2007-08 की बात रही होगी , अपने पिता की पत्रिका में लेख छपवाने की
जद्दोजहद में मुझे ये एहसास हुआ की क्यों एक विचार किसी अनुमति या संपादन
का मोहताज हो , क्यों ऐसा कोई प्लेटफ़ॉर्म नहीं हो जहाँ जो मर्जी हो लिख
सको ,जिसे मर्जी हो पढ़ा सको , फिर कुछ तो हुआ की मुझे किसी मशहूर हस्ती का
लेख पढने को मिला जिसमे ब्लॉग जैसा कोई शब्द था , मैंने गूगल गुरु की मदद
ली , देखा तो हजारों लोग ब्लोगिंग करने वाले निकल आये ,अपनी नादानी और कूप
मंडूकियत पर थोड़ी झेंप भी हुई की मुझे ऐसी चीज़ पता ही नहीं थी !! फिर
क्या था देर आया था वर्डप्रेस ढूंढ अपना ब्लॉग बनाकर दुरुस्त आने में भी
देर नहीं की !!
जब लिखना शुरू किया तो ऐसा लगा जैसे जन्मोजन्म की भूख हो , एक विषय ख़त्म होता उससे पहले दुसरे पर लिखने का मन करने लगता !! ऑरकुट के ज़माने थे , लिंक ऑरकुट पर डालते , 25-50 पढने के शौकीन आ जाएँ तो दिल खुश हो जाता , टिपण्णी करके जाते, कभी कभी लोग कौतुहल से भी आते , खुश होते, तारीफ करते , लेखनी की भी और इस बात की भी की मैं एक “ब्लॉगर” बन चुका था , शायद ये एक सम्मान सूचक शब्द था उस समय और शायद आज भी
पर सब कुछ ठहरा ठहरा था , अपनी पोस्ट की मार्केटिंग कैसे करें समझ नहीं आता ,अलग अलग ऑरकुट ग्रुप में लिंक पोस्ट कर देते , देखो भाई मैंने ये लिखा है इसे पढो , सब कुछ विचित्र !!खैर हिट्स बढ़कर 300 500 के आस पास पहुँच चुकी थीं , तब 2009 – 10 के अंत में फेसबुक का पदार्पण हुआ , चीज़ें तेजी से बदलने लगीं , 2011 के बाबा रामदेव और अन्ना के आन्दोलन ने ब्लोगिंग को और सोशल मीडिया को मेरे लिए पूरी तरह परिभाषित कर दिया , एक शौकिया लिखने वाले को समझ आ चुका था की लिखना आज की ज़रुरत है , लोगों को जगाना कर्तव्य और इन सब के लिए खुद जगे हुए रहना मजबूरी !! लिखने के मात्र चस्के से दीवानगी , दीवानगी से जिम्मेदारी का ये सफ़र बदस्तूर जारी है , अब चाहता भी हूँ की इस सब से दूर फिर से अपनी शांत दुनिया में लौट चलूँ तो मन कचोटता है …. एक जिम्मेदार “सोशल मीडिया कार्यकर्ता ” शायद इसे ही कहते हों !!
पहले सिर्फ भड़ास होती थी , थोड़े अच्छे शब्दों में , अब कोशिश करता हूँ की कम से कम ब्लॉग में तो जानकारियां साझा की जाएँ , हाँ भड़ास की भी अपनी जगह है क्योंकि कई बार जो काम तर्क नहीं कर पाते वो एक भावनात्मक रूप से आवेशित शब्द कर जाते हैं , इस भड़ास के लिए फेसबुक और ट्विटर एक जबरजस्त माध्यम के रूप में उभरे हैं !! लाखों लोग आज अपने विचारों का प्रकटीकरण फेसबुक और ट्विटर से कर रहे हैं , कभी कभी ऐसा लगता है की जब सोशल मीडिया नहीं था तब कितनी कुंधता होती होगी , कहीं अपनी बात नहीं कह सकते, कहीं अपना गुस्सा जाहिर नहीं कर सकते , कितना आक्रोश रहा होगा जो बाहर ही नहीं आ पाया होगा , कैसा लोकतंत्र रहा होगा जहाँ आपकी बात पूरी आज़ादी से रखने का एक माध्यम भी नहीं हो ? ऐसा माध्यम जहाँ दिल की आवाज़ लिखने से पहले उसके परिणामों के लिए सोचना ना पड़े ? मन सिहर जाता है सोचकर !!
