सोजन्य से विनीता रागा
आदि गुरु शंकराचार्य जी ने पूरे भारत वर्ष में 12 (द्वादश) शिव ज्योर्तिलिंगो की स्थापना की, जहां पर आदिकाल से शिव जी ने निवास किया या तपस्या की, उन स्थानों को उन्होंने चिन्हित कर विकसित किया था, वह स्थान निम्न हैं
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् ।
उज्जयिन्यां महाकालमोकांरममलेश्वरम् ।
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम् ।
सेतुबंधे तु रामेशं नागेशं दारूकावने ।
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्रयंम्बकं गौतमीतटे ।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये ।
ऐतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः ।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति
वेदों में शिव या शंकर के बारे मैं कोई प्रमाण नहीं है केवल रूद्र का वर्णन मिलता है
शिव की जागेश्वर में तपस्या-उद्धरण कुमाऊं का इतिहास-श्री बद्रीद्त्त पाण्डे, पृष्ठ-१६४
पश्चात, दक्ष प्रजापति ने कनखल के समीप यग्य किया। वहां शिव के अतिरिक्त सबको बुलाया, शिव की पत्नी काली बिना बुलाये पिता के यहां गई और वहां अपना और अपने पति का तिरस्कार देखकर रोष से भस्म हो गई। शिव ने कैलाश से यह बात जान दक्ष प्रजापति का यग्य विध्वस कर सबका नाश कर दिया और चिता की भस्म से शरीर को आच्छादित कर झांकर सैम ( जागेश्वर से करीब ५ कि०मी० गरुड़ाबांज नामक स्थान पर) में तपस्या की। झांकर सैम को तब भी देवदार वन से आच्छादित बताया गया है। झांकर सैम जागेश्वर पर्वत में है। कुमाऊं के इस वन में वशिष्ठ मुनि अपनी पत्नियों के साथ रहते थे। एक दिन स्त्रियों ने जंगल में कुशा और समिधा एकत्र करते हुये शिव को राख मले नग्नावस्था में तपस्या करते देखा, गले में सांप की माला थी, आंखें बंद, मौन धारण किये हुये, चित्त उनका काली के शोक से संतप्त था। स्त्रियां उनके सौन्दर्य को देखकर उनके चारों ओर एकत्र हो गईं, सप्तॠषियों की सातों स्त्रियां जब रात में ना लौटी तो वे प्रातःकाल उनको ढुंढने को गये, देखा तो शिव समाधि लिये बैठे है और स्त्रियां उनके चारों ओर बेहोश पड़ी हैं। ॠषियों ने यह विचार कर लिया कि शिव ने उनकी स्त्रियों की बेइज्जती की है और शिव को श्राप दिया कि "जिस इन्द्रिय यानी वस्तु से तुमने यह अनौचित्य किया है वह (लिंग) भूमि में गिर जायेगा" तब शिव ने कहा कि " तुमने मुझे अकारण ही श्राप दिया है, लेकिन तुमने मुझे सशंकित अवस्था में पाया है, इसलिये तुम्हारे श्राप का मैं विरोध नहीं करुंगा, मेरा लिंग पृथ्वी में गिरेगा। तुम सातों सप्तर्षि तारों के रुप में आकाश में चमकोगे।" अतः शिव ने श्राप के अनुसार अपने लिंग को पृथ्वी में गिराया, सारी पृथ्वी लिंग से ढक गई, गंधर्व व देवताओं ने महादेव की तपस्या की और उन्होंने लिंग का नाम यागीश या यागीश्वर कहा और वे ऋषि सप्तर्षि कहलाये।
शिव की जागेश्वर में तपस्या-उद्धरण कुमाऊं का इतिहास-श्री बद्रीद्त्त पाण्डे, पृष्ठ-१६४-१६५
श्राप के कारण शिव का लिंग जमीन पर गिर गया और सारी पृथ्वी लिंग के भार से दबने लगी, तब ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र, सूर्य, चंद्र और अन्य देवगण जो जागेश्व्र में शिव की क्तुति कर रहे थे, अपना-अपना अंश और शक्तियां वहां छोड़्कर चले गयेआ तब देवताओं ने लिंग का आदि अन्त जानने का प्रयास किया, ब्रह्मा, विष्णु और कपिल मुनि भी इसका उत्तर न दे सके, विष्णु पाताल तक भी गये लेकिन उसका अंत न पा सके, तब विष्णु शिव के पास गये औए उनसे अनुनय विनय के बाद यह निश्चय हुआ कि विष्णु लिंग को सुदर्शन चक्र से काटें और उसे तमाम खंडों एस बांट दें। अंततः जागेश्वर में लिंग को काटा गया और उसे नौ खंडों में बांटा गया। १-हिमाद्रि खंड
२- मानस खंड
३- केदार खंड
४- पाताल खंड - जहां नाग लोग लिंग की पूजा करते हैं।
५- कैलाश खंड
६- काशी खंड- जहां विश्वनाथ जी हैं, बनारस
७- रेवा खंड- जहां रेवा नदी है. जहां पर नारदेश्वर के रुप में लिंग पूजा होती है, शिवलिंग का नाम रामेश्वरम है।
८- ब्रह्मोत्तर खंड- जहां गोकर्णेश्वर महादेव हैं, कनारा जिला मुंबई।
९- नगर खंड- जिसमें उज्जैन नगरी है।
शिवलिंग और पार्वतीभग की पूजा की उत्पत्ति
1- दारू नाम का एक वन था , वहां के निवासियों की स्त्रियां उस वन में लकड़ी लेने गईं , महादेव शंकर जी नंगे कामियों की भांति वहां उन स्त्रियों के पास पहुंच गये ।यह देखकर कुछ स्त्रियां व्याकुल हो अपने-अपने आश्रमों में वापिस लौट आईं , परन्तु कुछ स्त्रियां उन्हें आलिंगन करने लगीं ।उसी समय वहां ऋषि लोग आ गये , महादेव जी को नंगी स्थिति में देखकर कहने लगे कि -‘‘हे वेद मार्ग को लुप्त करने वाले तुम इस वेद विरूद्ध काम को क्यों करते हो ?‘‘यह सुन शिवजी ने कुछ न कहा ,तब ऋषियों ने उन्हें श्राप दे दिया कि - ‘‘तुम्हारा यह लिंग कटकर पृथ्वी पर गिर पड़े‘‘उनके ऐसा कहते ही शिवजी का लिंग कट कर भूमि पर गिर पड़ा और आगे खड़ा हो अग्नि के समान जलने लगा , वह पृथ्वी पर जहां कहीं भी जाता जलता ही जाता था जिसके कारण सम्पूर्ण आकाश , पाताल और स्वर्गलोक में त्राहिमाम् मच गया , यह देख ऋषियों को बहुत दुख हुआ । इस स्थिति से निपटने के लिए ऋषि लोग ब्रह्मा जी के पास गये , उन्हें नमस्ते कर सब वृतान्त कहा , तब - ब्रह्मा जी ने कहा - आप लोग शिव के पास जाइये , शिवजी ने इन ऋषियों को अपनी शरण में आता हुआ देखकर बोले - हे ऋषि लोगों ! आप लोग पार्वती जी की शरण में जाइये । इस ज्योतिर्लिंग को पार्वती के सिवाय अन्य कोई धारण नहीं कर सकता । यह सुनकर ऋषियों ने पार्वती की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया , तब पार्वती ने उन ऋषियों की आराधना से प्रसन्न होकर उस ज्योतिर्लिंग को अपनी योनि में धारण किया । तभी से ज्योतिर्लिंग पूजा तीनों लोकों में प्रसिद्ध हुई तथा उसी समय से शिवलिंग व पार्वतीभग की प्रतिमा या मूर्ति का प्रचलन इस संसार में पूजा के रूप में प्रचलित हुआ ।
- ठाकुर प्रेस शिव पुराण चतुर्थ कोटि रूद्र संहिता अध्याय 12 पृष्ठ 511 से 513
शिवजी दारू वन में नग्न ही घूम रहे थे , वहां के ऋषियों ने अपनी-अपनी कुटियाओं को पत्नी विहीन देखकर शिवजी से कहा - आपने इन हमारी पत्नियों का अपहरण क्यों किया ? इस पर शिवजी मौन धारण किये रहे , तब ऋषियों ने उनके लिंग को खण्डित होने का श्राप दे डाला , जिससे उनका लिंग कटकर भूमि पर आ पड़ा और अत्यन्त तेजी से सातों पाताल और अंतरिक्ष की ओर बढ़ने लगा , क्षण भर में देखते ही देखते सारा आकाश और पाताल लिंगमय हो गया ।
- साधना प्रेस स्कन्द पुराण पृष्ठ 15
शिवजी दारू वन में नग्न ही घूम रहे थे , वहां के ऋषियों ने अपनी-अपनी कुटियाओं को पत्नी विहीन देखकर शिवजी से कहा - आपने इन हमारी पत्नियों का अपहरण क्यों किया ? इस पर शिवजी मौन धारण किये रहे , तब ऋषियों ने उनके लिंग को खण्डित होने का श्राप दे डाला , जिससे उनका लिंग कटकर भूमि पर आ पड़ा और अत्यन्त तेजी से सातों पाताल और अंतरिक्ष की ओर बढ़ने लगा , क्षण भर में देखते ही देखते सारा आकाश और पाताल लिंगमय हो गया ।
- साधना प्रेस स्कन्द पुराण पृष्ठ 15
3- शिवजी एकदम नंग धड़ंग रूप में ही भिक्षा मांगने के लिए ऋषियों के आश्रम में चले गये , वहां उनके इस देवेश्वर रूप को देखकर ऋषि पत्नियां उन पर मोहित हो गईं और उनकी जंघाओं से लिपट गईं ।यह दृश्य देख ऋषियों ने शिवजी के लिंग पर काष्ठ और पत्थरों से प्रहार किया , लिंग के पतित हो जाने पर शिवजी कैलाश पर्वत पर चले गये ।- वामनपुराण खण्ड 1 श्लोक 58,68,70,72,पृष्ठ 412 से 413 तक
4- सूत जी ने बताया कि दारू नाम के वन में मुनि लोग तपस्या कर रहे थे , शिवजी नग्न हो वहां पहुंच गये और कामदेव को पैदा करने वाले मुस्कान-गान कर नारियों में कामवासना वृद्धि कर दी ।यहां तक कि वृद्ध महिलाएं भी भूविलास करने लगीं , अपनी पत्नियों को ऐसा करते देख मुनियों ने शिव को कठोर वचन कहे ।
- डायमंड प्रेस , लिंग पुराण पृष्ठ 43
शिवजी की उत्पत्ति
1- शिवजी स्वयं उत्पन्न हुए । - गीता प्रेस शिवपुराण विन्धयेश्वर संहिता पृष्ठ 57
