आज वाल्मीकि जयंती है. सरकार ने छुट्टी घोषित की
है. यह छुट्टी रामायण के रचयिता आदि कवि वाल्मीकि के प्रति सम्मान प्रकट
करने के लिए नहीं बल्कि "सफाई कर्मी जाति " को हिन्दू धर्म की जाति
व्यवस्था पर आस्था पक्की करने के तहत दी है . यदि रामायण के रचयिता के
सम्मान की बात होती तो वेदों, गीता, महाभारत के रचयिताओं के नाम की
छुट्टियों का प्रश्न भी पैदा होता.
वाल्मीकि का सफाई कर्मचारियों से क्या सम्बन्ध बनता
वाल्मीकि का सफाई कर्मचारियों से क्या सम्बन्ध बनता
है?
छुआछूत और दलित मुक्ति का वाल्मीकि से क्या लेना देना है ?
क्या वाल्मीकि छूआछूत की जड़ हिन्दू ब्राह्मण जाति धर्म से मुक्ति की बात करते हैं ?
वाल्मीकि ब्राहमण थे,यह बात रामायण से ही सिद्ध है. वाल्मीकि ने कठोर तपस्या की, यह भी पता चलता है. दलित परम्परा में तपस्या की अवधारणा ही नहीं है. यह वैदिक परम्परा की अवधारणा है. इसी वैदिक परम्परा से वाल्मीकि आते हैं. वाल्मीकि का आश्रम भी वैदिक परम्परा का गुरुकुल है, जिसमें ब्राह्मण और राजपरिवारों के बच्चे विद्या अर्जन करते हैं. ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता कि वाल्मीकि ने शूद्रों-अछूतो को शिक्षा दी हो. अछूत जातियों की या सफाई कार्य से जुड़े लोगों की मुक्ति के संबंध में भी उनके किसी आन्दोलन का पता नहीं चलता. फिर वाल्मीकि सफाई कर्मचारयों के भगवान कैसे हो गए?
जब हम इतिहास का अवलोकन करते हें, तो १९२५ से पहले हमें वाल्मीकि शब्द नहीं मिलता. सफाई कर्मचारियों और चूह्डों को हिंदू फोल्ड में बनाये रखने केउद्देश्य से उन्हें वाल्मीकि से जोड़ने और वाल्मीकि नाम देने की योजना बीस के दशक में आर्य समाज ने बनाई थी. इस काम को जिस आर्य समाजी पंडित ने अंजाम दिया था, उसका नाम अमीचंद शर्मा था। यह वही समय है, जब पूरे देश में दलित मुक्ति के आन्दोलन चल रहे थे. महाराष्ट्र में डा. आंबेडकर का हिंदू व्यवस्था के खिलाफ सत्याग्रह, उत्तर भारत में स्वामी अछूतानन्द का आदि हिंदू आन्दोलन और पंजाब में मंगूराम मूंगोवालिया का आदधर्म आन्दोलन उस समय अपने चरम पर थे. पंजाब में दलित जातियां बहुत तेजी से आदधर्म स्वीकार कर रही थीं. आर्य समाज ने इसी क्रांति को रोकने के लिए अमीचंद शर्मा को काम पर लगाया. योजना के तहत अमीचंद शर्मा ने सफाई कर्मचारियों के महल्लों में आना-जाना शुरू किया. उनकी कुछ समस्याओं को लेकर काम करना शुरू किया. शीघ्र ही वह उनके बीच घुल-मिल गया और उनका नेता बन गया. उसने उन्हें डा. आंबेडकर, अछूतानन्द और मंगूराम के आंदोलनों के खिलाफ भडकाना शुरू किया. वे अनपढ़ और गरीब लोग उसके जाल में फंस गए. १९२५ में अमीचंद शर्मा ने 'श्री वाल्मीकि प्रकाश' नाम की किताब लिखी, जिसमें उसने वाल्मीकि को उनका गुरु बताया और उन्हें वाल्मीकि का धर्म अपनाने को कहा. उसने उनके सामने वाल्मीकि धर्म की रूपरेखा भी रखी.
डॉ आंबेडकर, अछूतानन्द और मंगूराम के आन्दोलन दलित जातियों को गंदे पेशे छोड़ कर स्वाभिमान के साथ साफ-सुथरे पेशे अपनाने को कहते थे. इन आंदोलनों के प्रभाव में आकार तमाम दलित जातियां गंदे पेशे छोड़ रही थीं. इस परिवर्तन से ब्राह्मण बहुत परेशान थे. उनकी चिंता यह थी कि अगर सफाई करने वाले दलितों ने मैला उठाने का काम छोड़ दिया, तो ब्राह्मणो के घर नर्क बन जायेंगे. इसलिए अमीचंद शर्मा ने वाल्मीकि धर्म खड़ा करके सफाई कर्मी समुदाय को 'वाल्मीकि समुदाय' बना दिया. उसने उन्हें दो बातें समझायीं।
पहली यह कि हमेशा हिन्दू धर्म की जय मनाओ, और
दूसरी यह कि यदि वे हिंदुओं की सेवा करना छोड़ देंगे, तो न् उनके पास धन आएगा और न् ज्ञान आ पा पायेगा.
अमीचंद शर्मा का षड्यंत्र कितना सफल हुआ ,सबके सामने है.आदिकवि वाल्मीकि के नाम से सफाई कर्मी समाज वाल्मीकि समुदाय के रूप में पूरी तरह स्थापित हो चुका है. 'वाल्मीकि धर्म 'के संगठन पंजाब से निकल कर पूरे उत्तर भारत में खड़े हो गए हैं. वाल्मीकि धर्म के अनुयायी वाल्मीकि की माला और ताबीज पहनते हैं. इनके अपने धर्माचार्य हैं, जो बाकायदा प्रवचन देते हैं और कर्मकांड कराते हैं. ये वाल्मीकि जयंती को "प्रगटदिवस" कहते हैं. इनकी मान्यता है कि वाल्मीकि भगवान हैं, उनका जन्म नहीं हुआ था, वे कमल के फूल पर प्रगट हुए थे, वे सृष्टि के रचयिता भी हैं और उन्होने रामायण की रचना राम के जन्म से भी चार हजार साल पहले ही अपनी कल्पना से लिख दी थी.हालांकि ब्राह्मणों द्वारा "सफाई भंगी जाति" की दुर्दशा की कल्पना तक उन्हें नहीं थी । क्योंकर होती !
