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मनुस्मुर्ति" में क्या कहा हैं
===============
यह देखिये-
१- पुत्री,पत्नी,माता या कन्या,युवा,व्रुद्धा किसी भी स्वरुप में नारी स्वतंत्र नही होनी चाहिए. -मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-२ से ६ तक.
२- पति पत्नी को छोड सकता हैं, सुद(गिरवी) पर रख सकता हैं, बेच सकता हैं, लेकिन स्त्री को इस प्रकार के अधिकार नही हैं. किसी भी स्थिती में, विवाह के बाद, पत्नी सदैव पत्नी ही रहती हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४५
३- संपति और मिलकियत के अधिकार और दावो के लिए, शूद्र की स्त्रिया भी "दास" हैं, स्त्री को संपति रखने का अधिकार नही हैं, स्त्री की संपति का मलिक उसका पति,पूत्र, या पिता हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४१६.
४- ढोर, गंवार, शूद्र और नारी, ये सब ताडन के अधिकारी हैं, यानी नारी को ढोर की तरह मार सकते हैं....तुलसी दास पर भी इसका प्रभाव दिखने को मिलता हैं, वह लिखते हैं-"ढोर,चमार और नारी, ताडन के अधिकारी."
- मनुस्मुर्तिःअध्याय-८ श्लोक-२९९
५- असत्य जिस तरह अपवित्र हैं, उसी भांति स्त्रियां भी अपवित्र हैं, यानी पढने का, पढाने का, वेद-मंत्र बोलने का या उपनयन का स्त्रियो को अधिकार नही हैं.- मनुस्मुर्तिःअध्याय-२ श्लोक-६६ और अध्याय-९ श्लोक-१८.
६- स्त्रियां नर्कगामीनी होने के कारण वह यग्यकार्य या दैनिक अग्निहोत्र भी नही कर सकती.(इसी लिए कहा जाता है-"नारी नर्क का द्वार") - मनुस्मुर्तिःअध्याय-११ श्लोक-३६ और ३७ .
७- यग्यकार्य करने वाली या वेद मंत्र बोलने वाली स्त्रियो से किसी ब्राह्मण भी ने भोजन नही लेना चाहिए, स्त्रियो ने किए हुए सभी यग्य कार्य अशुभ होने से देवो को स्वीकार्य नही हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-४ श्लोक-२०५ और २०६ .
८- - मनुस्मुर्ति के मुताबिक तो , स्त्री पुरुष को मोहित करने वाली - अध्याय-२ श्लोक-२१४ .
९ - स्त्री पुरुष को दास बनाकर पदभ्रष्ट करने वाली हैं. अध्याय-२ श्लोक-२१४
१० - स्त्री एकांत का दुरुप्योग करने वाली. अध्याय-२ श्लोक-२१५.
११. - स्त्री संभोग के लिए उमर या कुरुपताको नही देखती. अध्याय-९ श्लोक-११४.
१२- स्त्री चंचल और हदयहीन,पति की ओर निष्ठारहित होती हैं. अध्याय-२ श्लोक-११५.
१३.- केवल शैया, आभुषण और वस्त्रो को ही प्रेम करने वाली, वासनायुक्त, बेईमान, इर्षाखोर,दुराचारी हैं . अध्याय-९ श्लोक-१७.
१४.- सुखी संसार के लिए स्त्रीओ को कैसे रहना चाहिए? इस प्रश्न के उतर में मनु कहते हैं-
(१). स्त्रीओ को जीवन भर पति की आग्या का पालन करना चाहिए. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-११५.
(२). पति सदाचारहीन हो,अन्य स्त्रीओ में आसक्त हो, दुर्गुणो से भरा हुआ हो, नंपुसंक हो, जैसा भी हो फ़िर भी स्त्री को पतिव्रता बनकर उसे देव की तरह पूजना चाहिए.- मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-१५४.
जो इस प्रकार के उपर के ये प्रावधान वाले पाशविक रीति-नीति के विधान वाले पोस्टर क्यो नही छपवाये?
(१) वर्णानुसार करने के कार्यः -
- महातेजस्वी ब्रह्मा ने स्रुष्टी की रचना के लिए ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र को भिन्न-भिन्न कर्म करने को तै किया हैं -
- पढ्ना,पढाना,यग्य करना-कराना,दान लेना यह सब ब्राह्मण को कर्म करना हैं. अध्यायः१:श्लोक:८७
- प्रजा रक्षण , दान देना, यग्य करना, पढ्ना...यह सब क्षत्रिय को करने के कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:८९
- पशु-पालन , दान देना,यग्य करना, पढ्ना,सुद(ब्याज) लेना यह वैश्य को करने का कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:९०.
- द्वेष-भावना रहित, आंनदित होकर उपर्युक्त तीनो-वर्गो की नि:स्वार्थ सेवा करना, यह शूद्र का कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:९१.
(२) प्रत्येक वर्ण की व्यक्तिओके नाम कैसे हो?:-
- ब्राह्मण का नाम मंगलसूचक - उदा. शर्मा या शंकर
- क्षत्रिय का नाम शक्ति सूचक - उदा. सिंह
- वैश्य का नाम धनवाचक पुष्टियुक्त - उदा. शाह
- शूद्र का नाम निंदित या दास शब्द युक्त - उदा. मणिदास,देवीदास
- अध्यायः२:श्लोक:३१-३२.
(३) आचमन के लिए लेनेवाला जल:-
- ब्राह्मण को ह्रदय तक पहुचे उतना.
- क्षत्रिय को कंठ तक पहुचे उतना.
- वैश्य को मुहं में फ़ैले उतना.
- शूद्र को होठ भीग जाये उतना, आचमन लेना चाहिए.
- अध्यायः२:श्लोक:६२.
(४) व्यक्ति सामने मिले तो क्या पूछे?:-
- ब्राह्मण को कुशल विषयक पूछे.
- क्षत्रिय को स्वाश्थ्य विषयक पूछे.
- वैश्य को क्षेम विषयक पूछे.
- शूद्र को आरोग्य विषयक पूछे.
- अध्यायः२:श्लोक:१२७.
(५) वर्ण की श्रेष्ठा का अंकन :-
- ब्राह्मण को विद्या से.
- क्षत्रिय को बल से.
- वैश्य को धन से.
- शूद्र को जन्म से ही श्रेष्ठ मानना.(यानी वह जन्म से ही शूद्र हैं)
- अध्यायः२:श्लोक:१५५.
(६) विवाह के लिए कन्या का चयन:-
- ब्राह्मण सभी चार वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
- क्षत्रिय - ब्राह्मण कन्या को छोडकर सभी तीनो वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
- वैश्य - वैश्य की और शूद्र की ऎसे दो वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
- शूद्र को शूद्र वर्ण की ही कन्याये विवाह के लिए पंसद कर सकता हैं.- (अध्यायः३:श्लोक:१३) यानी शूद्र को ही वर्ण से बाहर अन्य वर्ण की कन्या से विवाह नही कर सकता.
(७) अतिथि विषयक:-
- ब्राह्मण के घर केवल ब्राह्मण ही अतिथि गीना जाता हैं,(और वर्ण की व्यक्ति नही)
- क्षत्रिय के घर ब्राह्मण और क्षत्रिय ही ऎसे दो ही अतिथि गीने जाते थे.
- वैश्य के घर ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्य तीनो द्विज अतिथि हो सकते हैं, लेकिन ...
- शूद्र के घर केवल शूद्र ही अतिथि कहेलवाता हैं - (अध्यायः३:श्लोक:११०) और कोइ वर्ण का आ नही सकता...
(८) पके हुए अन्न का स्वरुप:-
- ब्राह्मण के घर का अन्न अम्रुतमय.
- क्षत्रिय के घर का अन्न पय(दुग्ध) रुप.
- वैश्य के घर का अन्न जो है यानी अन्नरुप में.
- शूद्र के घर का अन्न रक्तस्वरुप हैं यानी वह खाने योग्य ही नही हैं.
(अध्यायः४:श्लोक:१४)
(९) शब को कौन से द्वार से ले जाए? :-
- ब्राह्मण के शव को नगर के पूर्व द्वार से ले जाए.
- क्षत्रिय के शव को नगर के उतर द्वार से ले जाए.
- वैश्य के शव को पश्र्चिम द्वार से ले जाए.
- शूद्र के शव को दक्षिण द्वार से ले जाए.
(अध्यायः५:श्लोक:९२)
(१०) किस के सौगंध लेने चाहिए?:-
- ब्राह्मण को सत्य के.
- क्षत्रिय वाहन के.
- वैश्य को गाय, व्यापार या सुवर्ण के.
- शूद्र को अपने पापो के सोगन्ध दिलवाने चाहिए.
(अध्यायः८:श्लोक:११३)
(११) महिलाओ के साथ गैरकानूनी संभोग करने हेतू:-
- ब्राह्मण अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो सिर पे मुंडन करे.
- क्षत्रिय अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो १००० भी दंड करे.
- वैश्य अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये और १ साल के लिए कैद और बाद में देश निष्कासित.
- शूद्र अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये , उसका लिंग काट लिआ जाये.
- शूद्र अगर द्विज-जाती के साथ अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसका एक अंग काटके उसकी हत्या कर दे.
(अध्यायः८:श्लोक:३७४,३७५,३७
९)
(१२) हत्या के अपराध में कोन सी कार्यवाही हो?:-
- ब्राह्मण की हत्या यानी ब्रह्महत्या महापाप.(ब्रह्महत्या करने वालो को उसके पाप से कभी मुक्ति नही मिलती)
- क्षत्रिय की हत्या करने से ब्रह्महत्या का चौथे हिस्से का पाप लगता हैं.
- वैश्य की हत्या करने से ब्रह्महत्या का आठ्वे हिस्से का पाप लगता हैं.
- शूद्र की हत्या करने से ब्रह्महत्या का सोलह्वे हिस्से का पाप लगता हैं.(यानी शूद्र की जिन्द्गी बहोत सस्ती हैं)
- (अध्यायः११:श्लोक:१२६)...
मनुस्मुर्ति" में क्या कहा हैं
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यह देखिये-
१- पुत्री,पत्नी,माता या कन्या,युवा,व्रुद्धा किसी भी स्वरुप में नारी स्वतंत्र नही होनी चाहिए. -मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-२ से ६ तक.
२- पति पत्नी को छोड सकता हैं, सुद(गिरवी) पर रख सकता हैं, बेच सकता हैं, लेकिन स्त्री को इस प्रकार के अधिकार नही हैं. किसी भी स्थिती में, विवाह के बाद, पत्नी सदैव पत्नी ही रहती हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४५
३- संपति और मिलकियत के अधिकार और दावो के लिए, शूद्र की स्त्रिया भी "दास" हैं, स्त्री को संपति रखने का अधिकार नही हैं, स्त्री की संपति का मलिक उसका पति,पूत्र, या पिता हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४१६.
४- ढोर, गंवार, शूद्र और नारी, ये सब ताडन के अधिकारी हैं, यानी नारी को ढोर की तरह मार सकते हैं....तुलसी दास पर भी इसका प्रभाव दिखने को मिलता हैं, वह लिखते हैं-"ढोर,चमार और नारी, ताडन के अधिकारी."
- मनुस्मुर्तिःअध्याय-८ श्लोक-२९९
५- असत्य जिस तरह अपवित्र हैं, उसी भांति स्त्रियां भी अपवित्र हैं, यानी पढने का, पढाने का, वेद-मंत्र बोलने का या उपनयन का स्त्रियो को अधिकार नही हैं.- मनुस्मुर्तिःअध्याय-२ श्लोक-६६ और अध्याय-९ श्लोक-१८.
६- स्त्रियां नर्कगामीनी होने के कारण वह यग्यकार्य या दैनिक अग्निहोत्र भी नही कर सकती.(इसी लिए कहा जाता है-"नारी नर्क का द्वार") - मनुस्मुर्तिःअध्याय-११ श्लोक-३६ और ३७ .
७- यग्यकार्य करने वाली या वेद मंत्र बोलने वाली स्त्रियो से किसी ब्राह्मण भी ने भोजन नही लेना चाहिए, स्त्रियो ने किए हुए सभी यग्य कार्य अशुभ होने से देवो को स्वीकार्य नही हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-४ श्लोक-२०५ और २०६ .
८- - मनुस्मुर्ति के मुताबिक तो , स्त्री पुरुष को मोहित करने वाली - अध्याय-२ श्लोक-२१४ .
९ - स्त्री पुरुष को दास बनाकर पदभ्रष्ट करने वाली हैं. अध्याय-२ श्लोक-२१४
१० - स्त्री एकांत का दुरुप्योग करने वाली. अध्याय-२ श्लोक-२१५.
११. - स्त्री संभोग के लिए उमर या कुरुपताको नही देखती. अध्याय-९ श्लोक-११४.
१२- स्त्री चंचल और हदयहीन,पति की ओर निष्ठारहित होती हैं. अध्याय-२ श्लोक-११५.
१३.- केवल शैया, आभुषण और वस्त्रो को ही प्रेम करने वाली, वासनायुक्त, बेईमान, इर्षाखोर,दुराचारी हैं . अध्याय-९ श्लोक-१७.
१४.- सुखी संसार के लिए स्त्रीओ को कैसे रहना चाहिए? इस प्रश्न के उतर में मनु कहते हैं-
(१). स्त्रीओ को जीवन भर पति की आग्या का पालन करना चाहिए. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-११५.
(२). पति सदाचारहीन हो,अन्य स्त्रीओ में आसक्त हो, दुर्गुणो से भरा हुआ हो, नंपुसंक हो, जैसा भी हो फ़िर भी स्त्री को पतिव्रता बनकर उसे देव की तरह पूजना चाहिए.- मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-१५४.
जो इस प्रकार के उपर के ये प्रावधान वाले पाशविक रीति-नीति के विधान वाले पोस्टर क्यो नही छपवाये?
(१) वर्णानुसार करने के कार्यः -
- महातेजस्वी ब्रह्मा ने स्रुष्टी की रचना के लिए ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र को भिन्न-भिन्न कर्म करने को तै किया हैं -
- पढ्ना,पढाना,यग्य करना-कराना,दान लेना यह सब ब्राह्मण को कर्म करना हैं. अध्यायः१:श्लोक:८७
- प्रजा रक्षण , दान देना, यग्य करना, पढ्ना...यह सब क्षत्रिय को करने के कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:८९
- पशु-पालन , दान देना,यग्य करना, पढ्ना,सुद(ब्याज) लेना यह वैश्य को करने का कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:९०.
- द्वेष-भावना रहित, आंनदित होकर उपर्युक्त तीनो-वर्गो की नि:स्वार्थ सेवा करना, यह शूद्र का कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:९१.
(२) प्रत्येक वर्ण की व्यक्तिओके नाम कैसे हो?:-
- ब्राह्मण का नाम मंगलसूचक - उदा. शर्मा या शंकर
- क्षत्रिय का नाम शक्ति सूचक - उदा. सिंह
- वैश्य का नाम धनवाचक पुष्टियुक्त - उदा. शाह
- शूद्र का नाम निंदित या दास शब्द युक्त - उदा. मणिदास,देवीदास
- अध्यायः२:श्लोक:३१-३२.
(३) आचमन के लिए लेनेवाला जल:-
- ब्राह्मण को ह्रदय तक पहुचे उतना.
- क्षत्रिय को कंठ तक पहुचे उतना.
- वैश्य को मुहं में फ़ैले उतना.
- शूद्र को होठ भीग जाये उतना, आचमन लेना चाहिए.
- अध्यायः२:श्लोक:६२.
(४) व्यक्ति सामने मिले तो क्या पूछे?:-
- ब्राह्मण को कुशल विषयक पूछे.
- क्षत्रिय को स्वाश्थ्य विषयक पूछे.
- वैश्य को क्षेम विषयक पूछे.
- शूद्र को आरोग्य विषयक पूछे.
- अध्यायः२:श्लोक:१२७.
(५) वर्ण की श्रेष्ठा का अंकन :-
- ब्राह्मण को विद्या से.
- क्षत्रिय को बल से.
- वैश्य को धन से.
- शूद्र को जन्म से ही श्रेष्ठ मानना.(यानी वह जन्म से ही शूद्र हैं)
- अध्यायः२:श्लोक:१५५.
(६) विवाह के लिए कन्या का चयन:-
- ब्राह्मण सभी चार वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
- क्षत्रिय - ब्राह्मण कन्या को छोडकर सभी तीनो वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
- वैश्य - वैश्य की और शूद्र की ऎसे दो वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
- शूद्र को शूद्र वर्ण की ही कन्याये विवाह के लिए पंसद कर सकता हैं.- (अध्यायः३:श्लोक:१३) यानी शूद्र को ही वर्ण से बाहर अन्य वर्ण की कन्या से विवाह नही कर सकता.
(७) अतिथि विषयक:-
- ब्राह्मण के घर केवल ब्राह्मण ही अतिथि गीना जाता हैं,(और वर्ण की व्यक्ति नही)
- क्षत्रिय के घर ब्राह्मण और क्षत्रिय ही ऎसे दो ही अतिथि गीने जाते थे.
- वैश्य के घर ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्य तीनो द्विज अतिथि हो सकते हैं, लेकिन ...
- शूद्र के घर केवल शूद्र ही अतिथि कहेलवाता हैं - (अध्यायः३:श्लोक:११०) और कोइ वर्ण का आ नही सकता...
(८) पके हुए अन्न का स्वरुप:-
- ब्राह्मण के घर का अन्न अम्रुतमय.
- क्षत्रिय के घर का अन्न पय(दुग्ध) रुप.
- वैश्य के घर का अन्न जो है यानी अन्नरुप में.
- शूद्र के घर का अन्न रक्तस्वरुप हैं यानी वह खाने योग्य ही नही हैं.
(अध्यायः४:श्लोक:१४)
(९) शब को कौन से द्वार से ले जाए? :-
- ब्राह्मण के शव को नगर के पूर्व द्वार से ले जाए.
- क्षत्रिय के शव को नगर के उतर द्वार से ले जाए.
- वैश्य के शव को पश्र्चिम द्वार से ले जाए.
- शूद्र के शव को दक्षिण द्वार से ले जाए.
(अध्यायः५:श्लोक:९२)
(१०) किस के सौगंध लेने चाहिए?:-
- ब्राह्मण को सत्य के.
- क्षत्रिय वाहन के.
- वैश्य को गाय, व्यापार या सुवर्ण के.
- शूद्र को अपने पापो के सोगन्ध दिलवाने चाहिए.
(अध्यायः८:श्लोक:११३)
(११) महिलाओ के साथ गैरकानूनी संभोग करने हेतू:-
- ब्राह्मण अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो सिर पे मुंडन करे.
- क्षत्रिय अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो १००० भी दंड करे.
- वैश्य अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये और १ साल के लिए कैद और बाद में देश निष्कासित.
- शूद्र अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये , उसका लिंग काट लिआ जाये.
- शूद्र अगर द्विज-जाती के साथ अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसका एक अंग काटके उसकी हत्या कर दे.
(अध्यायः८:श्लोक:३७४,३७५,३७
९)
(१२) हत्या के अपराध में कोन सी कार्यवाही हो?:-
- ब्राह्मण की हत्या यानी ब्रह्महत्या महापाप.(ब्रह्महत्या करने वालो को उसके पाप से कभी मुक्ति नही मिलती)
- क्षत्रिय की हत्या करने से ब्रह्महत्या का चौथे हिस्से का पाप लगता हैं.
- वैश्य की हत्या करने से ब्रह्महत्या का आठ्वे हिस्से का पाप लगता हैं.
- शूद्र की हत्या करने से ब्रह्महत्या का सोलह्वे हिस्से का पाप लगता हैं.(यानी शूद्र की जिन्द्गी बहोत सस्ती हैं)
- (अध्यायः११:श्लोक:१२६)...
मनुस्मृति पाखंडी ब्राह्मणवाद की निशानी है। जो पुष्यमित्र सुंग के समय पर जानबूझकर लिखी गई। ये एक कडवी सच्चाई है जिसे आज कोई भी पाखंडी ब्रह्मण मानाने को तैयार नहीं। इसका मुख्य उद्देश्य ब्राह्मणों को समुदाय में सबसे ऊँचे पद पर आसीन करना था। और उसमे ये कामयाब हुए. इसी समय में लगभग हर धार्मिक किताबो के साथ छेड़ छाड़ करके उसमे जातिगत सामग्री डाल दी गई। जिससे उनको बाद में पढ़ने वाले लोग जाति-प्रथा का पालन करने लग गए।
ReplyDeleteye baat sach hai, ki hamare sastron se chedkhad ki gai.. unko bikrat kiya gaya.. anytha ma durga karoop kali ka roop har rrop me sterr poojyniya hai.. kyon amesa ram seeta, gauri sankar, laxmi narayn hota hai, kyon hi ram kanaam pahle aata hai sankar ka naam pahle hota hai,
Deleteaur ye sab videsiyo ke bharat me aane ke baad suru hua... yahn tak ki manu smrati me bhi ched chad ki gai.. jo ki Eoropeian logon kiya hai.. is baat ko koi mane yana mane.. kintusach yahi hai ki hamare sastron me jo vikratiyan paida ki bo eouropiyon ki hi karastani hai..