————————————–
सोचिये 1984 में जब सिख दंगे हुए तब सोशल मीडिया होता तो क्या असर होता ?
—————————————
क्या जगदीश टाइटलर ऐसी हरकत करने की हिम्मत करते ? क्या राजीव ये कह पाते की जब बड़ा पेड़ गिरता है तो ज़मीन हिलती है , और कह भी देते तो क्या देश की जनता उन्हें माफ़ कर तब के तभी भारी बहुमत से जिता देती ?
—————————————
क्या अमिताभ बच्चन ऐसा बयान देने की हरकत करते की खून का बदला खून से लेंगें , दूरदर्शन उसे बारम्बार दिखा पाता , देश मौन होकर सुनता रहता ?
—————————————–
हर देशभक्त के मन में कितना आक्रोश रहा होगा जब वोट बेंक के वजन के नीचे कुचला हुआ प्रधानमंत्री सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दे ? पर उस आक्रोश को व्यक्त करने का कोई माध्यम नहीं , ज्यादा बोलोगे तो धर लिए जाओगे , सडा दिए जाओगे जेल के अन्दर !!
————————————-
कितनी वेदना का दौर रहा होगा जब मंडल कमीशन घोषित हुआ होगा , क्या अपनी बात रखने की आज़ादी कई जानें बचा सकती थी ?
—————————————-
पर इसका दूसरा पहलु ये भी है की जो आधिकारिक माध्यम थे उन्होंने अपना काम सही से नहीं किया, जनता की आवाज़ होने का स्तम्भ कहे जाने वालों ने जनता की आवाज़ को कभी बाहर ही नहीं आने दिया , पहले सरकारी दूरदर्शन था , अब सरकार प्रायोजित न्यूज़ चेनल , अंतर सिर्फ इतना की पहले सिर्फ न्यूज़ होती थी जैसी भी हो और व्यूज़ बनाना दर्शक के हाथ होता था , अब न्यूज़ तो कम है व्यूज़ ज्यादा हैं , उस बीच में न्यूज़ ढूंढ निकाल लेना दर्शक की अपनी काबिलियत !! व्यूज़ भी लिफाफों में तोले गए ईमान से खरीदे हुए !! जैसे की , जिन भाषणों पर हंस हंस कर लोग लोटपोट हुए और जिनकी तारीफों में कसीदे पढ़े गए उनका पूरा का पूरा सच ही इन पत्रकारों ने बदल डाला , किस किस्म का दुस्साहस था ये देश की जनता के साथ और ना जाने कितने ऐसे उदाहरण की सोचें तो डूब मरें की ऐसे केले छाप लोकतंत्र में जी रहे हैं हम !!
———————————
जब सोशल मीडिया नए नए तेवरों में था तब इन स्थापित स्तंभों ने इसका मजाक उडाया , पर दिन बदले, चंद लोगों से जब इसकी पहुँच लाखों करोड़ों तक पहुँचने लगी तब इनके नीचे की ज़मीन खिसकने लगी, पर्दाफाश होने लगा , झूठ और सच समझने का एक और स्तम्भ खड़ा होने लगा , और तब था सिर्फ खीझ , गुस्सा,और नफरत !!