प्रेरित कँवल भारती- २९ अक्टूबर २०१२
छुआछूत और दलित मुक्ति का वाल्मीकि से क्या लेना देना है ?
क्या वाल्मीकि छूआछूत की जड़ हिन्दू ब्राह्मण जाति धर्म से मुक्ति की बात करते हैं ?
वाल्मीकि ब्राहमण थे,यह बात रामायण से ही सिद्ध है. वाल्मीकि ने कठोर तपस्या की, यह भी पता चलता है. दलित परम्परा में तपस्या की अवधारणा ही नहीं है. यह वैदिक परम्परा की अवधारणा है. इसी वैदिक परम्परा से वाल्मीकि आते हैं. वाल्मीकि का आश्रम भी वैदिक परम्परा का गुरुकुल है, जिसमें ब्राह्मण और राजपरिवारों के बच्चे विद्या अर्जन करते हैं. ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता कि वाल्मीकि ने शूद्रों-अछूतो को शिक्षा दी हो. अछूत जातियों की या सफाई कार्य से जुड़े लोगों की मुक्ति के संबंध में भी उनके किसी आन्दोलन का पता नहीं चलता. फिर वाल्मीकि सफाई कर्मचारयों के भगवान कैसे हो गए?
जब हम इतिहास का अवलोकन करते हें, तो १९२५ से पहले हमें वाल्मीकि शब्द नहीं मिलता. सफाई कर्मचारियों और चूह्डों को हिंदू फोल्ड में बनाये रखने केउद्देश्य से उन्हें वाल्मीकि से जोड़ने और वाल्मीकि नाम देने की योजना बीस के दशक में आर्य समाज ने बनाई थी. इस काम को जिस आर्य समाजी पंडित ने अंजाम दिया था, उसका नाम अमीचंद शर्मा था। यह वही समय है, जब पूरे देश में दलित मुक्ति के आन्दोलन चल रहे थे. महाराष्ट्र में डा. आंबेडकर का हिंदू व्यवस्था के खिलाफ सत्याग्रह, उत्तर भारत में स्वामी अछूतानन्द का आदि हिंदू आन्दोलन और पंजाब में मंगूराम मूंगोवालिया का आदधर्म आन्दोलन उस समय अपने चरम पर थे. पंजाब में दलित जातियां बहुत तेजी से आदधर्म स्वीकार कर रही थीं. आर्य समाज ने इसी क्रांति को रोकने के लिए अमीचंद शर्मा को काम पर लगाया. योजना के तहत अमीचंद शर्मा ने सफाई कर्मचारियों के महल्लों में आना-जाना शुरू किया. उनकी कुछ समस्याओं को लेकर काम करना शुरू किया. शीघ्र ही वह उनके बीच घुल-मिल गया और उनका नेता बन गया. उसने उन्हें डा. आंबेडकर, अछूतानन्द और मंगूराम के आंदोलनों के खिलाफ भडकाना शुरू किया. वे अनपढ़ और गरीब लोग उसके जाल में फंस गए. १९२५ में अमीचंद शर्मा ने 'श्री वाल्मीकि प्रकाश' नाम की किताब लिखी, जिसमें उसने वाल्मीकि को उनका गुरु बताया और उन्हें वाल्मीकि का धर्म अपनाने को कहा. उसने उनके सामने वाल्मीकि धर्म की रूपरेखा भी रखी.
डॉ आंबेडकर, अछूतानन्द और मंगूराम के आन्दोलन दलित जातियों को गंदे पेशे छोड़ कर स्वाभिमान के साथ साफ-सुथरे पेशे अपनाने को कहते थे. इन आंदोलनों के प्रभाव में आकार तमाम दलित जातियां गंदे पेशे छोड़ रही थीं. इस परिवर्तन से ब्राह्मण बहुत परेशान थे. उनकी चिंता यह थी कि अगर सफाई करने वाले दलितों ने मैला उठाने का काम छोड़ दिया, तो ब्राह्मणो के घर नर्क बन जायेंगे. इसलिए अमीचंद शर्मा ने वाल्मीकि धर्म खड़ा करके सफाई कर्मी समुदाय को 'वाल्मीकि समुदाय' बना दिया. उसने उन्हें दो बातें समझायीं।
पहली यह कि हमेशा हिन्दू धर्म की जय मनाओ, और
दूसरी यह कि यदि वे हिंदुओं की सेवा करना छोड़ देंगे, तो न् उनके पास धन आएगा और न् ज्ञान आ पा पायेगा.
अमीचंद शर्मा का षड्यंत्र कितना सफल हुआ ,सबके सामने है.आदिकवि वाल्मीकि के नाम से सफाई कर्मी समाज वाल्मीकि समुदाय के रूप में पूरी तरह स्थापित हो चुका है. 'वाल्मीकि धर्म 'के संगठन पंजाब से निकल कर पूरे उत्तर भारत में खड़े हो गए हैं. वाल्मीकि धर्म के अनुयायी वाल्मीकि की माला और ताबीज पहनते हैं. इनके अपने धर्माचार्य हैं, जो बाकायदा प्रवचन देते हैं और कर्मकांड कराते हैं. ये वाल्मीकि जयंती को "प्रगटदिवस" कहते हैं. इनकी मान्यता है कि वाल्मीकि भगवान हैं, उनका जन्म नहीं हुआ था, वे कमल के फूल पर प्रगट हुए थे, वे सृष्टि के रचयिता भी हैं और उन्होने रामायण की रचना राम के जन्म से भी चार हजार साल पहले ही अपनी कल्पना से लिख दी थी.हालांकि ब्राह्मणों द्वारा "सफाई भंगी जाति" की दुर्दशा की कल्पना तक उन्हें नहीं थी । क्योंकर होती !
प्रेरित कँवल भारती- २९ अक्टूबर २०१२
जय सुधीर जी, आपका ब्लॉग जानकारी का ख़ज़ाना बन रहा है. आभार.
