Manisha Pandey
वर्ल्ड बुक फेयर के आखिरी दिन मेरा एक दोस्त गीता प्रेस गोरखपुर के स्टॉल पर गया और वहां काउंटर पर बैठे एक आदमी से बहुत गंभीर चेहरा बनाकर पूछा, "भाईसाहब, ये महिलाओं को नियंत्रण में रखने के लिए कोई किताब है क्या। महिलाओं को कैसा आचरण करना चाहिए, उन्हें कंटोल में कैसे रखें।" उसने फटाफट ये तीनों वाक्य बोल डाले। काउंटर पर बैठा आदमी हल्के पीले रंग के धोती-कुर्ते में था। गले में रूद्राक्ष की माला और... माथे पर छोटा-सा टीका। पहले तो वह सुनकर मुस्कुराया और फिर उतना ही गंभीर मुंह बनाकर बोला, "हां, है न सर। वो वहां रखी है। सब महिलाओं के बारे में है।" सवाल जितनी गंभीरता से पूछा गया था, उसने उतनी ही गंभीरता से उत्तर दिया। ये सुनकर मेरे दोस्त ने खुश होने का अभिनय किया और ये कहते हुए निकल गया कि "आजकल औरतों के बहुत पर निकल आए हैं।" वहां से जवाब मिला, "सब पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव है सर।"----
कभी किसी धर्मगुरु, तिलक, चुटिया और जनेऊ वाले से, यहां तक कि दाढ़ी और टोपी वाले से भी दुखी मुद्रा में ये कहकर देखिए कि आजकल औरतों का बड़ा पतन हो रहा है। उनके पर निकल आए हैं तो वे क्या जवाब देते हैं।
देश के पतन के बाद उनकी अगली चिंता महिलाओं के पतन की ही है।
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