Deleteजय सुधीर मादरचोद लोगो को जाती के आधार पर क्यों चुतिया बना रहा है
Deleteतूने जाती व्यवस्था का साइड तो बताई दूसरी क्यों नहीं बताई
या तू चुतिया के लंड को पता नहीं है या दलित लीगों को बताना नहीं चाहता।तूने जाती वयवस्था के बारे मई जो लिखा जोड़ा है वो आधा अधूरा ज्ञान है
जाती वयवस्था के बारे मई अधिकतर वामपंथियो ने लुकः है जिनकी सोच मैक्समूलर जेसे अग्रेजी अधिकाति की तरह थी।मरस्मुलर को ब्रिटिश भारत मई इग्लैंड से भेज ही इसलिए गया था ताकि वो हिन्दू धर्म ग्रथो का गलत अनुवाद करे
हिन्दू धर्मग्रंथ सनस्कृत मई लिखे गए है
संस्कृत मई एक ही सुब के अलग अलग औरत होते है जरा सा भी शेर फेर करने से पूरा अर्थ बदल जाता है
मैक्समूलर ने इस्सी का फायदा उठाया और संस्कृत के बिद्वानो को पैसो का लालच देकर उनसे हिन्दू धर्म ग्रंथो की गलत व्याख्या करवाई और खुद भी की
उससे पता था की हिन्दुओ को जाती वयवस्था मई बाट क्र उनकी एकता को तोडा जा सकता है और आजकल यही हो रहा है
ये बात सही है की हिन्दू धर्म मैं ब्राह्मण को विष्णु के मुख से,छत्रीय को भुनाओ से, वैश्य को छाती से और दलिट को पैरों के तलुओ से निकला बताया गया है
ये मनुस्मृती की जाती वयवस्था का पक्ष है
मनुस्मृति मई येभी कहा गया है की
कोई भी मनुस्य जो हिन्दू धर्म मई जन्म लेता है वो जन्म से दलित (छुद्र) ही होता है
उसके कर्म उसकी जाती निर्धारित करते है
जेसे
अगर कोई ब्राह्मण के घर पैदा हुआ बालक अगर मैला धोने(लोगो के टॉयलेट पिड़ जिसमे टॉयलेट जाती है साफ़ करने,नालिया साफ़ करने)मरे जानवरो क8 लाशो को उठाने या सावर्जनिक सफाई करने का काम करने का काम करता है तो उससे दलित (शूद्र) होता है अगर कोई दलित(छुद्र) पूजा पथ का कम करता है तो वो ब्राहण कास्ट का मन जायेगा दलित कास्ट का नहीं
अगर कोई वैश्य (बनिया) के घर जनम लेता है लेकिन वयस्क होने पर सावर्जनिक सफ़ाई का काम ,(मरे हुए जानवरो की लड़ो को उठाना टॉयलेट पिड साफ करना,लाशो को सिलना आदि का कम
करता है तो वो दलित(छुद्र )मन जायेगा न की वैश्य(बनिया)
अगर कोईछत्रीय के घर जनम लेता है और वयस्क होने पर सावर्जनिक सफाई या पूजापाठ का कम करता है तो उससे दलित या ब्राह्मण मन जायेगा
ये है जाती व्यवस्था की पूरी सच्चाई जिससे तेरे नब्ज़ मादरचोद डॉयट से छुपाते है और पाखंडी पंडितो का साथ देते है
मई भी ब्राह्मण कास्ट से हु लेकिन मई अपने और दलितों मई कोई अंतर नहीं करता है
मावर लुए दलित पहले ई सं है बाद मई उनकी जाती आती है
गलती हिन्दू धर्म सस्त्रो क8 नहीं पाखंडी पंडितो की है जिन्होंने औने हिट के लिए मनु स्मृति की गलत व्याख्या की
"aur ye sab videsiyo ke bharat me aane ke baad suru hua... yahn tak ki manu smrati me bhi ched chad ki gai.. jo ki Eoropeian logon kiya hai.." :मैक्समूलर ने इस्सी का फायदा उठाया और संस्कृत के बिद्वानो को पैसो का लालच देकर उनसे हिन्दू धर्म ग्रंथो की गलत व्याख्या करवाई और खुद भी की
Deleteउससे पता था की हिन्दुओ को जाती वयवस्था मई बाट क्र उनकी एकता को तोडा जा सकता है और आजकल यही हो रहा है" ये तो नया पैंतरा है ,सच्चाई से ध्यान हटानेका
You have no logic, hence barking like dogs.
DeleteAgar angrajo na confuse kya tha to tumna dalito ka sath kyo nhi diya or brabar adhikar kyo nhi diya Ambadkar g na pond ka pani pima ka liya bhi andolan kya btoa issa bda aabut kya chaiya tumha so face the truth agar india ma cast system nhi hota to yha pa 700 year muslman or 200 year angraj raj nhi karta so face to truth and dont bark like bitch
Deleteब्राह्मणों के बारे में सोच समझ के बोलना
Deleteफास्ट और लास्ट time समझa rha hun
bhai mugloo ne aur angreejo ne kuch jayada hume jativad me dal diya kyu ki bs bhoosri k jaativad me mar jaye aur kbhi ramyan me manusmriti k slok hai phir ager aisa tha to ram g ne sabri k baer kyu khaye
DeleteSahi hai hame ye sab rukana chahiye tabhi sab ek sath hope
DeleteJativad ki vjh s hi...India aj piche ho rha h..Form pr s caste ka column hi ku ni hatva dete...Abe hm insan h insan....Brahmno ki julm ki vjh s hi hm insan ek ni ho pa rhe h
Deleteहमारे ग
Deleteधर्म ग्रन्थ में मिलावट हुई है
लेकिन बिना मिलावट वाली विशुद्ध मनु स्मृति आ गयी है उसे पड़े और अपनी शंका समाधान कर
कहां से मिलेगी
Deleteकहां से मिलेगी
Deleteमनुस्मृति के बारे मे झूठी भ्रांतियां बाते फेलाई जाती है ईन मे मिलावट की गई है अगर आप विशुद्ध मनुस्मृति पढ़ेंगे तो पता चल जाएगा कि इसमे कितने हद तक मिलावट की गई है आप एक बार विशुद्ध मनुस्मृति मंगाकर पढ़िए पता चल जाएगा कितनी मिलावट की गई है www.vedirishi.com आप को मिल जाएगी...
DeleteBrahamanwad ko katam karo
Deleteplease visit this blog
Deletehttp://agniveer.com/manu-smriti-and-shudras-hi/
तुम लोग सही मनु स्मृति के बारे में जानते हो तो दुनिया के सामने लाओ bakchodi mat kar , नहीं तो अभी काम ही लोग सवाल कर रहे है आने वाला समय तुम्हारे लिए सिरदर्द पैदा करे गा
Deleteमहाशय इस पेज में श्लोकों का गलत अर्थ प्रस्तुत किया गया है अर्थात इसमें बस नफरत भरी गई है। इसलिए आप इन अर्थों पे भरोसा ना करे किसी संस्कृति वक्ता से उसका मतलब समझे। यही नफरत फैलाने के लिए इसलिए संस्कृति श्लोक नहीं लिखे है यहां। अगर सत्य जान ना है तो इस वीडियो में खुद देख लें।
Deletehttps://youtu.be/UElhL5u4AIA
सही है सब में भी ब्राह्मण हू पर मुझे नफरत है मनुस्मृति से मनुस्मृति जातिवाद का समर्थन करती है और भगवद गीता में श्री कृष्ण ने कहा है कि सभी जाति मेरी बनाई हुई है वो भी कर्म के आधार पर तो फिर गीता गलत है या मनुस्मृति ????
DeleteKya apne, gauri shankar, radhekrishna , jay siyaram, maa baap, mata pita, ye nam nhi sune kya,, inme har kisi me aurat ka nam purush se pehle hai. Or to or humare desh bharat tak ko mata khkar bulate hain shyad itna to pta hi hoga
DeleteAgar manusmriti itni kharab h ya pushyamitr sung ne usse lagu kiya tho uss samay bahar se aaye kisi b yatri ki kitab mai iska ulekh q nahi milta...... Jiyna b kharab baate likhi gyi wo books q 1800 ya 1900 k dashak ki thi????
DeleteOr jo b phle yatri aaye h wo 1-2 din ruk k nahi gye 10-15 saal reh k jaate thai tho unko ye sb q nahi dikha
Deleteजो इस लोक आपने इन का उदाहरण देकर आपने यह पूरा लेख लिखा है इसके विपरीत भी इस लोक मनुस्मृति में ही लिखे हैं जो वह मनुस्मृति में प्रक्षिप्त लोगों का पूरा पूरा उदाहरण देते हैं उदाहरण के लिए यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता भी मनुस्मृति में ही लिखा हुआ है और जब कोई शूद्र है किसी ब्राह्मण के घर पर आए तो ब्राह्मण दंपत्ति को चाहिए कि उसको पहले भोजन कराएं उसके बाद अपना भोजन करें जैसे कई उदाहरण भी मनुस्मृति में ही मिलते हैं मनुस्मृति में मांस मच्छी आदि का सेवन न करने की सलाह भी दी जाती है लेकिन कुछ लोग उसमें जो मिलाए गए हैं मिलावट किए गए हैं उसमें मांस मच्छी इत्यादि को खाने की सलाह दी दी जाती है आप डबल स्टैंडर्ड ना रखें बल्कि यह दोनों पक्षों को रखें तो लोगों को खुद भी समझ में आ जाएगा क्या सही है क्या गलत है फिलहाल इसमें से एक दोस्त लोगों का reference भी आपने गलत दिया है
Deleteएक कड़वी सच्चाई ये भी है की हिन्दू धर्म भारत में आर्यों के आने से पहले मौजूद था। इस बात का सबसे बेहतर प्रमाण ये है की वेदों में गणेश, दुर्गा, शिव आदि का कोई उदहारण मौजूद नहीं है बल्कि ये सभी देवता यहाँ के मूलनिवासियों के थे। गणेश, शिव, दुर्गा, और नागदेवता की पूजा अभी भी मूलनिवासी करते हैं. और आज ये हालत है की यही मूलनिवासी अपने ही धर्म को गाली देने लगे हैं।
ReplyDeleteयत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
Deleteयत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।५६।।
[यत्र तु नार्यः पूज्यन्ते तत्र देवताः रमन्ते, यत्र तु एताः न पूज्यन्ते तत्र सर्वाः क्रियाः अफलाः (भवन्ति) ।]
जहां स्त्रीजाति का आदर-सम्मान होता है, उनकी आवश्यकताओं-अपेक्षाओं की पूर्ति होती है, उस स्थान, समाज, तथा परिवार पर देवतागण प्रसन्न रहते हैं । जहां ऐसा नहीं होता और उनके प्रति तिरस्कारमय व्यवहार किया जाता है, वहां देवकृपा नहीं रहती है और वहां संपन्न किये गये कार्य सफल नहीं होते हैं ।
मूलनिवासियों को सम्मान ही कहाँ दिया आप लोगों ने?
Deleteमूल निवासी कौन थे ?
Deleteऔर कौन बाहर से आया ??
ye saale bhaddwe 2 muh ki aulaade saale angrejo ke beej se panpe kidde kya jaane hindu ya hindutwa kya hota hai...upar jitne bhi udaharan diye gaye hai sab ke sab soch smjhkar auraton ke khilaaf btakar logon ke jehen mein jheher daalne wale hai or bahut saari baatein sahi bhi hai...jo saale pallu ke peheredaar hai wo mnu smrti ko galat hi boleinge na,,inke muh pe paisa fainkh do to ye apni maa beheno ko kothe par bech de...bc bhaddwe
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Deleteपहले इस मान्यता द्वारा द्रविड़ (दक्षिण भारतीय ) और उत्तर भारतीयों में फुट ढल वाई गयी जबकि जिसके अनुसार उत्तर भारतीयों को आर्य बताया और उन्हें विदेशी कह कर मुल्निवाशी दक्षिण भारतीयों का शत्रु बताया और हडप्पा और मोहनजोदड़ो को द्रविड सभ्यता बताया लेकिन फिर बाद में इन्होने द्रविड़ो को भी विदेशी बताया और भारत में मुल्निवाशी दलित और आदिवासियों को बताया .. जबकि न तो उन्होंने आर्यों को समझा और न ही दस्युओ को ,वास्तव में आर्य नाम की कोई नस्ल या जाति कभी थी ही नही आर्य शब्द एक विशेषण है जिसका अर्थ श्रेष्ट है
Deletelife and letter of maxmullar में भी maxmullar का एक पत्र मिलता है जिसको उसने १८६६ में अपनी पत्नि को लिखा था पत्र निम्न प्रकार है –
अर्थात मुझे आशा है कि मै यह कार्य सम्पूर्ण करूंगा और मुझे पूर्ण विश्वास है ,यद्यपि मै उसे देखने को जीवित न रहूँगा, तथापि मेरा यह संस्करण वेद का आध्न्त अनुवाद बहुत हद तक भारत के भाग्य पर और उस देश की लाखो आत्माओ के विकास पर प्रभाव डालेगा | वेद इनके धर्म का मूल है और मुझे विश्वास है कि इनको यह दिखना कि वह मूल क्या है -उस धर्म को नष्ट करने का एक मात्र उपाय है ,जो गत ३००० वर्षो से उससे (वेद ) उत्त्पन्न हुआ है |
ऋग्वेद ६/६०/६ में वृत्र को आर्य कहा है अम्बेद्कर्वदियो का मत है कि वृत्र अनार्य था जबकि ऋग्वेद में ” हतो वृत्राण्यार्य ” कहा है यहाँ आर्य शब्द बलवान के रूप में प्रयुक्त हुआ है जिसका अर्थ है बलवान वृत्र और वृत्र का अर्थ निघंटु में मेघ है अर्थात बलवान मेघ | इसी तरह वेदों के एक मन्त्र में उपदेश करते हुए कहा है ” कृण्वन्तो विश्वार्यम ” अर्थात सम्पूर्ण विश्व को आर्य बनाओ यहाँ आर्य शब्द श्रेष्ट के अर्थ में लिया गया है यदि आर्य कोई जाति या नस्ल विशेष होती तो सम्पूर्ण विश्व को आर्य बनाओ ये उपदेश नही होता |
बौद्धों के विवेक विलास में आर्य शब्द -” बौधानाम सुगतो देवो विश्वम च क्षणभंगुरमार्य सत्वाख्या यावरुव चतुष्यमिद क्रमात |” ” बुद्ध वग्ग में अपने उपदेशो को बुद्ध ने चार आर्य सत्य नाम से प्रकाशित किया है -चत्वारि आरिय सच्चानि (अ.१४ )
भाई हिन्दुधर्म जैसा सुन्दर सत्यपूर्ण कोई धर्म नही। परन्तु जातीय व्यवस्था इसमें लगा एक बद्नुमा दाग है जो इसकी पवित्रता को ग्रहण लगा रहा है। इसे कमजोर बना रहा है। तो क्या यह हमारा दायित्व नही की हम इसके निर्मल बनाए?
Deleteये मैक्समूलर कोनसी यूनिवर्सिटी मै पढ़ा था उसके कोई प्रमाण है उसने उसकी बीवी को पत्र कैसे और कोनसी शाही से लिखा पहले उसपे गोर करो कोनसे देशमे पहली यूनिवर्सिटी बनी थी और कोनसे साल मै!!!!!
Deleteहिन्दू ही आर्य है , आर्य ही हिन्दू है वेद ब्रमा जी ने दिए है
Delete7089445115 पर सम्पर्क करें बात करते है
Bhai gajab ki mirchi lagi ma....ko
Deleteभारत में जितने भी विदेशी विधर्मी हमलावर आये वह सब भारत की सम्पदा को लूटने और भारत पर हुकूमत करने के लिए आये थे. वह जानते थे कि यदि भारत पर निर्विघ्न रूप से हुकूमत करना है तो भारत में ही अपने समर्थकों की जरूरत पड़ेगी.
ReplyDeleteवह यह भी जानते थे कि यदि भारतीय समाज और संसकृति को मिटाकर अपने समर्थको की संख्या बढ़ाना हो तो भारत के प्राण उसके इतिहास साहित्य और धर्मग्रंथों को नष्ट और भ्रष्ट करना भी जरूरी है. जो कि भारतीय समाज के मुख्य आधार हैं.
धर्म के विना भारतीय कला, संगीत, काव्य, साहित्य, चित्रकला, मूर्तिकला आदि सब निष्प्राण हो जायेंगे. इसीलिए मुसलमान हमलावरों ने पाहिले तो चुन चुन कर प्रसिद्ध विद्यालयों, पाठशालाओं, ग्रंथागारों को जलवा दिया. फिर जो बच गए उन ग्रन्थों के उलटे सुलटे अर्थ करवाकर हिन्दुओं को गुमराह करने की चाल चली और हिन्दू ग्रंथो में इस्लामी तालीम घुसाने का षडयंत्र किया. जैसे अकबर ने अल्लोपनिषद नामकी उपनिषद् बनवाई थी. इसी तरह ईसाई मिशनरी ने एजोर्वेदम नामक नकली वेद बना दिया था जिसके बारे में लिखा जा चूका है.
मुसलमान और ईसाइयों के वेदों और अन्य धर्म ग्रंथों के जो अनर्थ किये उसकी पोल महर्षि दयानंद ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “ऋग्वेदभाष्य भूमिका” में खोल दी है. लेकिन हिन्दू धर्म ग्रंथों को प्रदूषित करने का षडयंत्र अंगरेजों के समय में भी चलता रहा. आज यह दायित्व सेकुलर सरकार और सेकुलर नेता निबाह रहे हैं.
यहाँ पर थोडे से उदहारण दिए जा रहे हैं -
1 – वेदों में मदीना का उल्लेख है –
कहावत है कि बिल्ली को सपने में छीछड़े ही दिखते हैं. इसी तरह किसी मौलवी ने वेदों में दिए गए “अदीना “शब्द को “मदीना ” पढ़ लिया और कहा कि वेद में कहा गया है कि,हम सौ साल तक मदीना में रहें -
“प्रब्रवाम शरदः शतमदीना स्याम शरदः शतम” यजुर्वेद – अध्याय 36 मन्त्र 24.
जबकि इसका सही अर्थ है कि हे ईश्वर हम सौ साल तक कभी दीन नहीं रहें और किसी के आगे लाचार नहीं रहें.
2 – मनुस्मृति में मौलाना –
इसी तरह मनुस्मृति के “मौलान ” शब्द को “मौलाना ” बताकर यह साबित करने की कोशिश की गयी कि मनुस्मृति में लिखा है कि हर बात मौलाना से पूछ कर करना चाहिए. मनुस्मृति का श्लोक है -
“मौलान शाश्त्रविद शूरान लब्ध लक्षान कुलोद्गतान “मनुस्मृति -गृहाश्रम प्रकरण श्लोक 29.
इसका वास्तविक अर्थ है कि किसी क्षेत्र के रीति रिवाज के बारे में जानकारी के लिए वहां के किसी मूल निवासी, शाश्त्रविद, कुलीन और अपना लक्ष्य जानने वाले व्यक्ति से प्रश्न करें न कि किसी मौलाना से पूँछें.
3 – वेद कहता है मुर्गा खाओ मद्य पियो –
वेद का एक मन्त्र इस प्रकार है -
“तेनो रासन्ता मुरुगायमद्य यूयं पात सवस्तिभिः सदा “ऋग्वेद -मंडल 7 सूक्त 35 मन्त्र 15.
मुसलमानों ने इसका अर्थ किया कि वेद कहता है हे लोगो तुम मुर्गा खाओ और मद्य (शराब) पीकर ख़ुशी मनाओ . जबकि इसका अर्थ है हे ईश्वर आज आप हमारे लिए कीर्ति प्रदान करने वाली विद्या का उपदेश करें और हमारी रक्षा करें.
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अकसर ईसाई हिन्दुओं को ईसाई बनाने के लिए यह चालाकी करते है और कहते हैं कि वेदों में ईसा मसीह के बारे में भविष्यवाणी कि गयी है. और ईसा एक अवतार थे. इसाई इस वेदमंत्र का हवाला देते है -
“ईशावास्यमिदं यत्किंचित जगत्यां जगत “यजुर्वेद -अध्याय 40 मन्त्र 1.
ईसाई इसका अर्थ करते है, कि इस दुनिया में जो कुछ भी है, वह सब ईसा मसीह कि कृपा से है. और वाही दुनिया का स्वामी है. जबकि सही अर्थ है कि इस जगत में जो भी है उसमे ईश्वर व्याप्त है.