2- शिवजी , विष्णु जी की नासिका के मध्य से उत्पन्न हुए । - ठाकुर प्रेस शिव पुराण द्वितीय रूद्र संहिता अध्याय 15 पृष्ठ 126
3- शिव का जन्म विष्णु के शिर से माना जाता है । - डायमंड प्रेस ब्रह्म पुराण पृष्ठ 141
4- शिवजी ब्रह्मा के आंसुओं से प्रकट हुए । - डायमंड प्रेस कूर्म पुराण पृष्ठ 26
औघड़ मत का पूजा विधान
औघड़ मत में भैरवी चक्र नाम का एक पर्व होता है ,जिसमें एक पुरूष को नंगा करके उसके लिंग की स्त्रियां पूजा करती हैं और दूसरे स्थान पर एक स्त्री को नंगा खड़ा कर पुरूषों द्वारा उसकी भग अर्थात योनि की पूजा की जाती है । - सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 11 , पृष्ठ 192
- डिमाई साईज़ @ डायमंड प्रेस ,अग्नि पुराण , पृष्ठ 41
शिवजी ओघड़ थे
1- ब्रह्मा जी शिवजी के पास गये और बोले - ‘‘हे ओघड़‘‘ । - साधना प्रेस हरिवंश पुराण पृष्ठ 140
2-सूत जी ने कहा - शंकर जी ‘‘ओघड़‘‘ हैं । - डायमंड प्रेस ब्रह्माण्ड पुराण पृष्ठ 39/साधना प्रेस स्कन्ध पुराण पृष्ठ 19
शिवजी का भेष1- मुण्डों की माला धारण करते हैं । - पद्म पुराण , खण्ड 1 , श्लोक 179 , पृष्ठ 324
शिवजी का निवास
1- शिवजी श्मशान घाट में रहते हैं । - डायमंड प्रेस वाराह पुराण पृष्ठ 160
शिवजी का आहार
1- शिवजी कहते हैं कि - ‘‘मैं हज़ारों घड़े शराब , सैकड़ों प्रकार के मांस से भी - ‘‘लिंग-भगामृत‘‘ के बिना सन्तुष्ट नहीं होता‘‘
- वेंकेटेश्वर प्रेस कुलार्णव तन्त्र उल्लास पृष्ठ 472-
2- शिव जी अभक्ष्य पदार्थों का भक्षण करते हैं । - ठाकुर प्रेस शिव पुराण तृतीय पार्वती खण्ड अध्याय 27 पृष्ठ 235
शिवलिंग पर चढ़ाई गई वस्तुओं का निषेध
1- सभी लोग लिंग पर चढ़ाई गई वस्तुओं का निषेध करते हैं । -गीता प्रेस ,शिव पुराण , पृष्ठ 69, श्लोक 142-
2- शिवलिंग पर चढ़ाई गई वस्तुएं ग्रहण करना शास्त्र सम्मत नहीं है । -डायमंड प्रेस , ब्रह्माण्ड पुराण , पृष्ठ 22 , श्लोक 110
3- शिव जी को आहुति देने वाले अपवित्र हो जाएंगे । -डायमंड प्रेस , ब्रह्माण्ड पुराण , पृष्ठ 22 , श्लोक 110
शिवजी के सम्बंध में पुराणों की बातें
1- शिव लोक की कल्पना करना अज्ञानी और मूढ़ पुरूषों का काम है । -कला प्रेस , सर्व सिद्धान्त संग्रह, पृष्ठ 132-
2- जो लोग शिव को संसार की रक्षा करने वाला मानते हैं , वे कुछ भी नहीं जानते हैं । -देवी भागवत पुराण, खण्ड 1, श्लोक 6, पृष्ठ 13
3- जैसे कलि युग का प्रचार होगा वैसे ही शिव मत का प्रचार बढ़ेगा । -सूर्य पुराण, श्लोक 54, पृष्ठ 162
शिवजी सन्ध्या करते थे
सूत जी बोले - शिव जी सन्ध्या करते हैं । -पद्म पुराण खण्ड 1, श्लोक 201, पृष्ठ 328
शिवाजी की पत्नी का नाम ‘पार्वती‘ है । -ठाकुर प्रेस,शिव पुराण , तृतीय पार्वती खण्ड , अध्याय 5 , पृष्ठ 275
पार्वती के अनेक नाम
काली , कालिका , कामाख्या , भद्रकाली , उमा , भगवती , अम्बा , चण्डिका , चामुण्डा , विजया , मुण्डा , जया , जयन्ती , आदि ‘पार्वती‘ के ही नाम हैं ।
-ठाकुर प्रेस, शिव पुराण, द्वितीय, रूद्र संहिता, पृष्ठ 128
काली की उत्पत्ति1- रूद्र की जटा से काली उत्पन्न हो गई । -गीता प्रेस,शिव पुराण,रूद्र संहिता, पृष्ठ 151
2- नारायण की हड्डियों से काली उत्पन्न हो गई । -डायमण्ड प्रेस मार्कण्डेय पुराण पृष्ठ 108
काली का आहार
1- काली सैकडों-लक्ष अर्थात लाखों हाथियों को मुख में रखकर चबाने लगी । -ठाकुर प्रेस, शिव पुराण पंचम युद्ध खण्ड अध्याय 37 पृष्ठ 371
2- अम्बिका मदिरा अर्थात शराब पीती थी । -संस्कृति संस्थान , वामन पुराण , खण्ड 12 , ‘लोक 37 , पृष्ठ 250
3- काली की जीभ से कन्या पैदा हो गई । -देवी भागवत , खण्ड 2, ‘लोक 36, पृष्ठ 248
शिवलिंग और पार्वतीभगपूजा ?‘ का एक अंश लेखक : सत्यान्वेषी नारायण मुनि , स्थान व पोस्ट - सिकटा जिला - पश्चिमी चम्पारण , बिहार प्रकाशक : अमर स्वामी प्रकाशन विभाग , 1058 विवेकानन्द नगर , गाजियाबाद - 201001 मूल्य : 5 रूपये मात्र
1.यक्ष प्रश्न - आपको केवल ये ज्ञान है कि भोले बाबा का लिंग ऋषियों के श्राप के कारण गिरा था लेकिन सच्चाई ये है कि उसे ऋषियों ने डंडे पत्थर मारकर गिराया था . तभी से वह भारतवासियों से दुखी होकरभोले जी भारत छोड़ कर चीन चले गए थे और मानसरोवर पर रहने लगे थे . हिन्दू ये भी मानते हैं कि भोले भंडारी काबा में रहते हैं . हो सकता है कुछ काल के लिए वहां भी रहे हों ? यहाँ पहले लिंग काटा जाता है , लिंग वाले बाबा जी को कष्ट पहुँचाया जाता है और फिर उसकी पूजा कि जाती है .
2.यक्ष प्रश्न - हमारा भारत महान है क्योंकि यहाँ उस चीज़ की पूजा होती है जिस पर पुरुष की महानता टिकी होती है ?
3.यक्ष प्रश्न - शिवजी ब्रह्मा के आंसुओं से प्रकट हुए । और ब्रह्मा की उत्पत्ति शिव की नाभि से हुई है. कमाल है न ?
4.यक्ष प्रश्न - इतने सारे देवताओं का हौव्वा खड़ा हमने नहीं बल्कि आपने किया है और फिर खुद ही ब्रह्मा जी की पूजा का निषेध भी कर दिया। इन्द्र की पूजा श्री कृष्ण जी ने रूकवाई। जिसके कारण इन्द्र ने उनकी गर्भवती स्त्रियों की हत्या कर दी और उनके अनुयायियों को भी डुबाने की पूरी कोशिश की। क्यों?
5.यक्ष प्रश्न- देवी भागवत में भी देवताओं की पूजा से रोका गया है और उनकी पूजा करने वालों को जो कुछ कहा गया है वह भी आपसे छिपा नहीं है।
6.यक्ष प्रश्न- देवता खुद अपने सिवा दूसरों की पूजा होते देखकर रूष्ट होते माने जाते हैं। क्यों?
7.यक्ष प्रश्न- यदि सभी कुछ ब्रह्म की इच्छा से हो रहा है तो ब्रह्मा का सिर क्यों काटा गया ?
8.यक्ष प्रश्न- ऋषियों ने दारू वन में शाप देकर शिव जी का लिंग क्यों गिरा दिया ?
9.यक्ष प्रश्न- परमेश्वर ने कहीं लिंग पूजा करने का आदेश दिया हो या मात्र अनुमति ही दी हो तो कृपया हमें दिखायें ?
10.यक्ष प्रश्न- गौतम बुद्ध को स्वयं विष्णु जी ने ही पापावतार घोषित कर दिया है। नर्क के ख़ाली रह जाने की शिकायत सुनकर उन्होंने कहा कि मैं लोगों को पापी
बनाकर नर्क में भेजूंगा जबकि अवतार का उद्देश्य तो धर्म की और वह भी वर्णाश्रम धर्म की स्थापना बताया गया है ।
शूद्र को सम्पत्ति संग्रह और ईशवाणी के अध्ययन और उपनयन से रोक देना सदाचार नहीं कदाचार है।
नारी के लिए विवाह को हिन्दू धर्म में एक संस्कार घोषित किया गया है। नारी के लिए सदाचार यह है कि पति की मृत्यु के बाद वह या तो सती हो जाए या बाल मुंडवाकर ऐसे ही रूखा सूखा खाकर मौत से बदतर जीवन जिए और मर जाए। शूद्र और नारी समाज का अधिकांश भाग हैं। वे सदाचारी बनने के लिए ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हैं।
यदि मेरी बात ग़लत लगती है तो हिन्दू शास्त्रों के अनुसार हिन्दू समाज को जीने के लिये तैयार करके दिखाइये।
आप सदाचार के लिये किस का अनुसरण करना चाहेंगे ?
अपने आदर्श पुरूष का नाम बताइये ?
क्या उनके आदर्श पर चलना संभव है ?
FIR KOAN GHALATA HAI BARMAD KO HAMARA KAY ASTIW HAI
ReplyDeleteJisne bhi ye bakwas likha h vo puri tarah se murkh h ya to use gyan nhi h ya hone ka dhong ke RHA h kan kan me shiv h or shiv ko kisi paribhasha ya puran ki jrurat nhi vishwas krke dekho had jagah bhi dikhenge meri ek rai h jab kabhi musibat me hona unhe man se had krna itna bakwas krne ke bad bhi tumhare help jrur krenge isliye vo parampita h jinka na adi h na anat par tumhare ant h isliye aide bakwas krna band kro kuch kam nhi h to Jake hamere Hindu dharm ke baree Jan lo jivan safal ho jayega
DeleteExactlyand absolutely right AdiShiv hi sakshaat AadiShakti hai ,Adishakti hi Adishiv hai ek hi hai Shunyajyotiprakash swaroop hai koi bhi Tucch Wikrit Manav stri purush aur kinner ka Wikrit tucch paapi shareer hai hi nahi wo to ishwarBhagwaan hai manav ki Wikrit soch buddhi se rachit shastra puran se bhi pareh hai beyond sinner human imagination ,Do roop mein khud ko dikhate huae bhi ek hi hai koi gender ka bhed hai hi nahi gender se bhi pareh hai Ishwar wo koi tucch Wikrit mahapaap se janme Manavshareer dhari hai hai nahi shunya hai No gender or genderlesShunya Ardhanareeshwar hai.