ReplyDeleteChaar ved kon konse h ye btaiye aap or aap phle aapne itihaa or hmare itihas pr reaserch kijiye syd aapko kuch pta lg jaye
Deleteधन्यवाद सुधीर जी कम से कम आपके द्वारा सच्चाई तो मालूम हुई
ReplyDeleteUncle itne umra daraz ho gaye aapko ye sab sach lagta hai.... Ye insaan sirf apne vichar ko blog me likh diya hai.... Aaj Me ek kitab likh du or 100 year ke Baad use koi study kare to kya wo purn satya hogi,kabhi nahi..गुरुनानक ko jo log mante unko kya bolenge aap.... Aap logo ka kaam he भेदभाव felana or dusro नीच साबित करना अपनी घटिया सोच से.... क्या हुआ अगर कोई अपने आप को valmik बोलता है तो...पर नहीं आपको तो नीचा दिखाना ही है लोगो को किसी भी तरह से..... आप ब्राहमण हो खुद को बोलते कि हम ब्रह्मा के मुह से पैदा हुआ इस से हमको कोई प्रॉब्लम नहीं पर हम वाल्मीकि लिखे या इस्लाम इस से तुम्हारा पेट क्यो दुख रहा है...... सच्चाई से तो तुम लोग भागते हो.. पूरा भारत का इतिहास ही बदल दिया गया है, किस पर विश्वास करोगे ओर किसको सही मानोगे.... Words कम पड़ जाएंगे लेकिन इन घटिया सोच वाले लोगो की बुरायी लिखना मे एक नया ग्रंथ बन जाएगा.. तुम कुछ भी हो उस से कीसीको फरक नहीं पड़ता पर अपनी इस घटिया सोच से किसीके ऊपर यू कीचड़ मत उछलो,,, दाग खुद पर भी लगेंगे समझे, तुम बनो ओर समझो खुद को भगवान... पर दूसरो को मत ज्ञान दो.. तुम्हारे इसी भेदभाव वाले ज्ञान ने भारत की यह दशा की लोग इंसान को जानवर समझते... कुत्ते को पानी पिला सकते हैं पर इंसान को नहीं... ये है तुम लोगो की सच्चाई..... जो इंसान को इंसान ना समझे वो धर्म नहीं अधर्म है पाप है....भारत के उज्ज्वल भविष्य के बारे में सोचो न कि भूतकाल की बर्बरता के बारे में....हरि ॐ
DeleteSahi kahaa
DeleteAap e jo kha 101%sahi h kooc log ko necha dikhana bda hi samman ka kam lgta h vo bda gorav samjte hoge ye sab likkar
DeleteSahi kaha bhai
Deleteअसत्य है ये
ReplyDeleteHum sabke puravaj aadi manav they unme braham jaati ka aadi manav kon sa tha sab ke sab to janvar maar kar khate they
DeleteAwesome . your thoughts are naked truth.
ReplyDeleteabe phle ke kaal me jatiya athwa vrn nhi the use uske krm anusar jati di jati thi naki सूद्र ka beta sudra or brhman ka brhamn jo jese krm karta use vaisa vrn milta valmiki ji ke pita sudr rhe honge lokin vo mhan rishi bane or tpsya ki or brhman वर्ण me shamil huve smjha kya
ReplyDeleteBoshdi k lund tujhe jada pata hai.
DeleteGhatia lekh hai ye aur likhne wala aur bhi ghatia hota.
ReplyDeleteKya aapse sachchai nahin bardasht ho rahi
Deleteरामायण कवि वाल्मीकि और वर्तमान वाल्मीकि जाति
ReplyDeleteसंजय कुमार (केशव) February 09, 2015
भारत में यह धारणा बना दी गई है की रामायण रचियेता ऋषि वाल्मीकि शुद्र दलित थे ,हर साल दलित वाल्मीकियो द्वारा ऋषि वाल्मीकि की याद में ‘ वाल्मीकि दिवस’ मनाया जाता है जिसमें देश के सभी सफाई के कार्य करने दलित( भंगी) इसे बड़े धूमधाम से मनाते हैं ।
ये दलित(भंगी) अपने को ऋषि वाल्मीकि के वंशजो से जोड़ते हैं । पर यदि आज का वाल्मीकि जाति ऋषि वाल्मीकि के वंसज है तो इनसे द्विज इतनी घृणा क्यों करते हैं? क्यों इन्हें अछूत माना जाता है?। यह विचारणीय प्रश्न है ।
क्या सच में ऋषि वाल्मीकि भंगी जाति के ही थे? या यह दलितों को गुमराह करने के लिए है ताकि दलित झूठे अभिमान में जीते रहे और बगावत न कर सके ?
वाल्मीकि रामायण के अनुसार ऋषि वाल्मीकि ने खुद को जाति का ब्राह्मण ही माना है उन्होंने खुद को प्रचेता का पुत्र कहा है । मनु स्मृति में प्रचेता को ब्राह्मण कहा है ।
अब प्रश्न यह है की कैसे एक ब्राह्मण को अछूत बना दिया गया और लाखो दलित भंगी भाई उसे अपना पूर्वज मान के पूजने लगे? आइये देखें इस षड्यंत्र के पीछे सच क्या है?