जब पोर्चुगीज लोग भारत में आये तो वह अपने साथ टोमेटो,पोटेटो, टोबेको लेकर आये. सन 1605 के बाद से धुम्रपान का रिवाज सरे देश में फ़ैल गया.यह देखकर किसी ने धूम्रपान करने वाले ब्राहमण को दान देने वाले को नरक जाने, गाँव के सूअर बनने की बात लिख दी होगी -
“धूम्रपान रतं विप्रं ददाति यो नरः, दातारो नरकं यान्ति ब्राह्मणं ग्राम शूकरम “पद्म पुराण 1 :36.
यद्यपि इस श्लोक में धुम्रपान की निंदा की गयी है, परन्तु यह साबित होता है कि यह श्लोक सन 1605 के बाद यानि पोचुगीज के आने के बाद लिखा होगा. यानि पद्म पुराण में काफी बाद में जोड़ा गया है.
इस से यह भी साबित होता है कि विधर्मियों ने हिन्दू धर्म ग्रंथों को प्रदूषित किया था. चाहे अर्थ का अनर्थ किया हो चाहे ग्रंथों में नए नए श्लोक जोड़ दिए हों.
आज भी मुस्लिम मुल्ले और ब्लोगर हिन्दू ग्रंथों में मुहम्मद को अवतार साबित करने की कोशिश करते रहते हैं. जैसे जकारिया नायक. इस समय हिन्दी में करीब 200 ब्लॉग है, जो हिन्दू ग्रथो को प्रदूषित कर रहे हैं. हमें इन से सावधान रहने की जरुरत है. और सभी हिन्दुओं को चाहिए कि वह प्रमाणिक हिन्दू ग्रथो का अर्थ सहित गहन अध्यन करते रहें और विधर्मियों के जाल में नहीं आयें.
धन्यवाद।
DeleteAap eak ache aadmi hai or apna karm karte rahehiye dharm ki raksha hum ko Karna hi padegi
DeleteAwesome rebuttal dear...
Deletesatye vachan bhai
Deleteमनीष आवस्ती जी आप अपने आप को कुछ ज्यादा ही समझदार और पढ़ा लिखा समझने लगे हो, अपने ही वैदों में कमी निकलने लगे.
Deleteमनीष आवसती आपने वेदों में मिलावट का जो दोश अँगरेजों और मुसलमानों पर लगाया है मान लेते हैं कि यह सच है और आप धर्म प्रति बहुत दुखी है और इस से यह सबक मिलता है कि किसी वेद शास्त्र के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए लेकिन आज राजनीति में बैठे कुछ लोग और RSS वाले भी तो यही काम कर रहे हैं सिखों के ग्रंथों में मिलावट कर रहे हैं वो तो भला हो social media Facebook what app का इनके माध्यम से उन मूर्खो की हूई शैतानी पकडी जाती है और सिखों को सावधान कर दिया जाता है । मैं यह मानता हूँ कि एक सच्चा हिंदू या सच्चा बराहमन यह नहीं कर सकता शास्त्रों में मिलावट करने वाले लोग किसी धर्म के नहीं होते उन को लोगों में भेदभाव डाल कर बस अपनी राजनीति करनी होती है । कृपया आप अपने हिंदू भाईचारे को समझाऐ के हमें सभी धर्मों के शास्त्रों का सम्मान करना चाहिए वरना जो दूसरों के लिए गढडा खोदता है उसमें वह खुद ही गिर जाता है ।
Deleteबहोत बढ़िया मनीष अवस्थी जी...
Deleteमनुस्मुर्ती मे ऐसी बाते है हि नहीं. मादरचोद इसमे बदल करके मनूस्मूर्ती को बदनाम करो
Deleteअरे मूर्ख हिन्दू समाज के अंदर जाती व्यवस्था का घिघोना रूप तो तुझे स्पस्ट दिखाई देता होगा या ये भी अंग्रेजो और मुसलमानों की देन है। अपनी कमिया तो तुम्हे दिखती नही है दुसरो पर दोष मढ़ते रहते हो इसी कारण हमारा समाज बटा हुआ है और आपस मे लड़ते रहते है और बाहर बालो से पिटते रहे है ।
Deleteआज केवल पशु ही समझदार है की कुत्ता कुतिया को देखेगा न की बिल्ली और बकरी को आज के मनुष्य तो पशुओ को भी नहीं छोड़ते तो वो जाती को कैसे मान लेंगे?
DeleteIf I agree your comments; to hame yeh bataao Hindutwa me itna kattarwaad kyo. Barabaree kyo nahin. Unch-Neech banakar Jaati-vyawastha ko kayam rakhkar aaj bhee 85% logon ko gareeb banakar rakkha huwa hai. aur yadi 15% log hee bharat ke amir ho jayenge to kya bharat viksit desh ho jaayega. Aaj bhee 100% Reservation Temple Industries ka kewal Bramhano ke paas hai. 700-700 crores Rs. in pratek temple se aa rahe hai; jis par income tax bhee nahin lagta hai; aur ye dhan kahan jaata hai, iska bhee kahee khulasha nahin hai. 11-11 trilion Dollar Dhan mandiro me daba pada huwa hai. Jisko nikaalkar bharat desh viksit kiya ja sakta hai. Kya ye sambhaw karwa sakte ho. Old aur Bakwaas Shastron kee Buree baaton ka sahara lekar aaj bhee 85% Nagrikon ko dabakar majdooron kee tarah jeewan-yaapan karwaya ja raha hai; kya yah viksit sabhyata hai. Jaati ke naam par Hindu Sawarn hee Hindu Daliton kee Bahoo-Betiyon-Bahno ka rape karke murder kar rahe hai. Yadi himmat ho to Muslim ladies ke haath bhee chhoo kar dekho; anjaam kya hoga? Sonchana hai to Sabko lekar Bharat ko poori Tarah Educated, Healthy, Wealthy aur Sanwedansheel banakar dikhao. Sastron ki dakinukeeshee baaton ko aaj bhee laagoo karke bharat ko bhikhari desh banakar rakhne kee shajish band karnee hogee. Tabhee bharat vikshit rashtra kahla payega.
ReplyDeleteusko chodd mein btata hu ki hinduo mein kattarwaad kyun hai, ISIS ka to tune suna hi hoga...ab maan lo ISIS wala teri maa ya behen ko lejakar unke sath balatkar kr de to fir aise halat mein tu kiski help lega? isliye hinduo mein kattarwaad hona chahiye, taki teri maa behen safe rahe,smjha ya fir bhi tujhe bura lga.
Deleteaaj log unch neech se nahi balki teri trah nikkammo ki wajah se gareeb hai or koi gareeb tab tak nahi hota jab tak uska saara sarir ho, gareeb wo hai jo lachar hai sarir se. accha ye bta fir tum aarakshan ki bhikh kyun lete ho re choron..
temple mein dhan se tujhe problem hai, tere baap ne kmaya tha kya? waise mdaaron or masjidon mein log apna mutth nahi chodd ke aate hai wahan bhi dhan hi jata hai, waise tu katwe ki aulaad hi hai pkka.
tu ek kaam kr pehele bhagwan ke name ka sahara lena chodd, tere baap ne tujhe galat paida kiya kya jo tu temple ki burai kr raha hai or usi temple mein rehne wale bhagwan ka name ko use kr raha hai,soch tu aakhir kiski aulaad hai
chodu lawde
DeleteWell said jugal bhai
Deleteइन लोगो को तो केवल जय भीम करना आता है
इतनी ही समस्या है हिन्दू धर्म में कास्ट सिस्टम से तो आरक्षण छोड़ दो न अब तो 5 प्रतिशत भी गरीब नही है तुममे से क्यों नीची जात का मानते हो अपने आपको समस्या हिन्दू धर्म में नही इन लोगो की सोच में है जो अपने धर्म समाज के भी सगे नही हो सके और बातें विकास की कर रहे हैं
Vikas ki baate tum karte ho. Sadiyo se daan dkshina leke bhar li petia aapne bhikaro ki tarha. Aur jb hame arakshan mila to gand jalri tumhari.. Aur jalni bh chaheye q ki ek dalit ne likha india ka consitution. Na ki kisi bramhan ne brmhano ki ghatiya soch to stri manusmriti me he dikh gayi thi..
DeleteAarakshan maanga kisne tha
Delete.
Aarakshan aarakshan bakte rahte ho
Jaante ho kuchh aarakshan ke baare me.
Chamaar ko tho milna he nahi chahiye itne saare chamar raaja hue h bharat mai inhe aarakshan ki kya jarurat??? Ab bolo apke purvajo ne tho raaj kr liya na apko aarakshan ki kya jarurat????
DeleteBeta all you aryans keep the fact in mind that you are bloody foreighners,,n the holy shit of caste system which is been previlaged for years does not sounds too effective now,because people are out of nutshell ,and they are now armed and united.uou say its a sin to touch dalit then tell me u bastards how u got engaged doing sex with an untouchable,...why your tradition partners drink,smoke,eat nonveg?why the caste system is flourishing day by day,,...because when you guys came you all were armed over horses n confrinted the poor sole natives coz they did not blvd in war .....there is a lot to exokain...look at buddhist religion it originated in india itself and the country which fallows it now has become words most powerful nations,JAPAN has worlds second largest economy with 4.53 trillion,china is a threat to america ...singapore,malasiya,,look at theee nationsu bastards ,,,u guys wiped buddhist religion out of our country ..,,and you know you are such sick that you guys took whole credit for buddism as being the founder ,because you say GAUTAM BUDDHA was a chatriya and he gained his learnings from brahmans ,,,,well its not your fault,,actually you youth now a days are blunder fools,,,go and search the history of buddhism then uou will come to know to which caste GAUTAM BUDDHA belonged.......
ReplyDeleteI am agree with you sir. aap kah rahe ho k history padho to aapko pata chalega k GAUTAM BUDDHA Kon the kis caste se belong karte the. hame pata he k wo Chatriya the..... lekin me aapse yehi sawal karna chahta hu k agar hindu dharma itna great tha to Mahatma BUddha ne BOUDHA DHARMA KI STHAPNA KYON KI?
Deletekyunki budh ke gaand mein bhi wahi kidda tha jo teri gaand mein abhi hai, smjh gya ya teri gaand mein lath dalkar kidda nikalun
DeleteGautam Buddha ne khud ko sanatani bola hai and unhone logo ko ek Rasta dikhaya bhgwan ko pane ka Jo gyan pr based tha. Or rahi bat Buddhism Ki to us religion ko religion bnaya logo ne na Ki Buddha ne. Buddha ne to murtipooja ka v virodh kiya tha pr unke baad baudhho ne unki hi murtiyan bnakar pooja Ki. Samjhe Mr Jo v Ho tum. Ye sb insano Ki karastani h na Ki Buddha Ki.
DeleteTum jo koi bhi ho kisi bhi bhagwan ka apman mat karna. Bhuddha ke bare me bolke hamein uksa mat. Ye platform discussion ke liye hai ispe fight nahi kar sakte. Tera knowledge itna hi hai ke tu sírf gali de Sakta hai to shut ur mouth.
DeleteJugal bhai tu kisi bhi caste ka ho par tu bahut badtamiz hai,krpiya kareke apne shabdo par dhayan de, insan ke kahe h shabd use bada banate hai, gali galoch karrna sahi nahi, samjo to badlane koshish karna nahi to tumahara reply to mujhe pata hi hai kesa ayega
Deletebhai,ek ne kaha ki aaryan bahar se aaya hai.jankari ke liye bata du ki dravida aur anya dusre race bhi bahar se aaye hai.ab aage baat karte hai.85% garib hai to jo 15% amir hai usme jara pata karo sare sc/st/obc hi milega.bhai kisi ke ek bete hai aur 10 rupaya kamata hai to achhe se khata hai aur jita hai.jisko 10 bachche hai wo agar 10 rupaye kamaega bhi to uske 1 bachche ke hisse me aayega 1 rupaya.to bhai teri life bhikhariyon jaisi hi hogi.ye baat alag hai ki tere paida kiye hue bachche se vote lekar mayawati 1000crore ki devi ban jati hai aur tujhe kutte ki tarah road pe chhor deti hai.mayawati ne cm banane ke bad tujhe kya ukhad ke diya tha.ab baat karte hai brahman ki.wo to khud bhikh mang ke gujara karta tha tujhe kya land deta.sale tum log mans murga daru pi ke pare rahte the.brahmano ko padhana parta tha bachapan se tab jakar use bhikh milti thi.lekin tum sale anpadh gawar pet bharne me lage rahte the.tu bhi jake padh lete tujhe itna hi padhna tha to .lekin sale padhna tere bas ki baat nahi thi.tu to aaj bhi bina padhe aarakshan ke aadhar pe niyukta hota hai.ab baat karte hai mandir ki to tu bhi apna ek mandir bana aur puja karwa aur paise kama.chalo maan bhi lete hai manusmriti me shudra ko nimn varn mana gaya to is baat ki kya guarantee hai ki tum sudra ho.jab manusmriti likha gaya tabhi shudra hote the.wo shudra abhi indian subcontinent ke bangladesh indonesia pakistan me musalman ban gaye.mai ye kaise maan lu tum hi manusmriti wala shudra ho.asal me atyachar to brahmano ke sath hua(ye matsamajhana mai brahman hun) jise tumlogon ne puja karane ke karya me laga diya taki wo garib rahe aur bhikh mange.sale tum log bhik bhi to mang sakte ho bhikhari ki tarah.jab brahman mang sakte to tum kyon nahi.lekin aalsi sale tum ye bhi na karoge .ab aur baatata hu-shudra brahman ke karan shudra nahi hai wo isliye shudra hai kyoki wo shudra hai.nahi samjhe india isliye garib nahi kyonki america rich hai bas yu samjho india garib hi hai.apne nakamiyo ko dusre pe mat madho.aur ek baat sale tum shudra hi kyo hue brahman aur shudra ke bich me aur bhi kai caste hai..nahi nahi tum wo bhi nahi ho sakte.ab baat aur aage karte hai brahman ko tujhe shudra banakar kya fayada hoga bhala ? brahman ke pas na dhan tha na hi rajya na hi brahman naukar das rakhte the .brahman khud alag kuti ya jhopdi bana kar rahte the .agar brahman ko kuch banana hi hota to tujhe maaldaar seth banate taki use kuch daan mil sake.ab to sayad tumhari dimag khul gayi hogi saale.jangal me kai tarah ke janwar rahte hai ab kutta bole ki mai sher ke karan kutta ban gaya to sare jungle ke janwar hasenge.kyoki kutta kutta hota hai aur sher sher.multinational company me jao america aur kahna ki mai shudra hu mujhe aarakshan dedo sale gaand me brazzers.com wala danda dedenge.waise bhi tujhe bolna nahi parega wo dekhte hisamajh jayega ki tu shudra hai.aaj se 1000 years pahle tum saale shudr wala kam hi kyo karte the koi aur kaam kar leta .puja nahi kara sakte the raja nahi ban sakte the to bhi gwala ban jate sunar lohar sena me samil ho jate .ab tum kahoge ki sena me nahi jane diya jaata tha .asal me tumhare gaand me dum hi nahi ki tum sena ka kaam kar sako.saale tujhe india china ke border pe laga de to ek goli gaand me lagte hi chalte banoge .isliye rajya ki raksha ka kaman rajputon ke pas tha.sath me ye bhi dekhana parta tha ki tujhe bhi koi gaand na mare(aksar pahle chchoe chchote rajya huwa karte the aur dusre rajya pe akraman ke samay jo akraman karta tha wahi aur uski sena tujhe fuck karta tha.aur naam tum brahmano ka lagate ho.ek baat aur ye jo baar baar manusmriti ki baat kare ho to bataana ki ye pustak kaha chalati.mithila janakpur.sumatra bali....ayodhya .........
Deletenahi pata na to sabhi hinduon ko isse mat jodo.aur ek baat hinduon se jo musalman ban gaye use pak musalman hi muhajir kahke fuck karte hai. aur pakistani ko arab me shudra samajha ke fuck karte hai.dekh bhai kahana nahi chahta tha par yaha ke comments dekh kar ruk nahi paaya isliye sorry...
agar maf nahi kiya to fir se pelunga.
bye..
To kahne ka matlab tujhe koi apne kam karne nahi deta tha aur tu brahman brahman karte rahta hai .koi bat nahi aajadi hai bhai.par dhyan rahe galati se kisi dusre caste ka naam mat lena.ye mat kahana ki mai xyz ke karan shudra rah gaya warna pel dalenge tujhe. aur haan paise aur dhan se brahman nahi bana jata .uske liye gyan chahiye.brahman bhikhari hone ke bad bhi brahman tha aur shudra 1000 crore ke malik banne ke bad bhi shudra hi rahta hai.
Deleteब्राम्हणांच्या स्वभावात काही फरक पडू शकत नाही फरक पडला आहे तो म्हणजे त्यांच्या वृत्ती त ज्यांच्या कडे पैसा प्रतिष्ठा पद आहे त्यांच्या घरात ते आपल्या मुली चे विवाह लावून देतात कारण त्यामुळे त्यांच्या मुलीचे भविष्य सुरक्षित होते म्हणून ...
ReplyDeleteढोर, गंवार, शूद्र और नारी, ये सब ताडन के अधिकारी हैं, यानी नारी को ढोर की तरह मार सकते हैं....तुलसी दास पर भी इसका प्रभाव दिखने को मिलता हैं, वह लिखते हैं-"ढोर,चमार और नारी, ताडन के अधिकारी."
Delete- मनुस्मुर्तिःअध्याय-८ श्लोक-२९९
Abe chamar sabdh bharat k itihaas mai 500 saal phle kahi nahi milta wo chawar rajvansh thai..... Phle itihaas padh le fir ulte sidhe comment krna.....prabhu ravidaas ki jeevni he padh le jayada nahi padha jaa raha tho
DeleteDoshi hamesha hi we rhe hai..
ReplyDeletejo sirf andha anukar krte aye hai...
Likhne wale likh kar chale gye h..
Jhelne wale aaj tak Jhel rhe hai..
Is Manusmarti ki vajah se Bharat kabhi bhi age nahi badh paya..
Bharat ka Durbhagya...