Deleteइस पुरे प्रसंग में आप स्वयं भटके हुए हैं...आपको और ज्ञान की जरूरत है....और आपके इन प्रश्नों को देखकर लगता है कि शायद हिन्दु धर्म के बारे में जानने के लिए दो चार और जन्म लेने की आवश्यकता है...ऐसे तो हम यही कामना करते हैं कि आदिदेव महादेव आपकी गलतीयों को क्षमाकर आप पर अपनी कृपा बनाए रखें....।।।ओम नम: शिवाय।।।
ReplyDeleteom namh shivaye...sahi kha sir aapne
DeleteShi h. Yaar. Shi. Likha. H.
DeleteKuch. Galat. Nhi.
I like your post
Muh me le lo sir ka.
Deleteसच्चाई कड़वी लगती है आपके परिश्रम के लिए धन्यवाद
DeleteYr puri katha aadhi aduri hai shiv tumko maaf kare
ReplyDeleteआपको ये तो पता ही होगा की सनातन धर्म अतुलनीय है। इसका विस्तार इतना है कि बड़े से बड़े धुरंधर भी इसकी महिमा को पूरा नहीं गा सकते।। सिर्फ इतना कहना चाहुगा कि अधुरा ज्ञान बहुत हानिकारक होता है। आपको किसी अच्छे गुरु की शरण में जाना चाहिए। जो आपको सटीक मार्गदर्शन दे।। बाकी भोले तो भोले है।।। वो तो आपको क्षमा कर ही देंगे।।
ReplyDeleteI agree u brother
Deletejisne bhi yeh likha hia mera vinmar nivedan hai ki please ise yha se delete kar de..qnki in befijul ki baaton se dusron ke man me b galt vichar utpann hote hai ..please aisa mat kro ...
Deletekam sabdo me or bahut kuch bola aap ne thanks der
Deletekabhi islam ke bare me bhi bo do...... jitna bhi tumne likha hai wo sab galat hai... aur jaha ka referrence de rahe ho... wo mandhadang kahani hai jo khud k swarth ke liye likhi gayi hai.
ReplyDeleteकाबे में क्या होता है? वहां भी लिंग और योनि की पूजा होती है। आप जो भी दोष हिन्दु धर्म में देख रहे हैं वह दोष अन्य धर्मो में कई गुना है। शिवलिंग को चूमना और उस पर चढा प्रसाद खाना मना है लेकिन मोहम्मद ने काबे में शिवलिंग को स्थापित करके चूमा भी था। हिन्दू मानते हैं कि वह शिवलिंग कहीं छिपा है लेकिन वो बाहरी दीवर में है न कि काबे के अन्दर।
ReplyDeleteशिवलिङ्ग (शिवलिंग), का अर्थ है भगवान शिव का आदि-अनादी स्वरुप । शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है | वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनन्त ब्रह्माण्ड (ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है। The whole universe rotates through a shaft called shiva lingam. पुराणो में शिवलिंग को कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग |
ReplyDeleteशिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है | हम जानते है की सभी भाषाओँ में एक ही शब्द के कई अर्थ निकलते है जैसे: सूत्र के - डोरी/धागा,गणितीय सूत्र, कोई भाष्य, लेखन को भी सूत्र कहा जाता है जैसे नासदीय सूत्र, ब्रह्म सूत्र आदि | अर्थ :- सम्पति, मतलब (मीनिंग), उसी प्रकार यहाँ लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी या प्रतीक है। ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और प्रदार्थ | हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है| इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है | ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है. वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है | अब जरा आईसटीन का सूत्र देखिये जिस के आधार पर परमाणु बम बनाया गया, परमाणु के अन्दर छिपी अनंत ऊर्जा की एक झलक दिखाई जो कितनी विध्वंसक थी सब जानते है | e / c = m c {e=mc^2}
इसके अनुसार पदार्थ को पूर्णतयः ऊर्जा में बदला जा सकता है अर्थात दो नही एक ही है पर वो दो हो कर स्रष्टि का निर्माण करता है . हमारे ऋषियो ने ये रहस्य हजारो साल पहले ही ख़ोज लिया था | हम अपने देनिक जीवन में भी देख सकते है की जब भी किसी स्थान पर अकस्मात् उर्जा का उत्सर्जन होता है तो उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा उपर व निचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात दशोदिशाओं (आठों दिशों की प्रत्येक डिग्री (360 डिग्री)+ऊपर व निचे ) होता है, फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है जैसे बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप , शांत जल में कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) का प्रतिरूप आदि ।
स्रष्टि के आरम्भ में महाविस्फोट(bigbang) के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व निचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ जैसा की आप उपरोक्त चित्र में देख सकते है | जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में मिलता है की आरम्भ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) तथा की देवता आदि मिल कर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शास्वत अंत न पा सके । पुराणो में कहा गया है की प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में समाहित (लय) होता है तथा इसी से पुनः सृजन होता है ।
लंबुकेश्वर मंदिर, श्रीरंगम में शिवलिंग
शिवलिंग के महात्म्यका वर्णन करते हुए शास्त्रों ने कहा है कि जो मनुष्य किसी तीर्थ की मृत्तिका से शिवलिंग बना कर उनका विधि-विधान के साथ पूजा करता है, वह शिवस्वरूप हो जाता है। शिवलिंग का सविधि पूजन करने से मनुष्य सन्तान, धन, धन्य, विद्या, ज्ञान, सद्बुद्धि, दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति करता है। जिस स्थान पर शिवलिंग की पूजा होती है, वह तीर्थ न होने पर भी तीर्थ बन जाता है। जिस स्थान पर सर्वदा शिवलिंग का पूजन होता है, उस स्थान पर मृत्यु होने पर मनुष्य शिवलोक जाता है। शिव शब्द के उच्चारण मात्र से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और उसका बाह्य और अंतकरण शुद्ध हो जाता है। दो अक्षरों का मंत्र शिव परब्रह्मस्वरूप एवं तारक है। इससे अलग दूसरा कोई तारक ब्रह्म नहीं है।
तारकंब्रह्म परमंशिव इत्यक्षरद्वयम्। नैतस्मादपरंकिंचित् तारकंब्रह्म सर्वथा॥
बहुत अच्छा लिखा आपने।
Deleteज्ञान नाम की चीज तो है नहीं। कहाँनिया पढ़ ली बस्। अगर ज्ञानी हो तो वेदो में शन्कर में बारे में लिखा बताओ। कुछ नही है वेदों में जानते हो कि क्यों ? क्योंकि सिव आदि देवता है जिसको आपने भगा दिया था और चीन भाग गया था।
Deleteप्रत्येक जीव में, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, सूक्ष्म रूप से आदि शक्ति(उर्जा) का प्रतिक शिवलिंग सबमें स्थित होता है | इस कारण हिन्दू मान्यताओं में प्रत्येक व्यक्ति में ईश्वर विधमान होने की मान्यता है इसी कारण दुसरो को हाथ जोड़ कर उनका अभिनन्दन किया जाता है । यही मानवीय जीवन का मूल सिदांत है । भारत में भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंग हैं। सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर अथवा अमलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशङ्कर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्रीघुश्मेश्वर. सम्पूर्ण भारतवर्ष में शिवलिंग पूजन परम श्रद्धा से किया जाता है. अनादि, अनंत, देवाधिदेव, महादेव शिव परब्रह्म हैं. सावन में शिवालयों में सुबह से ही भोलेनाथ की वंदना का क्रम शुरू होता है जो देर रात्रि तक चलता है। पूरे मास शिव भक्त मनवांछित फल की कामना को लेकर अनुष्ठान-पूजन कार्य क्रम होते हैं. इस दौरान महाशिव का का दूध, घृत, दही, शक्कर, गंगाजल, शहद, बिल्व पत्र, पारे, धतूरे से रूद्री पाठ साथ रूद्राभिषेक का क्रम लगातार जारी रहता है।शिवलिंग के बारे में भ्रांतियां :: शिवलिंग के बारे में लोगों को इतनी ज्यादा भ्रांतियां हैं और वो भी उसके नाम को लेकर !! लोग आज कल जो उसका मतलब निकालते हैं वो यहाँ मैं नहीं कह सकता क्योंकि उस भ्रान्ति का प्रचार हम नहीं करना चाहते। सबसे पहली बात संस्कृत में "लिंग" का अर्थ होता है प्रतीक। Penis या जननेंद्रि के लिए संस्कृत में एक दूसरा शब्द है - "शिश्न". शिवलिंग भगवान् के निर्गुण-निराकाररूप का प्रतीक है। भगवान् का वह रूप जिसका कोई आकार नहीं जिसमे कोई गुण ( सात्विक,राजसिक और तामसिक ) नहीं है , जो पूरे ब्रह्माण्ड का प्रतीक है और जो शून्य- अवस्था का प्रतीक है। ध्यान में योगी जिस शांत शून्य भाव को प्राप्त करते हैं, जो इश्वर के शांत और परम-आनंद स्वरुप का प्रतीक है उसे ही शिवलिंग कहते हैं। शिवलिंग में दूध अथवा जल की धारा चढ़ाने से अपने आप मन शांत हो जाता है ये हम सबका अनुभव है, और इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं। जो सच्चे ब्राह्मण हैं वो इस बात को जानते हैं कि शिवलिंग पर जल या दूध चढाते समय "ॐ नमः शिवाय " बोलने की अपेक्षा केवल "ॐ ॐ " बोलना उत्तम है. शिव अभिषेक करते समय उसमे भगवान् शंकर के सगुण-साकार रूप का ध्यान भी किया जा सकता है, किया जाता भी है. भक्त की भावना के अनुसार सबको छूट है इसी कारण आपने देखा होगा कि बाकी मंदिरों में मूर्ति का स्पर्श वर्जित होता है पर शिवलिंग का हर कोई स्पर्श कर सकता है (मासिक धर्म वाली स्त्रियाँ पूरे महीने स्पर्श नहीं कर सकतीं लेकिन मासिक धर्म खत्म होने के बाद शुद्ध होके कर सकती है ). शिवलिंग को भगवान् शंकर का निर्गुण प्रतीक माना जाता है और भगवान् के सगुण रूप का वास कैलाश पर्वत पर माना गया है. ( कुछ लोग बेहेस करते हैं कि भगवान् केवल कैलाश में ही है क्या ?? आदि आदि ; तो भाई सुनो - जैसे भगवान् ने गीता में कहा है कि " पौधों में मै तुलसी हूँ ", " गायों में मै कामधेनु हूँ ", "तीर्थों में मै प्रयाग हूँ " आदि आदि. इसका मतलब ये है कि जो सबसे पवित्र चीज़ हो उसमे इश्वर का वास मानना चाहिए फिर धीरे धीरे आप सब जगह भगवान् को देख पाएंगे। पहले आप मित्र में इश्वर को देखोगे तभी बाद में शत्रु में देख सकोगे ) तो कैलाश में भगवान् को जल मिल जाए , हमारा चढ़ाया हुआ दूध उनको वहां मिल जाए , उसके लिए शिवलिंग के चारों तरफ "जल - घेरी " बनाई जाती है। जल- घेरी की दिशा हमेशा उत्तर दिशा की तरफ होनी चाहिए जिससे हमारा चढ़ाया हुआ दूध या जल सीधा उन तक पहुँच जाए। और इसी कारण जल-घेरी को कभी लांघते नहीं हैं और शिवलिंग की आधी परिक्रमा ही करते हैं। सावन में जल लगातार भगवान् को चढ़ता रहे इसी कारण शिवलिंग के ऊपर जल से भरा हुआ कलश लटकाया जाता है. जलघेरी पर कभी दिया नहीं जलाते और शिवलिंग या तुलसी या किसी भी मूर्ती को दिए की आंच नहीं लगनी चाहिये. दिया थोडा सा दूर जलाना होता है। शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ नारियल कभी फोड़ा नहीं जाता उसे विसर्जित कर दिया जाता है। शिवलिंग भगवान् शंकर का प्रतीक होने के कारण उसे तुलसी के नीचे नहीं रखा जाता , तुलसी के नीचे शालिग्राम ( भगवान् विष्णु का निर्गुण रूप ) रखा जाता है. हालांकि शिवलिंग में मंजरी (तुलसी के फूल) चढ़ाए जाते हैं। हर हर महादेव जय महाका
ReplyDeleteGood one sir...
