by Dilip Mandal on Friday, July 1, 2011 at 8:22am
यह 10% का माजरा क्या है? 10% की छूट दिए जाने के बावजूद ओबीसी कोटा क्यों नहीं भर रहा है। इस पहेली का जवाब देने से पहले एक जरूरी टिप्पणी। ओबीसी छात्रों को किसी तरह की छूट देने की संविधान में कोई व्यवस्था नहीं है। व्यवस्था है 27% आरक्षण देने की। इसलिए यह छूट वाली पूरी व्यवस्था गलत है। जिस तरह एससी और एसटी का कोटा भरते समय छूट और कट ऑफ जैसी कोई बात नहीं होती, ऐसा ही ओबीसी कोटे के साथ होना चाहिए।
बहरहाल पहले सवाल पर लौटते हैं। 10% छूट के बावजूद दिल्ली यूनिवर्सिटी में ओबीसी कोटे की सीटें क्यों नहीं भर रही हैं।
- सबसे पहले तो यह जानना जरूरी है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी और उसके कॉलेज कभी भी 10% छूट नहीं देते। वे अक्सर 2% से 3% की छूट देते हैं। पिछल साल यानी 2010 तक यही हुआ और इस साल भी शुरुआती कट ऑफ लिस्ट में कई कॉलेजों के प्रिंसिपल ने यही बदमाशी की। यहां यह जानना जरूरी है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के 84 में से 83 कॉलेज में खुद को ऊंची कहने वाली जातियों के प्रिसिपल हैं। इसलिए यह कहना गलत है कि 10% छूट के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में सीटें खाली रह गईं।
- दूसरी बात, 27% कोटा ओबीसी के लिए नहीं है बल्कि ओबीसी के सिर्फ उन लोगों के लिए है जो क्रीमी लेयर में नहीं आते। जाहिर है ये उन परिवारों के बच्चे हैं जिनके पास पैसे और संसाधन कम हैं और घर पर भी कंप्यूटर और दूसरी पढ़ने-लिखने संबंधी सुविधाएं नहीं हैं।
- इन नॉन क्रीमी लेयर बच्चों में बहुत कम ऐसे होते हैं, जो उन निजी स्कूलों का खर्चा उठा पाते हैं,जहां सीबीएसई बोर्ड की पढ़ाई होती है। सीबीएसई बोर्ड में 97-98% नंबर देने का रिवाज है, जबकि राज्य बोर्ड का टॉपर भी 90% या उससे नीचे नंबर पाता है।
- जाहिर है कि पूरी मेहनत और लगन से पढ़कर भी राज्य बोर्ड के बच्चे नंबर के मामले में सीबीएसई बोर्ड के बच्चों का मुकाबला नहीं कर पाते।
- अगर राज्य बोर्ड में भी नंबर देने का पैटर्न सीबीएसई की तरह कर दिया जाए, तो हालात बुनियादी तौर पर बदल जाएंगे। राज्य बोर्ड के बच्चे उस अपराध की सजा पा रहे हैं, जो उन्होंने किया ही नहीं है। परिवार के लोग फटकार लगाते हैं कि बच्चा मन लगाकर पढ़ नहीं रहा है, जबकि वे समझ ही नहीं पाते कि बच्चा जान लगा दे तो भी उसे 97-98% नहीं आएंगे।
यह समस्या जान बूझ कर खड़ी की गई है ताकि शिक्षा के इलीट टापू आम लोगों की पहुंच से दूर बने रहें। इस षड्यंत्र से आप लड़ सकते हैं, कोशिश कर सकते हैं। आपका बच्चा नहीं।
ओबीसी बच्चा आखिर किन किन चीजों से लड़े। सोशल कैपिटल नहीं है। परंपरा से आत्मविश्वास सिखाया नहीं जाता है। बेहतरीन नंबर आए, तो घर में कहा जाता है बीएड कर लो। एमफिल, पीएचडी की कल्पना भी मुश्किल होती है। प्रैक्टिकल और वाइवा की मार अलग। टीचर भी अलग से फटकार लगा सकता है। ऐसे में पहली लड़ाई तो आत्मविश्वास बनाने की हो जाती है।
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