Mujhe lagta h aap🤣🤣🤣 umda kism k km jankaar h bharat k pass duniya ki 27% GDP thi.... Aaj b kisi b desh k pass itna business nahi h
DeleteAgrej chale gye lekin kuch logo ko aaj b mansik gulam bana rakha h.... Aree padhna suru kro jo jo yatri bharat aaye thai ghoomne 10-15 saal yaha reh kr gye or book likhi unse thoda bhout idea lagega ye 1800 1900 ki shaadi mai jo book likhi gyi usse kya pta chalta h wo tho khud ka agenda likh rahe h bs unhe kya pta 300-500 saal phle kya hua tha
Deleteआर्यो के पहले बौद्ध धर्म था ।लेकिन पूर भारत मे प्रचलित नही था ।लेकिन यहां के मूल निवासी जब बौद्ध धर्म को समझा समता अहिंशा से प्रेरित होकर आर्यों का विरोध किया । तब जाकर मनु स्मृति लिखी गयी ।
ReplyDeleteसाफ साफ मनु स्मृति मे विरोधा भास है ।
इसलिये मनु ने अपने स्मृति मे लिखा है की सूद्र यदि अभद्रता करता है तो उसके मुंह मे गर्म करके सूल डाला जाये ।पैर का पयोग करता है पैर काट लिया जाये हांथ चलाता है हांथ काट लिया जाये ।
ब्राम्हनो की लड़कियों को देखता है आंख फोड़ दी जाये या निकाल ली जाये ।
अब आप बताये एकहप्ते पहले क्या खाया पूंछा जाये तो नही बता सकता ।
एक व्यक्ति के 10-10 जनम का वर्णन इनके ग्रंथों मे मिलता है ।ये बकवास नही है तो क्या है ।
जिन लोगों को इनमे सच्चाई दिखती है उनहे मे यही कह सकता हूं ।वो पढ़े लिखे नही ।यदि पढ़े लिखे हैं तो ज्ञान का आभाव है । या पागल है ।
1 नम्बर राजेश भाइ आप से सहमत हू कि
ReplyDeleteजिंको भि मनुस्मुती मे रती भर कि सची लगती है
ओ पडे लिखे नही पूरी तराह पागल aur
जाती वयवस्था के बारे मई जो लिखा जोड़ा है वो आधा अधूरा ज्ञान है
Deleteजाती वयवस्था के बारे मई अधिकतर वामपंथियो ने लुकः है जिनकी सोच मैक्समूलर जेसे अग्रेजी अधिकाति की तरह थी।मरस्मुलर को ब्रिटिश भारत मई इग्लैंड से भेज ही इसलिए गया था ताकि वो हिन्दू धर्म ग्रथो का गलत अनुवाद करे
हिन्दू धर्मग्रंथ सनस्कृत मई लिखे गए है
संस्कृत मई एक ही सुब के अलग अलग औरत होते है जरा सा भी शेर फेर करने से पूरा अर्थ बदल जाता है
मैक्समूलर ने इस्सी का फायदा उठाया और संस्कृत के बिद्वानो को पैसो का लालच देकर उनसे हिन्दू धर्म ग्रंथो की गलत व्याख्या करवाई और खुद भी की
उससे पता था की हिन्दुओ को जाती वयवस्था मई बाट क्र उनकी एकता को तोडा जा सकता है और आजकल यही हो रहा है
ये बात सही है की हिन्दू धर्म मैं ब्राह्मण को विष्णु के मुख से,छत्रीय को भुनाओ से, वैश्य को छाती से और दलिट को पैरों के तलुओ से निकला बताया गया है
ये मनुस्मृती की जाती वयवस्था का पक्ष है
मनुस्मृति मई येभी कहा गया है की
कोई भी मनुस्य जो हिन्दू धर्म मई जन्म लेता है वो जन्म से दलित (छुद्र) ही होता है
उसके कर्म उसकी जाती निर्धारित करते है
जेसे
अगर कोई ब्राह्मण के घर पैदा हुआ बालक अगर मैला धोने(लोगो के टॉयलेट पिड़ जिसमे टॉयलेट जाती है साफ़ करने,नालिया साफ़ करने)मरे जानवरो क8 लाशो को उठाने या सावर्जनिक सफाई करने का काम करने का काम करता है तो उससे दलित (शूद्र) होता है अगर कोई दलित(छुद्र) पूजा पथ का कम करता है तो वो ब्राहण कास्ट का मन जायेगा दलित कास्ट का नहीं
अगर कोई वैश्य (बनिया) के घर जनम लेता है लेकिन वयस्क होने पर सावर्जनिक सफ़ाई का काम ,(मरे हुए जानवरो की लड़ो को उठाना टॉयलेट पिड साफ करना,लाशो को सिलना आदि का कम
करता है तो वो दलित(छुद्र )मन जायेगा न की वैश्य(बनिया)
अगर कोईछत्रीय के घर जनम लेता है और वयस्क होने पर सावर्जनिक सफाई या पूजापाठ का कम करता है तो उससे दलित या ब्राह्मण मन जायेगा
ये है जाती व्यवस्था की पूरी सच्चाई
वेदों केबाद मनुस्मृति ही स्त्री को सर्वोच्च सम्मान और अधिकार देती है | आज केअत्याधुनिक स्त्रीवादी भी इस उच्चता तक पहुँचने में नाकाम रहे हैं |
ReplyDeleteवेदों केबाद मनुस्मृति ही स्त्री को सर्वोच्च सम्मान और अधिकार देती है | आज केअत्याधुनिक स्त्रीवादी भी इस उच्चता तक पहुँचने में नाकाम रहे हैं |
ReplyDeleteमनुस्मृति ३.५६ – जिस समाज यापरिवार में स्त्रियों का आदर – सम्मान होता है, वहां देवता अर्थात् दिव्यगुण और सुख़- समृद्धि निवास करते हैं और जहां इनका आदर – सम्मान नहीं होता, वहां अनादर करने वालों के सभी काम निष्फल हो जाते हैं भले ही वे कितना हीश्रेष्ट कर्म कर लें, उन्हें अत्यंत दुखों का सामना करना पड़ता है |
यह श्लोक केवल स्त्रीजाति की प्रशंसाकरने के लिए ही नहीं है बल्कि यह कठोर सच्चाई है जिसको महिलाओं की अवमाननाकरने वालों को ध्यान में रखना चाहिए और जो मातृशक्ति का आदर करते हैं उनकेलिए तो यह शब्द अमृत के समान हैं | प्रकृति का यह नियम पूरी सृष्टि मेंहर एक समाज, हर एक परिवार, देश और पूरी मनुष्य जाति पर लागू होता है |
हमइसलिए परतंत्र हुए कि हमने महर्षि मनु के इस परामर्श की सदियों तक अवमाननाकी |आक्रमणों के बाद भी हम सुधरे नहीं और परिस्थिति बद से बदतर होती गई | १९ वीं शताब्दी के अंत में राजा राम मोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्या सागर औरस्वामी दयानंद सरस्वती के प्रयत्नों से स्थिति में सुधार हुआ और हमने वेदके सन्देश को मानना स्वीकार किया |
कई संकीर्ण मुस्लिम देशों मेंआज भी स्त्रियों को पुरुषों से समझदारी में आधे के बराबर मानते हैं औरपुरुषों को जो अधिकार प्राप्त हैं उसकी तुलना में स्त्री का आधे पर हीअधिकार समझते हैं | अत: ऐसे स्थान नर्क से भी बदतर बने हुए हैं | यूरोप मेंतो सदियों तक बाइबिल के अनुसार स्त्रियों की अवमानना के पूर्ण प्रारूप काही अनुसरण किया गया | यह प्रारूप अत्यंत संकीर्ण और शंकाशील था इसलिए यूरोपअत्यंत संकीर्ण और संदेह को पालने वाली जगह थी | ये तो सुधारवादी युग कीदेन ही माना जाएगा कि स्थितियों में परिवर्तन आया और बाइबिल को गंभीरता सेलेना लोगों ने बंद किया | परिणामत: तेजी से विकास संभव हो सका | परंतु अब भी स्त्री एक कामना पूर्ति और भोगकी वस्तु है न कि आदर और मातृत्व शक्ति के रूप में देखी जाती है और यही वजहहै कि पश्चिमी समाज बाकी सब भौतिक विकास के बावजूद भी असुरक्षितता औरआन्तरिक शांति के अभाव से जूझ रहा है |
आइए, मनुस्मृति के कुछ और श्लोकों का अवलोकन करें और समाज को सुरक्षित और शांतिपूर्ण बनाएं –
परिवार में स्त्रियों का महत्त्व –
३.५५ – पिता, भाई, पति या देवर कोअपनी कन्या, बहन, स्त्री या भाभी को हमेशा यथायोग्य मधुर- भाषण, भोजन, वस्त्र, आभूषण आदि से प्रसन्न रखना चाहिए और उन्हें किसी भी प्रकार काक्लेश नहीं पहुंचने देना चाहिए |
३.५७ – जिसकुल में स्त्रियां अपने पति के गलत आचरण, अत्याचार या व्यभिचार आदि दोषोंसे पीड़ित रहती हैं, वह कुल शीघ्र नाश को प्राप्त हो जाता है और जिस कुल मेंस्त्रीजन पुरुषों के उत्तम आचरणों से प्रसन्न रहती हैं, वह कुल सर्वदाबढ़ता रहता है |
३.५८-अनादर के कारण जो स्त्रियां पीड़ित और दुखी: होकर पति, माता-पिता, भाई, देवर आदि को शाप देती हैं या कोसती हैं – वह परिवार ऐसे नष्ट हो जाता हैजैसे पूरे परिवार को विष देकर मारने से, एक बार में ही सब के सब मर जातेहैं |
३.५९ – ऐश्वर्य की कामना करने वाले मनुष्यों को हमेशा सत्कार और उत्सव के समय में स्त्रियोंका आभूषण,वस्त्र, और भोजन आदि से सम्मान करना चाहिए |
३.६२- जो पुरुष, अपनी पत्नी कोप्रसन्न नहीं रखता, उसका पूरा परिवार ही अप्रसन्न और शोकग्रस्त रहता है | और यदि पत्नी प्रसन्न है तो सारा परिवार खुशहाल रहता है |
९.२६ – संतान को जन्म देकर घर काभाग्योदय करने वाली स्त्रियां सम्मान के योग्य और घर को प्रकाशित करनेवाली होती हैं | शोभा, लक्ष्मी और स्त्री में कोई अंतर नहीं है | यहां महर्षि मनु उन्हें घर की लक्ष्मी कहते हैं |
९.२८- स्त्री सभी प्रकार केसुखों को देने वाली हैं | चाहे संतान हो, उत्तम परोपकारी कार्य हो या विवाहया फ़िर बड़ों की सेवा – यह सभी सुख़ स्त्रियों के ही आधीन हैं | स्त्रीकभी मां के रूप में, कभी पत्नी और कभी अध्यात्मिक कार्यों की सहयोगी के रूपमें जीवन को सुखद बनाती है | इस का मतलब है कि स्त्री की सहभागिता किसी भी धार्मिक और अध्यात्मिक कार्यों के लिए अति आवश्यक है |
९.९६ – पुरुष और स्त्री एक-दूसरेके बिना अपूर्ण हैं, अत:साधारण से साधारण धर्मकार्य का अनुष्ठान भी पति -पत्नी दोनों को मिलकर करना चाहिए |
४. १८० – एक समझदार व्यक्ति को परिवार के सदस्यों – माता, पुत्री और पत्नी आदि के साथ बहस या झगडा नहीं करना चाहिए |
९ .४ – अपनी कन्या का योग्य वरसे विवाह न करने वाला पिता, पत्नी की उचित आवश्यकताओं को पूरा न करने वालापति और विधवा माता की देखभाल न करने वाला पुत्र – निंदनीय होते हैं |
बहुविवाह पाप है –
९.१०१ – पति और पत्नी दोनों आजीवन साथ रहें, व्यभिचार से बचें, संक्षेप में यही सभी मानवों का धर्म है |
Bilkul nh ye sab bakvas hai agar manusmriti me nari jati k liye itta he samman hota to savitri bai fule ko ladkiyo ki school kholne k liye gobar patthar nh khane padtey...
DeleteAbe tho padh le na shlok number likha h na sabke samne.... Free mai pdf mil jayegi book ki
DeleteOr phule jis time pe thi waha dharm ka raaj nahi chal raha tha.....
Padh sakta h tho ye book b padh le
Report on the state of education in begal(1835 & 1838) by william adam
Isme page number 228 pe likha h upper caste k log apne baccho ko padhne k liye lower caste k yaha bhejte thai
Free mai available h saari book download kr k padho na.... Abhi b nahi padh paa rahe kya???
वेदों केबाद मनुस्मृति ही स्त्री को सर्वोच्च सम्मान और अधिकार देती है | आज केअत्याधुनिक स्त्रीवादी भी इस उच्चता तक पहुँचने में नाकाम रहे हैं |
ReplyDeleteमनुस्मृति ३.५६ – जिस समाज यापरिवार में स्त्रियों का आदर – सम्मान होता है, वहां देवता अर्थात् दिव्यगुण और सुख़- समृद्धि निवास करते हैं और जहां इनका आदर – सम्मान नहीं होता, वहां अनादर करने वालों के सभी काम निष्फल हो जाते हैं भले ही वे कितना हीश्रेष्ट कर्म कर लें, उन्हें अत्यंत दुखों का सामना करना पड़ता है |
यह श्लोक केवल स्त्रीजाति की प्रशंसाकरने के लिए ही नहीं है बल्कि यह कठोर सच्चाई है जिसको महिलाओं की अवमाननाकरने वालों को ध्यान में रखना चाहिए और जो मातृशक्ति का आदर करते हैं उनकेलिए तो यह शब्द अमृत के समान हैं | प्रकृति का यह नियम पूरी सृष्टि मेंहर एक समाज, हर एक परिवार, देश और पूरी मनुष्य जाति पर लागू होता है |
हमइसलिए परतंत्र हुए कि हमने महर्षि मनु के इस परामर्श की सदियों तक अवमाननाकी |आक्रमणों के बाद भी हम सुधरे नहीं और परिस्थिति बद से बदतर होती गई | १९ वीं शताब्दी के अंत में राजा राम मोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्या सागर औरस्वामी दयानंद सरस्वती के प्रयत्नों से स्थिति में सुधार हुआ और हमने वेदके सन्देश को मानना स्वीकार किया |
कई संकीर्ण मुस्लिम देशों मेंआज भी स्त्रियों को पुरुषों से समझदारी में आधे के बराबर मानते हैं औरपुरुषों को जो अधिकार प्राप्त हैं उसकी तुलना में स्त्री का आधे पर हीअधिकार समझते हैं | अत: ऐसे स्थान नर्क से भी बदतर बने हुए हैं | यूरोप मेंतो सदियों तक बाइबिल के अनुसार स्त्रियों की अवमानना के पूर्ण प्रारूप काही अनुसरण किया गया | यह प्रारूप अत्यंत संकीर्ण और शंकाशील था इसलिए यूरोपअत्यंत संकीर्ण और संदेह को पालने वाली जगह थी | ये तो सुधारवादी युग कीदेन ही माना जाएगा कि स्थितियों में परिवर्तन आया और बाइबिल को गंभीरता सेलेना लोगों ने बंद किया | परिणामत: तेजी से विकास संभव हो सका | परंतु अब भी स्त्री एक कामना पूर्ति और भोगकी वस्तु है न कि आदर और मातृत्व शक्ति के रूप में देखी जाती है और यही वजहहै कि पश्चिमी समाज बाकी सब भौतिक विकास के बावजूद भी असुरक्षितता औरआन्तरिक शांति के अभाव से जूझ रहा है |
आइए, मनुस्मृति के कुछ और श्लोकों का अवलोकन करें और समाज को सुरक्षित और शांतिपूर्ण बनाएं –
परिवार में स्त्रियों का महत्त्व –
३.५५ – पिता, भाई, पति या देवर कोअपनी कन्या, बहन, स्त्री या भाभी को हमेशा यथायोग्य मधुर- भाषण, भोजन, वस्त्र, आभूषण आदि से प्रसन्न रखना चाहिए और उन्हें किसी भी प्रकार काक्लेश नहीं पहुंचने देना चाहिए |
३.५७ – जिसकुल में स्त्रियां अपने पति के गलत आचरण, अत्याचार या व्यभिचार आदि दोषोंसे पीड़ित रहती हैं, वह कुल शीघ्र नाश को प्राप्त हो जाता है और जिस कुल मेंस्त्रीजन पुरुषों के उत्तम आचरणों से प्रसन्न रहती हैं, वह कुल सर्वदाबढ़ता रहता है |
३.५८-अनादर के कारण जो स्त्रियां पीड़ित और दुखी: होकर पति, माता-पिता, भाई, देवर आदि को शाप देती हैं या कोसती हैं – वह परिवार ऐसे नष्ट हो जाता हैजैसे पूरे परिवार को विष देकर मारने से, एक बार में ही सब के सब मर जातेहैं |
३.५९ – ऐश्वर्य की कामना करने वाले मनुष्यों को हमेशा सत्कार और उत्सव के समय में स्त्रियोंका आभूषण,वस्त्र, और भोजन आदि से सम्मान करना चाहिए |
३.६२- जो पुरुष, अपनी पत्नी कोप्रसन्न नहीं रखता, उसका पूरा परिवार ही अप्रसन्न और शोकग्रस्त रहता है | और यदि पत्नी प्रसन्न है तो सारा परिवार खुशहाल रहता है |
९.२६ – संतान को जन्म देकर घर काभाग्योदय करने वाली स्त्रियां सम्मान के योग्य और घर को प्रकाशित करनेवाली होती हैं | शोभा, लक्ष्मी और स्त्री में कोई अंतर नहीं है | यहां महर्षि मनु उन्हें घर की लक्ष्मी कहते हैं |
९.२८- स्त्री सभी प्रकार केसुखों को देने वाली हैं | चाहे संतान हो, उत्तम परोपकारी कार्य हो या विवाहया फ़िर बड़ों की सेवा – यह सभी सुख़ स्त्रियों के ही आधीन हैं | स्त्रीकभी मां के रूप में, कभी पत्नी और कभी अध्यात्मिक कार्यों की सहयोगी के रूपमें जीवन को सुखद बनाती है | इस का मतलब है कि स्त्री की सहभागिता किसी भी धार्मिक और अध्यात्मिक कार्यों के लिए अति आवश्यक है |
९.९६ – पुरुष और स्त्री एक-दूसरेके बिना अपूर्ण हैं, अत:साधारण से साधारण धर्मकार्य का अनुष्ठान भी पति -पत्नी दोनों को मिलकर करना चाहिए |
४. १८० – एक समझदार व्यक्ति को परिवार के सदस्यों – माता, पुत्री और पत्नी आदि के साथ बहस या झगडा नहीं करना चाहिए |
९ .४ – अपनी कन्या का योग्य वरसे विवाह न करने वाला पिता, पत्नी की उचित आवश्यकताओं को पूरा न करने वालापति और विधवा माता की देखभाल न करने वाला पुत्र – निंदनीय होते हैं |
बहुविवाह पाप है –
९.१०१ – पति और पत्नी दोनों आजीवन साथ रहें, व्यभिचार से बचें, संक्षेप में यही सभी मानवों का धर्म है |
Kya saty hai kya Galt yah to aapne aapne soch hai
ReplyDeleteMansamrti ki log apne tariko se matalab nikalte hai aryo ke hinsa ka virodh karne wale bhudhist desho ki hinsa dekho pehale phir bharat ki
ReplyDeleteकुल मिलाकर मनुस्मृति में कई अच्छी बातें लिखी हैं और कई घटिया। एक सवाल .ये भी है हिंदू या सनातन धर्म में जाति का कैंसर खून में घुला रहा और अब भी है. तभी हिंदू धर्म किसी अन्य देश में फैल नहीं सका। आरक्षण का झुनझुना न होता तो आधे से ज्यादा इस्लाम धर्म अपना लेते। हिंदू धर्म खामियों, नस्लवाद का प्रतीक है, इसकी तरक्की असंभव है।
ReplyDeleteyou dont know dude hindu log bhut purane h.chahe sanskriti koi bhi rhi ho kitne bhi name badle ho.i mean Sindhu sbhayata ho chahe vedic ya bhartiya sbhayata or chahe kitni bhasha badal gai ho Sanskrit ho chahe prakart ya phir hindi urdu mix hindi ya english mix hindi ho par ham log kam ho sakte h khatam nhi or parivartan to shirishti ka niyam h jo chij samya ke sath badlti h vah long time tak rahi h yani amar or hamari sanskrit amar h.Manv Sanskriti
Deleteyou dont know dude hindu log bhut purane h.chahe sanskriti koi bhi rhi ho kitne bhi name badle ho.i mean Sindhu sbhayata ho chahe vedic ya bhartiya sbhayata or chahe kitni bhasha badal gai ho Sanskrit ho chahe prakart ya phir hindi urdu mix hindi ya english mix hindi ho par ham log kam ho sakte h khatam nhi or parivartan to shirishti ka niyam h jo chij samya ke sath badlti h vah long time tak rahi h yani amar or hamari sanskrit amar h.Manv Sanskriti
Deleteजाती वयवस्था के बारे मई जो लिखा जोड़ा है वो आधा अधूरा ज्ञान है
Deleteजाती वयवस्था के बारे मई अधिकतर वामपंथियो ने लुकः है जिनकी सोच मैक्समूलर जेसे अग्रेजी अधिकाति की तरह थी।मरस्मुलर को ब्रिटिश भारत मई इग्लैंड से भेज ही इसलिए गया था ताकि वो हिन्दू धर्म ग्रथो का गलत अनुवाद करे
हिन्दू धर्मग्रंथ सनस्कृत मई लिखे गए है
संस्कृत मई एक ही सुब के अलग अलग औरत होते है जरा सा भी शेर फेर करने से पूरा अर्थ बदल जाता है
मैक्समूलर ने इस्सी का फायदा उठाया और संस्कृत के बिद्वानो को पैसो का लालच देकर उनसे हिन्दू धर्म ग्रंथो की गलत व्याख्या करवाई और खुद भी की
उससे पता था की हिन्दुओ को जाती वयवस्था मई बाट क्र उनकी एकता को तोडा जा सकता है और आजकल यही हो रहा है
ये बात सही है की हिन्दू धर्म मैं ब्राह्मण को विष्णु के मुख से,छत्रीय को भुनाओ से, वैश्य को छाती से और दलिट को पैरों के तलुओ से निकला बताया गया है
ये मनुस्मृती की जाती वयवस्था का पक्ष है
मनुस्मृति मई येभी कहा गया है की
कोई भी मनुस्य जो हिन्दू धर्म मई जन्म लेता है वो जन्म से दलित (छुद्र) ही होता है
उसके कर्म उसकी जाती निर्धारित करते है
जेसे
अगर कोई ब्राह्मण के घर पैदा हुआ बालक अगर मैला धोने(लोगो के टॉयलेट पिड़ जिसमे टॉयलेट जाती है साफ़ करने,नालिया साफ़ करने)मरे जानवरो क8 लाशो को उठाने या सावर्जनिक सफाई करने का काम करने का काम करता है तो उससे दलित (शूद्र) होता है अगर कोई दलित(छुद्र) पूजा पथ का कम करता है तो वो ब्राहण कास्ट का मन जायेगा दलित कास्ट का नहीं
अगर कोई वैश्य (बनिया) के घर जनम लेता है लेकिन वयस्क होने पर सावर्जनिक सफ़ाई का काम ,(मरे हुए जानवरो की लड़ो को उठाना टॉयलेट पिड साफ करना,लाशो को सिलना आदि का कम
करता है तो वो दलित(छुद्र )मन जायेगा न की वैश्य(बनिया)
अगर कोईछत्रीय के घर जनम लेता है और वयस्क होने पर सावर्जनिक सफाई या पूजापाठ का कम करता है तो उससे दलित या ब्राह्मण मन जायेगा
ये है जाती व्यवस्था की पूरी सच्चाई
चूतियापा है मनुस्मृति
ReplyDeleteजाती वयवस्था के बारे मई जो लिखा जोड़ा है वो आधा अधूरा ज्ञान है
Deleteजाती वयवस्था के बारे मई अधिकतर वामपंथियो ने लुकः है जिनकी सोच मैक्समूलर जेसे अग्रेजी अधिकाति की तरह थी।मरस्मुलर को ब्रिटिश भारत मई इग्लैंड से भेज ही इसलिए गया था ताकि वो हिन्दू धर्म ग्रथो का गलत अनुवाद करे
हिन्दू धर्मग्रंथ सनस्कृत मई लिखे गए है
संस्कृत मई एक ही सुब के अलग अलग औरत होते है जरा सा भी शेर फेर करने से पूरा अर्थ बदल जाता है
मैक्समूलर ने इस्सी का फायदा उठाया और संस्कृत के बिद्वानो को पैसो का लालच देकर उनसे हिन्दू धर्म ग्रंथो की गलत व्याख्या करवाई और खुद भी की
उससे पता था की हिन्दुओ को जाती वयवस्था मई बाट क्र उनकी एकता को तोडा जा सकता है और आजकल यही हो रहा है
ये बात सही है की हिन्दू धर्म मैं ब्राह्मण को विष्णु के मुख से,छत्रीय को भुनाओ से, वैश्य को छाती से और दलिट को पैरों के तलुओ से निकला बताया गया है
ये मनुस्मृती की जाती वयवस्था का पक्ष है
मनुस्मृति मई येभी कहा गया है की
कोई भी मनुस्य जो हिन्दू धर्म मई जन्म लेता है वो जन्म से दलित (छुद्र) ही होता है
उसके कर्म उसकी जाती निर्धारित करते है
जेसे
अगर कोई ब्राह्मण के घर पैदा हुआ बालक अगर मैला धोने(लोगो के टॉयलेट पिड़ जिसमे टॉयलेट जाती है साफ़ करने,नालिया साफ़ करने)मरे जानवरो क8 लाशो को उठाने या सावर्जनिक सफाई करने का काम करने का काम करता है तो उससे दलित (शूद्र) होता है अगर कोई दलित(छुद्र) पूजा पथ का कम करता है तो वो ब्राहण कास्ट का मन जायेगा दलित कास्ट का नहीं
अगर कोई वैश्य (बनिया) के घर जनम लेता है लेकिन वयस्क होने पर सावर्जनिक सफ़ाई का काम ,(मरे हुए जानवरो की लड़ो को उठाना टॉयलेट पिड साफ करना,लाशो को सिलना आदि का कम
करता है तो वो दलित(छुद्र )मन जायेगा न की वैश्य(बनिया)
अगर कोईछत्रीय के घर जनम लेता है और वयस्क होने पर सावर्जनिक सफाई या पूजापाठ का कम करता है तो उससे दलित या ब्राह्मण मन जायेगा
ये है जाती व्यवस्था की पूरी सच्चाई
मुगलों के शासन काल में वेदों और शास्त्रों के साथ छेड़ छाड़ किया गया मुग़ल आक्रान्ताओं ने इस्लाम धर्म को बढ़ावा देने के लिए कई अनर्थकारी बातों को वैदिक साहित्यों में ठूंसा....इसका पर्दाफाश हो चुका है।
ReplyDeleteदेश से जाति हटादो,आरक्षण अपने आप हट जायेगा. संविधान ने आरक्षण जाती के ऊपर दिया है घर्म के ऊपर नहीं.