प्रसिद्ध विद्वान भगवानदास , एम् ए,एल एल बी ने अपनी पुस्तक ” वाल्मीकि जयंती और भंगी जाति ” में लिखा है की भंगी या चूहड़ा जाति का व्यक्ति उन्नति नहीं कर सकता था । शिक्षा के दरवाजे उसके लिए बंद थे ,केवल इसाई मिशन के स्कूल ही उन्हें शिक्षा देते थे । शिक्षा पा कर भी हिन्दू धर्म में वे अछूत ही रहते थे । नौकरी पाने के लिए उन्हें धर्म परिवर्तन करना पड़ता था ।
इस धर्म परिवर्तन से हिन्दुओ की संख्या कम हो रही थी ,क्यों की कई भंगी जाति के लोग ईसाई के आलावा मुसलामन भी बन रहे थे । इससे सवर्ण लोग व्याकुल हो रहे थे ,उनके काम करने वाले लोग उन्हें छोड़ के जा रहे थे । इस धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए और उन्हें हिन्दू धर्म का अविभाज्य अंग बनाने के लिए आज से 50-60 साल पहले भंगियो के धर्म गुरु लालबेग या बालबांबरिक को वाल्मीकि से अभिन्न बताना शुरू कर दिया ।
हिन्दुओ ने एक नई चाल चली ,उन्होंने सोचा की भंगियो को हिन्दू बनाने के लिए जाति बदलने आदि का मुश्किल तरीका अपनाने की अपेक्षा क्यों न स्वयं उनके गुरु लालबेख /वालाशाह/बाल बांबरिक को ही वाल्मीकि बना के हिन्दू बना लिया जाए। सवर्ण हिन्दुओ ने भोले भाले भंगियो को अपनी गुलामी की जंजीरों में जकड़े रहने के लिए लालबेख का ही ब्रह्मनीकरण कर दिया और उसे बाल बांबरिक, ‘बालरिख’ आदि शब्दों का सहारा लेके वाल्मीकि बना डाला ।
वाल्मीकि बना देने से पंजाब की चूहड़ा जाति रामायण के आदि कवी वाल्मीकि से अपना रिश्ता जोड़ सकती थी । पिछले 50-60 सालो से यह कोशिश निरंतर जारी है पर हिन्दुओ को वह कड़ी मिल नहीं रही ।
हिन्दुओ किस चाल मेंसभी दलित आ गए हों और वाल्मीकि को अपना गुरु मानते हों ऐसा नहीं है । उत्तर प्रदेश और बिहार के हेला,डोम, डमार, भूई,भाली, बंसफोड़ धानुक, धानुक,मेहतर
रजिस्थान का लालबेगि बंगाल का हाड़ी आदि आदि कवि वाल्मीकि को अपना गुरु नहीं मानता और न ही वाल्मीकि जयंती मनाता है ।
केवल उत्तर प्रदेश का भंगी जो कल तक लालबेगी या बाल बांबरिक धर्म का अनुयायी था वाही वाल्मीकि जयंती पर जुलुस निकलता है।
इलाहाबाद में वाल्मीकि तहरीक केंद्र है , लेकिन वंहा 1942 में पहली बार भंगियो ने वाल्मीकि जयंती मनाई थी दिल्ली में यह जयंती पहली बार 1949 में मनाई गई थी ।
जब तक भंगी अपनी ही बरदारी और मुहल्लों में घिरा रहेगा तब तक वह वाल्मीकि जयंती मनाता रहेगा परन्तु जैसे ही वह शिक्षा ग्रहण कर के दुसरे शहर या मोहल्ले में जायेगा वह हीनता के कारण वाल्मीकि जयंती नहीं मना पायेगा । वैसे भी यदि वह शिक्षित हो जाता है तो उसे असलियत पता चलती है तब वह इन सब पर विश्वास करना छोड़ देता है । वह इसे एक भूल समझता है और बाहर निकल के इसे एक दुस्वप्न की तरह भुला देना चाहता है।
– पुस्तक, वाल्मीकि जयंती और भंगी जाति,पेज 29- 46)
यह ” वाल्मीकि जयंती और भंगी जाति ” नाम की पुस्तक श्री भगवानदास जी ने सन 1973में लिखी थी। उनकी और लिखी पुस्तके
1- मैं भंगी हूँ
2- महर्षि वाल्मीक
3- क्या महर्षि वाल्मीकि अछूत थे
mukesh bhai Valmiki ji shudra the lekin apne karma aur tam se brahmin tatv paya tha.Brahmin gud hai jati nahi. VED me karm adharit varna vyavastha hai.....JAI RAM KRISHNA BUDDHA
DeleteListen carefully....apni bakwas band karo.... Tumne khud ki ramayan likh di.... Ab tum bataoge valmiki kon he.... Apni gandi soch or muh lekar chale jao narak me samjhe.... Logo me भ्रम mat felao samjhe.... बड़े आए valmiki ka history बताने वाले
Delete
Deleteबामसेफ परमात्मा वाल्मीकि दयावान जी को ब्राह्मण बताती है लेकिन हम उस त्रिकालदर्शी परमात्मा वाल्मीकि दयावान जी को ब्राह्मण कैसे बताएं जिन्होंने कहा है कि अगर मरे हुए व्यक्ति का श्राद्ध करने से उसका खाना उसके तक पहुंच सकता है तो यात्रा पर जाने वाले का भी श्राद्ध कर दिया करो बांध के देने की आवश्यकता नहीं है
Satguru ravi das ji di bani vi juthi aa
ਰੇ ਚਿਤ ਚੇਤਿ ਚੇਤ ਅਚੇਤ ॥
ਕਾਹੇ ਨ ਬਾਲਮੀਕਹਿ ਦੇਖ ॥
ਕਿਸੁ ਜਾਤਿ ਤੇ ਕਿਹ ਪਦਹਿ ਅਮਰਿਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ : ਅੰਗ ੧੧੨੪ ਪੰ. ੧੫
ja fir satguru kabir ji di bani nu jhuth kaho
संतन जात ना पूछो निरगुनियाँ |
साध ब्राहमन साध छत्तरी, साधै जाती बनियाँ |
साधनमां छत्तीस कौम है, टेढी तोर पुछनियाँ |
साधै नाऊ साधै धोबी, साधै जाति है बरियाँ |
साधनमां रैदास संत है, सुपच ऋषि सों भंगिया |
हिंदू-तुर्क दुई दीन बने हैं, कछू ना पहचानियाँ ||
मैं तो भंगी ही हूं न कि वाल्मीकि।
Deleteजय भीम जय भंगी समाज।
हमारे भगवान( वैसे भी भगवान नाम की कोई चीज है ही नहीं) डॉक्टर अंबेडकर है।
जिन्होंने हमारे लिए इतना संघर्ष किया।
रामायण कवि वाल्मीकि और वर्तमान वाल्मीकि जाति
ReplyDeleteसंजय कुमार (केशव) February 09, 2015 1 Comment
भारत में यह धारणा बना दी गई है की रामायण रचियेता ऋषि वाल्मीकि शुद्र दलित थे ,हर साल दलित वाल्मीकियो द्वारा ऋषि वाल्मीकि की याद में ‘ वाल्मीकि दिवस’ मनाया जाता है जिसमें देश के सभी सफाई के कार्य करने दलित( भंगी) इसे बड़े धूमधाम से मनाते हैं ।
ये दलित(भंगी) अपने को ऋषि वाल्मीकि के वंशजो से जोड़ते हैं । पर यदि आज का वाल्मीकि जाति ऋषि वाल्मीकि के वंसज है तो इनसे द्विज इतनी घृणा क्यों करते हैं? क्यों इन्हें अछूत माना जाता है?। यह विचारणीय प्रश्न है ।
क्या सच में ऋषि वाल्मीकि भंगी जाति के ही थे? या यह दलितों को गुमराह करने के लिए है ताकि दलित झूठे अभिमान में जीते रहे और बगावत न कर सके ?