DeleteGood one sir...
DeleteAtisundar सराहनीय shresth Aadhar Bhoot band Aankhon Se Jo भ्रमित होकर लिखते हैं उनके लिए अनुकरणीय प्रत्युत्तर है ओम शिवाय नमः
Delete
ReplyDeleteलिंग का अर्थ होता है प्रमाण. वेदों और वेदान्त में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आया है. सूक्ष्म शरीर 17 तत्त्वों से बना है. शतपथ ब्राह्मण-5-2-2-3 में इन्हें सप्तदशः प्रजापतिः कहा है. मन बुद्धि पांच ज्ञानेन्द्रियाँ पांच कर्मेन्द्रियाँ पांच वायु. इस लिंग शरीर से आत्मा की सत्ता का प्रमाण मिलता है. वह भासित होती है. आकाश वायु अग्नि जल और पृथ्वी के सात्विक अर्थात ज्ञानमय अंशों से पांच ज्ञानेन्द्रियाँ और मन बुद्धि की रचना होती है. आकाश सात्विक अर्थात ज्ञानमय अंश से श्रवण ज्ञान, वायु से स्पर्श ज्ञान, अग्नि से दृष्टि ज्ञान जल से रस ज्ञान और पृथ्वी से गंध ज्ञान उत्पन्न होता है. पांच कर्मेन्द्रियाँ हाथ, पांव, बोलना. गुदा और मूत्रेन्द्रिय के कार्य सञ्चालन करने वाला ज्ञान. प्राण अपान,व्यान,उदान,सामान पांच वायु हैं. यह आकाश वायु, अग्नि, जल. और पृथ्वी के रज अंश से उत्पन्न होते हैं. प्राण वायु नाक के अगले भाग में रहता है सामने से आता जाता है. अपान गुदा आदि स्थानों में रहता है. यह नीचे की ओर जाता है. व्यान सम्पूर्ण शरीर में रहता है. सब ओर यह जाता है. उदान वायु गले में रहता है. यह उपर की ओर जाता है और उपर से निकलता है. समान वायु भोजन को पचाता है. हिन्दुओं का लिंग पूजन परमात्मा के प्रमाण स्वरूप सूक्ष्म शरीर का पूजन है
ज्ञान नाम की चीज तो है नहीं। कहाँनिया पढ़ ली बस्। अगर ज्ञानी हो तो वेदो में शन्कर में बारे में लिखा बताओ। कुछ नही है वेदों में जानते हो कि क्यों ? क्योंकि सिव आदि देवता है जिसको आपने भगा दिया था और चीन भाग गया था।
ReplyDeleteतारकंब्रह्म परमंशिव इत्यक्षरद्वयम्। नैतस्मादपरंकिंचित् तारकंब्रह्म सर्वथा॥ आपका कुछ नहीं हो सकता इसी लिए शंकर जी के बारे में भ्रांति फैला रहे हो .... चीन में भी तुम्हे जगह नहीं मिलेगी
ReplyDeleteHindu religion is only myth,koi sachchai nahi. isme koi ishwar nahi h.sabhi papi aur atyachari manushyon ,jo mulbhartiya nivasiyon ka murder karte the, unki puja hoti h.aur yahi mulniwasiyo par bhi jabran thop diya gaya jisse unhe hindu naam se murkh bana kar mandiro me achchi khasi revenue vasul jaye.aur unke khoon paseene ki kamai aiso aaram me udai jaye.
ReplyDeleteIslam myth h aur allah ek suwar tha junlgi suwar wo hinduo ka pavitra tatti khaata tha fir use bahaut jyada bhukh lagi thi to wo madarchod logo ko jakhmi krne lag gya kyuki usko tatti khaane ko nhi mil rha tha tu use ek hindu bacche ne maar diya suwar ki maut mara kyuki allah madarchod suwar tha yehi h islam ki kahani
Deleteबकवास, मै तो यही प्रार्थना करूगा शिव तुम्हें माफ करें।
ReplyDeleteOm namah shivaya
इस पुरे प्रसंग में तु भटके हुए हैं... आपको और ज्ञान की जरूरत है.... और आपके इन प्रश्नों को देखकर लगता है कि शायद हिन्दु धर्म के बारे में जानने के लिए दो चार और जन्म लेने की आवश्यकता है आैर हो सकता है आपके अंदर हिन्दु खुन ही न हो।। इच्छा तो करती है की जूते मारे तुम्हारे।।
ReplyDeleteतु एक धटिया दर्जे का इंसान नहीं जानवर है।
अगर तु हिन्दु नहीं मुसलमान की आैलाद है तो सुन
काबे में क्या होता है? वहां भी लिंग और योनि की पूजा होती है। आप जो भी दोष हिन्दु धर्म में देख रहे हैं वह दोष अन्य धर्मो में कई गुना है। शिवलिंग को चूमना और उस पर चढा प्रसाद खाना मना है लेकिन मोहम्मद ने काबे में शिवलिंग को स्थापित करके चूमा भी था।
वह शिवलिंग कहीं छिपा है लेकिन वो बाहरी दीवर में है न कि काबे के अन्दर।
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DeleteRavi Kumar Mahajan ji आप अपना लेख से थोड़ा ऊपर देखTarun GoelJune 19, 2014 at 5:23 AM. ने लिखा है शिवलिंग भगवान् के निर्गुण-निराकाररूप का प्रतीक है। भगवान् का वह रूप जिसका कोई आकार नहीं जिसमे कोई गुण ( सात्विक,राजसिक और तामसिक ) नहीं है , अगर यह सच है तो फिर शिवलिंग को कही भी स्थापित नही किया जा सकता है न कही छिपाया सकता है बाहरी दीवर में है न अन्दर?
DeleteKaaba Sharif ke under kuch nahi hai bilkul khali hai maine dekha hai video jab Saudi ke Sultan Kaaba ke under ka kar 2 rakaat namaz padhi thi saath me unke ministers bhi the uss waqt jo video banaya Gaya hai uss bilkul clear dikh Raha hai koi bhi samaan under nahi hai. Floor aur wall par tiles Laga hai, jo ki Abhi 20th century me Laga hai, upper jo bhi likha hai sab Sahi hai jo bhi baatein likhi gayi hai saath me in sab kitabon ke Naam aur printing press ka Naam diya Gaya hai. Aap check karo.
DeletePost jis bhI ghadha ne likha hai
DeleteKya tumhare post ke tarah tumhare
Baap ka charitra hai. .
Sacchai sun lo pillo shiv jyoti swarupa hai unka koi aakar nahi hai
Vey nirakar hai
Partyek man/jeev ki aatma hi shiv hai
Shiv aagni tatra hai.
Sashtro sun ke saman unki kanti hai
..
Maine shiv ke sakshat darshan kiye
Hai Vey surya ke tarah bimb aakar ke thee nile rang ke . Prithvi se 12foot ki height pe slow slow jaa rahe thee ek red color sun jaise bimb ke sath. ..
Aadhura gyan vinash ka karan hota hai.
Agyanta phaylana aapradh hai
Iska tum he dand bhogna hoga
भाई हमें जानना भी नहीं है हम तो बस यही जानते है की शिवलिंग यानि भोले नाथ हमारे विश्वास है ।
ReplyDeleteइस पूरे ब्रहमाण्ड को कोई अद़श्य शक्ित चला रहीं है। जैसे कोई भी घर का मुख्िाया अपने परिवार का हिसाब - सार सम्भाल - देख रेख आदि करता है उसी प्रकार कोई अद़श्य शक्ति ऐसा कर रही है वही शिव है सत्य है अल्लाह है ईसामसिह है आदि है
कुल मिलाकर हमारी आस्था है विश्वास है या फिर ये कह सकते हो की आत्मबल है ।
शिव की महिमा तो बाद में जानोगे पहले अपने आपको जान लो कि आप कहां पर पूरे हो किस क्षेत्र में आप पूरे हो किस ज्ञान का घमण्ड कर रहे हो
shiv ling koi insan ka ling nahi hai shiv ling ek prateek hai ek chinh hai jiska na koi adi hai na ant hai
ReplyDeletebadhi hasi aati hai jab log shiv ling ki barabri tum jaise log am admi ke ling se karte hai jabki aisa nahi hai
is shrishti ka pata nahi kitni bar ant hua hai aur pata nahi kinti bar utpatti hui hai ab shrishti ke ant ke bad fir se utpatti hoti hai to devi devta apne pure charitra ko jo wo ek bar pehle bhi kar chuke hai usi ko fir dohrate hai parantu usme samay dusra hone ke karan kuch na kuch badlaw ho hi jata hai. ap ki bato se puri tarah se lagta hai ki ap hindu dharm ko bilkul bhi pasand nahi karte hai. apne likha hai ki hindu dharm me kitni kamiya hai yaha par kitni buri prathayen hai parantu sacchai to yah hai ki hindu aur christian dharm me jitni aazadi hai utni kisi bhi dharm me nahi hai apne likha hai ki vedo me ye nahi likha hai wo nahi likha hai ap muhe kisi ved me sati pratha ke bare me likha dikhayiye jiske bae me upar pane likha hai sati pratha aur bal vivah kisi ved puran me nahi likhi gayi hai ye samaaj ke thekedaron ne samay samay par apne fayede ke liye dalte chale gaye aur kisi aur dharm me dalne ki himmat nahi hui aur hindu dharm ko ye mankar ki use kaise bhi toda maroda ja sakta hai to bol diya ki hindu dharm me bal vivah aur sati prath hoti hai,
hindu dharm ke bare itni gandi baten bhi tum isiliye yaha pe kah paye ho kyuki tum jante ho koi kuch nahi karega aur agar tumhe itni chinta hai to jara muslimo ke ghar jao aur unse unki bahu betiyo ki azadi ki bat karo ki unhe bhi azadi mile jab dekho tab burkhe me rahti hai jeans na pehno ye na karo wo na karo aj bhi w log kai kai shadiya kar lete hai aur jab chahe tab talak de dete hain kahi ksi court me bhi nahi jana hai unhe tum rok paoge agar himmat hai to unke bare me likh ke dekho kat ke ek bar me fenk denge wo log
