Tuesday, December 31, 2013

दस गुना महंगी पड़ रही है केजरीवाल की सुरक्षा


दस गुना महंगी पड़ रही है केजरीवाल की सुरक्षा

arvind Kejriwal
अरविंद केजरीवाल
अमन शर्मा, नई दिल्ली
ऐसा कहा जाता है कि सरोजिनी नायडू ने कहा था कि महात्मा गांधी को 'गरीबी' में रखने का खर्च बहुत ज्यादा था। इसी तरह का मामला दिल्ली के नए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सुरक्षा न लेने से सामने आ रहा है। अरविंद केजरीवाल को आम आदमी बनाए रखने के लिए उन्हें पिछले मुख्यमंत्रियों से दस गुना ज्यादा पुलिसवालों की सुरक्षा देनी पड़ रही है। दिल्‍ली पुलिस अब तक मुख्‍यमंत्री की सुरक्षा के लिए जहां 10 पुलिसकर्मियों को तैनात करती रही है, वहीं नए मुख्‍यमंत्री के द्वारा नियमित प्रोटोकॉल का पालन नहीं करने से उनकी सुरक्षा में 100 से ज्‍यादा पुलिसकर्मियों को तैनात करना पड़ रहा है।

हाल ही में रिटायर्ड हुए एक आईपीएस अधिकारी महसूस करते हैं कि सुरक्षा लेने से इनकार करके केजरीवाल अव्यावहारिक रवैया अपना रहे हैं। इस वजह से उनकी सुरक्षा में ज्यादा जवान लगाने पड़ रहे हैं और इसके साथ ही यह खतरा भी बना रहता है कि उनके साथ बदसलूकी हो सकती है या हमला हो सकता है।

उन्होंने शपथग्रहण कार्यक्रम की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि उस दिन मेट्रो से यात्रा के कारण रामलीला मैदान तक उनकी सुरक्षा में 100 पुलिसकर्मी तैनात करने पड़े थे, जबकि अगर केजरीवाल सिक्यॉरिटी कवर ले लेते हैं तो उनकी सुरक्षा के लिए 8-12 पुलिसकर्मी ही काफी होते। रामलीला मैदान में शपथ ग्रहण के लिए तीन दिन के लिए अलग-अलग थानों से 1700 पुलिसवालों को वहां डायवर्ट करना पड़ा था। उप राज्यपाल भवन में शपथ लेने पर 100 पुलिसवाले ही काफी होते।
http://navbharattimes.indiatimes.com/delhi/other-news/delhi-police-needs-ten-times-more-cops-for-arvind-kejriwals-security/articleshow/28184523.cms

बंगला और बंदूक जरूरी हैं श्रीमान केजरीवाल

  Thursday December 26, 2013

 
 स्टेटस को लेकर बहुत ज्यादा सजग रहने वाली दिल्ली (असल में तो पूरा मुल्क ही स्टेटस को लेकर पागल है) में दो घटनाएं एक साथ हुईं। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे अरविंद केजरीवाल ने वीआईपी नाम के जाल में फंसाने वाली सारी सुविधाओं को ठोकर मार दी। ठीक उसी वक्त कांग्रेस एक ऐसी खबर को लेकर चर्चा में है जिससे बचा जा सकता था। लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार को 2038 तक उनके पिता के बंगले में रहने की इजाजत दी गई है। (पढ़ें पूरी खबर, यहां क्लिक करें) कोई हैरत की बात नहीं कि सोशल मीडिया पर इसका जमकर विरोध हो रहा है, क्योंकि इस पर कब्जा करने का इतिहास भी रहा है।
हालांकि यह तर्क दिया जा सकता है कि यह तो बस एक मेमोरियल है और निजी इस्तेमाल के लिए नहीं है, लेकिन सचाई हम सब जानते हैं। इस वक्त तथाकथित बदलाव की बयार देशभर में बह रही है, इस वक्त प्रतीक अहम हैं, इस वक्त यह जरूरी है कि लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं। इस वक्त में ऐसी घटना मीरा कुमार की छवि के लिए, और देश की सबसे पुरानी पार्टी की छवि के लिए अच्छी तो नहीं ही कही जाएगी।

और भले ही हम मीरा कुमार से नाराज हो लें, लेकिन मैं शनिवार को दिल्ली के सीएम पद की शपथ लेने वाले अरविंद केजरीवाल को भी सावधान करना चाहूंगा। प्रतीक महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इससे आधारभूत सचाई और व्यवहारिकता को रौंदा नहीं जा सकता। अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री का बंगला और सुरक्षा न लेने के लिए श्रेय दिया जाना चाहिए। ऐसे वक्त में जब आम आदमी को वीआईपी लोगों के मुकाबले दोयम दर्जे का होने का अहसास दिलाया जाता रहा है, और सिर्फ वीआईपी ही नहीं बल्कि उनके बेटे-बेटियां तक आम आदमी को छोटा साबित करने के लिए अपने स्टेटस का भौंडा प्रदर्शन करते हैं। नीचे दी गई तस्वीर इसकी सच्ची गवाह है। 