वाल्मीकि रामायण के अनुसार ऋषि वाल्मीकि ने खुद को जाति का ब्राह्मण ही माना है उन्होंने खुद को प्रचेता का पुत्र कहा है । मनु स्मृति में प्रचेता को ब्राह्मण कहा है ।
अब प्रश्न यह है की कैसे एक ब्राह्मण को अछूत बना दिया गया और लाखो दलित भंगी भाई उसे अपना पूर्वज मान के पूजने लगे? आइये देखें इस षड्यंत्र के पीछे सच क्या है?
प्रसिद्ध विद्वान भगवानदास , एम् ए,एल एल बी ने अपनी पुस्तक ” वाल्मीकि जयंती और भंगी जाति ” में लिखा है की भंगी या चूहड़ा जाति का व्यक्ति उन्नति नहीं कर सकता था । शिक्षा के दरवाजे उसके लिए बंद थे ,केवल इसाई मिशन के स्कूल ही उन्हें शिक्षा देते थे । शिक्षा पा कर भी हिन्दू धर्म में वे अछूत ही रहते थे । नौकरी पाने के लिए उन्हें धर्म परिवर्तन करना पड़ता था ।
इस धर्म परिवर्तन से हिन्दुओ की संख्या कम हो रही थी ,क्यों की कई भंगी जाति के लोग ईसाई के आलावा मुसलामन भी बन रहे थे । इससे सवर्ण लोग व्याकुल हो रहे थे ,उनके काम करने वाले लोग उन्हें छोड़ के जा रहे थे । इस धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए और उन्हें हिन्दू धर्म का अविभाज्य अंग बनाने के लिए आज से 50-60 साल पहले भंगियो के धर्म गुरु लालबेग या बालबांबरिक को वाल्मीकि से अभिन्न बताना शुरू कर दिया ।
हिन्दुओ ने एक नई चाल चली ,उन्होंने सोचा की भंगियो को हिन्दू बनाने के लिए जाति बदलने आदि का मुश्किल तरीका अपनाने की अपेक्षा क्यों न स्वयं उनके गुरु लालबेख /वालाशाह/बाल बांबरिक को ही वाल्मीकि बना के हिन्दू बना लिया जाए। सवर्ण हिन्दुओ ने भोले भाले भंगियो को अपनी गुलामी की जंजीरों में जकड़े रहने के लिए लालबेख का ही ब्रह्मनीकरण कर दिया और उसे बाल बांबरिक, ‘बालरिख’ आदि शब्दों का सहारा लेके वाल्मीकि बना डाला ।
वाल्मीकि बना देने से पंजाब की चूहड़ा जाति रामायण के आदि कवी वाल्मीकि से अपना रिश्ता जोड़ सकती थी । पिछले 50-60 सालो से यह कोशिश निरंतर जारी है पर हिन्दुओ को वह कड़ी मिल नहीं रही ।
हिन्दुओ किस चाल मेंसभी दलित आ गए हों और वाल्मीकि को अपना गुरु मानते हों ऐसा नहीं है । उत्तर प्रदेश और बिहार के हेला,डोम, डमार, भूई,भाली, बंसफोड़ धानुक, धानुक,मेहतर
रजिस्थान का लालबेगि बंगाल का हाड़ी आदि आदि कवि वाल्मीकि को अपना गुरु नहीं मानता और न ही वाल्मीकि जयंती मनाता है ।
केवल उत्तर प्रदेश का भंगी जो कल तक लालबेगी या बाल बांबरिक धर्म का अनुयायी था वाही वाल्मीकि जयंती पर जुलुस निकलता है।
इलाहाबाद में वाल्मीकि तहरीक केंद्र है , लेकिन वंहा 1942 में पहली बार भंगियो ने वाल्मीकि जयंती मनाई थी दिल्ली में यह जयंती पहली बार 1949 में मनाई गई थी ।
जब तक भंगी अपनी ही बरदारी और मुहल्लों में घिरा रहेगा तब तक वह वाल्मीकि जयंती मनाता रहेगा परन्तु जैसे ही वह शिक्षा ग्रहण कर के दुसरे शहर या मोहल्ले में जायेगा वह हीनता के कारण वाल्मीकि जयंती नहीं मना पायेगा । वैसे भी यदि वह शिक्षित हो जाता है तो उसे असलियत पता चलती है तब वह इन सब पर विश्वास करना छोड़ देता है । वह इसे एक भूल समझता है और बाहर निकल के इसे एक दुस्वप्न की तरह भुला देना चाहता है।
– पुस्तक, वाल्मीकि जयंती और भंगी जाति,पेज 29- 46)
यह ” वाल्मीकि जयंती और भंगी जाति ” नाम की पुस्तक श्री भगवानदास जी ने सन 1973में लिखी थी। उनकी और लिखी पुस्तके
1- मैं भंगी हूँ
2- महर्षि वाल्मीक
3- क्या महर्षि वाल्मीकि अछूत थे
Tum apna dakho valmiki samaj abhi ka sabse takatwar samaj hai faltu mat bhoko samjhe
DeleteKabh valmiki ke mohalle mein jakar dekh lena saari galat fahmi door ho jayegi,agar maharishi valmiki brahmin hain to brahmin log unhe kyon nahi mante apana naam ke aage valmiki surname kyon nahi legate hain
Deleteआज कल के अम्बेडकरवादी बुद्ध के भक्त तो बनते है लेकिन बुद्ध का एक भी कथन नही मानते है ऋषियों का अपमानइनका बुद्ध वचन के विरुद्ध कृत है ,,यहा हम ब्राह्मण धम्मिय सूक्त के कुछ सूक्त रखेंगे – बुद्ध के समय के एक ब्राह्मण महाशाळा ने बुद्ध से कहा – है गौतम ! इस समय ब्राह्मण ओर पुराने समय ब्राह्मणों के ब्राह्मण धर्म पर आरूढ़ दिखाई पड़ते है न ? बुद्ध – ब्राह्मणों | इस समय के ब्राह्मण धर्म पर आरूढ़ नही है | म्हाशालो – अच्छा गौतम अब आप हमे पुराने ब्राह्मणों के उनके धर्म पर कथन करे | यदि गौतम आपको कष्ट न होतो बुद्ध – तो ब्राह्मणों ! सुनो अच्छी तरह मन में करो ,कहता हु |” – पुराने ऋषि संयमी ओर तपस्वी होते थे | पांच काम भोगो को छोड़ अपना ज्ञान ओर ध्यान लगाते थे अम्बेडकर वादी ऋषियों को अश्लील ओर कामी कहते नही थकते लेकिन बुद्ध स्वयम ,संयमी ,ध्यानी कहते है |