bat karte ho hindu dharm ki
मैने शास्त्रों की पढ़ाई कम की है मगर जितना अंतर्ग्यान के आधार पर कह सकता हूँ कि ध्यानस्थ हो यदि अंतर्निहित ऊर्जा का अवलोकन करने का प्रयास किया जाए तो सभी शंकाओं का समाधान/उत्तर मिल सकता है।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteJinhone mata sati se sadi kar unse milan nhi kiya jinke samst sadhu risi bhagt hue jo hmesa vairag m rhe vo kia ese krity kabi krte ye sarvatha galat h galat jitne muh utni bate apne ye jarur suna hoga hari annat hari katha annta vese hi ap b annant h to annat kathae bna rhe h jinhe kamdev v kamini apne moh jal m nhi fsa sake jabki unke saman koj nhi kha jata tha to shiv k lie ese vachan kiu
ReplyDeleteJinhone sarvatha ek hi se praim kiya maa aadishakti apko ek baat batana chahunga maa aadishakti shiv k hi uurgatap m thi brahmma ji k sristi m sabi praniyo ko janm hetu shakti ki jarurat thi tb mahadev ne aadishakti ko apne se alag kiya or shakti pure sansar ka bharman kr loti tb dekha k vha sab prani janm le chuke h tb unka nam jagat janni pda jo shakti mhadev k anter nihit thi jb unhone apne vairag m unhe swikarna unse shambhand rkh grahasth jivan jeena nhi pasand kiya tb bhagvaan visnu k aagrh brahmma ji k aagrh m tarkasur k vadh ka dayitv shankar ji k putr kartikey ji ka tha yhi karn se maa parvati k sath unhone vivah kiya or kartikey ji utpann hue jo veragi h apne unhe hi kukrityo m sanlagn kr diya yhi esa hi hota to ap manusyo k kukrityo m or bhagvaan m kia antr rh jata apne apna jesa hi samj lia kia bhagvaan ko b
Or ling shiv ling shiv k ardhnarishwar ka prateek h or ap esa kh re jinko is bare m pta hi ni h k shiv h kia vo shiv k bare m kia sochte honge kia karoge av upr jake bhagvaano ko bdnaam krne valo itna to shamjho k tum yhi achce vyaktitv vale yogi k samaan ho to tum shiv ho shiv h kia hamare mere pran h shiv jb shiv nhi to ye shareer shav ban jata h shav kia ho gya ap logo ko kukritiyo se man hta shiv gungan krne k bajay ap to unhe b apne yug ki bhati balatkari purus jese hi bata rhe h sharm nhi aati apko
Ise hi kha jata h shayd jis thali m khaya usi m chead na janne ki chestha na gyan ka bhandar bs chale h sabko padne shiv swaroopi akahbar jisme shirf inke galt kukermo m inhone shiv ko b jod lia jo jagat k mahadev h kia unka vyaktitv munijan khud nhi jante the k vo kon k kia h ya muniyo ki patniya shiv se aprichit thi jinhone sabko bachaya unhe hi sharap milta h vo b muniyo se jo swayam shambhu ji k hi bhagt h pehle jano shiv ko kia h shiv uske bd apne hath chalaiyega
Om namh shivay
Har har mahadev
Jai kashi viswanath shambhu jai shiv omkar
Jinhone mata sati se sadi kar unse milan nhi kiya jinke samst sadhu risi bhagt hue jo hmesa vairag m rhe vo kia ese krity kabi krte ye sarvatha galat h galat jitne muh utni bate apne ye jarur suna hoga hari annat hari katha annta vese hi ap b annant h to annat kathae bna rhe h jinhe kamdev v kamini apne moh jal m nhi fsa sake jabki unke saman koj nhi kha jata tha to shiv k lie ese vachan kiu
ReplyDeleteJinhone sarvatha ek hi se praim kiya maa aadishakti apko ek baat batana chahunga maa aadishakti shiv k hi uurgatap m thi brahmma ji k sristi m sabi praniyo ko janm hetu shakti ki jarurat thi tb mahadev ne aadishakti ko apne se alag kiya or shakti pure sansar ka bharman kr loti tb dekha k vha sab prani janm le chuke h tb unka nam jagat janni pda jo shakti mhadev k anter nihit thi jb unhone apne vairag m unhe swikarna unse shambhand rkh grahasth jivan jeena nhi pasand kiya tb bhagvaan visnu k aagrh brahmma ji k aagrh m tarkasur k vadh ka dayitv shankar ji k putr kartikey ji ka tha yhi karn se maa parvati k sath unhone vivah kiya or kartikey ji utpann hue jo veragi h apne unhe hi kukrityo m sanlagn kr diya yhi esa hi hota to ap manusyo k kukrityo m or bhagvaan m kia antr rh jata apne apna jesa hi samj lia kia bhagvaan ko b
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Ise hi kha jata h shayd jis thali m khaya usi m chead na janne ki chestha na gyan ka bhandar bs chale h sabko padne shiv swaroopi akahbar jisme shirf inke galt kukermo m inhone shiv ko b jod lia jo jagat k mahadev h kia unka vyaktitv munijan khud nhi jante the k vo kon k kia h ya muniyo ki patniya shiv se aprichit thi jinhone sabko bachaya unhe hi sharap milta h vo b muniyo se jo swayam shambhu ji k hi bhagt h pehle jano shiv ko kia h shiv uske bd apne hath chalaiyega
Om namh shivay
Har har mahadev
Jai kashi viswanath shambhu jai shiv omkar
शाले पूरह पीढी को लेकर आ फिर हम बताते है कि भोलेनाथ कौन है
ReplyDelete।।।।अवस्य जानिये।।।।
Delete1. कौन ब्रह्मा का पिता है ? कौन विष्णु की माँ ? शंकर का दादा कौन है?
2. शेराँवाली माता (दुर्गा अष्टंगी) का पति कौन है?
3. हमको जन्म देने व मरने में किस प्रभु का स्वार्थ है?
4. पूर्ण संत की क्या पहचान है ?
5. हम सभी आत्मायें कहाँ से आई हैं ?
6. ब्रह्मा, विष्णु, महेश किसकी भक्ति करते हैं ?
7. तीर्थ, व्रत, तर्पण एवं श्राद्ध निकालने से कोई लाभ है या नहीं ? (गीतानुसार)
8. समाधी अभ्यास (meditation), राम, हरे कृष्ण, हरि ओम, हंस, तीन व पाँच आदि नामों तथा वाहेगुरु आदि-आदि नामों के जाप से सुख एवं मुक्ति संभव है या नहीं ?
9. श्री कृष्ण जी काल नहीं थे । फिर गीता वाला काल कौन है? ====अधिक जानकारी के लिए "ज्ञान गंगा" पुस्तक अवस्य पढिये OR Please Visit www.jagatgururampalji.org
भाई साहब आपके पूज्य भगवान रामपाल तो जेल में मिलेंगे. अपने नाम के आगे से राम हटाकर असुर लगाये.
Deleteमेरे विचार से लेखक पूर्णतया वामपंथी विचारधारा से ग्रसित हैं अथवा आगरा जाने को उत्सुक हैं �� हर हर महादेव
ReplyDeleteबाबा माफ करे तझे
ReplyDeleteबाबा माफ करे तझे
ReplyDeleteSee, some so-called shastras of hindu-dharma are actually the corrupted versions and no longer original. But that is true to scriptures of all religions.
ReplyDeleteSO, rather than denigrating the whole religion due to the corrupted parts, we should try to extract the parts we can get benefited from. For example, take the lesson on human behaviour from Gita: attachment leads to desire which leads to anger which leads to delusion which leads to destruction. So we should do our work without attachment.
Then there are well documented remedies for ailments in texts like Ayurveda.
Like this, there are lot of possibilities of practical benefits from real Hindu shastras. I see that you have good desire of knowing the truth so don't stop it at these petty cooked-up stories.
I pray that you may get guidance of a good teacher. And that can happen still sonner if you also pray for the same from that highest Power (you may call that Power by any name).
May God give you true knowledge, love and bliss!
क्या नग्न होकर शिव पूजा या जलाभिषेककरना चाहिए? क्या इससे शिव जी जल्दी प्रसन्न होते है
ReplyDeleteभाई जी आपने पूरा गलत और गलत लिखा है आप श्रीफ हिन्दू धरम को गन्दा बता रहे हो आपको पोस्ट करने से पहले अच्छे से इनफार्मेशन पदनी चाहिए आप को कोई हक नहीं की अप्प लोगो को झूटी कहानिया सुना कर लोगो को भर्मित करो !
ReplyDeleteIs par thoda gyan do ki muslim mard ladies k kapde lapse (salwar ) Katy pehente hai...
ReplyDeleteIska kya itihaas hai ?
Is par thoda gyan do ki muslim mard ladies k kapde lapse (salwar ) Katy pehente hai...
ReplyDeleteIska kya itihaas hai ?