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ऐसे में तो अरविंद केजरीवाल का यह कदम बहुत ही ज्यादा स्वागतयोग्य है। लेकिन वीआईपी लोगों को जो सुविधाएं मिलती हैं, वे फायदे के लिए नहीं बल्कि जरूरत होती हैं। हां, बहुत सारी सुविधाओं का गलत इस्तेमाल होता है और उससे आम आदमी का उत्पीड़न होता है। अगर आप ऐसे गलत इस्तेमाल से बच सकें तो सचाई यही है कि ये सुविधाएं जरूरत हैं।

एक नेता पर, और वह भी ऐसा नेता जो एक संवैधानिक पद पर बैठा हो, बहुत सारी जिम्मेदारियां होती हैं। आपके राजनीतिक विरोधी तो होते ही हैं, ताकतवर दुश्मन भी हो सकते हैं। इनमें ऐसे लोग भी होंगे जो विपरीत फैसलों की वजह से आपके खिलाफ हो गए हों। इनमें से कोई भी आपको नुकसान पहुंचा सकता है।

और वैसे भी, जब कोई व्यक्ति चुनाव जीतकर इतने अहम पद पर बैठता है, तो उसके साथ जनता का भारी समर्थन होता है। ऐसे में उस व्यक्ति को पहुंचा थोड़ा सा भी नुकसान लोगों की भावनाओं को भड़का सकता है। इससे कानून और व्यवस्था की समस्याएं पैदा हो सकती हैं। और फिर, असामाजिक तत्व तो रहते ही हैं ऐसे मौकों की तलाश में। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद क्या हुआ था, सबको याद है न!

इसलिए सुरक्षा को ना कहना तो ठीक नहीं है। शुक्र है कि सिस्टम ऐसा होने नहीं देगा और सुरक्षा तो रहेगी ही। वैसे भी, इस मामले में किसी एक व्यक्ति का बस नहीं होता क्योंकि पद पर बैठा व्यक्ति पूरे देश का होता है। इस मामले में टीएन शेषन और राजीव गांधी की एक घटना मुझे याद आती है। राजीव गांधी तब पीएम थे और शेषन उनके कैबिनेट सचिव हुआ करते थे। पीएम की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी उन्हीं की थी। राजीव गांधी को एक कार्यक्रम में जाना था। शेषन ने सुरक्षा का प्लान तैयार किया। फाइनल ड्रिल हो जाने के बाद जब शेषन खुद सब चीजें देखने पहुंचे तो उन्होंने एक गमला रखा हुआ देखा। प्लान में यह गमला नहीं था। शेषन ने उस गमले को हटाने के लिए कहा तो आयोजकों ने इनकार कर दिया। शेषन ने सख्ती से कहा कि तब पीएम नहीं आएंगे। उस आयोजक ने धौंस दिखाई कि राजीव गांधी मेरे दोस्त हैं। शेषन ने वॉकी-टॉकी पर चिल्लाते हुए सुरक्षाकर्मियों से कहा कि पीएम के दस्ते को वापस ले जाएं। आयोजकों की हवा निकल गई।

बंगला लेने के मामले में भी व्यवहारिक होने की जरूरत है।। मुख्यमंत्री से मिलने हजारों लोग आते हैं। अगर वहां सुरक्षा व्यवस्था नहीं होगी तो यह उस व्यक्ति के लिए ही नहीं, उन लोगों के लिए भी हानिकारक हो सकता है। जब भीड़ में वीआईपी होता है तो अव्यवस्था फैलते कितनी देर लगती है!

 प्रतीकों से चुनाव तो जीते जा सकते हैं। लेकिन लोग प्रतीकों से ज्यादा काम की उम्मीद करते हैं। आप काम कीजिए तो प्रतीकों के सहारे की जरूरत ही नहीं रहेगी। प्रतीकों की अहमियत है, लेकिन कुछ वक्त के लिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि आप उन प्रतीकों में कैद होकर रह जाओ। आपके पास लोगों को यह बताने के हजारों तरीके हैं कि आप जनता के सेवक हैं, मालिक नहीं। और उन तरीकों का असर भी वास्तविक होगा। मसलन आप अपने सुरक्षा दस्ते को आगाह कर सकते हैं कि आम आदमी से जिम्मेदार नागरिक की तरह व्यवहार करें न कि जानवरों की तरह हांक दें। ऐसा न हो कि जब आपका काफिला चले तो आपके सुरक्षाकर्मी कानफोड़ू सायरन बजाते, ऑटोमेटिक हथियार लहराते और उन्हें आम आदमी की ओर तानते हुए चलें कि रास्ते से हटो नहीं तो...। और सिर्फ आप नहीं, बाकियों को भी ऐसी चीजों से बचने को कहा जाना चाहिए। लोग इस तरह की बातों से नफरत करते हैं। मेरे साथ ऐसा अनुभव हो चुका है।

पढ़िए: मेरे सीने पर उस जोकर वीआईपी की बंदूक

सुरक्षा न लेने का अरविंद केजरीवाल का फैसला अव्यवहारिक है। मुझे उम्मीद है कि अरविंद केजरीवाल अपने फैसलों पर दोबारा सोचेंगे।

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