ReplyDeleteऋषियों को पशु न थे , न अनाज | वह स्वध्याय रूपी धन धान्य वाले ओर ब्रह्म निधि का पालन करने वाले थे ब्राह्मण अबध्य अ जेय धर्म से रक्षित थे | कुलो द्वारो पर उन्हें कोई कभी भी नही रोक सकता था वह अडतालीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करते थे | पूर्वकाल में ब्राह्मण विद्या व् आचरण की खोज करते थे ब्रह्मचर्य तप शील अ कुटिलता मृदुता सुरती अंहिसा ओर क्षमा की प्रशंसा करते थे |
ये ऋषियों के बारे में बुद्ध के वचन थे इसके विपरीत अम्बेडकरवादी ऋषियों के विरुद्ध विष वमन करते है अम्बेडकर ने ऋषियों को मासाहारी शराबी तक लिखा है जो कि उनके वेद ओर ब्राह्मण आदि ग्रंथो के विरुद्ध कथन है ओर साथ ही बुद्ध वचन के विरुद्ध भी है |
(a) ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे | परन्तु उच्च कोटि के ब्राह्मण बने और उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की | ऋग्वेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्राह्मण अतिशय आवश्यक माना जाता है |
ReplyDelete(b) ऐलूष ऋषि दासी पुत्र थे | जुआरी और हीन चरित्र भी थे | परन्तु बाद में उन्होंने अध्ययन किया और ऋग्वेद पर अनुसन्धान करके अनेक अविष्कार किये |ऋषियों ने उन्हें आमंत्रित कर के आचार्य पद पर आसीन किया | (ऐतरेय ब्राह्मण 2.19)
(c) सत्यकाम जाबाल गणिका (वेश्या) के पुत्र थे परन्तु वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए |
(d) राजा दक्ष के पुत्र पृषध शूद्र हो गए थे, प्रायश्चित स्वरुप तपस्या करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया | (विष्णु पुराण 4.1.14)
अगर उत्तर रामायण की मिथ्या कथा के अनुसार शूद्रों के लिए तपस्या करना मना होता तो पृषध ये कैसे कर पाए?
(e) राजा नेदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य हुए | पुनः इनके कई पुत्रों ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया | (विष्णु पुराण 4.1.13)
(f) धृष्ट नाभाग के पुत्र थे परन्तु ब्राह्मण हुए और उनके पुत्र ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया | (विष्णु पुराण 4.2.2)
(g) क्षत्रियकुल में जन्में शौनक ने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया | (विष्णु पुराण 4.8.1) वायु, विष्णु और हरिवंश पुराण कहते हैं कि शौनक ऋषि के पुत्र कर्म भेद से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण के हुए| इसी प्रकार गृत्समद, गृत्समति और वीतहव्य के उदाहरण हैं |
(h) मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने |
(i) ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण अपने कर्मों से राक्षस बना |
(j) विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्र वर्ण अपनाया | विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे परन्तु बाद उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया |
(k) विदुर दासी पुत्र थे | तथापि वे ब्राह्मण हुए और उन्होंने हस्तिनापुर साम्राज्य का मंत्री पद सुशोभित किया |
(l) विदुर दासी पुत्र थे | तथापि वे ब्राह्मण हुए और उन्होंने हस्तिनापुर साम्राज्य का मंत्री पद सुशोभित किया |
बहुत बढिय़ा जानकारी
Deletepls. send ur contact detail:
Deletemayank_13595@hotmail.com
Ap ki safari abate sahi Hein vaidik kaal me jati vyavastha karm aadharit thi kintu Uttar vaidik kaal me ye janam adharit ho gayi aur jat badalna asambhav ho gaya.
DeleteAp arya brahamano ke karmo ka theekra doosro per Dal Rahe ho .
Ab hamari Saksharta dar badh rahi rahi .sab anpadh nahi ki jaisa chaha samjha Dia.paid article ki pahchan hai hamen
दासियो के संतान कैसे पैदा हो सकती है
Deleteदासियो को तो भगवानो के मंदिरों में भगवान की सेवा एवं भगवान की भक्ति पर अपनी सारी जिंदगी नाम कर देना और दसिया शादी-विवाह भी नही करती थी तो उनके संतान कैसे हो जाती होंगी
क्या भगवान का ऐसा कोई वरदान था उनके लिए
या फिर मंदिर के पुजारी उन दासियो को अपनी हवस का शिकार बनते थे
सच क्या है MR......?
मुझे वाल्मीकि जाति का सच अभी तक पता नहीं चला किसी को पता हो तो मुझे भी बताना आखिर कौन कौन थे वाल्मीकि भगवान और कैसे बने वह सफाई वालों के बारे में क्या हुआ
DeleteContact me Mr jai sudhir ..+919050129234
ReplyDeletetotally confused.
