मणपुर बाथे गांव, जहां उंची जाति के लोगों द्वारा बनाई गई रणबीर सेना गिरोह के लोगों ने दिनदहाडे 60 लोगों को गोलियों से भून डाला था। गरीबों के खून से लाल हुई उस गांव की धरती में जो लोग मारे गए थे, उनमें 27 महिलाएं थी और दस बच्चे थे। उन 27 महिलाओं में करीब दस महिलाएं गर्भवती भी थीं।
एक सुनियोजित साजिश के तहत दबंग जमींदारों द्वारा बनाई गई रणवीर सेना के लोगों ने भूमिहीन मजदूरों और उनके परिवार के सदस्यों को घर से बाहर निकाला और गोलियों से भून डाला। तीन घंटे तक चले इस खूनी खेल में सोन नदी के किनारे बसे बाथे टोला गांव को उजाड़ दिया।
हत्यारे तीन नावों में सवार होकर सोन नदी पार किए और गांव में आ धमके थे। रणवीर सेना के सदस्यों ने उन मल्लाहों को भी जान से मार दिया था, जिनकी नावों में बैठकर उन्होंने नदी पार की थी। इस बर्बर हत्याकांड में कई परिवारों का नामोनिशान ही मिट गया था।
दो दिनों तक स्थानीय लोगों ने शवों का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया था। 3 दिसंबर को तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने लक्ष्मणपुर बाथे का दौरा किया उसके बाद शवों का सामूहिक अंतिम संस्कार किया गया। इस नरसंहार ने पूरे भारत को हिला दिया था।
उस समय राष्ट्रपति रहे के. आर. नारायणन ने गहरी चिंता जताते हुए इस हत्याकांड को 'राष्ट्रीय शर्म' करार दिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल समेत सभी पार्टियों के नेताओं ने इस हत्याकांड की निंदा की थी।
दरअसल, बिहार में नब्बे के दशक में वह जातीय नरसंहारों का दौर था। अगड़े-पिछड़े, वंचित और संभ्रांत के बीच छिड़ा वर्ग संघर्ष, जातीय संघर्ष में बदलकर सैकड़ों लोगों की बलि लेने लगा था। बिहार के खेत-खलिहान आंदोलनों, अन्याय और शोषण से धधक रहे थे। लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार इसी धधक का एक जीता जागता मिसाल था।
पिछड़ी जाति के वंचितों ने आवाज उठाई और जमीन पर अपना हक मांगा, उनकी राजनीति करने वाली भाकपा-माले ने हथियार उठाए। उस दौर में सत्ता तक पहुंच रखने वाले सामंतों के खिलाफ जनता एकजुट हुई लेकिन उस जनता को सबक सिखाने और अगड़ी जाति के जमींदारों के रसूख की रक्षा के लिए बनी रणबीर सेना ने गोलियां दाग कर उस आवाज को शांत करने की कोशिश की।
ये वो दौर था जब पटना, जहानाबाद, अरवल, गया और भोजपुर को 'लाल इलाका' कहा जाता था, क्योंकि इस इलाके में भाकपा-माले के गुटों की तूती बोलती थी। बिहार के ये इलाके सवर्णों की निजी सेना और भाकपा माले की संग्राम भूमि बन चुके थे।
संग्राम का यह मुद्दा भूमि सुधार का था, जमीनों पर भूमिहीनों के हक का था। इसी दौरान जहानाबाद के इस इलाके में सक्रिय लाल झंडेवालों यानी भाकपा-माले के साथ जुड़ने की सज़ा रणबीर सेना ने लक्ष्मणपुर बाथे टोला की उस दलित बस्ती को दी थी।
हालांकि इस नरसंहार मामले में पटना की एक अदालत ने अप्रैल 2010 में 16 दोषियों को मौत की सजा सुनाई और 10 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
http://www.amarujala.com/news/samachar/national/lakshmanpur-bathe-killing-the-land-tremble/
बाथे-नरसंहार का, मिट जाता कुल दोष |
ReplyDeleteउलट गया अब फैसला, इत खुशियाँ उत रोष |
इत खुशियाँ उत रोष, बिछी अट्ठावन लाशें |
तड़प रहीं दिन रात, कातिलों तुम्हें तलाशें |
माना तुम निर्दोष, क़त्ल फिर किसके माथे |
मांग रहा इन्साफ, पुन: लक्ष्मण पुर बाथे |
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