ReplyDeleteअगर ऐसा होता है तो पाहिले आरक्षित लोग ही जाति चाहिए ये बोलेंगे.
कुछ दिनोबाद हो सकता है मनु स्मुति भी अपनी लगने लगे.
यह साले मनुवादी नहीं कर पाएंगे जाति बंधन खत्म
DeleteAao hm aapko aaj se brahman ghosit krte h..... Laao jite log laa sakte ho.... Such pta h koi nahi aayega🤣🤣🤣🤣aaj log andolan kr rahe h hme b shudra bana do
DeleteHindu is the only reigion which is most humanitarian.the varna system is most practical and divine system. Yes there are distinctions in one's duties according to varna.But these dont qualify to be called inhuman discrimination. Infact shudras duty is to serve other varnas, but only a fool would look at this duty as inhuman, as service is the root of humanity.In every society except hindu,all kinds of barbaric and inhuman discrimination are prevalent and any neutral observer knows this.Brahmins are the most human and judicious people across the globe but since they are poor therefore noone today accepts their rightful place, as money/power is shudras god today.Remember brahmins have suffered from more than thousand years of barbaric jihad and crusade.Communists with the help of jihadis and missionaries have not stooped their oppression and killing of brahmins(kashmir,goa,hyderabad.......etc etc). They have misguided ,fooled other castes with money and muscle power.Still Brahmins are the only fort which is left against their global ambition to establish islam/christianity/communism and that is why other castes still have hindu names. If brahmis were not humanitarians of the first order entire India and other castes would have been converted long back.
ReplyDeleteCaste based reservation is the most oppressive system which was forced by brute majority of shudras.We won our independence from oppressive britishers mainly due to uprising/revolts created by Brahmins(A fact even acknowledged by british).We decided to make a new India without discriminations. Reservation for SC/ST was accepted as a temporary provision for 10 years extendable for 10 yrs.Therefore it was rightly acknowledged at the time of incepton that this is an exception.The assumption behind this reservation was that SC/ST have suffered from discrimination of thousands of years.But the fact that Brahmins suffered from discrimination and barbaric killings and tortures was conveniently ignored because they were not a huge votebank.
ReplyDelete1. Once it was decided to make a new India in 1947, then how was it justified to reserve administration to a particular section(SC/ST) as a tool of delivery of justice, on basis of past atrocities/system.Brahmins suffered more than any other section due to barbaric jihad,atrocious killngs to expand foreign civilizations like christians etc.Today they are so blatant when their atrocities are exposed by media you could well imagine the extent of their barbarism when media was not there.Anyways was a new Constitution was made to take revenge for past systems.Even if that was so there was no objective research to study past systems but conclusions were arbitrarily made that Brahmins were the oppressors.Any important decision which is made is against a verifyable set of facts and report/study but resevations were given based on notions and beliefs propogated by foreign enemeies and obviously accepted by a section who had to gain from windfall and were in majority.
2.Do administration of a country is given to backward people or the most eligible??Could administration be played with for vote politics.State could have made provisions for upliftment of people by many other means. But to Deny administration to the most deserving, discriminating against their percieved caste ,is the highest form of injustice that could be meted out to people in modern era.When a written constituition and institutionalized Supreme court perpetuates this fraud, no one could ever blame any system in any era for any discrimination.
Brahmins were killed ,looted, raped mercilessly and ehtnically cleansed from kashmir in Independant Republic of India with a written constitution in force.
ReplyDeleteTill date they are still uprooted and no one has been punished by law.
Such incidents have happened with brahmins in many parts of India.And these were not Riots but ethnic cleansing of brahmins.
But media didnt discuss one percent of which it discusses even communal riots.
This is what is called atrocities,discrimination,barbarism etc etc....
You could not cry enough even if you had a bit of conscience.
Brahmins were and are the most meritorious,human,learned,knowledgeable valuewise and ethically.But yes they are poor and powerless.This is why inferior people could not stand them and are jealous of their(Brahmin's) moral superiority.
मनुस्मृति की किताब तो मैंने नहीं पढ़ी लेकिन कुछ इंटरनेट के माध्यम से पढ़ा है। जहाँ तक मुझे समझ आया है मनुस्मृति में बहुत सी अच्छी बातें बतायीं गयी है लेकिन कुछ चीजें गलत भी है और ये हमारे संविधान के विरूद्ध भी है। जिसमे लिंग और जाति के आधार पर भेद भाव करने के लिए जोर देकर लिखा है।
ReplyDeleteजब मैं कक्षा 4 में पढ में था तब मेरे मास्टर साहब ने एक कहानी सुनायी थी कि यदि दूध और पानी मिलाकर हंस के सामने रख दिया जाये तो हंस उसमे से दूध पी जाता है और पानी को वैसे ही छोड़ देता है। तो मनुस्मृति में जो सही बातें है उसको ग्रहण करे बाकी सब छोड़ दे। क्यों यहाँ कुछ भी पूर्ण नहीं है।
जाती वयवस्था के बारे मई जो लिखा जोड़ा है वो आधा अधूरा ज्ञान है
Deleteजाती वयवस्था के बारे मई अधिकतर वामपंथियो ने लुकः है जिनकी सोच मैक्समूलर जेसे अग्रेजी अधिकाति की तरह थी।मरस्मुलर को ब्रिटिश भारत मई इग्लैंड से भेज ही इसलिए गया था ताकि वो हिन्दू धर्म ग्रथो का गलत अनुवाद करे
हिन्दू धर्मग्रंथ सनस्कृत मई लिखे गए है
संस्कृत मई एक ही सुब के अलग अलग औरत होते है जरा सा भी शेर फेर करने से पूरा अर्थ बदल जाता है
मैक्समूलर ने इस्सी का फायदा उठाया और संस्कृत के बिद्वानो को पैसो का लालच देकर उनसे हिन्दू धर्म ग्रंथो की गलत व्याख्या करवाई और खुद भी की
उससे पता था की हिन्दुओ को जाती वयवस्था मई बाट क्र उनकी एकता को तोडा जा सकता है और आजकल यही हो रहा है
ये बात सही है की हिन्दू धर्म मैं ब्राह्मण को विष्णु के मुख से,छत्रीय को भुनाओ से, वैश्य को छाती से और दलिट को पैरों के तलुओ से निकला बताया गया है
ये मनुस्मृती की जाती वयवस्था का पक्ष है
मनुस्मृति मई येभी कहा गया है की
कोई भी मनुस्य जो हिन्दू धर्म मई जन्म लेता है वो जन्म से दलित (छुद्र) ही होता है
उसके कर्म उसकी जाती निर्धारित करते है
जेसे
अगर कोई ब्राह्मण के घर पैदा हुआ बालक अगर मैला धोने(लोगो के टॉयलेट पिड़ जिसमे टॉयलेट जाती है साफ़ करने,नालिया साफ़ करने)मरे जानवरो क8 लाशो को उठाने या सावर्जनिक सफाई करने का काम करने का काम करता है तो उससे दलित (शूद्र) होता है अगर कोई दलित(छुद्र) पूजा पथ का कम करता है तो वो ब्राहण कास्ट का मन जायेगा दलित कास्ट का नहीं
अगर कोई वैश्य (बनिया) के घर जनम लेता है लेकिन वयस्क होने पर सावर्जनिक सफ़ाई का काम ,(मरे हुए जानवरो की लड़ो को उठाना टॉयलेट पिड साफ करना,लाशो को सिलना आदि का कम
करता है तो वो दलित(छुद्र )मन जायेगा न की वैश्य(बनिया)
अगर कोईछत्रीय के घर जनम लेता है और वयस्क होने पर सावर्जनिक सफाई या पूजापाठ का कम करता है तो उससे दलित या ब्राह्मण मन जायेगा
ये है जाती व्यवस्था की पूरी सच्चाई
मनुस्मृति की किताब तो मैंने नहीं पढ़ी लेकिन कुछ इंटरनेट के माध्यम से पढ़ा है। जहाँ तक मुझे समझ आया है मनुस्मृति में बहुत सी अच्छी बातें बतायीं गयी है लेकिन कुछ चीजें गलत भी है और ये हमारे संविधान के विरूद्ध भी है। जिसमे लिंग और जाति के आधार पर भेद भाव करने के लिए जोर देकर लिखा है।
ReplyDeleteजब मैं कक्षा 4 में पढ में था तब मेरे मास्टर साहब ने एक कहानी सुनायी थी कि यदि दूध और पानी मिलाकर हंस के सामने रख दिया जाये तो हंस उसमे से दूध पी जाता है और पानी को वैसे ही छोड़ देता है। तो मनुस्मृति में जो सही बातें है उसको ग्रहण करे बाकी सब छोड़ दे। क्यों यहाँ कुछ भी पूर्ण नहीं है।
मनुस्मृति सत्य थी परन्तु कुछ धर्म विरोधियों ने कुछ याचक और वाचको ने भी हमारे धर्म ग्रन्थो के अर्थो का अनर्थ कर दिया
ReplyDeleteसभी हिन्दू धर्म ग्रन्थ सत्यता और प्रमाणिकता पर आधारित है ।
वेदो के ज्ञान से ही विज्ञान बना है । फिर सन्देह क्यों
ये सनातन धर्म था है और रहेगा
बशर्ते राक्षसों से याचक और वाचको से वेद पुराणों से दूर रखे ।
वरना और भी अनर्गल बातें पैदा हो जायेंगी
यदि कुन फयकुन कह कर मक्खी की टांग भी बन सके, बिना पुरुष के ही मुस्लिम माताएं बच्चे जना करें, पत्थर में से ऊँटनी तो क्या मच्छर भी निकल पड़े तो यह माना जा सकता है कि वेद विज्ञान विरुद्ध हैं कि जिनमें इतने ऊंचे स्तर की विद्या ही नहीं! परन्तु आज तक कुरआन में वर्णित इस विज्ञान के दीदार (दर्शन) असल जिंदगी में मुल्लाओ को छोड़ कर किसी को न हो सके.
ReplyDeleteअगर हिन्दू धर्म इतना सशक्त होता तो आज सबसे उपर होता बौध धर्म मानने वालो की संख्या हिन्दुओं से ज्यादा है क्यों
ReplyDeleteजाती वयवस्था के बारे मई जो लिखा जोड़ा है वो आधा अधूरा ज्ञान है
Deleteजाती वयवस्था के बारे मई अधिकतर वामपंथियो ने लुकः है जिनकी सोच मैक्समूलर जेसे अग्रेजी अधिकाति की तरह थी।मरस्मुलर को ब्रिटिश भारत मई इग्लैंड से भेज ही इसलिए गया था ताकि वो हिन्दू धर्म ग्रथो का गलत अनुवाद करे
हिन्दू धर्मग्रंथ सनस्कृत मई लिखे गए है
संस्कृत मई एक ही सुब के अलग अलग औरत होते है जरा सा भी शेर फेर करने से पूरा अर्थ बदल जाता है
मैक्समूलर ने इस्सी का फायदा उठाया और संस्कृत के बिद्वानो को पैसो का लालच देकर उनसे हिन्दू धर्म ग्रंथो की गलत व्याख्या करवाई और खुद भी की
उससे पता था की हिन्दुओ को जाती वयवस्था मई बाट क्र उनकी एकता को तोडा जा सकता है और आजकल यही हो रहा है
ये बात सही है की हिन्दू धर्म मैं ब्राह्मण को विष्णु के मुख से,छत्रीय को भुनाओ से, वैश्य को छाती से और दलिट को पैरों के तलुओ से निकला बताया गया है
ये मनुस्मृती की जाती वयवस्था का पक्ष है
मनुस्मृति मई येभी कहा गया है की
कोई भी मनुस्य जो हिन्दू धर्म मई जन्म लेता है वो जन्म से दलित (छुद्र) ही होता है
उसके कर्म उसकी जाती निर्धारित करते है
जेसे
अगर कोई ब्राह्मण के घर पैदा हुआ बालक अगर मैला धोने(लोगो के टॉयलेट पिड़ जिसमे टॉयलेट जाती है साफ़ करने,नालिया साफ़ करने)मरे जानवरो क8 लाशो को उठाने या सावर्जनिक सफाई करने का काम करने का काम करता है तो उससे दलित (शूद्र) होता है अगर कोई दलित(छुद्र) पूजा पथ का कम करता है तो वो ब्राहण कास्ट का मन जायेगा दलित कास्ट का नहीं
अगर कोई वैश्य (बनिया) के घर जनम लेता है लेकिन वयस्क होने पर सावर्जनिक सफ़ाई का काम ,(मरे हुए जानवरो की लड़ो को उठाना टॉयलेट पिड साफ करना,लाशो को सिलना आदि का कम
करता है तो वो दलित(छुद्र )मन जायेगा न की वैश्य(बनिया)
अगर कोईछत्रीय के घर जनम लेता है और वयस्क होने पर सावर्जनिक सफाई या पूजापाठ का कम करता है तो उससे दलित या ब्राह्मण मन जायेगा
ये है जाती व्यवस्था की पूरी सच्चाई
मुसलमान और ईसाई तो बौद्धों से भी ज्यादा हैं !!
Deleteकिसी समय मे बौद्ध अनुयाई तो सऊदी अरब तक थे। फिर बामियान में बुद्ध की विशाल मुर्तियों को तोप से ध्वस्त कैसे कर दिया गया ??
बौध धर्म हिन्दू धर्म की देन है
ReplyDeleteअगर हिन्दू धर्म इतना सशक्त होता तो आज सबसे उपर होता बौध धर्म मानने वालो की संख्या हिन्दुओं से ज्यादा है क्यों
ReplyDeleteजाती वयवस्था के बारे मई जो लिखा जोड़ा है वो आधा अधूरा ज्ञान है
Deleteजाती वयवस्था के बारे मई अधिकतर वामपंथियो ने लुकः है जिनकी सोच मैक्समूलर जेसे अग्रेजी अधिकाति की तरह थी।मरस्मुलर को ब्रिटिश भारत मई इग्लैंड से भेज ही इसलिए गया था ताकि वो हिन्दू धर्म ग्रथो का गलत अनुवाद करे
हिन्दू धर्मग्रंथ सनस्कृत मई लिखे गए है
संस्कृत मई एक ही सुब के अलग अलग औरत होते है जरा सा भी शेर फेर करने से पूरा अर्थ बदल जाता है
मैक्समूलर ने इस्सी का फायदा उठाया और संस्कृत के बिद्वानो को पैसो का लालच देकर उनसे हिन्दू धर्म ग्रंथो की गलत व्याख्या करवाई और खुद भी की
उससे पता था की हिन्दुओ को जाती वयवस्था मई बाट क्र उनकी एकता को तोडा जा सकता है और आजकल यही हो रहा है
ये बात सही है की हिन्दू धर्म मैं ब्राह्मण को विष्णु के मुख से,छत्रीय को भुनाओ से, वैश्य को छाती से और दलिट को पैरों के तलुओ से निकला बताया गया है
ये मनुस्मृती की जाती वयवस्था का पक्ष है
मनुस्मृति मई येभी कहा गया है की
कोई भी मनुस्य जो हिन्दू धर्म मई जन्म लेता है वो जन्म से दलित (छुद्र) ही होता है
उसके कर्म उसकी जाती निर्धारित करते है
जेसे
अगर कोई ब्राह्मण के घर पैदा हुआ बालक अगर मैला धोने(लोगो के टॉयलेट पिड़ जिसमे टॉयलेट जाती है साफ़ करने,नालिया साफ़ करने)मरे जानवरो क8 लाशो को उठाने या सावर्जनिक सफाई करने का काम करने का काम करता है तो उससे दलित (शूद्र) होता है अगर कोई दलित(छुद्र) पूजा पथ का कम करता है तो वो ब्राहण कास्ट का मन जायेगा दलित कास्ट का नहीं
अगर कोई वैश्य (बनिया) के घर जनम लेता है लेकिन वयस्क होने पर सावर्जनिक सफ़ाई का काम ,(मरे हुए जानवरो की लड़ो को उठाना टॉयलेट पिड साफ करना,लाशो को सिलना आदि का कम
करता है तो वो दलित(छुद्र )मन जायेगा न की वैश्य(बनिया)
अगर कोईछत्रीय के घर जनम लेता है और वयस्क होने पर सावर्जनिक सफाई या पूजापाठ का कम करता है तो उससे दलित या ब्राह्मण मन जायेगा
ये है जाती व्यवस्था की पूरी सच्चाई
ha shi hai bro i agree about your thoughts but now give my some question answer
Delete!. Dunia me koi aisa dharm hai jo prachin dharm hai aur jisne hazaro salo tk yudh aur akrantao ko jhela aur phir bhi apne astitwa ko nhi mitne diya hai koi dharm agar hai to batao
2. agar tm jo bhi tmhre ghr me jo bujurg honge unse question karo ki bharat me sabse pahele kounsa dharm tha aur kis dharm ke upassak the aur unse aapne dharm ke astitva ke bare pucho
3. Agar Puri Duniya me jitne dharam hai unke astitva ke bare me ane ki jankari hai (year) i mean
wo dharm kis year me aaya tha aur kitne salo se hai prithvi pe aur hindu dharm ko kyu sanatan dharm bolte hain
4. Agar manusmriti ke sidhant itne bure the to kya bharat me usse pahele koi samajsudharak nhi paida hue aur tb itne kathor niyam ko leke bhi bharat ko sone ki chhudiya kyu kahte the
5. Aur ha bharat me striyon ko kyu devi kaha gya aur unhe kyu barabar ka adhikar diya gya hai aur unhe kyu saropari kaha gya hai
please ask your grandfather
Abe ye konsi duniya mai h.... Ye log kuch b padhe likhe nahi h hindu dharm duniya mai third number pe h ghoochu
DeleteHindu Dharam bahut sashakt he pur kuchh swarthi log ise kamjor kar rahe hen.