ReplyDeleteप्रसिद्ध विद्वान भगवानदास , एम् ए,एल एल बी ने अपनी पुस्तक ” वाल्मीकि जयंती और भंगी जाति ” में लिखा है की भंगी या चूहड़ा जाति का व्यक्ति उन्नति नहीं कर सकता था । शिक्षा के दरवाजे उसके लिए बंद थे ,केवल इसाई मिशन के स्कूल ही उन्हें शिक्षा देते थे । शिक्षा पा कर भी हिन्दू धर्म में वे अछूत ही रहते थे । नौकरी पाने के लिए उन्हें धर्म परिवर्तन करना पड़ता था ।
ReplyDeleteइस धर्म परिवर्तन से हिन्दुओ की संख्या कम हो रही थी ,क्यों की कई भंगी जाति के लोग ईसाई के आलावा मुसलामन भी बन रहे थे । इससे सवर्ण लोग व्याकुल हो रहे थे ,उनके काम करने वाले लोग उन्हें छोड़ के जा रहे थे । इस धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए और उन्हें हिन्दू धर्म का अविभाज्य अंग बनाने के लिए आज से 50-60 साल पहले भंगियो के धर्म गुरु लालबेग या बालबांबरिक को वाल्मीकि से अभिन्न बताना शुरू कर दिया ।
हिन्दुओ ने एक नई चाल चली ,उन्होंने सोचा की भंगियो को हिन्दू बनाने के लिए जाति बदलने आदि का मुश्किल तरीका अपनाने की अपेक्षा क्यों न स्वयं उनके गुरु लालबेख /वालाशाह/बाल बांबरिक को ही वाल्मीकि बना के हिन्दू बना लिया जाए। सवर्ण हिन्दुओ ने भोले भाले भंगियो को अपनी गुलामी की जंजीरों में जकड़े रहने के लिए लालबेख का ही ब्रह्मनीकरण कर दिया और उसे बाल बांबरिक, ‘बालरिख’ आदि शब्दों का सहारा लेके वाल्मीकि बना डाला ।
वाल्मीकि बना देने से पंजाब की चूहड़ा जाति रामायण के आदि कवी वाल्मीकि से अपना रिश्ता जोड़ सकती थी । पिछले 50-60 सालो से यह कोशिश निरंतर जारी है पर हिन्दुओ को वह कड़ी मिल नहीं रही ।
हिन्दुओ किस चाल मेंसभी दलित आ गए हों और वाल्मीकि को अपना गुरु मानते हों ऐसा नहीं है । उत्तर प्रदेश और बिहार के हेला,डोम, डमार, भूई,भाली, बंसफोड़ धानुक, धानुक,मेहतर
रजिस्थान का लालबेगि बंगाल का हाड़ी आदि आदि कवि वाल्मीकि को अपना गुरु नहीं मानता और न ही वाल्मीकि जयंती मनाता है ।
केवल उत्तर प्रदेश का भंगी जो कल तक लालबेगी या बाल बांबरिक धर्म का अनुयायी था वाही वाल्मीकि जयंती पर जुलुस निकलता है।
इलाहाबाद में वाल्मीकि तहरीक केंद्र है , लेकिन वंहा 1942 में पहली बार भंगियो ने वाल्मीकि जयंती मनाई थी दिल्ली में यह जयंती पहली बार 1949 में मनाई गई थी ।
जब तक भंगी अपनी ही बरदारी और मुहल्लों में घिरा रहेगा तब तक वह वाल्मीकि जयंती मनाता रहेगा परन्तु जैसे ही वह शिक्षा ग्रहण कर के दुसरे शहर या मोहल्ले में जायेगा वह हीनता के कारण वाल्मीकि जयंती नहीं मना पायेगा । वैसे भी यदि वह शिक्षित हो जाता है तो उसे असलियत पता चलती है तब वह इन सब पर विश्वास करना छोड़ देता है । वह इसे एक भूल समझता है और बाहर निकल के इसे एक दुस्वप्न की तरह भुला देना चाहता है।
– पुस्तक, वाल्मीकि जयंती और भंगी जाति,पेज 29- 46)
यह ” वाल्मीकि जयंती और भंगी जाति ” नाम की पुस्तक श्री भगवानदास जी ने सन 1973में लिखी थी। उनकी और लिखी पुस्तके
1- मैं भंगी हूँ
2- महर्षि वाल्मीक
3- क्या महर्षि वाल्मीकि अछूत थे
इतीहास सही होता है तो दील को छु लेता है
ReplyDeleteScientific research ke anusar bharat aur pakistan ke 99% logo ka DNA EK HI hai .... ab soch lo kon kis jati se hai...kis dharma se
ReplyDeleteघटिया इंसान झूठ बोल के क्यों लोगो को लड़वा रहा है।
ReplyDeleteक्यो भाईचारे की ऐसी तेसी कर रहा है।
बेवकूफ इंसान, ग्वार ,अनपढ़।
क्यों जहर फैला रहे हो समाज मे यार, क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ कर जबरन में समाज मे नफरत बढ़ाते रहते हो तुम लोग,कुछ भी उल्लुल जुल्लुल लिख कर, कभी तो एकता की बात किया करो, कुछ तो समाज के लिए अच्छा कर के जाओ।।
ReplyDeleteसारे मान्यवर लोगों ने अच्छी राय दी है और इसी वजह से समाज में जनजागृति हो रही हैं आप सभी मान्यवरो का तहे दिल से शुक्रिया आशा करता हूं और आप सभी से आशा करता हूं कि आप नित्य समाज को जागृत करने वाले लेख प्रकाशित करें एवं टिप्पणी करें
ReplyDeleteSahi jankari mail kre pls
ReplyDeleteरामायण में कितने ब्राम्हण थे
ReplyDeleteNice sir Acha likha he
ReplyDeleteSab ke sab jaati jaati krte rehte hai magar kabhi dhyan se soche to pata chalega sabke baap aadi manav they aadi manav se sab paida hue hai !!
