अब तो पंडित जी लोग बहुत खुश हो रहे होंगे।
सुबह-सुबह जनेऊ कान में लपेटकर दांत मांजते हुए अट्टहास करेंगे। लौंडिया
बहुत तेज चल रही थी। चली थी मर्दों को गरियाने। अबे, हम ब्रम्हा के मुख से
पैदा हुए हैं। औरतें, हमारे पैरों के नाखून से। हम मुल्क की सत्ताएं
चलाने के लिए हैं और ये औरतें हमारे भोग के लिए। हम धर्मग्रंथों में
संस्कृत बोलते हैं, औरतों को इजाजत नहीं बोलने की। फेसबुक मिल गया तो लगी
कूदने। जो जी में आएगा, लिखती जाएंगी। मारो, इन औरतों को। जबान काट लो
इनकी। अब लोकतंत्र में हम खुलेआम जबान कैसे काटें।
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