ReplyDeleteमित्रों
ReplyDeleteअभद्र शब्दों का प्रयोग करने वालो से मै यही कहना चाहता हूँ कि यदि आप लोगोँ ने "मनुस्मृति" को अपना पवित्र धार्मिक ग्रन्थ दिलोदिमाग से माना होता तब आप लोगों के अंदर राक्षसी प्रवृत्ति हावी नही हो पाती। जिसके वशीभूत होकर आप लोगो ने "माँ "बहन" जैसे स्त्री सूचक पवित्र रिश्ते को कलंकित करने वाले अपशब्दों का प्रयोग किया है।या फिर मैं यह मान लूँ कि आप लोगों ने "मनुस्मृति"को मान कर ही ऐसा किया ।
आप स्वस्थ चर्चा कीजिये और प्रमाणित तथ्यों एवम् तर्को के आधार पर कीजिये,आध्यात्मिक तर्को के आधार पर नही.
बिल्कुल सही इसी सावित होता है कि ए लोग शुद्र पर कितना अत्याचार किया होगा
Deleteजाती वयवस्था के बारे मई जो लिखा जोड़ा है वो आधा अधूरा ज्ञान है
Deleteजाती वयवस्था के बारे मई अधिकतर वामपंथियो ने लुकः है जिनकी सोच मैक्समूलर जेसे अग्रेजी अधिकाति की तरह थी।मरस्मुलर को ब्रिटिश भारत मई इग्लैंड से भेज ही इसलिए गया था ताकि वो हिन्दू धर्म ग्रथो का गलत अनुवाद करे
हिन्दू धर्मग्रंथ सनस्कृत मई लिखे गए है
संस्कृत मई एक ही सुब के अलग अलग औरत होते है जरा सा भी शेर फेर करने से पूरा अर्थ बदल जाता है
मैक्समूलर ने इस्सी का फायदा उठाया और संस्कृत के बिद्वानो को पैसो का लालच देकर उनसे हिन्दू धर्म ग्रंथो की गलत व्याख्या करवाई और खुद भी की
उससे पता था की हिन्दुओ को जाती वयवस्था मई बाट क्र उनकी एकता को तोडा जा सकता है और आजकल यही हो रहा है
ये बात सही है की हिन्दू धर्म मैं ब्राह्मण को विष्णु के मुख से,छत्रीय को भुनाओ से, वैश्य को छाती से और दलिट को पैरों के तलुओ से निकला बताया गया है
ये मनुस्मृती की जाती वयवस्था का पक्ष है
मनुस्मृति मई येभी कहा गया है की
कोई भी मनुस्य जो हिन्दू धर्म मई जन्म लेता है वो जन्म से दलित (छुद्र) ही होता है
उसके कर्म उसकी जाती निर्धारित करते है
जेसे
अगर कोई ब्राह्मण के घर पैदा हुआ बालक अगर मैला धोने(लोगो के टॉयलेट पिड़ जिसमे टॉयलेट जाती है साफ़ करने,नालिया साफ़ करने)मरे जानवरो क8 लाशो को उठाने या सावर्जनिक सफाई करने का काम करने का काम करता है तो उससे दलित (शूद्र) होता है अगर कोई दलित(छुद्र) पूजा पथ का कम करता है तो वो ब्राहण कास्ट का मन जायेगा दलित कास्ट का नहीं
अगर कोई वैश्य (बनिया) के घर जनम लेता है लेकिन वयस्क होने पर सावर्जनिक सफ़ाई का काम ,(मरे हुए जानवरो की लड़ो को उठाना टॉयलेट पिड साफ करना,लाशो को सिलना आदि का कम
करता है तो वो दलित(छुद्र )मन जायेगा न की वैश्य(बनिया)
अगर कोईछत्रीय के घर जनम लेता है और वयस्क होने पर सावर्जनिक सफाई या पूजापाठ का कम करता है तो उससे दलित या ब्राह्मण मन जायेगा
ये है जाती व्यवस्था की पूरी सच्चाई
महाशय इस पेज में श्लोकों का गलत अर्थ प्रस्तुत किया गया है अर्थात इसमें बस नफरत भरी गई है। इसलिए आप इन अर्थों पे भरोसा ना करे किसी संस्कृति वक्ता से उसका मतलब समझे। यही नफरत फैलाने के लिए इसलिए संस्कृति श्लोक नहीं लिखे है यहां। अगर सत्य जान ना है तो इस वीडियो में खुद देख लें।
Deletehttps://youtu.be/UElhL5u4AIA
मित्रों
ReplyDeleteअभद्र शब्दों का प्रयोग करने वालो से मै यही कहना चाहता हूँ कि यदि आप लोगोँ ने "मनुस्मृति" को अपना पवित्र धार्मिक ग्रन्थ दिलोदिमाग से माना होता तब आप लोगों के अंदर राक्षसी प्रवृत्ति हावी नही हो पाती। जिसके वशीभूत होकर आप लोगो ने "माँ "बहन" जैसे स्त्री सूचक पवित्र रिश्ते को कलंकित करने वाले अपशब्दों का प्रयोग किया है।या फिर मैं यह मान लूँ कि आप लोगों ने "मनुस्मृति"को मान कर ही ऐसा किया ।
आप स्वस्थ चर्चा कीजिये और प्रमाणित तथ्यों एवम् तर्को के आधार पर कीजिये,आध्यात्मिक तर्को के आधार पर नही.
sala pakhandi madhar chhod brahman
ReplyDeleteमहाशय इस पेज में श्लोकों का गलत अर्थ प्रस्तुत किया गया है अर्थात इसमें बस नफरत भरी गई है। इसलिए आप इन अर्थों पे भरोसा ना करे किसी संस्कृति वक्ता से उसका मतलब समझे। यही नफरत फैलाने के लिए इसलिए संस्कृति श्लोक नहीं लिखे है यहां। अगर सत्य जान ना है तो इस वीडियो में खुद देख लें।
Deletehttps://youtu.be/UElhL5u4AIA
madhar chhod pakhandi brahman ne hi is trah ke manusmrity ka lekhan kiya. jo bhi isame likha huaa hai o sahi hai. jo madhar chhod hai usako to dukh lagega hi kyuki usaka baap ne hi is manu ko likha hai. sala bolata hai ki isame jo likha hai o sahi hai kyuki o jati ka samaband janm se nahi hai jo jaisa karega o waisa hi usaka jati hoga to phir ajkal aisa kyu hai? jisaka bap likhakar chala gya to usaka aulad saala kyu n sudharta hai. o saala sudharega hi kaise o to baba sahab bhim rao ambedakar ne to us pakhandi brahman ki janm kundali hi jala dali. upar me koun to tha jo bol rah tha ki manusmrity ka aur path nahi likha gya kewal burai hi likha gya hai. sala achhai isame tha kaha ki likha jay. sab to badawa log aurt aur ham mul niwasi ko burai kiya hai. sale brahman ko pata nahi hai ki kisake gar me rah kar khana kha rahe hai. use to ye bhi pata nahi hai ki mera baap kaun hai ye mul niwasi hi mere baap hai. are brahman tum manu smirity ke bat karate ho n main batata hu manusmirity ke bare me manu me wahi bat likhi hui thi jo tum sachate nahi ho. mere pass us manu smirity book ka photo copy hai.
ReplyDeletePAKHANDI BRAHMAN MADHAR CHOD HOTE HAI.
sale jis thali me khate hai usi me chhed karate hai. bahan chod........................
महाशय इस पेज में श्लोकों का गलत अर्थ प्रस्तुत किया गया है अर्थात इसमें बस नफरत भरी गई है। इसलिए आप इन अर्थों पे भरोसा ना करे किसी संस्कृति वक्ता से उसका मतलब समझे। यही नफरत फैलाने के लिए इसलिए संस्कृति श्लोक नहीं लिखे है यहां। अगर सत्य जान ना है तो इस वीडियो में खुद देख लें।
Deletehttps://youtu.be/UElhL5u4AIA
हिंदू धर्म का विनाश का सबसे बड़ा कारण है वर्ण व्यवस्था अवतारवाद मूर्तिपूजा यही है सबसे बड़ा इस धर्म का विनाश का कारण अगर किस धर्म से जाति व्यवस्था छुआछूत भेदभाव ऊंची नीच खत्म हो जाएगा तो एक प्राचीन धर्म तो है ही सबसे सर्वोत्तम धर्म माना जाएगा लेकिन ऐसा देश के कुछ मनुवादी ब्राह्मण वादी व्यवस्था के पोषक व्यक्ति के कारण ही नहीं हो पाया है और ना होगा सनातन धर्म हिंदू धर्म से सभी धर्मों का उदय हुआ है मुस्लिम हो जैन हो ईसाई हो चाहे बहुत हो लेकिन इस सभी धर्मों में सबसे ज्यादा उदय बहुत धमका हुआ है और हो रहा है
ReplyDeleteना गीता से ना कुरान से ये देश चलता है संविधान से ,अगर हमारे धर्म ग्रन्थ सही होते तो बाबा साहब को संविधान लिखने की जरुरत नै पड़ती ,धर्म हमें गुलाम बनाने के लिए बनाया गया है धर्म इन्शानो को बाटता है हम भले ही एक देश में रहते है लेकिन हम आज एक नहीं है अलग अलग समपदाय में बाटे हुवे है
ReplyDeletedharm batata hai but bina dharm ke kalayan bhi sambhav nhi hai because dharm na hote insaan nhi honge aur dar na to nidar kise kahenge aur tm jise tm kahte ho ki dharm hame batata hai to tm jaise murkh ko pta hona chahiye ki kai tahaniyo aur jado se milker ek tree ka nirmaad hota aur kari tree ko milakar ek garden ka nirman hota hai ,
Deleteaur ha dharm hme gulam nhi aazad banata hai aur hame different tariko se jodta hai dharm dharm hi jo aaj tm ho
aur ye Indian Constitution se chalta hai to addalat me gita pe hath rakh ke kyu kasam kyu khilate hain
इतना कोहराम काहे मचा है भाईलोग, कृपया समझें:
ReplyDelete१. आज के काल में कोई हनुमान चालीसा नहीं पढता, मनुस्मृति को कौन पूछे, इसको मानने और जानने वाले तो दूर की बात है.
२.मनुस्मृति कोई वेद, गीता, उपनिषद जैसा कोई आध्यात्मिक ग्रन्थ नहीं है. ये तो १ साधारण व्यक्ति, मैं उसे ब्राह्मण भी नहीं कह सकता क्यूंकि वर्णाश्रम में जिसका वर्णन गीता में है, में कोई भी व्यक्ति अपने कर्मानुसार किसी भी वर्ण में जा सकता था और बदल सकता था. हजारों स्मृति बनी हैं, उनमे क्या लिखा है आज के युग में यह महत्व हीन है.
३. आज मनुस्मृति का नाम लेकर मात्र राजनीतिक हित साधा जाता है, जबकि हम कोई भी हों, अपने दैनिक जीवन में कितने तरह के लोग से मिलते हैं पर सच्चाई यही है कि जाति लेकर कोई भेदभाव नहीं करते, ये भेद भाव सिर्फ विवाह के समय और सरकारी नौकरी में देखा जाता है, अन्यथा कहीं नहीं//
४. मूलनिवासी नाम से १ और भ्रान्ति फैलाई जा रही, है जबकि बाबा साहब ने अपने किताब " who were the shoodras" में समस्त वेड पुराण, इतिहास को खंगाल कर इस थेओरी को पूरी तरह से खारिज कर दिया कि मूलनिवासी आर्य से अलग हैं और उनके निष्कर्ष इस प्रकार हैं:
After closely examining Vedic scriptures, the conclusios drawn by Babasaheb were this:
1. The Shudras were one of the Aryan communities of the Solar race.
2. The Shudras ranked as the Kshatriya Varna in the Indo-Aryan Society.
3. There was a time when the Aryan Society recognized only three Vamas, namely. Brahmins, Kshatriyas and Vaishyas. The Shudras were not a separate Varna but a part of the Kshatriya Varna.
4. There was a continuous feud between the Shudra kings and the Brahmins, in which the Brahmins were subjected to many tyrannies and indignities.
5. As a result of the hatred towards the Shudras due to their tyrannies and oppressions, the Brahmins refused to invest the Shudras with the sacred thread. Owing to the loss of the sacred thread the Shudras became socially degraded, fell below the rank of the Vaishyas and came to form the fourth Varna.
मैं सभी से विनम्र आग्रह करता हूँ आज के जामाने में इन्टरनेट सोशल साईट पर भांति भांति के दल हित चिन्तक मौजूद हैं और बाबा बन रहे हैं, उनको ना सुनकर, इसी इंटरनेट पर सारी सामाग्री मूल रूप में उपलब्ध है, उसका अध्ययन करें, और धर्म के किताबों का भी अध्ययन करें. आपको अपने आप ही सत्य का ज्ञान होने लगेगा. बाकी मनुस्मृति जलानेवालों से मेरा आग्रह है कि १ बार आसमानी किताब भी पढ़ लें और देखें की दोनों कितनी मिलती जुलती हैं.
सनातन सत्य को सिर्फ अनुभूत किया जा सकता है, वाणी से वर्णन में, समझने वालों को अर्थभ्रम हो सकता है, जिनको हिंदू धर्म में केवल बुराइयां ही दिखती हैं वो १ बार अष्टवक्र गीता, इसोप्निषद, गीता इत्यादि का भी अध्ययन करें. Lastly, I would say Brahmin is not a caste, it is a state of mind, if you have an open mind, quest for knowledge, can apply logic, you r one.
मनुस्मृति ३.५६ – जिस समाज यापरिवार में स्त्रियों का आदर – सम्मान होता है, वहां देवता अर्थात् दिव्यगुण और सुख़- समृद्धि निवास करते हैं और जहां इनका आदर – सम्मान नहीं होता, वहां अनादर करने वालों के सभी काम निष्फल हो जाते हैं भले ही वे कितना हीश्रेष्ट कर्म कर लें, उन्हें अत्यंत दुखों का सामना करना पड़ता है |
ReplyDeleteमनुस्मृति ३.५५ – पिता, भाई, पति या देवर कोअपनी कन्या, बहन, स्त्री या भाभी को हमेशा यथायोग्य मधुर- भाषण, भोजन, वस्त्र, आभूषण आदि से प्रसन्न रखना चाहिए और उन्हें किसी भी प्रकार काक्लेश नहीं पहुंचने देना चाहिए |
३.५७ – जिसकुल में स्त्रियां अपने पति के गलत आचरण, अत्याचार या व्यभिचार आदि दोषोंसे पीड़ित रहती हैं, वह कुल शीघ्र नाश को प्राप्त हो जाता है और जिस कुल मेंस्त्रीजन पुरुषों के उत्तम आचरणों से प्रसन्न रहती हैं, वह कुल सर्वदाबढ़ता रहता है |
३.५८-अनादर के कारण जो स्त्रियां पीड़ित और दुखी: होकर पति, माता-पिता, भाई, देवर आदि को शाप देती हैं या कोसती हैं – वह परिवार ऐसे नष्ट हो जाता हैजैसे पूरे परिवार को विष देकर मारने से, एक बार में ही सब के सब मर जातेहैं |
३.५९ – ऐश्वर्य की कामना करने वाले मनुष्यों को हमेशा सत्कार और उत्सव के समय में स्त्रियोंका आभूषण,वस्त्र, और भोजन आदि से सम्मान करना चाहिए |
३.६२- जो पुरुष, अपनी पत्नी कोप्रसन्न नहीं रखता, उसका पूरा परिवार ही अप्रसन्न और शोकग्रस्त रहता है | और यदि पत्नी प्रसन्न है तो सारा परिवार खुशहाल रहता है |
९.२६ – संतान को जन्म देकर घर काभाग्योदय करने वाली स्त्रियां सम्मान के योग्य और घर को प्रकाशित करनेवाली होती हैं | शोभा, लक्ष्मी और स्त्री में कोई अंतर नहीं है | यहां महर्षि मनु उन्हें घर की लक्ष्मी कहते हैं |
९.२८- स्त्री सभी प्रकार केसुखों को देने वाली हैं | चाहे संतान हो, उत्तम परोपकारी कार्य हो या विवाहया फ़िर बड़ों की सेवा – यह सभी सुख़ स्त्रियों के ही आधीन हैं | स्त्रीकभी मां के रूप में, कभी पत्नी और कभी अध्यात्मिक कार्यों की सहयोगी के रूपमें जीवन को सुखद बनाती है | इस का मतलब है कि स्त्री की सहभागिता किसी भी धार्मिक और अध्यात्मिक कार्यों के लिए अति आवश्यक है |
४. १८० – एक समझदार व्यक्ति को परिवार के सदस्यों – माता, पुत्री और पत्नी आदि के साथ बहस या झगडा नहीं करना चाहिए |
९ .४ – अपनी कन्या का योग्य वरसे विवाह न करने वाला पिता, पत्नी की उचित आवश्यकताओं को पूरा न करने वालापति और विधवा माता की देखभाल न करने वाला पुत्र – निंदनीय होते हैं |
९ .११ – धन की संभाल और उसके व्यय की जिम्मेदारी, घर और घर के पदार्थों कीशुद्धि, धर्म और अध्यात्म केअनुष्ठान आदि, भोजन पकाना और घर की पूरी सार -संभाल में स्त्री को पूर्ण स्वायत्ता मिलनी चाहिए और यह सभी कार्य उसी केमार्गदर्शन में होने चाहिए |
९.८९ – चाहे आजीवन कन्या पिता के घर में बिना विवाह के बैठी भी रहे परंतु गुणहीन, अयोग्य, दुष्ट पुरुष के साथ विवाह कभी न करे |
९.९० – ९१- विवाह योग्य आयु होनेके उपरांत कन्या अपने सदृश्य पति को स्वयं चुन सकती है | यदि उसके माता -पिता योग्य वर के चुनाव में असफल हो जाते हैं तो उसे अपना पति स्वयं चुनलेने का अधिकार है |
९.१३० – पुत्र के ही समान कन्याहै, उस पुत्री के रहते हुए कोई दूसरा उसकी संपत्ति के अधिकार को कैसे छीन सकता है ?