ReplyDeleteBramhin kul me Janm Lena koi tees-maar-Khan nahi hai Saheb, Mai to Hairan is baat se hu���� ki aap Valmiki Ko bramhin siddha karne ke liye paditya pradarsan kyu jar rage hai or pracheta ya Bramha ka proof kyu de rage hai, duniya janti hai ki samaj me jo aaj asamanta aur visangatiyan hai uska jimmedaar sirf aur sirf bramhin hai, dosto aaj ham 21st century me join rage hai, hame jaativaad aur chhuachhut jaise upar uthana hoga.as well as I will concern it that sc/St and backward people do not say that god is not because I heard some people especially dalit community so mean to say that god is everything. Jai Shree ram
ReplyDeleteI am Kishan Bhardwaj from Satna
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete—आपका झूठ पकडा गया —
ReplyDeleteसवाल जाति पर भी किया जा रहा है कि 1931 से पहले भारत की जनगणना में वाल्मीकि नाम क्यों नहीं ? यह भी एक ठगने की कोशिश है। वाल्मीकिन कौम को जड़विहीन कर देने की।
1891 की जनगणना के कुछ हिस्से जो हमें मिले। जैसे Census Of India का Punjab And Its Feudatories के Volume XXI-Part III Table F में वाल्मीकि नाम एक जगह 3056+211 अंकित है। 1891 के Volume XIX पार्ट-1 के पृष्ठ 90 पर 32113 जनसँख्य दर्शाई है।
ओम प्रकाश वाल्मीकि अपनी किताब सफाई देवता के पृष्ट 64 पर 1891 की जनगणना से वाल्मीकि जाति की संख्या 6105 लिखते हैं। Census Of India Volume-I पृष्ठ 293 यह मजबूत तथ्य है। नव-बौद्ध कृपया ध्यान दें 1891 ही पढ़ें, ये 1931 से पहले होता है।
1901 के Census Of India के खंड XVII Part I में और विस्तार से दर्शाया गया है। इसमें पंजाब और उत्तर-पश्चिम फ्रंटियर की जनगणना के बारे में लिखा है। भारत विभाजन से पहले के पंजाब के सभी जिलों की अलग-अलग संख्या अंकित की है।
सारे पंजाब में वाल्मीकि नाम की संख्या 2409 अंकित की गई। इसके बाद एक अतिरिक्त पार्ट {Subsidiary} जोड़ कर केवल दो जिलों होशियारपुर और जालंधर में वाल्मीकि नाम की संख्या 16,878 अंकित की गई है। ऐसे ही पुरे पंजाब में मज़हबी {वाल्मीकि सिख} 5058 बताया गया है।
1911 की जनगणना में वाल्मीकि नाम को 13,65,835 लोगों ने लिखवाया। याद रखें हमारी बस्तियों में आने वाले जब आंकड़ा लिखते हैं बहुत मन-मर्जी करते हैं। कई बार तो नाम घटिया तरह से लिखे जाते हैं, पूछा ही नहीं जाता असली नाम बताओ। इसमें महिलाओं का अनुपात भी बहुत कम दिखाया गया है।
Census Of India 1921 के खंड XV पार्ट-I में दिल्ली और पंजाब की जनगणना अंकित की है। पंजाब में वाल्मीकि 2,21,027 और दिल्ली में 12608 संख्या बताई गई। इस्लामिक प्रभाव और उर्दू में वाल्मीकि शब्द को गलत पढ़ने के चलते पंजाब में 6,37,205 लोगों ने खुद को लालबेगी लिखवाया।
लाल बेग कोई व्यक्ति नहीं हुआ। न कोई पीर। यह उर्दू में लिखे वाल्मीकि शब्द को गलती से लालबेग पढ़ लिया गया। अशिक्षा के कारण कभी वाल्मीकि को लालबेग, कभी बाला शाह, कहीं बालऋषि, कहीं बाल्मीक, तो कहीं बाल्मिकी कहीं सुपच लिख गया। भाव वही थे रामायण के रचयिता।
Census Of India का Punjab And Its Feudatories के Volume XIX -Part I पृष्ठ 200-201 पर। E.D.Maclagan ICS {वर्तमान में IAS} जो Provincial Superintendent Of Census Operations थे वह वर्गीकरण और विश्लेषण करते हुए पार्ट V में चेप्टर Sects Of The Sweepers में लिखते हैं,
The Mughal from of the name Lalbeg is remarkable, and it has been suggested that the word may have originated in a MISREADING of the Urdu writing for Balmik {VALMEKI}. मुगलों द्वारा लालबेग नाम उल्लेखनीय है, और यह सुझाव दिया गया है कि इस शब्द की उत्पत्ति बाल्मीक {VALMEKI} के लिए उर्दू लेखन के गलत प्रचार से हुई है।
"It seems pretty well agreed that there is little or no practical difference in the cults of Balmik {Valmeki} and Lalbeg, but it would appear that some sweeper families prefer the worship of one to that of the other.
"यह बहुत अच्छी तरह से सहमति है कि बाल्मीक {वाल्मीकि} और लालबेग में बहुत अल्प {कम} या कोई व्यावहारिक अंतर नहीं है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ स्वीपर परिवार एक की पूजा, दूसरे को पसंद करते हैं। अर्थात पूजा सृष्टिकर्ता वाल्मीकि दयावान की ही करते थे मगर लालबेग को पसंद करते थे।
एक यह कि लालबेग केवल एक शब्द है जो उर्दू के एक लेखन की गलती से पैदा हुआ। याद रहे कि उस वक्त क़िताबत यानि हाथ से लिख कर बाद में छपाई के लिए जाता था। एक छोटी सी त्रुटि की भूल से बाल्मीक को लालबेग पढ़ लिया गया। एक गलती ही प्रचलित हो गई। जैसे अभी कई शहरों के नाम दरुस्त {Correct} किये जा रहे हैं। मिसाल के तोर पर मुंबई, चेन्नई।
दरअसल वाल्मीकि कौम के खिलाफ यह एक साज़िश थी। जिसे ज्यादा दलित साहित्यकारों व गैर वाल्मीकिन दलित राजनेताओं ने हवा दी और वाल्मीकि कौम के विद्वान् भी इस आँधी में बह गए। उन्हें घेर कर कुटिल झूठ को इतनी बार और अलग-अलग मुखोटों से कहलवाया गया।
वाल्मीकिन विद्वानों ने खुद सोचने की जरूरत ही नहीं समझी। अरुंधति रॉय अपनी किताब The Doctor and the Saint के पृष्ठ 101 पर वही भूल करती हैं। वे दलित साहित्यकारों का दिया चश्मा पहन लेती हैं कि वाल्मीकि नाम बाद में जुड़ा।
आप हैरान हो जाएँगे और आपकी आँखे फटी-की-फटी रह जाएँगी और मुँह खुला। जब आपको मालूम होगा कि 1931 तक जनगणना में रविदासी नाम नहीं है। सवाल वाल्मीकि नाम पर उठाया जा रहा था जबकि वाल्मीकि नाम तो 1891 के दस्तावेज़ों में निरंतर चल रहा है।
Bhai mai aman suryavanshi hu to bta do mai kon si jati ka hu
ReplyDeleteCorrect answer diye to ap jit gaye
ReplyDeleteSir I'm so called valmiki, I mean I m educated Indian native . How should I tell this Truth to my community , my father told me all of this in my childhood. Our community is illetrate and have drinking habit. They don't want to listen this , should be shut our mouth or there is any other way to tell the truth to our innocent community.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा किया open the door kiya
ReplyDeleteबकवास लेख
ReplyDeleteJai balmiki ji 🙏🙏
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