———————————–
जो खुद को मसीहा समझ बैठे थे , जो समझ बैठे थे की स्टूडियो में बैठे देश की तस्वीर और तद्बीर लिखने वाले सिर्फ हम हैं , हम खुदा है खबरों की दुनिया के , ड्राइंग रूम में बैठा आम इंसान हम जो बोलेंगें आँख मूँद कर मानेगा , किसे शैतान और किसे पैगम्बर बनाना है वो हम तय करेंगे , ऐसे अहंकार में जीते लोग जब अपने कपडे फटते , जग हंसाई होते देखने लगे तो उसकी विश्वसनीयता पर ही प्रश्नचिन्ह लगाने लगे ,
————————————-
————————————
बडबोलापन और सोशल मीडिया में अपनी असलियत देखना कितना दर्दनाक होता है , जो इन्सान से वो कहलवा देता है जिसके लिए शायद उसे जिंदगी भर पछताना पड़े , ये बयान श्रीमान ने तब दिया था जब पाकिस्तानी सैनिक हमारे जवानों के सर काट कर ले गए थे !!
———————————
जो पाठक मेरे ब्लॉग तक पहुँच कर ये लेख पढ़ रहे हैं उन्हें मुझे ये बताने की ज़रुरत तो होगी ही नहीं की किस प्रकार बार बार हमने देश के मुद्दे तय किये , बिके हुए , टीआरपी मुद्दे उखाड़ फेंके , इस स्थापित मीडिया तंत्र को मजबूर किया उन मुद्दों को उठाने को जिन्हें हम चाहते थे और वे दबाना चाहते थे , चाहे फिर असम , बंगाल , उत्तर प्रदेश के दंगे हों , ओवैसी जैसे नालायकों का भाषण हो , रूपए की गिरती हालत हो , चीन की घुसपैठ हो , वाड्रा का गबन हो या सोनिया का काला धन हो, मैं गिनाता रहूँगा और शाम हो जाएगी !! और अब ऐसा लगने लगा है की इन स्वयं भू मसीहाओं को भी बराबरी की टक्कर हम दे रहे हैं , इनके फैसले उलट रहे हैं , इन्हें सोचने पर मजबूर कर रहे हैं , इनकी आगे की रणनीति को प्रभावित कर रहे हैं , और तो और इन्हें माफ़ी मांगने पर भी मजबूर कर रहे हैं , किसी सत्तर के दशक के रिटायर्ड आम आदमी से पूछिए , वो कहेगा “अकल्पनीय”
———————————-
इस लेख में ये लिखना भी उचित होगा की जब हम अबाधित रूप से स्वतंत्र होकर दिल से लिखने लगते हैं तो ये भी भूल जाते हैं की क्या भावना है और क्या दुर्भावना , इन दोनों के बीच एक महीन लकीर है , भावना अच्छे शब्दों में बुरी से बुरी परिस्थिति को भी प्रकट कर सकती है , दुर्भावना पूरा खेल खराब कर सकती है, हमें मिली इस आज़ादी को बर्बाद कर सकती है !! इसलिए नए नवेले सोशल मीडिया उत्साहियों को हमेशा ये ध्यान में रखना चाहिए की कहीं इस महीन लकीर के पार तो नहीं जा रहे ? गाली गलौच , खुलेआम दूसरे धर्मों को अपशब्द कहना हमारी विश्वसनीयता को ही ख़त्म करेगा , और याद रखिये जिस दिन विश्वसनीयता ख़त्म उस दिन सब कुछ ख़त्म और जीत उन्ही मसीहाओं की क्योंकि वे ही स्थापित तंत्र है , आप तो सिर्फ प्रयोग मात्र हैं !!जैसे जैसे हम जीतते जायेंगे जिम्मेदारी सबके सर पर बढती जाएगी , इसलिए आवाज़ तो दिल से ही निकलना चाहिए पर दिल के ऊपर दिमाग भी सजग रहेगा तो आवाज़ दूर तक पहुंचेगी और गहरी चोट भी करेगी !!
