मार्च 30, 2012 - 20:09
आजादी के 6 दशक बीत जाने के बाद भी देश से
अस्पृश्यता मिटने का नाम नहीं ले रही है। देश में अब भी ऐसी तमाम जगहें हैं
जहां प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से दलितों व गैर दलितों के बीच भेदभाव
जैसी कुरीति मौजूद है। यह तो तब है जबकि सरकार अस्पृश्यता के मामलों पर
जीरो टालरेंस की नीति अपनाए हुए है। वोट बैंक की राजनीति के लिए ही सही सभी
राजनैतिक पार्टियां भी अपने आपको दलितों का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने
में जुटी रहती हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि आज भी दलितों को समाज में बराबरी
के हक के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है। कम से कम हिमाचल प्रदेश के
मंडी जिले के पंडोह क्षेत्र के चंद मुट्ठीभर लोगों की मानसिकता तो यही
साबित करती है कि दलितों को यहां कितने तिरस्कृत भरे नजरों से देखा जाता
है।
जी हां, हिमाचल प्रदेश के एक मंदिर में दलितों का
प्रवेश आज भी वर्जित है। यहां बीड़ी, सिगरेट, जुराबों व चमड़े से निर्मित
वस्तुओं के साथ ही साथ हरिजनों का प्रवेश भी निषेध है। और भी शर्मनाक यह कि
लंबे समय से जारी यह परंपरा अब भी कायम है और बाकायदा मंदिर में नोटिस
बोर्ड टांग लोगों को इस बात का स्मरण कराया जाता है।
हिमाचल प्रदेश स्थित एक मंदिर में दलितों का प्रवेश
आज भी वर्जित है। मंदिर कमेटी ने इसके लिए चेतावनी के साथ हिदायतों का पालन
करने वाला साइन बोर्ड भी लगा रखा है। यह सोना सिंहासन देवता मंदिर मंडी
जिले के पंडोह क्षेत्र में न्यूली गांव में है। यहां वर्षों से यह परंपरा
चली आ रही है, जिसे गैर दलितों ने अपना हक और दलितों ने नियति मान लिया है।
हालांकि कुछ लोगों ने अब जाकर इस परंपरा के खिलाफ आवाज उठाई है और इसकी
शिकायत स्थानीय प्रशासन ( जिला मजिस्ट्रेट और जिला पुलिस प्रमुख) से की है।
अस्पृश्यता की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए स्थानीय कलेक्टर देवेश कुमार
ने संबंधित अधिकारियों से रिपोर्ट तलब की है। अधीकारियों के मुताबिक इस
असंवैधानिक कृत्य के लिए जिम्मेदार मंदिर कमेटी के सदस्यों पर एसटी/एससी प्रिवेंशन ऑफ एट्रोसिटी एक्ट 1989 के अंतर्गत कार्रवाई की जा सकती है।
यह तो रही कानूनी कार्रवाई की बात लेकिन कबतक?आखिर कबतक देश ऐसी मानसिकता से जकड़ा रहेगा और कबतक हम दलितों और गैर दलितों के बीच बंटे रहेंगे?कबतक लोग छुआछूत मानते रहेंगे और कबतक यह खाई मौजूद रहेगी?इस सवाल का जवाब कौन देगा?
यजुर्वेद 18|48 हे भगवन! हमारे ब्राह्मणों में, क्षत्रियों में, वैश्यों में तथा शूद्रों में ज्ञान की ज्योति दीजिये | मुझे भी वही ज्योति प्रदान कीजिये ताकि मैं सत्य के दर्शन कर सकूं |
ReplyDeleteयजुर्वेद 20|17 जो अपराध हमने गाँव, जंगल या सभा में किए हों, जो अपराध हमने इन्द्रियों में किए हों, जो अपराध हमने शूद्रों में और वैश्यों में किए हों और जो अपराध हमने धर्म में किए हों, कृपया उसे क्षमा कीजिये और हमें अपराध की प्रवृत्ति से छुडाइए |
यजुर्वेद 26|2 हे मनुष्यों ! जैसे मैं ईश्वर इस वेद ज्ञान को पक्षपात के बिना मनुष्यमात्र के लिए उपदेश करता हूं, इसी प्रकार आप सब भी इस ज्ञान को ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र,वैश्य, स्त्रियों के लिए तथा जो अत्यन्त पतित हैं उनके भी कल्याण के लिये दो | विद्वान और धनिक मेरा त्याग न करें |
अथर्ववेद 19|32|8 हे ईश्वर ! मुझे ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र और वैश्य सभी का प्रिय बनाइए | मैं सभी से प्रसंशित होऊं |
अथर्ववेद 19|62|1 सभी श्रेष्ट मनुष्य मुझे पसंद करें | मुझे विद्वान, ब्राह्मणों, क्षत्रियों, शूद्रों, वैश्यों और जो भी मुझे देखे उसका प्रियपात्र बनाओ |