९.१३१ – माता की निजी संपत्ति पर केवल उसकी कन्या का ही अधिकार है |
९.२१२ – २१३ – यदि किसी व्यक्ति के रिश्तेदार या पत्नी न हो तो उसकी संपत्ति को भाई – बहनों में समान रूप से बांट देना चाहिए | यदि बड़ा भाई, छोटे भाई – बहनों को उनका उचित भाग न दे तो वह कानूनन दण्डनीय है |
८.२८- २९ – अकेली स्त्री जिसकीसंतान न हो या उसके परिवार में कोई पुरुष न बचा हो या विधवा हो या जिसकापति विदेश में रहता हो या जो स्त्री बीमार हो तो ऐसे स्त्री की सुरक्षा कादायित्व शासन का है | और यदि उसकी संपत्ति को उसके रिश्तेदार या मित्र चुरालें तो शासन उन्हें कठोर दण्ड देकर, उसे उसकी संपत्ति वापस दिलाए |
३.५२ – जो वर के पिता, भाई, रिश्तेदार आदि लोभवश, कन्या या कन्या पक्ष से धन, संपत्ति, वाहन या वस्त्रों को लेकर उपभोग करके जीते हैं वे महा नीच लोग हैं |
८.३२३- स्त्रियों का अपहरण करनेवालों को प्राण दण्ड देना चाहिए |
९.२३२- स्त्रियों, बच्चों और सदाचारी विद्वानों की हत्या करने वाले को अत्यंत कठोर दण्ड देना चाहिए |
८.३५२- स्त्रियों पर बलात्कारकरने वाले, उन्हें उत्पीडित करने वाले या व्यभिचार में प्रवृत्त करने वालेको आतंकित करने वाले भयानक दण्ड दें ताकि कोई दूसरा इस विचार से भी कांपजाए |
८.२७५- माता,पत्नी या बेटी पर झूठे दोष लगाकर अपमान करने वाले को दण्डित किया जाना चाहिए |
८.३८९- माता-पिता,पत्नी या संतान को जो बिना किसी गंभीर वजह के छोड़ दे, उसे दण्डित किया जाना चाहिए |
मनुस्म्रति मे लिखा है :- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।
ReplyDeleteअर्थात जहा नारियो की पूजा (सम्मान) होता है..वहा देवता निवास करते है..जहा नारियो का सम्मान नही होता वह सभी कर्म विफल होते है
विनय पीतका के कुल्लावग्गा खंड के अनुसार गौतमबुद्ध ने कहा था की “नारी अशुध, भ्रष्ट और कामुक होती हैं.” ये बात भी साफ – साफ लिखी गई है की वो “शिक्षा ग्रहण” नही कर सकती
वेदों की कई मन्त्र द्रष्टा ऋषिय मे से ३० महिलाये है
बुद्ध मत मे २८ बुद्ध है लेकिन एक भी बुद्ध स्त्री या शुद्र नही है,,जबकि पौराणिको मे देवताओ के साथ साथ देविया भी है
डा. अम्बेडकर ने अपने ब्राह्मण वाद से घ्रणा के चलते मनुस्मृति को निशाना बनाया और इतना ही नही अपनी कटुता के कारण मनुस्मृति के श्लोको का गलत अर्थ भी किया …अब चाहे अंग्रेजी भाष्य के कारण ऐसा हुआ हो या अनजाने में लेकिन अम्बेडकर जी का वैदिक धर्म के प्रति नफरत का भाव अवश्य नज़र आता है कि उन्होंने अपने ही दिए तथ्यों की जांच करने की जिम्मेदारी न समझी | यहाँ आप स्वयम देखे अम्बेडकर ने किस तरह गलत अर्थ प्रस्तुत कर गलत निष्कर्ष निकाले – (१) अशुद्ध अर्थ करके मनु के काल में भ्रान्ति पैदा करना और मनु को बोद्ध विरोधी सिद्ध करना – (क) पाखण्डिनो विकर्मस्थान वैडालव्रतिकान् शठान् | हैतुकान् वकवृत्तीश्र्च वाङ्मात्रेणापि नार्चयेत् ||(४.३०) डा . अम्बेडकर का अर्थ – ” वह (गृहस्थ) वचन से भी विधर्मी, तार्किक (जो वेद के विरुद्ध तर्क करे ) को सम्मान न दे|” ” मनुस्मृति में बोधो और बुद्ध धम्म के विरुद्ध में स्पष्ट व्यवस्था दी गयी है |” (अम्बेडकर वा. ,ब्राह्मणवाद की विजय पृष्ठ. १५३) शुद्ध अर्थ – पाखंडियो, विरुद्ध कर्म करने वालो अर्थात अपराधियों ,बिल्ली के सामान छली कपटी जानो ,धूर्ति ,कुतर्कियो,बगुलाभक्तो को अपने घर आने पर वाणी से भी सत्कार न करे | समीक्षा- इस श्लोक में आचारहीन लोगो की गणना है उनका वाणी से भी अतिथि सत्कार न करने का निर्देश है | यहा विकर्मी अर्थात विरुद्ध कर्म करने वालो का बलात विधर्मी अर्थ कल्पित करके फिर उसका अर्थ बोद्ध कर लिया |विकर्मी का विधर्मी अर्थ किसी भी प्रकार नही बनता है | ऐसा करके डा . अम्बेडकर मनु को बुद्ध विरोधी कल्पना खडी करना चाहते है जो की बिलकुल ही गलत है | (ख) या वेदबाह्या: स्मृतय: याश्च काश्च कुदृष्टय: | सर्वास्ता निष्फला: प्रेत्य तमोनिष्ठा हि ता: स्मृता:|| (१२.९५) डा. अम्बेडकर का अर्थ – जो वेद पर आधारित नही है, मृत्यु के बाद कोई फल नही देती, क्यूंकि उनके बारे में यह घोषित है कि वे अन्धकार पर आधारित है| ” मनु के शब्द में विधर्मी बोद्ध धर्मावलम्बी है| ” (वही ,पृष्ठ१५८) शुद्ध अर्थ – ‘ वेदोक्त’ सिद्धांत के विरुद्ध जो ग्रन्थ है ,और जो कुसिधान्त है, वे सब श्रेष्ट फल से रहित है| वे परलोक और इस लोक में अज्ञानान्ध्कार एवं दुःख में फसाने वाले है | समीक्षा- इस श्लोक में किसी भी शब्द से यह भासित नही होता है कि ये बुद्ध के विरोध में है| मनु के समय अनार्य ,वेद विरोधी असुर आदि लोग थे ,जिनकी विचारधारा वेदों से विपरीत थी| उनको छोड़ इसे बुद्ध से जोड़ना लेखक की मुर्खता ओर पूर्वाग्रह दर्शाता है | (ग) कितवान् कुशीलवान् क्रूरान् पाखण्डस्थांश्च मानवान| विकर्मस्थान् शौण्डिकाँश्च क्षिप्रं निर्वासयेत् पुरात् || (९.२२५) डा. अम्बेडकर का अर्थ – ” जो मनुष्य विधर्म का पालन करते है …….राजा को चाहिय कि वह उन्हें अपने साम्राज्य से निष्कासित कर दे | “(वही ,खंड ७, ब्राह्मणवाद की विजय, पृष्ठ. १५२ ) शुद्ध अर्थ – ‘ जुआरियो, अश्लील नाच गाने करने वालो, अत्याचारियों, पाखंडियो, विरुद्ध या बुरे कर्म करने वालो ,शराब बेचने वालो को राजा तुरंत राज्य से निकाल दे | समीक्षा – संस्कृत पढने वाला छोटा बच्चा भी जानता है कि कर्म, सुकर्म ,विकर्म ,दुष्कर्म इन शब्दों में कर्म ‘क्रिया ‘ या आचरण का अर्थ देते है | यहा विकर्म का अर्थ ऊपर बताया गया है | लेकिन बलात विधर्मी और बुद्ध विरोधी अर्थ करना केवल मुर्खता प्राय है |
ReplyDelete(२) अशुद्ध अर्थ कर मनु को ब्राह्मणवादी कह कर बदनाम करना – (क) सेनापत्यम् च राज्यं च दंडेंनतृत्वमेव च| सर्वलोकाघिपत्यम च वेदशास्त्रविदर्हति||(१२.१००) डा. अम्बेडकर का अर्थ – राज्य में सेना पति का पद, शासन के अध्यक्ष का पद, प्रत्येक के ऊपर शासन करने का अधिकार ब्राह्मण के योग्य है|’ (वही पृष्ठ १४८) शुद्ध अर्थ- ‘ सेनापति का कार्य , राज्यप्रशासन का कार्य, दंड और न्याय करने का कार्य ,चक्रवती सम्राट होने, इन कार्यो को करने की योग्यता वेदों का विद्वान् रखता है अर्थात वाही इसके योग्य है |’ समीक्षा – पाठक यहाँ देखे कि मनु ने कही भी ब्राह्मण पद का प्रयोग नही किया है| वेद शास्त्र के विद्वान क्षत्रिय ओर वेश्य भी होते है| मनु स्वयम राज्य ऋषि थे और वेद ज्ञानी भी (मनु.१.४ ) यहा ब्राह्मण शब्द जबरदस्ती प्रयोग कर मनु को ब्राह्मणवादी कह कर बदनाम करने का प्रयास किया है | (ख) कार्षापण भवेद्दण्ड्यो यत्रान्य: प्राकृतो जन:| तत्र राजा भवेद्दण्ड्य: सहस्त्रमिति धारणा || (८.३३६ ) डा. अम्बेडकर का अर्थ – ” जहा निम्न जाति का कोई व्यक्ति एक पण से दंडनीय है , उसी अपराध के लिए राजा एक सहस्त्र पण से दंडनीय है और वह यह जुर्माना ब्राह्मणों को दे या नदी में फैक दे ,यह शास्त्र का नियम है |(वही, हिन्दू समाज के आचार विचार पृष्ठ२५० ) शुद्ध अर्थ – जिस अपराध में साधारण मनुष्य को एक कार्षापण का दंड है उसी अपराध में राजा के लिए हज़ार गुना अधिक दंड है | यह दंड का मान्य सिद्धांत है | समीक्षा :- इस श्लोक में अम्बेडकर द्वारा किये अर्थ में ब्राह्मण को दे या नदी में फेक दे यह लाइन मूल श्लोक में कही भी नही है ऐसा कल्पित अर्थ मनु को ब्राह्मणवादी और अंधविश्वासी सिद्ध करने के लिए किया है | (ग) शस्त्रं द्विजातिभिर्ग्राह्यं धर्मो यत्रोपरुध्यते | द्विजातिनां च वर्णानां विप्लवे कालकारिते|| (८.३४८) डा. अम्बेडकर का अर्थ – जब ब्राह्मणों के धर्माचरण में बलात विघ्न होता हो, तब तब द्विज शस्त्र अस्त्र ग्रहण कर सकते है , तब भी जब द्विज वर्ग पर भयंकर विपति आ जाए |” (वही, हिन्दू समाज के आचार विचार, पृष्ठ २५० ) शुद्ध अर्थ:- ‘ जब द्विजातियो (ब्राह्मण,क्षत्रिय ,वैश्य ) धर्म पालन में बाँधा उत्पन्न की जा रही हो और किसी समय या परिस्थति के कारण उनमे विद्रोह उत्पन्न हो गया हो, तो उस समय द्विजो को शस्त्र धारण कर लेना चाहिए|’ समीक्षा – यहाँ भी पूर्वाग्रह से ब्राह्मण शब्द जोड़ दिया है जो श्लोक में कही भी नही है |
ReplyDelete(३) अशुद्ध अर्थ द्वारा शुद्र के वर्ण परिवर्तन सिद्धांत को झूटलाना | (क) शुचिरुत्कृष्टशुश्रूषुः मृदुवागानहंकृत: | ब्राह्मणाद्याश्रयो नित्यमुत्कृष्टां जातिमश्रुते|| (९.३३५) डा. अम्बेडकर का अर्थ – ” प्रत्येक शुद्र जो शुचि पूर्ण है, जो अपनों से उत्कृष्ट का सेवक है, मृदु भाषी है, अंहकार रहित हैसदा ब्राह्मणों के आश्रित रहता है (अगले जन्म में ) उच्चतर जाति प्राप्त करता है |”(वही ,खंड ९, अराजकता कैसे जायज है ,पृष्ठ ११७) शुद्ध अर्थ – ‘ जो शुद्र तन ,मन से शुद्ध पवित्र है ,अपने से उत्क्रष्ट की संगती में रहता है, मधुरभाषी है , अहंकार रहित है , और जो ब्राह्मणाआदि तीनो वर्णों की सेवा कार्य में लगा रहता है ,वह उच्च वर्ण को प्राप्त कर लेता है| समीक्षा – इसमें मनु का अभिप्राय कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था का है ,जिसमे शुद्र उच्च वर्ण प्राप्त करने का उलेख है , लेकिन अम्बेडकर ने यहाँ दो अनर्थ किये – ” श्लोक में इसी जन्म में उच्च वर्ण प्राप्ति का उलेख है अगले जन्म का उलेख नही है| दूसरा श्लोक में ब्राह्मण के साथ अन्य तीन वर्ण भी लिखे है लेकिन उन्होंने केवल ब्राह्मण लेकर इसे भी ब्राह्मणवाद में घसीटने का गलत प्रयास किया है |इतना उत्तम सिधांत उन्हें सुहाया नही ये महान आश्चर्य है | (४) अशुद्ध अर्थ करके जातिव्यवस्था का भ्रम पैदा करना (क) ब्राह्मण: क्षत्रीयो वैश्य: त्रयो वर्णों द्विजातय:| चतुर्थ एक जातिस्तु शुद्र: नास्ति तु पंचम:|| डा. अम्बेडकर का अर्थ- ” इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि मनु चातुर्यवर्ण का विस्तार नही चाहता था और इन समुदाय को मिला कर पंचम वर्ण व्यवस्था के पक्ष में नही था| जो चारो वर्णों से बाहर थे|” (वही खंड ९, ‘ हिन्दू और जातिप्रथा में उसका अटूट विश्वास,’ पृष्ठ१५७-१५८) शुद्ध अर्थ – विद्या रूपी दूसरा जन्म होने से ब्राह्मण ,वैश्य ,क्षत्रिय ये तीनो द्विज है, विद्यारुपी दूसरा जन्म ना होने के कारण एक मात्र जन्म वाला चौथा वर्ण शुद्र है| पांचवा कोई वर्ण नही है| समीक्षा – कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था ,शुद्र को आर्य सिद्ध करने वाला यह सिद्धांत भी अम्बेडकर को पसंद नही आया | दुराग्रह और कुतर्क द्वारा उन्होंने इसके अर्थ के अनर्थ का पूरा प्रयास किया | (५) अशुद्ध अर्थ करके मनु को स्त्री विरोधी कहना | (क) न वै कन्या न युवतिर्नाल्पविध्यो न बालिश:| होता स्यादग्निहोतरस्य नार्तो नासंस्कृतस्तथा||( ११.३६ ) डा. अम्बेडकर का अर्थ – ” स्त्री वेदविहित अग्निहोत्र नही करेगी|” (वही, नारी और प्रतिक्रान्ति, पृष्ठ ३३३) शुद्ध अर्थ – ‘ कन्या ,युवती, अल्पशिक्षित, मुर्ख, रोगी, और संस्कार में हीन व्यक्ति , ये किसी अग्निहोत्र में होता नामक ऋत्विक बनने के अधिकारी नही है| समीक्षा – डा अम्बेडकर ने इस श्लोक का इतना अनर्थ किया की उनके द्वारा किया अर्थ मूल श्लोक में कही भव ही नही है | यहा केवल होता बनाने का निषद्ध है न कि अग्निहोत्र करने का | (ख) सदा प्रहृष्टया भाव्यं गृहकार्येषु दक्षया | सुसंस्कृतोपस्करया व्यये चामुक्तह्स्त्या|| (५.१५०) डा. अम्बेकर का अर्थ – ” उसे सर्वदा प्रसन्न ,गृह कार्य में चतुर , घर में बर्तनों को स्वच्छ रखने में सावधान तथा खर्च करने में मितव्ययी होना चाहिय |”(वही ,पृष्ठ २०५) शुद्ध अर्थ -‘ पत्नी को सदा प्रसन्न रहना चाहिय ,गृहकार्यो में चतुर ,घर तथा घरेलू सामान को स्वच्छ सुंदर रखने वाली और मित्यव्यी होना चाहिय | समीक्षा – ” सुसंस्कृत – उपस्करया ” का बर्तनों को स्वच्छ रखने वाली” अर्थ अशुद्ध है | ‘उपस्कर’ का अर्थ केवल बर्तन नही बल्कि सम्पूर्ण घर और घरेलू सामान जो पत्नीं के निरीक्षण में हुआ करता है |
ReplyDelete(६) अशुद्ध अर्थो से विवाह -विधियों को विकृत करना (क) (ख) (ग) आच्छद्य चार्चयित्वा च श्रुतिशीलवते स्वयम्| आहूय दान कन्यायाः ब्राह्मो धर्मः प्रकीर्तित:||(३.२७) यज्ञे तु वितते सम्यगृत्विजे कर्म कुर्वते| अलकृत्य सुतादान दैव धर्म प्रचक्षते||(३.२८) एकम गोमिथुंनं द्वे वा वराददाय धर्मत:| कन्याप्रदानं विधिविदार्षो धर्म: स उच्यते||(३.२९) डा अम्बेडकर का अर्थ – बाह्म विवाह के अनुसार किसी वेदज्ञाता को वस्त्रालंकृत पुत्री उपहार में दी जाती थी| देव विवाह था जब कोई पिता अपने घर यज्ञ करने वाले पुरोहित को दक्षिणास्वरूप अपनी पुत्री दान कर देता था | आर्ष विवाह के अनुसार वर, वधु के पिता को उसका मूल्य चूका कर प्राप्त करता था|”( वही, खंड ८, उन्नीसवी पहेली पृष्ठ २३१) शुद्ध अर्थ – ‘वेदज्ञाता और सदाचारी विद्वान् कन्या द्वारा स्वयम पसंद करने के बाद उसको घर बुलाकर वस्त्र और अलंकृत कन्या को विवाहविधिपूर्वक देना ‘ बाह्य विवाह’ कहलाता है ||’ ‘ आयोजित विस्तृत यज्ञ में ऋत्विज कर्म करने वाले विद्वान को अलंकृत पुत्री का विवाहविधिपूर्वक कन्यादान करना’ दैव विवाह ‘ कहाता है ||” ‘ एक या दो जोड़ा गाय धर्मानुसार वर पक्ष से लेकर विवाहविधिपूर्वक कन्यादान करना ‘आर्ष विवाह ‘ है |’ आगे ३.५३ में गाय का जोड़ा लेना वर्जित है मनु के अनुसार समीक्षा – विवाह वैदिक व्यवस्था में एक संस्कार है | मनु ने ५.१५२ में विवाह में यज्ञीयविधि का विधान किया है | संस्कार की पूर्णविधि करके कन्या को पत्नी रूप में ससम्मान प्रदान किया जाता है | इन श्लोको में इन्ही विवाह पद्धतियों का निर्देश है | अम्बेडकर ने इन सब विधियों को निकाल कर कन्या को उपहार , दक्षिणा , मूल्य में देने का अशुद्ध अर्थ करके सम्मानित नारी से एक वस्तु मात्र बना दिया | श्लोको में यह अर्थ किसी भी दृष्टिकोण से नही बनता है | वर वधु का मूल्य एक जोड़ा गाय बता कर अम्बेडकर ने दुर्भावना बताई है जबकि मूल अर्थ में गाय का जोड़ा प्रेम पूर्वक देने का उलेख है क्यूंकि वैदिक संस्कृति में गाय का जोड़ा श्रद्धा पूर्वक देने का प्रतीक है |
ReplyDeleteBhaiyo mai aapse ek baat kahna chahata hu ki..... kya aap ek bekar ki bahas me nahi pad rahe ho?
ReplyDeleteEk manusmarti ko nakarta h aur doosra uska samarthan karta h to fark kya padta. Dono apni jagah sahi h. Ek ki manusmarti me shradha h aur doosre ki nahi h. Jo isme viswas nahi karta to uski burai kyo aur jo viswas karta h to to doosre par use thopne ki kyo koshis karta h. Yadi aap ek hindu h to manusmarti par viswas karenge yadi aap hindu nahi h to aap iski kisi baat par na viswas karenge na hi manenge
Manusmarti ka virodh karnewale pahle yah tay kare ki aap hindu h ya nahi yahi. hindu h to virodh kaisa aur yadi hindu nahi ti irshya kyo.
Kabhi kisi muslim ko manusmarti ki bahas m padate huye dekha h?
Virodhi bhaiyon pahle to aap ye hi nahi tay nahi kar pa rahe ho ki aap hindu h ya nahi. Yadi aapne yah tay kar liya k aap hindu h ya nahi to aapki saari bahas khatm ho jayegi.
Yadi koi hindu h to use kuran ki achchhai ya burai se kya lena dena. Kya bahas karna. Mai hindu dharm m viswas nahi karta kyoki m hindu nahi hu jo hindu dharm viswas karta h vo manusmarti m b viswas karega. To fark kya padta h. Kisi dharm me rahkar uska virodh karna b galat h aur kisi dharm m na rahkar b uske samarthan m khada hona b galat h
Isliye bhaiyo bekar ki bahas m na padkar dono ko hi apni buddho ko lagana h to manavta k vikad m me lagaye.
बुद्ध मत में वज्रयान नाम की एक शाखा है .जिसमे तरह तरह के तंत्र मन्त्र होते है ..ये तरह तरह के देवी देवताओ विशेष कर तारा देवी को पूजते है …
ReplyDeleteये लोग वाम्मार्गियो की तरह ही बलि और टोटके करते है ..इन्ही में भेरवी चक्र होता है ..जिसमे ये लोग शराब और स्त्री भोग करते है ..जिसे ये सम्भोग योग कहते है ..इनका मानना है की विशेस तरह से स्त्री के साथ योन सम्बन्ध बनाने से समाधी की प्राप्ति होती है ..इस तरह का पाखंड इन बुद्धो में भरा है ..एक महान बौद्ध राहुल सांस्कृत्यायन के अनुसार भारत में बुद्ध मत का नाश इसी वज्रयान के कारण हुआ था
आज भी थाईलैंड ,चाइना आदि वज्रयान बुद्ध विहारों पर कई नाबालिक लडकियों का कौमार्य इन दुष्ट भिक्षुओ द्वारा तोडा जाता है ……
अन्य बौद्ध पाखंड या काल्पनिक बातें :-
मझिम निकाय के अनुसार बुद्ध लाखो में विभक्त होकर एक हो जाते थे ..बुद्ध खुद को बहुत विशाल ओर खुद को चीटी जैसा छोटा भी कर लेते थे .. शीलवती बौद्ध भिक्षुणी के पैर के अंगूठे को बुद्ध देव सपने में आकर छू देते है ओर वह गर्भवती हो जाती है …
जापानी बुद्धो द्वारा एक लोक कथा प्रचलित है की
मनुस्मृति के अनुसार- शुद्र का अन्न रक्तस्वरुप हैं यानी वह खाने योग्य ही नही हैं.