अभी लड़ाई कांटे की है और विश्वसनीयता की भी , दोनों एक दूसरे पर इसी कमज़ोर नस पर प्रहार करने की कोशिश कर रहे हैं , पर मुझे पूरा विश्वास है की कुछ ही समय में सोशल मीडिया देश के इस स्थापित तंत्र को पराजित कर देगा , पर तब तक जो होगा वो किसी समुद्र मंथन से कम नहीं होगा जिसमे अमृत भी निकलेगा और विष भी , गाली गलौच, हर तरह का उन्माद विष समान होगा जिसे पीना इन्ही स्वयं भू देवताओं को पड़ेगा जिन्होंने दशकों हमपर अन्याय किया है , अमृत का हिस्सा सबका होगा , एक अच्छे देश का , एक अच्छे समाज का !! तब तक …आवाज़ बुलंद रहे !!
जब लिखना शुरू किया तो ऐसा लगा जैसे जन्मोजन्म की भूख हो , एक विषय ख़त्म होता उससे पहले दुसरे पर लिखने का मन करने लगता !! ऑरकुट के ज़माने थे , लिंक ऑरकुट पर डालते , 25-50 पढने के शौकीन आ जाएँ तो दिल खुश हो जाता , टिपण्णी करके जाते, कभी कभी लोग कौतुहल से भी आते , खुश होते, तारीफ करते , लेखनी की भी और इस बात की भी की मैं एक “ब्लॉगर” बन चुका था , शायद ये एक सम्मान सूचक शब्द था उस समय और शायद आज भी
पर सब कुछ ठहरा ठहरा था , अपनी पोस्ट की मार्केटिंग कैसे करें समझ नहीं आता ,अलग अलग ऑरकुट ग्रुप में लिंक पोस्ट कर देते , देखो भाई मैंने ये लिखा है इसे पढो , सब कुछ विचित्र !!खैर हिट्स बढ़कर 300 500 के आस पास पहुँच चुकी थीं , तब 2009 – 10 के अंत में फेसबुक का पदार्पण हुआ , चीज़ें तेजी से बदलने लगीं , 2011 के बाबा रामदेव और अन्ना के आन्दोलन ने ब्लोगिंग को और सोशल मीडिया को मेरे लिए पूरी तरह परिभाषित कर दिया , एक शौकिया लिखने वाले को समझ आ चुका था की लिखना आज की ज़रुरत है , लोगों को जगाना कर्तव्य और इन सब के लिए खुद जगे हुए रहना मजबूरी !! लिखने के मात्र चस्के से दीवानगी , दीवानगी से जिम्मेदारी का ये सफ़र बदस्तूर जारी है , अब चाहता भी हूँ की इस सब से दूर फिर से अपनी शांत दुनिया में लौट चलूँ तो मन कचोटता है …. एक जिम्मेदार “सोशल मीडिया कार्यकर्ता ” शायद इसे ही कहते हों !!
पहले सिर्फ भड़ास होती थी , थोड़े अच्छे शब्दों में , अब कोशिश करता हूँ की कम से कम ब्लॉग में तो जानकारियां साझा की जाएँ , हाँ भड़ास की भी अपनी जगह है क्योंकि कई बार जो काम तर्क नहीं कर पाते वो एक भावनात्मक रूप से आवेशित शब्द कर जाते हैं , इस भड़ास के लिए फेसबुक और ट्विटर एक जबरजस्त माध्यम के रूप में उभरे हैं !! लाखों लोग आज अपने विचारों का प्रकटीकरण फेसबुक और ट्विटर से कर रहे हैं , कभी कभी ऐसा लगता है की जब सोशल मीडिया नहीं था तब कितनी कुंधता होती होगी , कहीं अपनी बात नहीं कह सकते, कहीं अपना गुस्सा जाहिर नहीं कर सकते , कितना आक्रोश रहा होगा जो बाहर ही नहीं आ पाया होगा , कैसा लोकतंत्र रहा होगा जहाँ आपकी बात पूरी आज़ादी से रखने का एक माध्यम भी नहीं हो ? ऐसा माध्यम जहाँ दिल की आवाज़ लिखने से पहले उसके परिणामों के लिए सोचना ना पड़े ? मन सिहर जाता है सोचकर !!
————————————–
सोचिये 1984 में जब सिख दंगे हुए तब सोशल मीडिया होता तो क्या असर होता ?