Bhagwan ke baare me galat bolne se pahle so lakh baar sochna chahiye jisne bhi ye likha he wo narak ki aag me jalega
DeleteSharm karo ,ishwar ke baare me galat bolne se pahle lakh baar socho barna jisne bhi ye likha he wo to nark me jayega hi ,sath me logo ko bhramit karne ki bhi saja payega
ReplyDeleteKuch log hamari sanskriti ko kharab karne main lage hue hain....kyunki kalyug main ek hi charn dharm ka hai or teen charn pap ke...mahadev ko galet dhang se bataya ja raha hai...in logon ko vaidon or shastron ka to kuch bhi gyan nahin or kehte hain vaidon main shiv ka naam nahin...unko main batana chahta hoon ki vaidon ko shiv ki aagya se hi barmha ji ne mukh se nikala tha...shiv anant hai...jin se hi bramha vishnu or rudra nikle hain...shiv ling ka mahtav itna hai ki usko bhrmh rishi or devta bhi samjhne main asmarth hain...tu kya samjhega....dharm ke baare main apshabd bolne wala narkgaami hai.....jai bholenaath
ReplyDeleteExternal na bano apna mann dusriya laye saaf rakho insanity rakho parents di sewa karo kise bhi religion vaare galat na bolo .parmatma nu apne ander relize karo kehnde hai na self realization before God realization pehla apni parakh karo assi god di karan lag painde aaaa socho
ReplyDeleteआधा अधूरा ज्ञान विनाश की ओर ले जाता है। आपने शास्त्र ग्रंथों में गलतियाँ खोजीं, जिसमें कई बातें गलत हैं और ये पेज के द्वारा आपने सनातन धर्म को गलत सिद्ध करने की कोशिश की है। शिव की उत्पत्ति की बात आती है, जो आपने गलत लिखा कि ब्रह्माजी के आसुओं से हुए थे और ब्रह्मा शिवजी की नाभि के कमल से, लेकिन ब्रह्माजी भगवान विष्णु की नाभि के कमल से हुए थे,भगवान विष्णु जो ही सारे ब्रह्मांड के कारक और कारण हैं यानि सारा क्रियाएँ उन्हीं में होती हैं और सब कुछ वही करते हैं। सब कुछ उन्हीं से उत्पन्न होता है और उन्हीं में समा जाता है। अगर आप ब्रह्म का सगुण रूप देखते हैं तो आप गलतियां निकालने लगते हैं क्योंकि आपका ज्ञान अधूरा है, आप सच्चिदानंद ब्रह्म को देवता बतातें हैं, जबकि देवता भी संसार के जन्म मरण का अंग हैं। संसार की ८४ लाख योनियों में एक योनि देवता की भी है और ब्रह्म तो एक है उसका न आदि है न अंत, न कोई निश्चित स्वरूप है क्योंकि वह अपने आप में पूर्ण है और जब सब कुछ वही है, सारी माया उसी की है, सारा ब्रह्मांड उसकी भृकुटि के इशारे में बनता बिगड़ता है। तो उसके आकार स्वरूप से प्रश्न हट जाता है क्योंकि जो भी लीला के रूप में उसने धरती पर अवतार लिया वही सगुण ब्रह्म का रूप है। शिवजी की उत्पत्ति ब्रह्माजी की भृकुटि से हुई है, न कि आँसू से। और जो कहा गया है कि 'शिव लोक की कल्पना करना अज्ञानी और मूढ़ पुरूषों का काम है ।', वह इसलिए कि हम मनुष्य हैं और हमारी इतनी बुद्धि नहीं कि शिव लोक या परमात्मा के बारे में कुछ भी अनुमान लगा सकें। क्योंकि हम मृत्यलोक में रहते हुए लौकिक जगत के नजरिए से ही सारी कल्पनाएँ कर सकें। जैसा कि आप अपने आप को बुद्धिमान समझते हैं इसलिए आपने बुद्धि अनुसार अपनी क्षमता से सारी बातों के गलत अर्थ निकाले। इसके लिए भी बताया गया है कि ब्रह्म का स्वरूप समझने के लिये और अलौकिक बातों का सही ज्ञान लेने के लिये एक अच्छे संत पुरुष की शरण में अपने कल्याण के उद्देश्य से जाना चाहिए। क्योंकि ये सारी बातें कल्पनातीत हैं, हम इंद्रियविषयों में खोए हुए ही सारी बातों का अर्थ गलत निकालते हैं क्योंकि हमने इसके आगे कुछ समझा ही नहीं। सारी योनियों में जन्में प्राणी जन्ममरण के बंधन में फंसे रहते हैं और देवता भी उसमें आते हैं जिनके पुण्य क्षीण होते ही वो वापस स्वर्ग लोक से धरती पर आ जाते हैं, जो परमात्मा के अंश से पैदा हुए हैं, अर्थात् अयोनिज हैं, वही न जन्म लेते हैं, न मरते हैं और वो हमारी समझ से परे हैं। देवताओं की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि वह हमें स्तुतिपूजा करने पर लौकिक मनोवांछित फल देते हैं, वो भी अपनी अपनी सामर्थ्यानुसार। उनमें भी यह सामर्थ्य नहीं कि वह परमात्मा का दर्शन करवा सकें। क्योंकि परमात्मा के दर्शन तो देवों को भी नसीब नहीं होते बल्कि मनुष्य शरीर ही एकमात्र आधार है ब्रह्मसाक्षात्कार का जिस शरीर के लिये देवता भी तरसते हैं। पर परमेश्वर की आराधना पूजा से बिना माँगे लौकिक तो क्या अलौकिक चीजों की प्राप्ति भी आसानी से हो जाती है। इसलिए व्यर्थ का भ्रम पैदा करना नास्तिकवाद को जन्म देता है और लोगों में तरह तरह की भ्रातियां उनके स्वार्थानुसार जन्म लेती हैं और पापकर्म करवाती हैं। जैसे कि आप कर रहे हैं। मानव जन्म का उद्देश्य खुद का कल्याण है जो कि भारतवर्ष में और वह भी सनातन धर्म में ही मिलेगा। सीधी सी बात है, ब्रह्मसत्ये जगत् मिथ्या। जिस मनुष्य शरीर और नश्वर जगत को अपना मान लिया है, वो एक दिन छोड़ ही देना है, अत: बुद्धिमान वही है जो ईश्वर के अस्तित्व तर्क कुतर्क न करके अपने कल्याण के बारे में सोंचे। जब बड़े से बड़े संतों ने इन पर उंगली नहीं उठाई तो साधारण मनुष्यों की औक़ात ही क्या है। भौतिकवादी शिक्षा व्यवस्था के कारण हम आध्यात्मिक ज्ञान से दिनोंदिन दूर जा रहे हैं। अत: वास्तविक ज्ञान प्राप्ति के लिए सद्गुरु की शरण में जाएं और निस्वार्थ भाव से सारी बातें समझें। बाकी हरि इच्छा। ॐ नम: शिवाय।
ReplyDeleteआधा अधूरा ज्ञान विनाश की ओर ले जाता है। आपने शास्त्र ग्रंथों में गलतियाँ खोजीं, जिसमें कई बातें गलत हैं और ये पेज के द्वारा आपने सनातन धर्म को गलत सिद्ध करने की कोशिश की है। शिव की उत्पत्ति की बात आती है, जो आपने गलत लिखा कि ब्रह्माजी के आसुओं से हुए थे और ब्रह्मा शिवजी की नाभि के कमल से, लेकिन ब्रह्माजी भगवान विष्णु की नाभि के कमल से हुए थे,भगवान विष्णु जो ही सारे ब्रह्मांड के कारक और कारण हैं यानि सारा क्रियाएँ उन्हीं में होती हैं और सब कुछ वही करते हैं। सब कुछ उन्हीं से उत्पन्न होता है और उन्हीं में समा जाता है। अगर आप ब्रह्म का सगुण रूप देखते हैं तो आप गलतियां निकालने लगते हैं क्योंकि आपका ज्ञान अधूरा है, आप सच्चिदानंद ब्रह्म को देवता बतातें हैं, जबकि देवता भी संसार के जन्म मरण का अंग हैं। संसार की ८४ लाख योनियों में एक योनि देवता की भी है और ब्रह्म तो एक है उसका न आदि है न अंत, न कोई निश्चित स्वरूप है क्योंकि वह अपने आप में पूर्ण है और जब सब कुछ वही है, सारी माया उसी की है, सारा ब्रह्मांड उसकी भृकुटि के इशारे में बनता बिगड़ता है। तो उसके आकार स्वरूप से प्रश्न हट जाता है क्योंकि जो भी लीला के रूप में उसने धरती पर अवतार लिया वही सगुण ब्रह्म का रूप है। शिवजी की उत्पत्ति ब्रह्माजी की भृकुटि से हुई है, न कि आँसू से। और जो कहा गया है कि 'शिव लोक की कल्पना करना अज्ञानी और मूढ़ पुरूषों का काम है ।', वह इसलिए कि हम मनुष्य हैं और हमारी इतनी बुद्धि नहीं कि शिव लोक या परमात्मा के बारे में कुछ भी अनुमान लगा सकें। क्योंकि हम मृत्यलोक में रहते हुए लौकिक जगत के नजरिए से ही सारी कल्पनाएँ कर सकें। जैसा कि आप अपने आप को बुद्धिमान समझते हैं इसलिए आपने बुद्धि अनुसार अपनी क्षमता से सारी बातों के गलत अर्थ निकाले। इसके लिए भी बताया गया है कि ब्रह्म का स्वरूप समझने के लिये और अलौकिक बातों का सही ज्ञान लेने के लिये एक अच्छे संत पुरुष की शरण में अपने कल्याण के उद्देश्य से जाना चाहिए। क्योंकि ये सारी बातें कल्पनातीत हैं, हम इंद्रियविषयों में खोए हुए ही सारी बातों का अर्थ गलत निकालते हैं क्योंकि हमने इसके आगे कुछ समझा ही नहीं। सारी योनियों में जन्में प्राणी जन्ममरण के बंधन में फंसे रहते हैं और देवता भी उसमें आते हैं जिनके पुण्य क्षीण होते ही वो वापस स्वर्ग लोक से धरती पर आ जाते हैं, जो परमात्मा के अंश से पैदा हुए हैं, अर्थात् अयोनिज हैं, वही न जन्म लेते हैं, न मरते हैं और वो हमारी समझ से परे हैं। देवताओं की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि वह हमें स्तुतिपूजा करने पर लौकिक मनोवांछित फल देते हैं, वो भी अपनी अपनी सामर्थ्यानुसार। उनमें भी यह सामर्थ्य नहीं कि वह परमात्मा का दर्शन करवा सकें। क्योंकि परमात्मा के दर्शन तो देवों को भी नसीब नहीं होते बल्कि मनुष्य शरीर ही एकमात्र आधार है ब्रह्मसाक्षात्कार का जिस शरीर के लिये देवता भी तरसते हैं। पर परमेश्वर की आराधना पूजा से बिना माँगे लौकिक तो क्या अलौकिक चीजों की प्राप्ति भी आसानी से हो जाती है। इसलिए व्यर्थ का भ्रम पैदा करना नास्तिकवाद को जन्म देता है और लोगों में तरह तरह की भ्रातियां उनके स्वार्थानुसार जन्म लेती हैं और पापकर्म करवाती हैं। जैसे कि आप कर रहे हैं। मानव जन्म का उद्देश्य खुद का कल्याण है जो कि भारतवर्ष में और वह भी सनातन धर्म में ही मिलेगा। सीधी सी बात है, ब्रह्मसत्ये जगत् मिथ्या। जिस मनुष्य शरीर और नश्वर जगत को अपना मान लिया है, वो एक दिन छोड़ ही देना है, अत: बुद्धिमान वही है जो ईश्वर के अस्तित्व तर्क कुतर्क न करके अपने कल्याण के बारे में सोंचे। जब बड़े से बड़े संतों ने इन पर उंगली नहीं उठाई तो साधारण मनुष्यों की औक़ात ही क्या है। भौतिकवादी शिक्षा व्यवस्था के कारण हम आध्यात्मिक ज्ञान से दिनोंदिन दूर जा रहे हैं। अत: वास्तविक ज्ञान प्राप्ति के लिए सद्गुरु की शरण में जाएं और निस्वार्थ भाव से सारी बातें समझें। बाकी हरि इच्छा। ॐ नम: शिवाय।
ReplyDeletePURANO ME SHIV KI UTPATTI(BIRTH)KI KAHANI ALAG ALAG KYUN HAI
DeleteNAME NADEEM
AAP YE MANIYE KI HINDU DHARMA aap ko maaf kar diya ager aap kisi or dharm ke baare me aasa likhte to aap jinda na hote. Or do't write like this in future. Aap shiv mahima nahi jante aap shiv ki sharn me jaya aap ko khud anubhav hoga ki aap jivan me kya paye hai .shiv wo anmol ratan hai jisne paya hai wovhi jaan sakta hai aap kya jane .shiv ki maya shiv hi jane hum to shif apni soaach tak hi simit hai .kya aap 22 centuries ho kar bhi universes ka birth jan paye nahi wo shiv ki hi maya hai.....aap khud samajdhar hogy aap ko kya samjhana shyad aap jada padhai kar liye hai ..