ReplyDeleteइस बात से पता चलता है कि आज भी दलित के अपमान को बया करती है
महाशय इस पेज में श्लोकों का गलत अर्थ प्रस्तुत किया गया है अर्थात इसमें बस नफरत भरी गई है। इसलिए आप इन अर्थों पे भरोसा ना करे किसी संस्कृति वक्ता से उसका मतलब समझे। यही नफरत फैलाने के लिए इसलिए संस्कृति श्लोक नहीं लिखे है यहां। अगर सत्य जान ना है तो इस वीडियो में खुद देख लें।
Deletehttps://youtu.be/UElhL5u4AIA
Manu cannot write all this rubbish, these are all interpolated. Hinduism is the only religion where godesses are more worshipped in every form and for every wish cannot have such scripts. Ours is the only culture where every woman has it's own relation name. Even no cast can be superior or inferior to other. All are according to karma and has it's utmost impotance according to vocation.
ReplyDeleteManu cannot write all this rubbish, these are all interpolated. Hinduism is the only religion where godesses are more worshipped in every form and for every wish cannot have such scripts. Ours is the only culture where every woman has it's own relation name. Even no cast can be superior or inferior to other. All are according to karma and has it's utmost impotance according to vocation.
ReplyDeleteसभी विद्वानों को अवगत कराना चाहता हु की आर्य या हिन्दू के प्रमाणिक ग्रन्थ वेद है । सृस्टि के कुछ समय बाद व्यवस्था चलाने के लिए बनाये गए प्रथम राजा मनु ने एक सविधान बनाया जो विश्व का प्रथम सविधान के नाम से जाना जाता है और उसका नाम मनुस्मर्ति है ।
ReplyDeleteचुकी मनु जी वेदों के विद्वान् थे इसलिए उन्होंने वैदिक मान्यताओ के आधार पर ही मनु स्म्रति बनाई ।महाभारत के बाद विधर्मियो ने मनुस्मर्ति से बहुत सारे श्लोक निकाल दिए तथा मनु स्म्रति को बदनाम करने हेतु वैदिक मान्यताओ के विरुद्ध श्लोक बनाकर जोड़ दिए ।आज स्थति यह है की मनु स्म्रति के कुल श्लोक 2685 में से 1471 श्लोक प्रछिप्त पाये जाते है ।
विस्तार से जानने के लिए कृपया मनुस्मर्ति का भाष्य जो प्रसिद्ध वैदिक विद्वान् डॉ सुरेन्दर कुमार जी ने किया हे तथा उसे आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट दिल्ली ने छापा है का अध्यन कर सकते है ।
अभी तक जिन लोगो ने बगैर कुछ अध्यन या प्रमाण के बे सर पैर की बाते लिखी हे वो सब दया के पात्र हे
Sahi Kaha....
DeleteBilkul sahi baat h....
Deleteमनु एक घटिया किस्म का इंसान था और जो उसने मनु स्मरति मैं लिखा है वह उसकी घटिया पैन की निशानी है
ReplyDeleteमहाशय इस पेज में श्लोकों का गलत अर्थ प्रस्तुत किया गया है अर्थात इसमें बस नफरत भरी गई है। इसलिए आप इन अर्थों पे भरोसा ना करे किसी संस्कृति वक्ता से उसका मतलब समझे। यही नफरत फैलाने के लिए इसलिए संस्कृति श्लोक नहीं लिखे है यहां। अगर सत्य जान ना है तो इस वीडियो में खुद देख लें।
Deletehttps://youtu.be/UElhL5u4AIA
इन लोगो को तो केवल जय भीम करना आता है
ReplyDeleteइतनी ही समस्या है हिन्दू धर्म में कास्ट सिस्टम से तो आरक्षण छोड़ दो न अब तो 5 प्रतिशत भी गरीब नही है तुममे से क्यों नीची जात का मानते हो अपने आपको समस्या हिन्दू धर्म में नही इन लोगो की सोच में है जो अपने धर्म समाज के भी सगे नही हो सके और बातें विकास की कर रहे हैं
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DeleteManu ek lutra rohangiya tha jisne loot ke karan bharat ki janta ko bekuf banaya or ye ban gaye manu ek kalankit byakti tha
ReplyDeleteमहाशय इस पेज में श्लोकों का गलत अर्थ प्रस्तुत किया गया है अर्थात इसमें बस नफरत भरी गई है। इसलिए आप इन अर्थों पे भरोसा ना करे किसी संस्कृति वक्ता से उसका मतलब समझे। यही नफरत फैलाने के लिए इसलिए संस्कृति श्लोक नहीं लिखे है यहां। अगर सत्य जान ना है तो इस वीडियो में खुद देख लें।
Deletehttps://youtu.be/UElhL5u4AIA
Jaatiwad se to bhagvan Krishna bhi apneaap ko nahi bacha sake isiliye to ek stri ke sath 5 bhai shadi karne wale Evam use juve me harkar uski lut ti ijjat ka tamasha dekhne walon ko sahi samajhkar unka sharthi bana or nirdosh maharani parakrami karn ko shudra samajhkar nihaththa karke dhoke se marwa diya or marte waqt usse uski 32 daat Dan me mangne chala Gaya.
ReplyDeleteJaatiwad se to bhagvan Krishna bhi apneaap ko nahi bacha sake isiliye to ek stri ke sath 5 bhai shadi karne wale Evam use juve me harkar uski lut ti ijjat ka tamasha dekhne walon ko sahi samajhkar unka sharthi bana or nirdosh maharani parakrami karn ko shudra samajhkar nihaththa karke dhoke se marwa diya or marte waqt usse uski 32 daat Dan me mangne chala Gaya.
ReplyDeleteMuslim and Christian kaha se paida huhe manu be ye kayun Nahi bataya
ReplyDeleteKyu re jugal chutiye pandit jyada hosiyar h beta yad rakhna tumhari maiya chudne wali h ruk ja kuchh sal aur abe jhantu jo such h wo such h to man na madarchod mandiro m reservation leke baitha h harami ki aulad aur sun reservation hamara adhikar h koi bheekh nhi dobara yadi reservation k upar ungli uthaya to ungli kat li jayegi benchod
ReplyDeleteमहाशय इस पेज में श्लोकों का गलत अर्थ प्रस्तुत किया गया है अर्थात इसमें बस नफरत भरी गई है। इसलिए आप इन अर्थों पे भरोसा ना करे किसी संस्कृति वक्ता से उसका मतलब समझे। यही नफरत फैलाने के लिए इसलिए संस्कृति श्लोक नहीं लिखे है यहां। अगर सत्य जान ना है तो इस वीडियो में खुद देख लें।
Deletehttps://youtu.be/UElhL5u4AIA
ये द्वेष भावना से लिखा लेख है,
ReplyDeleteये हमारे समाज को बांटने के लिए लिखा गया है
ReplyDeleteऐसा कुछ नहीं है अगर ऐसा होता तो श्री राम बिलनी के झूठे बेर क्यों खाते और श्री कृष्णा भी जातिवाद के बारे में कुछ बोलते मगर गीता जी में ऐसा कुछ नहीं है ।।। ये सब छेद छाड़ विदेशियों ने की हे ताकि हम सब स्नातन धर्म के लोगो को बांन्ट दिया जाए और भारत के दुकड़े हो सके जो युगों युगों से अपने संस्कारो को वर्चस्व के लिए जाना जाता है। विदेशियों ने ऐसा इस लिए भी किया ताकि वो लोग हमारे धर्म को तोड़ कर अपने धर्म को फेल सके ।।। समझदारों के लिए इसारा ही काफी हे की कोण कोण से धर्म डरा कार्य कुछ धन का लालच दे कर अपने धर्म का प्रचार करते है।।।। जय हिन् ।। जय श्री राम।।
ये हमारे समाज को बांटने के लिए लिखा गया है
ReplyDeleteऐसा कुछ नहीं है अगर ऐसा होता तो श्री राम बिलनी के झूठे बेर क्यों खाते और श्री कृष्णा भी जातिवाद के बारे में कुछ बोलते मगर गीता जी में ऐसा कुछ नहीं है ।।। ये सब छेद छाड़ विदेशियों ने की हे ताकि हम सब स्नातन धर्म के लोगो को बांन्ट दिया जाए और भारत के दुकड़े हो सके जो युगों युगों से अपने संस्कारो को वर्चस्व के लिए जाना जाता है। विदेशियों ने ऐसा इस लिए भी किया ताकि वो लोग हमारे धर्म को तोड़ कर अपने धर्म को फेल सके ।।। समझदारों के लिए इसारा ही काफी हे की कोण कोण से धर्म डरा कार्य कुछ धन का लालच दे कर अपने धर्म का प्रचार करते है।।।। जय हिन् ।। जय श्री राम।।
वाराणसी के गंगा घाट पर ब्राह्मणों के बच्चों को आज भी मंत्र उच्चारित कर के ही उसी लय मे सिखाया जाता है जो सदियों से चला आ रहा है, न कि लिखित रूप से। पर अभी भी ये मनुवादी मादरचोद अपने पुरखों के पाप छुपाने के लिए कभी अंग्रेजों को तो कभी मुगलों को जिम्मेदार ठहराएंगे कि मनुस्मृति का अनवाद गलत हुआ है। मुगलों और अंग्रेजों से रोटी-बेटी का रिश्ता रखने वाले ये नहीं मानेंगे कि मनुस्मृति का बनना ही पाप था।
ReplyDeleteमहाशय इस पेज में श्लोकों का गलत अर्थ प्रस्तुत किया गया है अर्थात इसमें बस नफरत भरी गई है। इसलिए आप इन अर्थों पे भरोसा ना करे किसी संस्कृति वक्ता से उसका मतलब समझे। यही नफरत फैलाने के लिए इसलिए संस्कृति श्लोक नहीं लिखे है यहां। अगर सत्य जान ना है तो इस वीडियो में खुद देख लें।
Deletehttps://youtu.be/UElhL5u4AIA
Bakvas hai ye manusmruti
ReplyDeleteमहाशय इस पेज में श्लोकों का गलत अर्थ प्रस्तुत किया गया है अर्थात इसमें बस नफरत भरी गई है। इसलिए आप इन अर्थों पे भरोसा ना करे किसी संस्कृति वक्ता से उसका मतलब समझे। यही नफरत फैलाने के लिए इसलिए संस्कृति श्लोक नहीं लिखे है यहां। अगर सत्य जान ना है तो इस वीडियो में खुद देख लें।
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Anonymous क्या तुम आरक्षण वालो जैसा काम करेगा मरे जानवर फेकना गन्दी नालिया साफ़ करना मैला धोना वो करेगा क्या बोल है सेहमत !!!!
ReplyDeleteभारत देशमे जितनेभी आदिवासी समाज के लोग है उन सबकी अपनी अपनी आदिवासी भाषाये है ऊँची जाती के लोगोके पास क्या है गुजराती आदिवासी गुर्जर समाजकी भाषा कॉपी है हिंदी और संस्कृत संथली और देवनागरी आदिवासी की कॉपी है और इन हिंदी,संस्कृत और गुजराती भाषा का अस्तित्व कोनसी सदी मै अविष्कार हुवा जानते हो आमी आदिवासी आम्णी भाषा
ReplyDeletekitna hasyapad h koi mukh se utpan huo koi chhati,jangh,pair se koi murkh log hi manege,yah granth pakhando se ghira hui h
ReplyDeleteमहाशय इस पेज में श्लोकों का गलत अर्थ प्रस्तुत किया गया है अर्थात इसमें बस नफरत भरी गई है। इसलिए आप इन अर्थों पे भरोसा ना करे किसी संस्कृति वक्ता से उसका मतलब समझे। यही नफरत फैलाने के लिए इसलिए संस्कृति श्लोक नहीं लिखे है यहां। अगर सत्य जान ना है तो इस वीडियो में खुद देख लें।
Deletehttps://youtu.be/UElhL5u4AIA
Manusmriti pakhand dharm grunth hai inko Kai na mane
ReplyDeleteManusmriti pakhandiyo ka granth hai isko koi na mane
ReplyDeleteमहाशय इस पेज में श्लोकों का गलत अर्थ प्रस्तुत किया गया है अर्थात इसमें बस नफरत भरी गई है। इसलिए आप इन अर्थों पे भरोसा ना करे किसी संस्कृति वक्ता से उसका मतलब समझे। यही नफरत फैलाने के लिए इसलिए संस्कृति श्लोक नहीं लिखे है यहां। अगर सत्य जान ना है तो इस वीडियो में खुद देख लें।
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यदि वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर थी तो गीता में जाति का भी उल्लेख हुआ है और अगर हिंदू ग्रंथों में बदलाव को ब्राह्मण विदेशी हस्तछेप मानता है तो आज अपनी लड़कियों का विवाह नीचे के तीनों वर्णों से क्यों नहीं करता ? आज किसने रोका है? ब्राह्मण जन्म के आधार पर अपने बच्चों का विवाह नीचे के वर्णों से करने से क्यों इनकार करता है तब वर्णसंकर कहां से आ जाता है? ये अपने समाज को ऊपर रखने की ब्राह्मणों की साजिश है ये किसी भी मठ का मठाधीश सुद्र या वैश्य को क्यों नहीं बनाते? चारों मठाधीश अंतर्जातीय विवाह के खिलाफ क्यों है? वर्णसंकर और पूर्व कर्म आधारित जन्म व जन्म आधारित वर्ण और जाति ही सनातन धर्म का सत्य है, मठाधीश का जवाब है,।
ReplyDeleteमहाशय इस पेज में श्लोकों का गलत अर्थ प्रस्तुत किया गया है अर्थात इसमें बस नफरत भरी गई है। इसलिए आप इन अर्थों पे भरोसा ना करे किसी संस्कृति वक्ता से उसका मतलब समझे। यही नफरत फैलाने के लिए इसलिए संस्कृति श्लोक नहीं लिखे है यहां। अगर सत्य जान ना है तो इस वीडियो में खुद देख लें।
Deletehttps://youtu.be/UElhL5u4AIA
सही है 👏👏👏
Deleteसबकुछ गलत लिखा है। मनुस्मृति समझने के लिये पहले संस्कृत भाषा का ज्ञान जरूरी है। जिसने भी अनुवाद किया है उसे संस्कृत की ट्युशन की जरूरत है। समाज मे विद्वेष मत फैलाओ।
ReplyDeleteरहस्यके बारेमा आजश्यक ज्ञान होना चाहिए । मनुस्मृति आधुनिक छापा खानासे सव आए ? काैन बता सक्ता है । मै इसको खोजमे हुँ । सहयोग किजिए ।
ReplyDeleteमहाशय इस पेज में श्लोकों का गलत अर्थ प्रस्तुत किया गया है अर्थात इसमें बस नफरत भरी गई है। इसलिए आप इन अर्थों पे भरोसा ना करे किसी संस्कृति वक्ता से उसका मतलब समझे। यही नफरत फैलाने के लिए इसलिए संस्कृति श्लोक नहीं लिखे है यहां। अगर सत्य जान ना है तो इस वीडियो में खुद देख लें।
Deletehttps://youtu.be/UElhL5u4AIA
स्त्री का इतना अपमान करनेवाले मनु ये जान ले की उन्होंने भी एक स्त्री गर्भ से जन्म लिया है। एक स्त्री के कारण ही वे इस घटिया ग्रंथ को लिखने के लायक हुए। पढ़ कर ही समझ आ रहा है कि उस समय शूद्रों और स्त्रियों के जीवन का स्तर क्या रहा होगा। शर्म आती है पढ़ कर
ReplyDeleteहे देवी जी, इस पेज में श्लोकों का गलत अर्थ प्रस्तुत किया गया है अर्थात इसमें बस नफरत भरी गई है। इसलिए आप इन अर्थों पे भरोसा ना करे किसी संस्कृति वक्ता से उसका मतलब समझे। यही नफरत फैलाने के लिए इसलिए संस्कृति श्लोक नहीं लिखे है यहां। हमारे समाज में स्त्रियों का आदर पुरातन काल से ही है ओर मनुस्मृति में भी है यकीन नहीं आता तो इस वीडियो में आपको सारे सवालों के जवाब मिल जाएंगे।
Deletehttps://youtu.be/UElhL5u4AIA
Thanks to Ambedkar jisne Manu ki smriti ko burnt kiya...or ye brahman ye to lower caste ko kbi koi right na dete age vsa hi chlta to... brahman apni hi publicity krte ha...sare ache kaam ye hi kre... Women ki position aaj bhi lower ha Indian society me due to dominance of patriarchy... Reality is that women is more powerful than men.. Kuch log reservation k against ha, tell me one thing tumne konsa acha kbi chaha ha lower castes k kiye jo aaj chahoge
ReplyDeleteमहाशय इस पेज में श्लोकों का गलत अर्थ प्रस्तुत किया गया है अर्थात इसमें बस नफरत भरी गई है। इसलिए आप इन अर्थों पे भरोसा ना करे किसी संस्कृति वक्ता से उसका मतलब समझे। यही नफरत फैलाने के लिए इसलिए संस्कृति श्लोक नहीं लिखे है यहां
Deleteघोर मनुष्य विरोधी नियमों का दस्तावेज है मनुस्मृति।सभ्य समाज, तर्कशील सोसायटी में स्वीकृत का अर्थ है समाज को एक बार फिर पीछे ले जाना
ReplyDeleteमहाशय इस पेज में श्लोकों का गलत अर्थ प्रस्तुत किया गया है अर्थात इसमें बस नफरत भरी गई है। इसलिए आप इन अर्थों पे भरोसा ना करे किसी संस्कृति वक्ता से उसका मतलब समझे। यही नफरत फैलाने के लिए इसलिए संस्कृति श्लोक नहीं लिखे है यहां
DeleteYeah maderchod kis chutiye NE Licha hai
ReplyDeleteMera to ek uddeshya hai karm se mahan bano janm se nahi
बहुत ही गलत प्रस्तुति 😠
ReplyDeleteनाच न जाने आंगन टेढ़ा
Saab saach likha aor yahi Karad tha jiske kardbhart itne Saal gulam tha yee nich pandito ne uch nich ki shuruwat kiya tha angrejo ne bhi iss liye kamjori pakdi hmari yhi karadh hai vedo ke hi karad aabhi tak bhart ke kahi jagahome aabhi tak jati wad hota hai
Deleteभाई पहले उन श्लोकों के सही मतलब पढ़ो, संस्कृति पढ़ने तो आती नहीं लेकिन मतलब जरूर समझ जाओगे की यही लिखा है। इस पेज में दिया हुआ अर्थ बिल्कुल ग़लत है। इस इंसान को भाषा का कोई ज्ञान नहीं है कुछ भी अनाब सनाब लिख दिया है। भाई पहले आप उनके अर्थ का सही मतलब ढूंढो उसके बाद नफरत करना। पहले से ही नफरत कि निगाह से मत पढ़ो।
DeleteYe kya baat karega chutiya hai ham nich ni beta pandit hai ham tumlogo ke baap ka baap
Deleteआपका कथन सत्य है भाई जी समाज को जागरुक करो इन मनुवादियों के चक्कर मे मत पडो ये नही चाहते की बाबा साहेब का संविधान लागू रहे अगर मनुवादी वरन वयवस्था खत्म करना चाहते है तो अंतरजातीय विवाह करवाने का संकल्प लो
ReplyDeleteYe sab muglo or agarejeo ne milakar hamare dimak me jahar barne ke liye ye sab kiya hai
ReplyDeleteमै इस पेज में कहीं गई श्लोकों के अर्थ का खंडन करता हूं। ये बिल्कुल ही भ्रामक ओर समाज में नफरत फैलाने वाला है। इस व्यक्ति ने जान बूच कर ऐसे गलत आर्था लिखे है। इस पेज के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए। इसके अर्थ बिल्कुल ही गलत है। इस पेज का बहिष्कार नहीं इसपर अब कार्यवाही करना होगा।
ReplyDeleteBrammado ki ma ki chut ma ke labde
ReplyDeleteMaine in article ko manusmriti se match kiya aap ne jo kuchh bhi btaya hai ye sab sahi hai ....baba saheb dr b r ambedkar ji ne yu hi nhi manusmriti ko 10,000 logo ke sath 25 dec 1927 me jala diya tha....manusmriti ek ghatiya aur asamajik granth hai.
ReplyDeleteAne bewakoof tujhe na to varn ka gyan hai. Na hi tujhe niyam dharm se koi lena hai. Tu to khud meat khane wala sharaab madira. Peene wala insaan hai. Ab Tu logo ko batayega ki brahmin kaun hain. Vaampanthi fuddu
ReplyDelete. Khud kisi niyam ka paalan kar nahi sakte . Dusro ko shiksha de raha hai
Manusmrti bahut hi bakwas
ReplyDeleteManusrti me bakwas likha hai
ReplyDelete
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Very well informed thanks for sharing check post Sacha Dharm Konsa Hai
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इन लड़कों से सेवाएँ लेने वाली महिलाएं (अमीर अय्याश महिलाएं) भी बड़े घरानों की होती है... जो एक बार के 7 से 12 हजार रूपये तक देती है | अगर आप भी जिगोलो बनकर पैसे कमाना चाहते है तो जल्द ही हमसे संपर्क करे .... Call me 9818592392
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