—————————————
क्या जगदीश टाइटलर ऐसी हरकत करने की हिम्मत करते ? क्या राजीव ये कह पाते की जब बड़ा पेड़ गिरता है तो ज़मीन हिलती है , और कह भी देते तो क्या देश की जनता उन्हें माफ़ कर तब के तभी भारी बहुमत से जिता देती ?
—————————————
क्या अमिताभ बच्चन ऐसा बयान देने की हरकत करते की खून का बदला खून से लेंगें , दूरदर्शन उसे बारम्बार दिखा पाता , देश मौन होकर सुनता रहता ?
—————————————–
हर देशभक्त के मन में कितना आक्रोश रहा होगा जब वोट बेंक के वजन के नीचे कुचला हुआ प्रधानमंत्री सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दे ? पर उस आक्रोश को व्यक्त करने का कोई माध्यम नहीं , ज्यादा बोलोगे तो धर लिए जाओगे , सडा दिए जाओगे जेल के अन्दर !!
————————————-
कितनी वेदना का दौर रहा होगा जब मंडल कमीशन घोषित हुआ होगा , क्या अपनी बात रखने की आज़ादी कई जानें बचा सकती थी ?
—————————————-
पर इसका दूसरा पहलु ये भी है की जो आधिकारिक माध्यम थे उन्होंने अपना काम सही से नहीं किया, जनता की आवाज़ होने का स्तम्भ कहे जाने वालों ने जनता की आवाज़ को कभी बाहर ही नहीं आने दिया , पहले सरकारी दूरदर्शन था , अब सरकार प्रायोजित न्यूज़ चेनल , अंतर सिर्फ इतना की पहले सिर्फ न्यूज़ होती थी जैसी भी हो और व्यूज़ बनाना दर्शक के हाथ होता था , अब न्यूज़ तो कम है व्यूज़ ज्यादा हैं , उस बीच में न्यूज़ ढूंढ निकाल लेना दर्शक की अपनी काबिलियत !! व्यूज़ भी लिफाफों में तोले गए ईमान से खरीदे हुए !! जैसे की , जिन भाषणों पर हंस हंस कर लोग लोटपोट हुए और जिनकी तारीफों में कसीदे पढ़े गए उनका पूरा का पूरा सच ही इन पत्रकारों ने बदल डाला , किस किस्म का दुस्साहस था ये देश की जनता के साथ और ना जाने कितने ऐसे उदाहरण की सोचें तो डूब मरें की ऐसे केले छाप लोकतंत्र में जी रहे हैं हम !!
———————————
जब सोशल मीडिया नए नए तेवरों में था तब इन स्थापित स्तंभों ने इसका मजाक उडाया , पर दिन बदले, चंद लोगों से जब इसकी पहुँच लाखों करोड़ों तक पहुँचने लगी तब इनके नीचे की ज़मीन खिसकने लगी, पर्दाफाश होने लगा , झूठ और सच समझने का एक और स्तम्भ खड़ा होने लगा , और तब था सिर्फ खीझ , गुस्सा,और नफरत !!
———————————–
जो खुद को मसीहा समझ बैठे थे , जो समझ बैठे थे की स्टूडियो में बैठे देश की तस्वीर और तद्बीर लिखने वाले सिर्फ हम हैं , हम खुदा है खबरों की दुनिया के , ड्राइंग रूम में बैठा आम इंसान हम जो बोलेंगें आँख मूँद कर मानेगा , किसे शैतान और किसे पैगम्बर बनाना है वो हम तय करेंगे , ऐसे अहंकार में जीते लोग जब अपने कपडे फटते , जग हंसाई होते देखने लगे तो उसकी विश्वसनीयता पर ही प्रश्नचिन्ह लगाने लगे ,
————————————-
————————————
बडबोलापन और सोशल मीडिया में अपनी असलियत देखना कितना दर्दनाक होता है , जो इन्सान से वो कहलवा देता है जिसके लिए शायद उसे जिंदगी भर पछताना पड़े , ये बयान श्रीमान ने तब दिया था जब पाकिस्तानी सैनिक हमारे जवानों के सर काट कर ले गए थे !!