ReplyDeleteAger aap bharat desh me na hote to humbhi aap ka muder kar deta per yaha per bolne ka pura aahikar hai jo bhi maan aaye bol do bas
शिवलिंग का मतलब है पवित्रता का प्रतीक | दीपक की प्रतिमा बनाये जाने से इस की शुरुआत हुई, बहुत से हठ योगी दीपशिखा पर ध्यान लगाते हैं | हवा में दीपक की ज्योति टिमटिमा जाती है और स्थिर ध्यान लगाने की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न करती है इसलिए दीपक की प्रतिमा का निर्माण किया गया ताकि एकाग्र ध्यान लग सके | लेकिन कुछ विकृत दिमागों ने इस में जननागों की कल्पना कर ली और झूठी कुत्सित कहानियां बना ली और इस पीछे के रहस्य से अनभिज्ञ भोले हिन्दुओं द्वारा इस प्रतिमा का पूजन पवित्रता के प्रतिक के रूप में करना शुरू कर दिया गया| शिव + लिंग = मंगलमय और कल्याणकर्ता + प्रमाण
ReplyDeleteशिव कल्याणकर्ता है – मंगलमय है इसीलिए वह ईश्वर (शिव) यह कर्मफल व्यवस्था है कि आप जब तक मोक्ष प्राप्त न कर लो – इस हेतु आपका पुनर्जन्म होता रहेगा – और ये सूक्ष्म शरीर इसी लिए प्रमाण है की आप स्थूल शरीर से उत्तम कर्म करते हुए मोक्ष प्राप्त करो – इसी कारण ईश्वर को शिव अर्थात कल्याणकारी कहा जाता है।
VEry Nice Keep Doing read here about shiva
ReplyDeleteकोरिया में बुद्धा के शिश्न की स्मृति में PENIS PARK (शिश्न-बाग) बना हुआ है और कई होटल बनी है जिसमे हर व्यंजन बुद्ध शिश्न के आकार के होते हैं l चाइना में अभी PENIS आकार की बिल्डिंग का काम चल रहा है l
ReplyDeleteजापान में बुद्ध शिश्न के लिए त्यौहार मनाये जाते है l
बुद्ध की हर मूर्ति पर पेनिस जैसा आकार बना हुआ है l पेनिस को जीवन का हर रहस्य बोद्धिस्म में माना गया है l इसलिए बुद्धिज़्म में सब कुछ पेनिस से शुरू होता है और पेनिस पर ख़त्म होता है l
भारतीय इतिहास का महानतम् वैज्ञानिक रहस्य शिवलिंग को भी इन्हीं बौद्धों ने विकृत करके मानव शिश्न के रूप में प्रचारित किया हैं, सनातन धर्म को नीचे गिराकर बौद्ध धर्म को ऊपर उठाने की विकृत चाह में इन लोगो ने सनातन धर्म के शास्त्रों को नष्ट किया, शास्त्रों में विशेषकर पुराणों में मिलावट की हैं, कई अध्याय बदले दिये गये और अनेक शब्दों के अर्थो का कुअर्थ किया गया हैं।
NICE PAGE
ReplyDeleteShiv ji k baare m padhne k bad kaisa lagta h ki kikhnevala koi Muslim hi hoga y shaitan ki aulad.ye likhnevala admi kabhi bhi Hindu nhi ho Sakta !!!
ReplyDeleteलेखक अज्ञानी है
ReplyDeleteशिवलिंग का अर्थ है: शिव यानी परमपुरुष का प्रकृति के साथ समन्वित-चिह्न;उसका आदि-अनादी स्वरूप। न कि शिव का शिश्न ।यह दुख की बात है कि बहुत से लोगों ने कालांतर में योनि और शिश्न की तरह शिवलिंग की आकृति को गढ़ा और वे इसके लिए कुतर्क भी देते रहते हैं। उक्त सभी लोगों को भगवान को इसका जवाब देना होगा, क्योंकि शिव का अपमान करने वाले कैसे बच पाएगा ?
Logical chij likhi to h
ReplyDeleteBhagwan bhagwan. Bhut. Khel liya yaar
Jha. Bhagwan. Nhi. H vo. Desh bhi. Hmse age h
Angrejo ko. Hi. Shap. De dete. Muni. Or. Bhole. Baba
Desh. Ajad. Krane bhole baba or parvati dadi nhi. Aai thi.
स्रष्टि के आरम्भ में महाविस्फोट(bigbang) के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व निचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ जैसा की आप उपरोक्त चित्र में देख सकते है | जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में मिलता है की आरम्भ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) तथा की देवता आदि मिल कर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शास्वत अंत न पा सके । पुराणो में कहा गया है की प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में समाहित (लय) होता है तथा इसी से पुनः सृजन होता है ।
ReplyDeleteस्रष्टि के आरम्भ में महाविस्फोट(bigbang) के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व निचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ जैसा की आप उपरोक्त चित्र में देख सकते है | जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में मिलता है की आरम्भ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) तथा की देवता आदि मिल कर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शास्वत अंत न पा सके । पुराणो में कहा गया है की प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में समाहित (लय) होता है तथा इसी से पुनः सृजन होता है ।
ReplyDeleteभाई साहब 'शिव पुराण'जो असत्य का भंडार है उसकी रचना मात्र 850 वर्ष पूर्व चालुक्य राजाओ ने करवाई थी. भ्रम को त्यागो 'ब्रह्म'को पहचानो.
DeleteGadhe ....tujhe kisne racha......Ved aadi hai... kabhi padh.... Sukal yajurved... (https://archive.org/stream/HindiBook--rudrashtadhyayi.pdf/HindiBook--rudrashtadhyayi?ui=embed#page/n61/mode/2up)... padh le... (https://archive.org/stream/HindiBook--rudrashtadhyayi.pdf/HindiBook--rudrashtadhyayi?ui=embed#page/n89/mode/2up) or padh le........ sayad tu Gade se Ghoda ban jay...... aadmi to tu agle janam me banega
DeleteThere is no such press as Diamond Press or Sadhna Press which publishes religious books. All the stories and quotes have been fabricated by the author of the post himself...
ReplyDeleteAll fake information.
ReplyDeleteSahi bro sab sahi h sirf sachae logo se akhar rahi h
ReplyDeletekrishna Deo... mere bhai... Pahle Sanatan ko samjh lo.... fir sachche jhute ki bate krna... ............. 6 Aastik darshan h 6 Nastik Darshan h ..... jisme duniya ke sare mat/rule/dharm/tarike/soch wale aa jate h ..... fir v dharm ek h ... sanatan... sab bigde sudhre esi me aate h .... nasamjh or samjhdar v...... 1 Dharm = Sanatan... 1 Iswar = Barham (allah, GOD, Rab.. etc)... 1 Jagah milta hai = Sirf Dil me... 1 aatma = 1 parmatma ...... kaal se v puratan... kal se v naya... (Kewal Sadguru / Sant / Sufi / Yogi) hi use jante h .... unki saran me ja... Kalyan = Shiv hoga ... Allah talha ka noor barsega...... Rab mehrba Hoga.... God Bless you
Deletesabhi Bhagat ko Mera pranam Mera naam pravesh Sharma hai yadi aap sabhi Gyani hai tho prasana hai ki karam kya hai ,jab hamari mritu, janam, shadi, santan, already Likha hai to,hamara karam kya hua,
ReplyDelete5000 वर्ष पहले शिव भक्ति नहीं थी. 4000 साल पहले मूसा की भक्ति नहीं थी. 3००० साल पहले बुद्ध और महावीर की भक्ति नही थी. 2000 वर्ष पहले पहले ईसा की भक्ति नहीं थी और 1500 वर्ष पहले मुहम्मद (अल्लाह) का नाम नही था और 500 साल पहले गुरु नानक की भक्ति नहीं थी.लेकिन भगवान (विष्णु) की भक्ति पहले भी थी आज भी है और कल भी रहेगी ... सनातन धर्म 'सनत्कुमारो' से बना है जो भगवत भक्त थे.पहले शिव भक्त को असुर कहा जाता था चाहे वो ब्राह्मण हो जैसे 'रावण' और भगवान के भक्त यदि असुर पुत्र भी देव कहलाये जैसे 'प्रह्लाद व बलि'. अस्नाख्य उदाहरण है जहाँ शिव भगवान की भक्ति करते है. लेकिन आजकल के मुर्ख ब्राह्मण रोजाना एक नए 'धर्म' का सृजन करते है. जो पहले शिव पूजा भी नहीं करते थे वे लालच वश 'साईं' पूजा भी करने लगे.
ReplyDeleteजो शिव से द्वेष करता है, वह विष्णु से द्वेष करता है और जो विष्णु से द्वेष करता है, वह शिव से द्वेष करता है।लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से पूछा- प्रभो! सबसे अधिक आपको कौन प्रिय है? भगवान विष्णु ने कहा- प्रिय! नि:संदेह मेरे प्रियतम तो एकमात्र शिव ही हैं। जैसे देहधारियों को अकारण ही अपनी देह प्रिय है, उसी तरह मुझे स्वाभाविक ही शिव प्रिय हैं। इसी तरह भगवान शिव के भी सबसे अधिक प्रिय विष्णु ही हैं। भगवान विष्णु को संबोधित करते हुए शिव कहते हैं- हे हरि! आपसे बढ़कर मुझे कोई भी प्रिय नहीं है। औरों की तो बात ही क्या, पार्वती भी मुझे आपके समान प्रिय नहीं है।
Deleteशिव के हृदय में विष्णु और विष्णु के हृदय में शिव के प्रति बहुत अधिक स्नेह है। ऐसी मान्यता है कि शिव तामस (श्याम) मूर्ति हैं और विष्णु सत्व (श्वेत) मूर्ति हैं। परन्तु शिव और विष्णु एक दूसरे से अत्यधिक ध्यान करते हैं, इस कारण शिव श्वेतवर्ण (कर्पूर गौरं) और विष्णु श्यामवर्ण (गगन सदृशं) हो गए।
Bachche pahle prem ko samjh ... fir tujhe shiv or visnu ka sambandh samjh me aayega... ek aatma 2 roop....
लिंग थाप विधिवत कर पूजा . शिव सामान मोहे प्रिय न दूजा .......
om om om ....
Aap Bahut hi foolish h .Badi sharm ki bat h K Aap hindu h. Maafi manglo Mahadev se warna naash ho jayega tumhara. Har Har Mahadev
ReplyDeleteTUM PURAN KI BAAT KAR RAHE HO TO SHIVPURAN MEIN YE BHI LIKHA HAI JO SHIVNINDA KAREGA VO NARAK JAYEGA .SHIV ARTH MANGAL HAI.SHIV NE SANSAAR KE LIYE VISHPAAN KIYA THA .MAHAKALI KE KRODH SE SANSAAR KO BACHAYA .NARSINGH AVTAAR KE KRODH SE SANSAAR KO BACHAYA.MURKH AISE BHAGWAAN KI TU NINDA KARTA HAI.DUNIYA KO ADARSH DENE VAALE RAAM AUR MAHAVIDWAAN RAAKSHAS RAVAN BHI JISE PUJTA HAI VO KYA KABHI AMANGALKARI HO SAKTA HAI .TU KOI BAHUT BADA DUSHT PAAPI HAI TERA SAVNASH HOGA AUR TUJHE GANESH;VISHNU;DURGA;AUR SURYA BHI NAHI BACHA SAKTE KYONKI YEH SAAB SHIV KO HI PUJTE HAIN. TUNE AISA PAAP KIYA HAI JISKA PRASHCHIT NAHI.TERA NARAK JANA NISHCHIT HAI DHUSHT;PAAPI;NARAKGAMI;NEECH;TERA SARVNASH KARDE SAARE BHAGWAAN AUR AVASHIYE KARENGAY YAAD RAKHIYO TUNE USKI NINDA KARDI JO GANESH ;VISHNU;DURGA SABHIKA BHAGWAAN HAI.BACH SAKTA HAI TO BACH .AB CHHAMA MANGNE SE BHI TERA KALYAAN NAHI HOGA TUNE BHOLE BABA KI NINDA KI HAI.YEH SAB DAKSH NE BHI KIYA THA AUR USKA SARVNAASH HUA BHAGWAAN VISHNU BHI USE BACHA NAHI SAKE .VO TO DAKSH THA BRAHAMAPUTRA PHIR TERE JASE TUCHH MANAV KO KAUN BACHAYEGA.BHACH SAKTA HAI TO BACH.