———————————
जो पाठक मेरे ब्लॉग तक पहुँच कर ये लेख पढ़ रहे हैं उन्हें मुझे ये बताने की ज़रुरत तो होगी ही नहीं की किस प्रकार बार बार हमने देश के मुद्दे तय किये , बिके हुए , टीआरपी मुद्दे उखाड़ फेंके , इस स्थापित मीडिया तंत्र को मजबूर किया उन मुद्दों को उठाने को जिन्हें हम चाहते थे और वे दबाना चाहते थे , चाहे फिर असम , बंगाल , उत्तर प्रदेश के दंगे हों , ओवैसी जैसे नालायकों का भाषण हो , रूपए की गिरती हालत हो , चीन की घुसपैठ हो , वाड्रा का गबन हो या सोनिया का काला धन हो, मैं गिनाता रहूँगा और शाम हो जाएगी !! और अब ऐसा लगने लगा है की इन स्वयं भू मसीहाओं को भी बराबरी की टक्कर हम दे रहे हैं , इनके फैसले उलट रहे हैं , इन्हें सोचने पर मजबूर कर रहे हैं , इनकी आगे की रणनीति को प्रभावित कर रहे हैं , और तो और इन्हें माफ़ी मांगने पर भी मजबूर कर रहे हैं , किसी सत्तर के दशक के रिटायर्ड आम आदमी से पूछिए , वो कहेगा “अकल्पनीय”
———————————-
इस लेख में ये लिखना भी उचित होगा की जब हम अबाधित रूप से स्वतंत्र होकर दिल से लिखने लगते हैं तो ये भी भूल जाते हैं की क्या भावना है और क्या दुर्भावना , इन दोनों के बीच एक महीन लकीर है , भावना अच्छे शब्दों में बुरी से बुरी परिस्थिति को भी प्रकट कर सकती है , दुर्भावना पूरा खेल खराब कर सकती है, हमें मिली इस आज़ादी को बर्बाद कर सकती है !! इसलिए नए नवेले सोशल मीडिया उत्साहियों को हमेशा ये ध्यान में रखना चाहिए की कहीं इस महीन लकीर के पार तो नहीं जा रहे ? गाली गलौच , खुलेआम दूसरे धर्मों को अपशब्द कहना हमारी विश्वसनीयता को ही ख़त्म करेगा , और याद रखिये जिस दिन विश्वसनीयता ख़त्म उस दिन सब कुछ ख़त्म और जीत उन्ही मसीहाओं की क्योंकि वे ही स्थापित तंत्र है , आप तो सिर्फ प्रयोग मात्र हैं !!जैसे जैसे हम जीतते जायेंगे जिम्मेदारी सबके सर पर बढती जाएगी , इसलिए आवाज़ तो दिल से ही निकलना चाहिए पर दिल के ऊपर दिमाग भी सजग रहेगा तो आवाज़ दूर तक पहुंचेगी और गहरी चोट भी करेगी !!
अभी लड़ाई कांटे की है और विश्वसनीयता की भी , दोनों एक दूसरे पर इसी कमज़ोर नस पर प्रहार करने की कोशिश कर रहे हैं , पर मुझे पूरा विश्वास है की कुछ ही समय में सोशल मीडिया देश के इस स्थापित तंत्र को पराजित कर देगा , पर तब तक जो होगा वो किसी समुद्र मंथन से कम नहीं होगा जिसमे अमृत भी निकलेगा और विष भी , गाली गलौच, हर तरह का उन्माद विष समान होगा जिसे पीना इन्ही स्वयं भू देवताओं को पड़ेगा जिन्होंने दशकों हमपर अन्याय किया है , अमृत का हिस्सा सबका होगा , एक अच्छे देश का , एक अच्छे समाज का !! तब तक …आवाज़ बुलंद रहे !!
No comments:
Post a Comment