ReplyDeleteकृप्या हिंदी और संस्कृत में जो फर्क है उसे समझे
ReplyDeleteसंस्कृत में गुप्तांग ( पुरूष जननांग) को केवल शिश्न कहा जाता है
दूसरी बात आपने जिन किताबो का उद्धरण यहाँ किया है उसकी प्रमाणिकता के बारे में क्या सबूत है
तीसरी बात छंद अलंकार समास दोहे चौपाइयां नाम की भी कोई चीज होती है जिनका ख्याल कुछ ख्याली लोग नही करते
tumahri to kya aukat hai tumne kiski ghatiya kitabe padli or aa gaye yaha gyan bagharne ..shiv to aadi hai anant hai .. tumhe to din rat shiv hi sujhte honge ..kyu ki itna vish tumhare dimag me bhara hai ki shivay shiv tumhe koi jinda nahi rakh sakta ..hopeless ..shame on you
ReplyDeleteAre bhai dimaag kharab ho gya hai Inka Bhagwan shiv ke
ReplyDeleteBaare me aisi baate kehte hai are skand puran me bhi aisi kisi baat ka jikar nhi hai jo bakwas kar rha hai tu
Don't know anything Gyan ki baat karte ho kuch Gyan nhi hai tumhe agar Jara si bhi sharam bachi ho to dub mar Kahi jaa ke
Are bhai dimaag kharab ho gya hai Inka Bhagwan shiv ke
ReplyDeleteBaare me aisi baate kehte hai are skand puran me bhi aisi kisi baat ka jikar nhi hai jo bakwas kar rha hai tu
Don't know anything Gyan ki baat karte ho kuch Gyan nhi hai tumhe agar Jara si bhi sharam bachi ho to dub mar Kahi jaa ke
Are bhai dimaag kharab ho gya hai Inka Bhagwan shiv ke
ReplyDeleteBaare me aisi baate kehte hai are skand puran me bhi aisi kisi baat ka jikar nhi hai jo bakwas kar rha hai tu
Don't know anything Gyan ki baat karte ho kuch Gyan nhi hai tumhe agar Jara si bhi sharam bachi ho to dub mar Kahi jaa ke
Akal mrityu wo mare jo karm kare chandaal ka
ReplyDeleteKaal bhi uska kya kare jo bhakt ho mahakal ka
Aur tune toh kaalo ke Kaal ka apmaan kiya hai
Shama maang le bhole nath maaf kar denge kya pata?
Jo dharm akranta ka banaya gaya hai jisme sabko apne dharm ko balat apnane pralobhan dwara ya pratadit kar apanane hetu vivash kiya jaye jisme anya dharm walon ko kafir kaha jaye iska matlab hai ki us dharm me swatah astha nahi hai balat dharm me parivartit kiya jaye kyon Sanatan dharm me kisi ko dharmantean ki awdharana nahi hai wo agyani hai jo balat dharm parivartit karate hain aur 1100 sal poorv khanabadosh ghumantu kisi ek adami dwara banayee achar sahita ka palan na karane walon par atyachar vyabhichar kar apna dharm failane wale shayad dare huwe hain ki islam ka swayam astitva na samapt ho jaye unhe Ishwar chhama kare. Sanatan dharm me kahin videsh me jakar balat dharmantaran ki awadharna hi nahi hai ye shashwat anant hai apko mandir jakar pooja karane ki bhi jaroorat nahin hai hamara dharm sarashwat aur sanatan hai aur jinse hum uchha bhi pate hain chahe wah maryada ho ya unche vichar unaka hi anugaman karana dharm hai. Dharma ki paribhasha hai Dharanat dhamam ityahu matalab jo dharan karneyogya hai wahi dharma hai Registan me nahana dharm nahi balki adharm hai. Ye vaigyanic hai isiliye manya hai. Agar aap sahamat hon to bhi na hon to bhi aap sanatan dharmi hain. Isi ke karan shak hoon islam christian yahan jagah paye Namaj se hamara dharm nahi pareshan hota par sanatan dharm se Islam darata hai aur TALWAR ki bhasha bolta hai Saudi Arab Jahan Mecca Hai wahan sanatan dharm walo ko jagah nahi milati visa nahi milta kyonki wo sanatan dharma walon se darate hain women ki liberty se darate hain unpar shariat ke
ReplyDeleteकेदारनाथ में सब कुछ तिनके की तरह बह गया जो 21 वि सदी के विज्ञान पे आधारित था मगर 2 हजार वर्ष से पूर्व बना शिव मंदिर और नंदी मूर्ति क्यों नही बही उस भयंकर सैलाब में ??
ReplyDeleteवो विशाल पत्थर की शिला जादू की तरह कैसे अचानक मंदिर के पीछे प्रकट हो गई और सैलाब से केदारनाथ मंदिर को बचा दिया ??
ये इतना बड़ा चमत्कार है शिव शक्ति का घोर कलयुग में और लोग अब भी शिव के होने पर ऊँगली उठा रहे है, क्यों ??
इस से बड़ा सबूत क्या चाहये अब??
Hi,
ReplyDeleteI read your article, you’re describing of expression is excellent and the most valuable thing is, your attracting topic declaration. I really enjoyed and great effort. The points covers in the blog are awesome. Great to read your blog and thanks for this valuable information.
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आप जो ब है मै नी जनता.मेरी हिन्दी typing तोडी खराब hai। सायद आप एक जिघासू है. Ya पण्डित विरोधी। या फिर आप को सायद संमाज मै जाति व्यवस्ता से कोई गहरि चोट पहुची है। ईन मै से क्या है आप खुद जानति है । शायद आप ने बहुत से पुराण पडे है । ऑर आप ने जो भी लिखा है सबी पुराणों से लिखा है । शिव पुराण मै शिव लिंग की दो कहानियाँ है । जिसमे से एक मै तो शिव लीग का आकर ही अनिश्चित है। ब्रमा ऑर विष्णु दोनो थक जाते है परंतु वो बी लिंग के अंत को नी डूड पाते । अर्थात दोनो जब शिव को समझने मै असमर्थ थे तो हम मूर्ख मनुष्य क्या समझ पायेंगे । ।आप ने ये reference bi सही लिया है। परंतु अबी आप की हालत उस आधी गगरि के समान है ।,जो है तो आधी परंतु हला जादा करती है। उसस से बस आसपास का वातावरण शोरगुल मय होता है। वातावरण मै विकार उत्पन होता है । लोग उस आवज से परेशान होते है । व्यथीत होते है । आप की हालत भी आधी गगरि जेशी ही है। कृपया एसा पोस्ट कर के लोगो को भर्मित ना करे । वो already भर्मित है। ऑर आप ब बर्मित ही है। 100 रुपये मिल जाने पर खुद को बेच देते है। अब आप की बात पर आते है । हा शिव पुराण की कथा के तहट की मुनियों ने उनको सराफ दिया की आप का लिंग कट कर जमिन मै गिर जायेगा । तबी से लिंग की उत्पत्ति हुयी है । मैने मान लिया । वो लिंग ही है । ईसमे गलत क्या है। यहा पर मै थोडा ऐक्चुअल लिंग की कुछ (quality) गुण मै बात करना चाहता हू। 1 मिनट के लिए भुल जाओ भगवान शिव को। लिंग मतलब पुरुष का पर्तिक। बिना लिंग के हमार जीवन सम्भव नी है। अगर हम मनुस्यो मै लिंग (penis ) ही नी होता तो हम ब पेदा ना होते । ना आप पेदा होती। तो ईस लिंग से ही जीवन है।यह तो सनातन सच है। अब आप मानो या ना मानो । आप ईसको केसी जूटलाओगी । ये तो आज का science बी बोलते ही है। की बचा पेदा करने मै लिंग ऑर योनि दोनो ही important factor हैं । ईन दोनो के बिना बचा केसे हो सकता । आज तक कोई bi जीव बिना मा-बाप का कोई पेदा हुआ है क्या? भगवान को छोडो कम से कम माता पिता की पूजा तो करनी ही चाहिए ईतना तो आप ब मानती ही होंगी । माता पिता मै लिंग ऑर योनि दोनो है। अगर आप उनकी पूजा कर रि हो तो कही ना कही आप लिंग ऑर योनि की पूजा ब कर ही रही हो । मेरी उत्पति का कारण ही ये दोनो चीजे है । ईनी से मेरा अस्तित्व है। ये ही संसार को चला रे है। ये तो अपने आप शिद्द हो गया। सम्पुर्ण शिव लिंग स्त्रि ऑर पुरुष दोनो का पतीक है ।लिंग की पूजा करना अगर आप लोगो को गलत लग रा है तो मत करो । मुर्ति की पूजा करो। मै करूंगा ईसकी पूजा। ना ही कोई शर्म है। मेरी उतप्ति का कारण ही ये है । जिसे जादा सरम आती है उससे मै यही राय दूंगा की sunny leon को देखना बन्द करे । सरम अपने आप भाग जायेगी। मै ये नी बोल रा sunny leon खराब है। मगर आप उसे देख कर आप के मन मै विकार उत्पन हो गया है। आप confuse ho गए है। confusion को दूर करे । बाकि जवाब चाहिए तो आप कॉल करे 7889531273। तुम्हारे प्रशन का जवाब दूंगा। अपना नज़रिया change kro. Ussi mai problm hai . Na ki लिंग मै ऑर ना ही वेदो मैं। तुम कितने बी वेद पड़ लो जब तक वो बुरे ही लगेंगे। जब तक नजरिया टिक नी है ।
ReplyDeleteJhaahil k dwara likhi gai kahani.
ReplyDeleteMumhammed ek bar arab desh ja rha tha. Tab uski koi masuka ni thi. Vo apni ammi ke pass gya or bola. ammi mai aman or chain k kaam se videsh ja rha hu. Lekin mere andar hi aag lagi hui hai. Tab uski ammi ne uski aag shaat kerne k liye khud ko uske hawale ker diya. Usse jo unhe beta hua iska naam nabi rakha gya.
ReplyDeleteBilkul right bhola sir
ReplyDeleteJo hindu dharam ko mante hai। wo khud v ved nahi read karte hai।
Aur apni adhbhakti dikhne lag jate hai। app hindu dharam me logo ko adhi sikhsha di jati hai। me khud read kiya hu sex aur fight ke alwa kuchh v nhi hai। kisi ne kisi ki pati ka rep kar diya us srap ਦੇ diya। bas aur kuchh nhi
शिव लिंग निराकार परमात्मा की प्रतिमा है जिन महानुभावों की बुद्धि भ्रष्ट है अश्लील है विकारी है वही लोग शिव के बारे में एसो अपनी बातें लिख रहे हैं
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